आज हम उन ‘Successful People With Disabilities‘ की बात करेंगे जिन्होंने अपनी विकलांगता को अपनी ताकत बना लिया। जिन्होंने साबित कर दिया कि इंसान अपनी सोच से विकलांग होता है, अगर इंसान की सोच बड़ी है तो हाथ पैरों से विकलांग व्यक्ति भी वो कर सकता है जो हाथ पैरों वाला व्यक्ति सोच भी नहीं सकता।
दुनिया के Successful People With Disabilities जिनका मानना है कि विकलांगता सिर्फ एक सोच है। अगर व्यक्ति के इरादें मज़बूत है तो कोई ऐसा फील्ड नहीं हैं जहाँ एक विकलांग व्यक्ति कामियाब न हो। आज हम ऐसी ही बड़ी सोच वाले दुनिया के 12 सफल लोगों की बात करेंगे जो हमेशा प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्त्रोत रहेंगे –
12 Successful People With Disabilities Who Inspire Us Everyday
1 – निक व्युजेसिक(Nick Vujicic)
निक व्युजेसिक का जन्म 1982 को बिना किसी अंग के हुआ था। बिना किसी हाँथ पैर के रूप में बचपन से ही उन्होंने उपहास और भेदभाव का सामना किया जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की, पर एक सकारात्मक दृस्टिकोण चलते उन्होंने अपनी क्षमता देखना सीख लिया।
लाइफ विदाउट लिम्ब्स के संस्थापक ‘निक व्युजेसिक’ आज सफलता के उस स्तर पर हैं कि वो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं हैं। आज दुनिया भर में ‘निक व्युजेसिक’ प्रेरक वक्ता (Motivational Speekar) के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा वो कई पुस्तकों के लेखक हैं और टीवी शोज में भी काम करते हैं। निक व्युजेसिक के बारे में अधिक जानने की लिए पढ़ें – असंभव को संभव करने की कहानी | Nick Vujicic Success Story
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2 – अरुणिमा सिन्हा (Arunima Sinha)
Image Source | Successful People With Disabilities – Arunima Sinha
भारत के उत्तर प्रदेश की पूर्व राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा की वो 2011 की सबसे बदसूरत घटना उन्होंने अपना एक पैर खो दिया जब कुछ लुटेरे उनकी चेन लूटना चाहते थे। जब उन्होंने मना किया तो उन लुटेरों ने उन्हें चलती ट्रेन से धक्का दे दिया जिससे वो एक गुजरती ट्रेन की चपेट में आ गई और बुरी तरह से घायल हो गईं।
यह वो समय था जब सभी उन्हें लाचार और बेबस समझ रहे थे। वो नहीं चाहती थी कि लोग उन पर दया करें। तब उन्होने अपनी सकारात्मक मनोवृत्ति को अपनाया और अपने कृत्रिम पैर को अपनी ताकत में बदल दिया। उन्होंने जीवन में अपने आप का साबित करने के लिए कुछ करने का फैसला किया।
अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की पहली महिला बनी। उनका कहना है “असफलता तब नहीं है जब हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल होते जाते हैं। ऐसा तब होता है जब हमारे पास पर्याप्त लक्ष्य नहीं होते हैं। ” – इंसान अपनी सोच से दिमाग से विकलांग होता है। यदि आपकी सोच सकारात्मक है तो हाथ पैरों की विकलांगता कोई मायने नहीं रखती।
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3 – स्टीफन हॉकिंग्स (Stephen Hawkings)
स्टीफन हॉकिंग्स प्रतिभाशाली दिमाग वाले एक विश्व प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी और लेखक थे। स्टीफन हॉकिंग्स ने कठिनाइयों से भरे जीवन को जीते हुए भी अपने वैज्ञानिक बनने के सपने को पूरा किया और विज्ञान के क्षेत्र में अपना अमूल्य योगदान दिया।
