जब श्री गणेश ने कुबेर का घमंड तोड़ा ! जानिए पौराणिक कथा | When Shri Ganesh broke the pride of Kuber | Shri Ganesh Kuber Story In Hindi

Shri Ganesh Kuber Story

नमस्कार मित्रो आज के अपने इस लेख में हम आपको बताने जा रहे श्री गणेश और धन के राजा की एक पौराणिक कहानी (Shri Ganesh Kuber Story) जब श्री गणेश ने कुबेर का घमंड तोडा. इस कथा के जरिये आप जानेंगे कि कैसे श्री गणेश ने कैसे अपनी अपनी सूझबूझ और दिमाग से धन के स्वामी कुबेर का घमंड तोडा था और उसके अहंकार का नाश भी किया था | चलिए जाने इससे सम्बन्धित पूरी पौराणिक कथा (Mythology) पूरे विस्तार से

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Shri Ganesh – Kuber Story In Hindi

जाने कुछ बाते श्री गणेश के बारे में

सभी देवो में पूजनीय श्री गणेश भगवान शिव और माँ पार्वती के पुत्र हैं जिनको हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले सबसे पूजनीय माना जाता है | ज्योतिष के अनुसार भी उन्हें केतु का देवता और संसार में मौजूद सभी साधन का स्वामी भी माना जाता  हैं। उनके शरीर पर हाथी के सामान सिर होने के कारण गजानन के नाम से भी पुकारा जाता है |

जाने कुछ बाते कुबेर के बारे में

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार कुबेर का स्थान धन के देवता के रूप में माना जाता है जिनके पास संसार का सारा स्वर्ण भंडार है पर वास्तव में वह देवता ना होकर गंधर्व थे और रावण के सौतेले भाई जिन्होंने रामायण में  अंकित सोने की लंका का निर्माण किया था जिसे रावण ने वरदान स्वरुप मिली शक्ति से बलपूर्वक छीन लिया था |

जाने कुबेर द्वारा महाभोज आयोजित करने की कथा

जैसा कि हम सभी जानते है कि धन में इंसान कितना घमंडी और अहंकारी हो जाता है पौराणिक कथाओ के अनुसार ऐसा ही कुबेर के साथ भी हुआ | बात उस समय की है जब कुबेर के पास स्वर्ण का असीम भंडार था जिसके सहारे उन्होंने सोने की लंका का निर्माण कराया और उसके निर्माण के बाद अपने ऐश्वर्य और वैभव के प्रदर्शन के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया जिसमें सभी देवता शामिल हुए । इतना सबकुछ करने के बाद भी उनका मन नही माना और उन्होंने स्वयं परमात्मा को भी आमंत्रित कर अपने वैभव का प्रदर्शन करने की सोची |

जाने कुबेर द्वारा देवो के देव भगवान शिव को महाभोज के आमंत्रण देने की कथा

कुबेर ने अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए सबसे पहले भगवान विष्णु को महाभोज का आमंत्रण देने की सोची पर उन्हें ये भी ज्ञात था कि वो तो स्वयं धन की साक्षात स्वरूप मां लक्ष्मी के अधिपति हैं जिनके सामने उनका वैभव कहीं भी नही ठहर पाएगा। इसके बाद उन्होंने ब्रह्मा जी को महाभोज का आमंत्रण देने की सोची पर उन्हें इस बात का भी ज्ञान था कि ब्रह्मा जी वो ठहरे ज्ञानी और  उनका संबंध केवल ज्ञान और शास्त्रों से था इसीलिए धन- संपदा से उनका दूर-दूर तक कुछ भी लेना-देना ही ना था | उनके दिखावे का ब्रह्मा जी पर कोई असर नही पड़ेगा  |इसके बाद अंत में उन्होंने अपने वैभव का प्रदर्शन कैलाश में खुले पहाड़ो में रहने वाले देवो के देव महादेव के सामने करने की सोची और उन्हें महाभोज का आमंत्रण देने कैलाश की ओर चल दिए |

