भगिनी निवेदिता की सफल जीवन की कहानी | Sister Bhagini Nivedita Success Story In Hindi

Sister Bhagini Nivedita

आज की अपनी सक्सेस स्टोरी की इस कड़ी में हम आपको बताने जा रहे है भगिनी निवेदिता (Sister Bhagini Nivedita) के सफल जीवन की पूरी कहानी जो कि एक ब्रिटिश-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द की शिष्या थीं । उनके मन में अपने पिता और शिक्षकों से मिली जीवन की कुछ ख़ास बाते मानव सेवा ही भगवान् की सच्ची सेवा है, ऐसे बस गई थी कि वो हमेशा के लिए अपना देश छोड़कर मानव सेवा के लिए भारत आकर बस गई और यहीं की मिट्टी में अपने प्राण त्यागे | जिस कारण आज भी भारत में उन्हें बहुत आदर और सम्मान दिया जाता है | 

Contents

भगिनी निवेदिता की सफल जीवन की कहानी | Sister Bhagini Nivedita Success Story

भगिनी निवेदिता सदैव ही भारत की आज़ादी की भी प्रमुख समर्थक रही और उन्होंने महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी अपन महत्वपूर्ण योगदान दिया | चलिए जाने Sister Bhagini Nivedita के बारे में सभी बाते विस्तारपूर्वक 

जाने भगिनी निवेदिता के जन्म और परिवार की कहानी 

भगिनी निवेदिता का जन्म 28 अक्टूबर 1867 में आयरलैंड देश के डंगनॉन टायरान में हुआ था। जन्म के समय उनका नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल रखा गया था | उनकी माता का नाम मैरी इसाबेल और पिता का नाम सैमुएल रिचमंड नोबल था जो कि स्कॉटलैंड मूल के लोग थे और आयरलैंड में पिछले 5 शताब्दियों से बसे हुए  थे । उनके पिताजी पेशे से एक पुजारी थे जिन्होंने अपनी बेटी मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल को शुरुआत से ही “मानव सेवा को ईश्वर की सच्ची सेवा का मार्ग है” जैसा बहुमूल्य पाठ सीखा रखा था | जब मार्गरेट मात्र एक वर्ष की थीं तब उनके पिताजी धार्मिक शिक्षा के लिए मैनचेस्टर (इंग्लैंड) चले गए और मार्गरेट अपनी नानी के साथ रहने लगी । इसके बाद उनके 4 वर्ष के होने के बाद वो अपने पिता के साथ रहने चली गयीं ।

जाने भगिनी निवेदिता के शिक्षा और प्रारंभिक जीवन की कहानी

भगिनी निवेदिता (Sister Bhagini Nivedita) के मात्र 10 वर्ष की आयु में उनके पिताजी का देहांत हो गया जिसके बाद वो अपनी नानी के साथ रहने लगी | उनकी नानी हैमिलटन भी आयरलैंड स्वाधीनता आन्दोलन के शीर्ष नेताओं में एक थी। भगिनी निवेदिता की प्रारंभिक शिक्षा लन्दन के चर्च बोर्डिंग स्कूल से हुई और उसके पश्चात उनकी बहन हैलिफैक्स कॉलेज में अपनी बहन के साथ शिक्षा ग्रहण करने लगी जहाँ उनकी प्रधानाध्यापिका ने उन्हें निज-त्याग के महत्त्व को समझाया। 

उन्होंने अपनी शिक्षा के दौरान कला, म्यूजिक, फिजिक्स, साहित्य समेत कई विषयों का ज्ञान हासिल किया था | मात्र 17 वर्ष की आयु से ही वो केस्विक में बच्चो को बतौर अध्यापक के रूप में भी पढ़ाने लगी और फिर विंबलडन में खुद का विद्यालय स्थापित भी किया जिसका मुख्य उद्देश गरीब बच्चो को शिक्षित करना और समाज का आंतरिक और शारीरिक रूप से विकास करना था । 

धार्मिक प्रवृति के कारण वो चर्च के कार्यों और गतिविधियों में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया करती थी । इसके साथ ही वो लेखन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के लिए जानी जाती है और उनका नाम लन्दन के श्रेष्ठ बुधिजिवियो में गिना जाता था | उन्होंने समय-समय पर कई  पत्र-पत्रिकाओं में लेखन का कार्य किया | वो  धार्मिक प्रवृति के कारण दूसरे समुदाय की धार्मिक किताबो को पढ़ने में भी बहुत रूचि रखती थी | उनका विवाह एक वेल्स मूल के युवक से तय हो गया था और सगाई भी हो गयी थी लेकिन सगाई के कुछ ही दिनों बाद वेल्श की मृत्यु हो गयी । इसके बाद उनका सारा ध्यान धर्म की ओर और ज्यादा एकाग्रित रहने लगा |