स्टीफन हॉकिंग का जन्म सन् 1942 को इंग्लैंड में द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ था। उनका सपना एक वैज्ञानिक बनना था। जब वो 21 साल के थे तब उन्हें एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS) ) नाम की बीमारी हो गई। जिसके कारण धीरे धीरे उनके शरीर के सारे अंगों ने काम करना बंद कर दिया। वो अपने शरीर से लकवाग्रस्त थे पर दिमाग से तेज थे और अपनी सकारात्मक सोच को आधार बनाकर अपने सपने को पूरा करने में लग गए और एक महान वैज्ञानिक के रूप में सामने आये।
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4 – सुधा चंद्रन (Sudha Chandran)
सुधा चंद्रन जानी मानी भारतीय टीवी, फिल्म कलाकार और भरतनाट्यम नृत्यांगना हैं। तीन साल की छोटी उम्र से ही उन्होंने अभिनय करना शुरू कर दिया था। डांस उनका पैशन था पर एक बस दुर्घटना के दौरान उनके घुटने में चोट लगी। जिससे संक्रमण फैलने से रोकने के लिए उसके पैर को काटना पड़ा। उसके नाचने के सपने चकनाचूर होते दिख रहे थे पर उन्होंने अपनी उम्मीद नहीं खोई।
कुछ करने की चाह और मेहनत के दम पर उन्होने अपनी पहली डांस परफॉरमेंस सिर्फ एक पैर पर दी और सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। टीवी और अख़बारों में यह खबर आने लगी। सभी उनकी हिम्मत, साहस और हुनर के प्रशंशक हो गए। उसके बाद उन्हें फिल्मों के ऑफर आने लगे। उन्होंने कई पुरस्कार जीते। वह भारतीय टेलीविजन और फिल्म उद्योग में भी एक जाना-माना चेहरा बन गईं।सुधा चंद्रन विकलांग लोगों में से एक बहुत ही सफल व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने साहस और हिम्मत से एक बड़ा मुकाम बनाया है। आज वो तमाम लोगों के लिए एक प्रेरणा है।
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5 – साधना ढांड (Sadhna Dhand)
बचपन से ही हड्डी की लाइलाज बीमारी का शिकार साधना ढांड एक ऐसी कलाकार हैं जो 12 हज़ार से भी ज्यादा लोगों को पेंटिंग और फोटोग्राफी की ट्रेनिंग दे चुकी हैं। वे सामान्य व्यक्ति से अलग दिखाई देती हैं। बीमारी के चलते साधना की शारीरिक बढ़त रुक गई. वे 3 फुट, 3 इंच की हैं।
साधना बताती हैं की बचपन में मेरा कोई दोस्त नहीं था क्योंकि एक कम कद वाली लड़की जिसके बोलने पर मुंह से अजीब आवाजें निकलें भला दोस्ती कौन करेगा। सुनने की क्षमता भी धीरे धीरे काम होती जा रही थी। साधना की जिंदगी बेरंग थी लेकिन उन्हें रंगों से खेलना अच्छा लगता था। वे कई घंटों रंगों की लकीरें कागज पर बिखेरती। धीरे धीरे उनका लगाव पेंटिंग और फोटोग्राफी में बढ़ता गया। कई सारी मुश्किलें आई पर अपने पक्के इरादों से वो अपनी सभी परेशनियों से लड़ती गई।
आज वो अपनी कला को कई छात्रों को दे रही है और अपने घर पर कक्षाएं संचालित करती है। यही नहीं, वह एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और मानसिक और शारीरिक विकलांगता वाले बच्चों के साथ काम करने वाली विभिन्न संस्थाओं को दान देती हैं। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
6 – राल्फ ब्रौन (Ralph Braun)
अमेरिका के इंडियाना में जन्मे Father of the Mobility Movement कहे जाने वाले राल्फ ब्रौन ब्रौन कॉर्पोरेशन के सीईओ और संस्थापक थे जो विकलांग लोगों के लिए वाणिज्यिक व्हीलचेयर और सुलभ वाहन और अन्य उपकरण प्रदान करता है।
