शनिदेव से जुड़ी पौराणिक कथाएं Shani Dev Stories In Hindi

Shani Dev Stories

शनिदेव का नाम आते ही कुछ लोग भयभीत हो जाते हैं। लोगों का मानना है कि शनि देव क्रोधी स्वाभाव के है।  परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं हैं।  भगवान शनिदेव  को नवग्रहों में न्यायाधिपति माना गया है। ज्योतिष संबंधी भाषा के अनुसार भगवान शनि, शनि ग्रह के शासक है। वह सेवा और कर्म के कारक हैं। अर्थात शनि देव को कर्मों का फल प्रदान करने वाला माना जाता है। शनि देव किसी के शत्रु नहीं है वह तो मनुष्य के कर्मों के आधार पर उसको फल देने वाले हैं। आज इस लेख में हम आपको शनिदेव से जुडी प्रख्यात पौराणिक कथाएं (Mythology) Shani Dev Stories In Hindi बताने वाले हैं।  आइयें जानते हैं –

शनिदेव से जुड़ी पौराणिक कथाएं
Shani Dev Stories In Hindi

जब भी किसी का बुरा समय चल रहा होता है तो माना जाता है की शनि भारी चल रहा है। लोग शनि से भयभीत हो जाते हैं और शनि को क्रूर गृह मानते हैं। इस प्रथम पौराणिक कथा में शनि देव के जन्म एवं कैसे टेढ़ी हुई नजर के बारे में जानेंगे।

शनिदेव से जुड़ी प्रथम पौराणिक कथा

Shani Dev Story 1

शनि देव का जन्म 

शनि देव के जन्म को लेकर कुछ कथाएं हैं जिसने से दो कथा प्रचलित हैं –

कथा 1  :

‘राजा दक्ष’ ने अपनी पुत्री ‘संज्ञा’ का विवाह सूर्यदेवता के साथ करा दिया परन्तु सूर्यदेवता की तपन से राजकुमारी संज्ञा बहुत परेशान थीं। वह सोचा करती थीं कि किसी तरह सूर्यदेव की तपन कम हो जाये।

समय बीता और संज्ञा ने वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों को जन्म दिया। परन्तु संज्ञा अभी भी सूर्यदेव के तपन से भयभीत थीं। एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तपन को कम करेंगी, लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिये उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा।

अब संवर्णा ही सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन पोषण करने लगी। संज्ञा ने अपनी छाया संवर्णा से यह वादा ले लिया की वो यह राज किसी को न बताये।

संज्ञा जब अपने पिता के घर पहुंची और पिता को पूरी बात बताई तो पिता ने संज्ञा को डांट फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई।

उधर संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया। इस प्रकार शनि देव का जन्म हुआ।

कथा 2 :

कुछ लोगों का मानना है की  शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ मे पल रही संतान यानि शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ।

 

शनिदेव से जुड़ी द्वतीये पौराणिक कथा

Shani Dev Story 2

शन‍िदेव क्‍यों रहते हैं पिता सूर्यदेव से नाराज। 

शनिदेव के काले रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव ने अपनी गलती के लिये क्षमा जिससे  उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर न सुधरा आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।

शनिदेव से जुड़ी द्वतीये पौराणिक कथा

Shani Dev Story 3

क्यों है शनि देव की टेढ़ी दृष्टि

ब्रह्म पुराण के अनुसार यह कहा गया है की शनिदेव भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे। शनि देव जब युवा हुए तो उनका विवाह चित्ररथ की पुत्री से हो गया। शनिदेव भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में इतने लीन रहते थे की वो अपनी पत्नी पर ध्यान ही नहीं दे पाते थे। उनकी पत्नी इस बात से इतना गुस्सा हो गई की उन्होंने शनिदेव को शाप दे दिया कि जिस पर भी उनकी नजर पड़ेगी वह नष्ट हो जायेगा। शनिदेव ने उन्हें मानाने की कोशिश की। पत्नी को भी अपनी इस करनी पर अफ़सोस हुआ लेकिन बहतु देर हो चुकी थी और वो अपनी श्राप वापस नहीं ले सकती थीं। इस कारन माना जाता है की शनि देव की टेढ़ी दृष्टि किसी का भी नाश कर सकती है।

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