जाने भगिनी निवेदिता और स्वामी विवेकानंद की भेट की कहानी

स्वामी विवेकानंद  और भगिनी निवेदिता की आपसी भेट नवम्बर 1895 में स्वामी विवेकानंद  के अमेरिका से लौटते वक़्त लन्दन में 3 महीने के प्रवास के दौरान भगिनी निवेदिता की एक महिला मित्र लेडी मार्गसन के आवास पर हुई जब स्वामी विवेकानंद वहां मौजूद व्यक्तियों को ‘वेदांत दर्शन’ समझा रहे थे। मार्गरेट नोबेल स्वामी जी के वेदांत दर्शन से बहुत प्रभावित हुई और इसके बाद उनके कई और व्याख्यानों में जाकर स्वामी विवेकानंद से ढेरों प्रश्न किये और अपने प्रश्नों के उत्तर पाकर उनकी और मुरीद हो गई | अंत में वो स्वामी विवेकानंद के दिखाये मार्ग के अनुसार भारत आ गई |

जाने भगिनी निवेदिता के भारत आगमन की कहानी 

भगिनी निवेदिता स्वामी विवेकानंद के दिखाये मार्ग के अनुसार 28 जनवरी 1898 को अपने परिवार को छोड़कर भारत के कोलकाता पहुँच गई जहाँ शुरुआती कुछ दिनों तक  स्वामी विवेकानंद ने उनको भारतीय इतिहास, दर्शनशास्त्र, साहित्य, आम जन जीवन, सामाजित रीतियों और महान व्यक्तिवों के बारे में बताया। यहीं नही स्वामीजी ने उनके मन में प्राचीन और आधुनिक विकासशील भारत के प्रति मार्गेट में मन में प्रेम भी जगाया । 11 मार्च, -1898 को स्वामी विवेकानंद ने एक सार्वजनिक अधिवेशन का आयोजन किया और कोलकाता के समृद्ध वर्ग से भगिनी निवेदिता का परिचित कराया गया जहाँ भगिनी निवेदिता ने भारत और और इसके निवासियों की सेवा की इच्छा प्रकट  की |

जाने भगिनी निवेदिता और सारदा देवी के भेट और सम्बन्ध की कहानी 

भगिनी निवेदिता और रामकृष्ण परमहंस की पत्नी और आध्यात्मिक संगिनी सारदा देवी की भेट  17 मार्च 1898 को भगिनी निवेदिता के भारत आगमन के कुछ हफ्तों के अंदर हुई थी जहाँ सारदा देवी  ने उन्हें स्नेह के साथ बंगाली में खूकी अर्थात बेटी कहकर पुकारा था | सारदा देवी का प्रथम फोटो भी भगिनी निवेदिता के घर पर लिया गया था |इसके बाद इन दोनों के बीच में आपसी प्रेम और श्रद्धा का ऐसा भाव स्थापित हुआ जो वर्ष 1911 में शारदा देवी की मृत्यु तक सदैव बना रहा |

जाने भगिनी निवेदिता के ब्रह्मचर्य’ स्वीकार करने और निस्वार्थ सेवा की कहानी 

भगिनी निवेदिता ने 25 मार्च 1898 में स्वामी विवेकानंद  के देख-रेख में ‘ब्रह्मचर्य’ अंगीकार किया जिसके बाद विवेकानंद ने उनको नया नाम ‘भगिनी निवेदिता’ दिया। इस प्रकार भगिनी निवेदिता किसी भी भारतीय पंथ को अपनाने वाली पहली पश्चिमी महिला बनीं। ये बात भगिनी निवेदिता की पुस्तक ‘द मास्टर ऐज आई सॉ हिम’ में भी लिखी है कि वे अक्सर स्वामी विवेकानंद को ‘राजा’ कहती थीं और अपने आप को उनकी आध्यात्मिक पुत्री। 