मात्र 6 साल की उम्र में ही वो Muscular Dystrophy (मस्कुलर डिस्ट्रोफी) का शिकार थे जिसमे क्रमिक अंदाज में कमजोरी आती जाती है और गति को नियंत्रित करने वाली कंकालीय पेशियां (स्केलेटल मसल्स) छीजती जाती हैं और कई तरह के पेशीय दुर्विकास होते हैं। अपनी इस कमी को उन्होने अपनी लाचारी नहीं बनने दिया और फैसला किया की वो अपने जैसे ही उन लोगों के लिए कुछ करेंगे जो कही आने जाने में लाचार हैं। 20 साल की उम्र में उन्होंने मोटराइज्ड स्कूटर बनाया।
उन्होंने ब्रौन कॉर्पोरेशन कंपनी जिसे सेव द स्टेप के नाम से जाना जाता है की शुरुवात की जिसमे प्लेटफॉर्म से सुसज्जित पहली व्हीलचेयर सुलभ वैन बनाई। अपने नवाचारों और रचनात्मक सोच के माध्यम से ब्रौन ने विकलांग लोगों की गतिशीलता में क्रांति ला दी। सन 2012 में अमेरिकी सरकार द्वारा राल्फ ब्रौन को “Champion Of Change” (परिवर्तन का चैंपियन ) नामित किया गया था।
7 – रवींद्र जैन (Ravindra Jain)
भारतीय संगीत का एक जाना माना नाम संगीतकार रवींद्र जैन जिहोने नेत्रहीन होने के बाबजूद अपनी दृढ इच्छा शक्ति से संगीत की दुनिया में स्वर्णिम अक्षरों में अपना नाम दर्ज किया। रवींद्र जैन जन्म से ही नेत्रहीन थे पर उनके माता पिता ने कभी भी उनके ह्रदय में हीनता की भावना पैदा होने नहीं दी। बचपन से ही उन्हें संगीत की शिक्षा दी गई।
रवींद्र जैन ने कई बॉलीवुड फिल्मों जैसे गीत गाता चल, अंखियो के झरोखे से, नदिया के पार, चोर मचाये शोर, सौदागर जैसी कई हिट फिल्मों में अपना संगीत दिया। संगीत के साथ उन्होंने कई गानों के लिए गीत भी लिखे।1970 के दशक के सबसे प्रसिद्ध संगीत निर्देशकों में से वो एक थे।
रवींद्र जैन अपने काम के प्रति इतने समर्पित थे कि जब वो रिकॉर्डिंग कर रहे थे उस दौरान उनके पिता का निधन हो गया, लेकिन उन्होंने तब भी रिकॉर्डिंग रूम को नहीं छोड़ा जब तक कि रिकॉर्डिंग को अंतिम रूप नहीं दे दिया। उन्होंने अपनी मधुर आवाज से टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले रामानन्द सागर की ‘रामायण’ में चौपाईया भी गाई जिन्हें हम आज भी गुनगुनाते है।
8 – सैम कॉथोर्न (Sam Cawthorn)
ऑस्ट्रेलिया में जन्मे सैम कॉथोर्न एक मोटिवेशनल स्पीकर, लेखक और लाइफ कोच हैं। सन 2006 में उनकी कार एक भयंकर दुर्घटना ग्रस्त हो गई, जहाँतक की उन्हें मृत घोषित कर दिया गया क्योंकि उनका दिल साढ़े तीन मिनट तक रुका रहा। उन्हें गंभीर चोटें लगी। उन्हें कोहनी के ऊपर अपने दाहिने हाथ के विच्छेदन और अपने दाहिने पैर को गंभीर नुकसान सहित गंभीर चोटों का सामना करना पड़ा।डॉक्टर द्वारा उन्हें विकलांग घोषित किया गया और कहा गया कि उन्हें अपना शेष जीवन व्हीलचेयर पर बिताना होगा।
सैम कॉथोर्न एक सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति थे उन्होंने हार नहीं मानी और दृढ़ संकल्प के साथ वह आगे बढ़ते गये। अपने कृत्रिम बांह से वो गिटार बजाते हैं, वह दुनिया के उन कुछ कलाकारों में से एक हैं, जो कृत्रिम कोहनी के साथ गिटार बजा सकते हैं। वह एक संगीतकार भी हैं और कई पुस्तकों के लेखक भी।
वह अपने काम के प्रति जुनूनी हैं। 2009 में उन्हें ‘यंग ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सैम कॉथोर्न ‘Empowering Enterprises’ के CEO भी हैं। यह Cawthorn Foundation नाम से संस्था भी चलाते हैं जो जरूरतमदों की मदत और दान करती है।
9 – एच. रामकृष्णन (H. Ramakrishnan)
