आध्यात्मिक गुरु (Spiritual Teacher) आचार्य रजनीश (OSHO) के धर्म पर विचार ‘ओशो ज्ञान’ Osho’s Thoughts On Religion : Osho Gyan – ओशो धर्म से जैन, कर्म से बौद्ध, व्यवहार से वैष्णव, चिंतन से शिव और वाणी से शाक्त हैं। आइयें जानते हैं ओशो के धर्म को लेकर उनके प्रख्यात विचार (Osho’s Thoughts On Religion) …..
धर्म पर ओशो के विचार : ओशो ज्ञान ~ Osho’s Thoughts On Religion : Osho Gyan
ओशो ज्ञान 1 : धर्म अनुभव की चीज है नकल करने की नहीं। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 2 : तर्क से सत्य को पकड़ा नहीं जा सकता। मैं तर्क का उपयोग करता हूं कि तर्कातीत का ख्याल आ जाए। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 3 : मैं गीता पढ़ता हूं तो उठाकर रख देता हूं। लगता है मैंने ही लिखी है। दूसरी किताबें आद्योपांत पढता हूं, क्योंकि वह मेरा अनुभव नहीं है। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 4 : मैं शब्दों के खिलाफ बोलता रहूंगा शब्दों के माध्यम से। मैं जानता हूं कि मेरे शब्द शास्त्र हो जाएंगे। मैं जानता हूं कि मेरे गलत मित्र पैदा हुए हैं. मेरे गलत शत्रु पैदा हुए हैं। मेरी स्थिति ही ऐसी है। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 5 : जो लोग मेरे लिखे हुए को भी ऐसे पढ़ेंगे जैसे वे सुन रहे हो, तो ही सार्थकता है। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 6 : परम ज्ञानी और सिद्ध कई होते हैं पर तीर्थकर सब नहीं होते। शिक्षक होने का भाव आत्मा को तीर्थकर बना कर भेजता है यही उसकी स्वतंत्रा है यही करुणा है। – ओशो / Osho
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ओशो ज्ञान 7 : धर्म कोई कपड़े की फैशन की भांति नहीं है कि आप 6 महीने में बदल लें। वह कोई मौसमी फूल के बीज भी नहीं हैं। धर्म तो ऐसे वटवृक्ष है, जो हजारों लाखों साल में तो पूरे हो पाते हैं। – Osho Gyan
ओशो ज्ञान 8 : मेरा जोर मंजिंल की एकता पर है, मार्ग की एकता पर नहीं , दो नावों पर चढ़ने की गलती किसी को नहीं करनी चाहिए। हम किनारे पर खड़े रहकर कह सकते हैं कि सब नावे एक है पर चलना हो तो एक नाम चुननी पड़ती है। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 9 : एक ऐसे सन्यासियों को जाल फैलाना चाहता हूँ जो कड़ियां बन जाए। मस्जिद में नवाज पढ़ें, चर्च में भी प्रार्थना करें और मंदिर में भी गीत गाए। महावीर के रास्ते पर भी चले, बुद्ध की साधना में भी उतरे, सिखों के पंत पर भी प्रयोग करें और लिंक निर्मित करें। प्रार्थना और नवाज इतनी लिक्विड होनी चाहिए की प्रार्थना से नवाज शुरू की जा सके और नवाज से प्रार्थना। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 10 : मैं सिर्फ गवाह हूं गुरु नहीं, क्योंकि मैं जानता हूं कि गुरु तो परमात्मा के सिवाय और कोई नहीं हो सकता। परमात्मा है मंजिल, संतोष है कुंजी, असुरक्षा है आधार। – ओशो / Osho
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ओशो ज्ञान 11 : जिन्हें हम नरक स्वर्ग कहते हैं, वह बहुत प्रगांढ़ स्वप्न अवस्थाएं है। देवों के सुख का अंत नहीं, प्रेतों के दुख का अंत नहीं। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 12 : यह धार्मिक जगत में एक क्रान्ति है। बुद्ध ने भगवान-रहित धर्म का निर्माण किया। पहली बार भगवान धर्म का केंद्र नहीं है। मनुष्य, धर्म का केंद्र बन गया है, और मनुष्य का अंतरतम भगवत्ता हो गया है, जिसके लिए तुम्हे कहीं नहीं जाना है–तुमने केवल बाहर जाना बंद कर दिया। कुछ क्षणों के लिए अपने भीतर रहो। धीरे-धीरे अपने केंद्र में स्थिर होते हुए। जिस दिन तुम अपने केंद्र पर स्थिर हुए कि विस्फोट हो जाता है। – Osho Gyan
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ओशो ज्ञान 13 : छह महीने पहले मृत्यु का बोध हो जाता है। जन्म के छह महीने तक पूर्वजन्म का बोध रहता है। बीच का गहनतम स्वप्नमय अंतराल ही स्वर्ग-नर्क है। इसलिए सभी धर्मों ने सोने के एक घंटे पहले और उठने के बाद एक घंटे प्रार्थना का समय तय किया है। यही साधना काल है। यही संध्या काल है। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 14 : जब भी कोई युग ध्वंस के करीब आता है तब भीतरी तल पर बहुत से आत्माएं विकास के आखिरी किनारे पर पहुंच जाती हैं। आज सभी अर्थों में युग अपने शिखर पर हैं। भविष्य में आगे उतार ही होगा। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 15 : मैं वैज्ञानिक हूं। मेरे लिए धर्म वैज्ञानिक प्रक्रिया है, मैंने सूत्र निर्मित किए, कुछ लोग ढूंढे। अब गांव का मिस्त्री भी बिजली ठीक कर सकता है।
ओशो ज्ञान 16 : ध्यान स्वेछा से स्वीकृत मृत्यु है। यदि यह पूरे जीवन में फैले तो सन्यास बनता है। सन्यास का अर्थ है जीते जी इस तरह जीना, जैसे मर गए। – ओशो / Osho
ओशो ज्ञान 17 : संबुद्ध हो जाने का मतलब जरूरी नहीं कि तुम सद्गुरु भी हो जाओ। सद्गुरु हो जाने का अर्थ यह के तुम मे अनंत करुणा है, और तुम अपने भीतर की उस परमशांति के सौंदर्य में अकेले जाने से शर्मिंदगी महसूस करते हो जो तुमने आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त की है। तुम उन लोगो की मदद करना चाहते हो जो अंधे हैं, अन्धकार में हैं और अपने लिए मार्ग टटोल रहें हैं। उनकी मदद करना आनंददायी है, ना कि कोई बाधा। – Osho Gyan
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