जाने देवो के देव भगवान शिव द्वारा कुबेर के अहंकार को पहचान लेने से जुड़ी कथा

कुबेर अपने अहंकार में देवो के देव भगवान शिव को महाभोज का आमंत्रण देने पहुँचे तब भगवान शिव ध्यान में थे तो कुबेर उनके जागने की प्रतीक्षा करने लगे और उनके ध्यान से उठते ही  भगवान शिव को आदरपूर्वक नमन करके उनसे बोले कि “प्रभु मैंने एक छोटा सा घर बनवाया है और मेरी इच्छा है कि आप पूरे परिवार समेत मेरे घर पर भोजन का निमंत्रण स्वीकार करें और अपनी चरणधूलि से उसे पवित्र करें।“इतना कहकर कुबेर मन ही मन प्रसन्न होने लगे पर वो भूल गये कि देवो के देव भगवान शिव सबके प्रभु है | वो समस्त लोको के स्वामी है जो हर कण में बसते है |

देवो के देव भगवान शिव उनकी मंशा समझ चुके थे और उन्होंने कहा कि वो तो नही आ पायेंगे पर उनके पुत्र श्री गणेश जरुर महाभोज में आकर कुबेर द्वारा दिए गये महाभोज का मान रखेंगे |  उस समय सभी देवो में पूजनीय श्री गणेश किशोर अवस्था में थे | भगवान शिव की इतनी बात सुनकर कुबेर कैलाश से लौट गये और सोचने लगे कि भगवान शिव नही तो गणेश जी को ही अपने वैभव का प्रदर्शन दिखाया जायेगा।

जाने प्रभु श्री गणेश द्वारा कुबेर का घमंड और अहंकार तोड़े जाने की कथा

अगले दिन अपने पिता महादेव के आदेशानुसार प्रभु श्री गणेश कुबेर की नगरी लंका में महाभोज के लिए अपने वाहन मूषक पर सवार होकर पहुँच गये | सबसे पहले अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए कुबेर ने अपने अहंकार में प्रभु श्री गणेश को लंका देखने का प्रस्ताव दिया जिसे प्रभु श्री गणेश ने ठुकरा दिया और उनसे भोजन कराने को कहा | आख़िरकार बेमन से कुबेर ने उन्हें विराजित किया और खाना परोसने लगे |

अपने वैभव के प्रदर्शन करने के लिए कुबेर प्रभु श्री गणेश को सोने-चांदी के पात्रों में  खाना परोसने लगे | प्रभु श्री गणेश अच्छे से जानते थे कि उन्हें कुबेर का घमंड और अहंकार कैसे तोडना है | उन्होंने भोजन शुरू किया और लगातार खाते चले गये | कुबेर ये बात भूल गया था कि प्रभु श्री गणेश भोजन के प्रेमी थे | उन्होंने कुबेर से अधिक भोजन लाने को कहा इसके बाद कुबेर ने अपने महल के समस्त सेवकों को भोजन बनाने और परोसने में लगा दिया  पर गणेश जी की भूख खत्म नहीं हुई।

कुबेर के महल की समस्त भोजन सामग्री खत्म हो चुकी थी | असलियत में  प्रभु श्री गणेश का पेट माता पार्वती के हाथ से बने एक मोदक खाकर भी भर जाता था  |यहाँ माँ पार्वती के हाथो से बने मोदक नही मिलने पर उन्हें पेट भरने का आभास ही नहीं हो रहा था | अंत में जब उन्हें कुछ भी खाने को नहीं मिला तो उन्होंने कुबेर के महल की चीजो जैसे कि बर्तन, स्वर्ण आदि को खाना शुरू कर दिया | ये सब देख कुबेर घबरा गये और प्रभु श्री गणेश के चरणों में गिरकर माफ़ी मांगने लगे | उन्हें अपनी अहंकार वाली भूल का एहसास हो चुका था  |इसके बाद उन्होंने कैलाश पर जाकर परमदेव भगवान शिव से भी अपने अहंकार के लिए माफ़ी मांगी | उसके बाद प्रभु श्री गणेश ने उनको क्षमा कर दिया और वो कैलाश पर्वत लौट गये.|

इस कथा (Shri Ganesh Kuber Story) से हमे भी ये सीख मिलती है कि इंसान पर भले ही कितनी धन-दौलत आ जाये उसे अपने ऊपर अहंकार नही करना चाहिये. कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति को अपने से कम नही समझना चाहिये.

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