एच. रामकृष्णन बचपन से ही पोलियो से प्रभावित थे। बचपन से लेकर अपनी जवानी तक उन्होने काफी संघर्ष का सामना किया।इसके बावजूद, उन्होंने 40 साल तक एक पत्रकार के रूप में काम किया और वर्तमान में एसएस म्यूजिक टेलीविजन चैनल के सीईओ हैं। वह एक संगीतकार भी हैं और विभिन्न प्लेटफार्मों पर अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं। वह समाज की विशेष रूप से मदद करने के लिए कृपा नामक एक धर्मार्थ ट्रस्ट भी चलाते हैं।
10 – राजेंद्र सिंह राहेलु (Rajendra Singh Rahelu)
राजेंद्र सिंह रहलू बचपन से ही पोलियो से प्रभावित थे। जब उन्होंने पावरलिफ्टिंग देखी जो वो बहुत प्रभावित हुए। लेकिन वो चलने में असमर्थ थे। पर उनकी यह कमी उनके इरादों से बहुत छोटी थी। उन्होंने अपनी विकलांगता को अपने और अपने सपनों के बीच आने नहीं दिया और 1996 में, अपने पावरलिफ्टर दोस्त के थोड़े से प्रोत्साहन ने राजेंद्र सिंह राहेलु को इस खेल में अपना करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। अपनी मेहनत, निरंतर प्रयास और आत्मबल के बल पर, उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में पावरलिफ्टिंग में एक रजत पदक जीतकर इतिहास रचा था।
11 – आरोन फोथेरिन्घम (Aaron Fotheringham)
जब बात Skating की हो तो आरोन फोथेरिन्घम का नाम उत्साह पैदा कर देता है। आरोन फोथेरिन्घम सबसे प्रेरणादायक विकलांग हस्तियों में से एक हैं। उसकी खासियत हैं व्हीलचेयर स्केटिंग जिसके बल पर आज वो दुनिया में सबसे प्रसिद्ध skaters में से एक है।
बचपन से ही आरोन स्केटिंग के दीवाने थे पर अपने असफल कूल्हे के ऑपरेशन ने उन्हें व्हीलचेयर पर बैठने को मज़बूर कर दिया। अपनी स्केटिंग की दीवानगी और जोश ने उनके इरादों को कभी टूटने नहीं दिया। अपनी विकलांगता के बाबजूत खेल का अभ्यास करना जारी रखा। सन 2005 में आरोन ने 180, के मोड़ के साथ एक शानदार छलांग लगाई, सन 2006 में व्हीलचेयर के इतिहास में उन्होंने पहला इतिहास रचा। तब से, उनकी उपलब्धियों और चुनौतियां हजारों लोगों के लिए एक उदाहरण हैं।
12 – मालती कृष्णमूर्ति होल्ला (Malathi Krishnamurthy Holla)
बैंगलोर इंडिया की मालती कृष्णमूर्ति होल्ला अंतरराष्ट्रीय पैरा-एथलीट हैं जिनको 1 वर्ष की आयु में तेज़ बुखार से लकवा हो गया था। लगभग 2 साल तक बिजली के झटके दे कर उन्हें ठीक करने की कोशिश की जिससे उपरी हिस्से में तो बदलाव आया परन्तु निचले हिस्से में बदलाव नहीं आया और कमर से नीचे उसका शरीर कमजोर रहा। इसके बबजूत उन्होंने कुछ ऐसा करना चाहा जिससे दुनिया को उनपर गर्व हो।
इन्होने कॉलेज में विभिन्न खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया और आज पैरा-ओलंपिक सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी हैं। इन्होने डेनमार्क में 1989 के विश्व मास्टर्स खेलों में 200 मीटर, शॉट पुट, डिस्कस और भाला फेंक में स्वर्ण जीता। उन्हें 300 से अधिक स्वर्ण पदक जीतने पर पदमश्री व अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया हैं। इसके साथ वो ग्रामीण भारत के विकलांग बच्चों की मदद के लिए माथुर फाउंडेशन भी चलाती हैं।
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Salute to these people , some people think that these people are useless they m… uh..
Tease them like imitating sorry , they imitate them in such a way making them also think useless but now these people pushed themselves from the dark and they became the people who inspire us they are more people who has talent but cannot show , please help them.