स्वामी विवेकानंद की शिष्या बनने के बाद रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लग गयीं | अपने सामाजिक कार्यो के दौरान उन्होंने कलकत्ता में भीषण प्लेग के दौरान भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय सामाजिक सेवा का कार्य किया ।प्राचीन हिन्दू आदर्शों का ज्ञान शिक्षित लोगों तक पहुँचाने के लिए अंग्रेज़ी भाषा में कई पुस्तकें लिखीं और घूम-घूमकर अपने व्याख्यानों के द्वारा उनका प्रचार किया। उन्होंने मई 1898 में विवेकानंद के साथ अपने हिमालय भ्रमण के दौरान अल्मोड़ा में पहली बार ध्यान की कला को सीखा। अल्मोड़ा के बाद वो भारत के लोगों, इतिहास और संस्कृति को और अधिक समझने के लिए स्वामी विवेकानंद, जोसफिन मक्लोइड और सारा बुल के साथ  कश्मीर समेत भारत के कई हिस्सों में गई | उन्होंने अमरनाथ की भी यात्रा की। वो वर्ष 1899 में स्वामी विवेकानंद के साथ अमेरिका भी गईं ।

जाने भगिनी निवेदिता के द्वारा कलकता बागबज़ार में बालिका विद्यालय शुरू करने के कहानी 

भगिनी निवेदिता का मन शुरू से ही मौलिक शिक्षा से वंचित बालिकाओं के लिए एक विद्यालय खोलने का था जिसके लिए उन्होंने इंग्लैंड और अमेरिका जाकर भारत पर कई व्याख्यान किए और बालिका विद्यालय के लिए कोष जुटाया और अंत में 13 नवंबर 1898 को कालीपूजा के दिन कोलकाता के बागबाजार में शारदा देवी के हाथो से स्कूल का शुभारंभ कराया ।

जाने  भगिनी निवेदिता के भारतीय राष्ट्रवाद में योगदान से जुड़ी कहानी

  • भगिनी निवेदिता भारत के स्वतंत्रता की प्रमुख समर्थक रही थी | उनका अरविंदो घोष जैसे राष्ट्रवादियों से उनका घनिष्ठ सम्पर्क था |वो 
  • वर्ष 1905 में राष्ट्रीय कॉग्रेस के बनारस अधिवेशन में हिस्सा ले चुकी थी | हालांकि उन्होंने सीधे तौर पर कभी भी किसी राष्ट्रिय आन्दोलन में भाग नहीं लिया पर अपने व्याख्यानों और लेखों के माध्यम से उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया। 
  • स्वामी विवेकानन्द के सिद्धान्तों और आदर्शों का राजनीति से कभी कोई लेना-देना नहीं था इसलिए उन्होंने भी  विवेकानन्द की मृत्यु के बाद संघ से त्यागपत्र दे दिया |

जाने भगिनी निवेदिता के निधन से जुड़ी कहानी 

भगिनी निवेदिता ने 13 अक्टूबर 1911 को दार्जीलिंग स्थित रॉय विला में अपना देह त्यागा था | उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से किया गया। आज भी उनका स्मारक रेलवे स्टेशन के नीचे विक्टोरिया फाल्स (दार्जीलिंग) के रास्ते में स्थित है । भगिनी निवेदिता का नाम भारत में निस्वार्थ की गई सेवाओ के लिए हमेशा याद रखा जायेगा। 

यह भी अवश्य पढ़े ;

स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़े 25 अनसुने रोचक तथ्य

स्वामी विवेकानंद के 40 ज्ञानमय विचार

विवेकानंद द्वारा शिकागो में दिया सम्मेलन भाषण

PortraitFlip Success Story | तीन दोस्तों के जीरो से हीरो बनने की कहानी

22 वर्ष पुरानी नौकरी छोड़ शुरू किया खुद का बिजनेस आज हैं अरबपति | Cogoport फाउंडर पूर्णेन्दु शेखर की सफलता की कहानी

मित्रों ! उम्मीद करता हूँ आपको “भगिनी निवेदिता की सफल जीवन की कहानी | Sister Bhagini Nivedita Success Story In Hindi ” अवश्य पसंद आई होगी कृपया कमेंट के माध्यम से अवश्य बतायें, आपके किसी भी प्रश्न एवं सुझावों का स्वागत है। कृपया Share करें  और  जुड़े रहने की लिए Subscribe करें. धन्यवाद

यदि आप इस ब्लॉग पर हिंदी में अपना कोई आर्टिकल या जो भी जानकारी देना चाहते है (Guest Post) तो कृपया अपनी पोस्ट E-mail करें. Id है – ‘[email protected]’ पसंद आने पर आपकी पोस्ट ZindagiWow.Com प्रकाशित की जाएगी। धन्यवाद

Hello friends, I am Mukesh, the founder & author of ZindagiWow.Com to know more about me please visit About Me Page.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *