भिक्षुक का जादू – एक चीनी लोककथा (चीनी कहानी) | Chinese Lok Katha In Hindi

Chinese Lok Katha

Best Inspirational Story In Hindi प्रेरणादायक हिंदी कहानियों की श्रंखला में आज एक और Inspirational Story In Hindi को शामिल करते हैं  एक पुरानी और प्रसिद्ध चीनी लोक कहानी “भिक्षुक का जादू” Chinese Lok Katha In Hindi”

Contents

भिक्षुक का जादू Chinese Lok Katha In Hindi (चीनी कहानी)

Bhikshuk Ka Jaadoo ; Chinese Lok Katha (Part 1) 

बहुत समय पहले चीन के एक गांव में एक दिन एक अजनवी आए।  एक बच्चा जिसका नाम फू नान था जो अपने माता-पिता के साथ गांव के बाहर फार्म  में रहता था,  सबसे पहले उस अजनबी से मिला।  उसे लगा कि वो शायद एक घुमक्कड़ सन्यासी थे। वैसे भी उसने कहानियां सुन रखी थे – एक सन्यासी जो जादू कर सकते हैं। उस अजनवी को अचानक अपने सामने पाकर  फू नान डर गया। लेकिन अजनबी का हाव-भाव बहुत ही शांत  और उदारतापूर्ण था। फू नान ने  विनम्रता पूर्वक उनका अभिवादन किया।

वृद्ध अजनवी ने कहा ‘कुछ समय रहने के लिए यह जगह अच्छी प्रतीत होती है । क्या तुम बता सकते हो कि मैं कहां सो सकता हूं। फू नान ने उन्हें एक वीरान कुटिया दिखाई जो गांव की सीमा पर स्थिति थी। वहां वृद्ध ने अपने लिए घास फूस का विस्तर बना लिया और दीवार पर एक कागज लटका दिया जिसमे बड़ी और बेढंडी लिखाई में कुछ शब्द चित्रित किए हुए थे।

वृद्ध उस झोपडी में निवास करने लगे। फू नान और उसके मित्र कुटिया की खिड़की से भीतर झाकते और वृद्ध की नींद से जागने की प्रतीक्षा करते। वृद्ध जब गांव में भिक्षा मांगने जाते तो बच्चों को उनके साथ रहना अच्छा लगता था। वो हमेशा प्रसन्न रहते थे और मौसम की ओर उनका ध्यान कभी ना जाता था। वर्षा हो या धूप वो वृद्ध वही पुराने सैंडल और जीर्ण शीर्ण लवादा पहने रहते थे। क्योंकि सब जानते थे कि घुमक्कड़ संन्यासियों ने निर्धन रहने का संकल्प लिया था। इसलिए गांव वाले प्रसन्नता से उन्हें चावल और सब्जियां दे देते थे।

फु नान ने उन्हें आगाह कर दिया था कि वह उस जिले के सबसे धनी व्यक्ति कंजूस किसान वू के पास कभी न जाए। जो भिक्षुक अंतिम बार उनके घर गया था, किसान वू ने उस पर अपने कुत्ते छोड़ दिए थे, ‘फु नान ने बताया।

क्योंकि बच्चे अक्सर उनके साथ रहते थे इसलिए उन्हें ही सबसे पहले पता चला की वृद्ध संन्यासी के पास कुछ अनोखी शक्तियां थी।

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Bhikshuk Ka Jaadoo ; Chinese Lok Katha (Part 2) 

एक सुबह वृद्ध ने देखा की टोकरी बनाने वाले के बेटे ने एक पिजड़ा पकड़ रखा था जिसके अंदर एक चिड़िया बंद थी। बिचारा पक्षी फड़फड़ा रहा था और पिजड़े की छड़ों से बार-बार टकरा रहा था। “अगर तुम पक्षी को छोड़ दो तो मैं तुम्हें एक जादू दिखाऊंगा”, वृद्ध ने उससे कहा।

आश्चर्यचकित लड़के ने सिर हिलाकर हामी भर दी। वृद्ध कुटिया के अंदर गए और एक काला कपड़ा, एक कलम कागज और एक ब्रश लेकर बाहर आए। उन्होंने काला कपड़ा पिंजरे के ऊपर लपेट दिया। जब वह स्याही में पानी मिला रहे थे तब बच्चे उन्हें चुपचाप देख रहे थे। उन्होंने झटपट ब्रश चलाया और पिंजरे में कैद पक्षी का चित्र बना दिया। चित्र इतना सजीव थे की बच्चों को लगा की अभी गाने लगेगा। चित्र में उन्होंने पिंजरे को दरवाज़ा खुला चित्रित क्या था।

तभी चित्र में बना पक्षी चहचहाने लगा। पिंजरे के खुले दरवाजे से मैं बाहर निकल आया और कागज से उड़कर पास के एक पेड़ की डाल पर बैठ गया। टोकरी बनाने वाले के बेटे ने झटपट पिंजरे पर लगा कपडा खींच लिया। यह देख सारे बच्चे आश्चर्य से चिल्ला दिए पिंजरा खाली था।

सन्यासी लड़के को देख कर मुस्कुराए और बोले तुमने एक अच्छा काम किया है। उन्होंने उससे कहा तुमने एक जंगली जीव को स्वतंत्र कर उसकी प्रकृति के अनुसार उसे जीने का अवसर दिया है।

“क्या वह जादू आप मुझे सिखा सकते हैं” फु नान ने बाद में वृद्ध से पूछा।

वृद्ध ने प्यार से कहा “यह जादू सीखने से पहले सन्यासी बनने के लिए मुझे अपना सबकुछ त्यागना पड़ा था, फिर मैंने वर्षों तक अध्ययन किया था और संकल्प लिया था कि इस जादू का मैं कभी भी अपने लाभ के लिए उपयोग नहीं करूंगा। तुम अभी बहुत छोटे हो अपना लक्ष्य जानने के लिए प्रतीक्षा करो।

गांव में फू नान कभी कभी एक गरीब बुजुर्ग विधवा लियांग की सहायता करता था और पानी से भरी बाल्टी गांव के कुएं से उठाकर उसके घर ले जाता था, क्योंकि उसके कुएं में पानी खत्म हो गया था।

गर्मी के एक दिन फू नान ने वृद्ध को लियांग से बात करते सुना “तुम्हारा कुआं कब से सुखा हुआ है। ”
“एक वर्ष से, जब से किसान वू ने पानी की धारा को जो मेरे कुएं में जाती थी अपने नाशपाती के बाग की ओर मोड़ लिया था।” लियांग ने उत्तर दिया।

“शायद मैं तुम्हारी सहायता कर पाऊं” सन्यासी ने कहा। उन्होंने एक कलछी पानी लियांग के कुएं में डाल दिया। अगली सुबह उसने देखा कि कुआं ऊपर तक मीठे निर्मल पानी से भरा हुआ था।

फू नान और लियांग ने ही यह चमत्कार देखा था लेकिन कुछ दिनों बाद भिक्षुक सन्यासी की इस जादू के बारे में सारे गांव को पता चल गया।

Bhikshuk Ka Jaadoo ; Chinese Lok Katha (Part 3) 

अगस्त चंद्रमा उत्सव के दिन गांव के चौराहे की ओर जाने वाला रास्ता उन किसान और व्यापारियों से भरा हुआ था जो बाजार में बेचने के लिए अपना सामान ले जा रहे थे। फू नान के माता-पिता गोभी की टोकरियां उठाये हुए बाजार की ओर जा रहे थे। जब फू नान ने भिक्षुक सन्यासी को देखा तो उसने माता पिता से पूछा कि क्या वे वृद्ध संन्यासी के साथ साथ चल सकता था।

फू नान उस बृद्ध को नई पतंग के बारे में बताने लगा जो वे जन्मदिन पर मिले पैसों से खरीदना चाहता था। अचानक उसके रास्ते पर कुछ हंगामा होने लगा। किसान वू का गधा जो नाशपातियों से भरा हुआ ठेला खींच रहा था, भीड़भाड़ वाले रास्ते पर सबको तीतर बितर करता हुआ दौड़ने लगा। भारी बोझ से दवे गधे को ओर तेज दौड़ने के लिए किसान वू उसे पीट रहा था और उस पर चिल्ला रहा था।

जब तक फू नान और वृद्ध संन्यासी गांव के बाजार में पहुंचे, किसान वू भी अपने ठेले पर लगी नाशपतियाँ बेच रहा था। सूर्य की गर्मी के कारण सबको प्यास लग रही थी और मीठी रसभरी, नाशपाती खूब बिक रही थी। यद्यपि किसान वू भारी दाम मांग रहा था।

“एक स्वादिष्ट नाशपाती मुझे खाने के लिए दे सकते हो”, सन्यासी ने किसानों वू से पूछा। “फटीचर भिकारी तुम्हें कुछ ना मिलेगा”, किसान वू उन चिल्लाया। “लेकिन तुम्हारे पास तो बहुत सारी नाशपाती हैं , निश्चय ही तुम एक नाशपाती दे सकते हो”वृद्ध ने कहा। यह देख कई लोग इकट्ठे हो गए। किसी ने कहा इतने कंजूस मत बनो वृद्ध को एक नाशपाती दे दो। किसान वू ने गुस्से से अपनी लाठी घुमाई और सन्यासी को बुरा भला कहा।

बालक फू नान ने जब यह देखा तो पतंग खरीदने का सपना जो वह देख रहा था उसको बुला कर उसने अपनी जेब में हाथ डाला। “पतंग में बाद में भी ले सकता हूं” उसने अपने अपने आप से कहा और झटपट किशन वू को अपना सिक्का दे दिए।

जन्मदिन के उसके सारे पैसों में सिर्फ एक छोटी नाशपाती ही मिली। सन्यासी कहीं यह देखन न ले कि पतंग पाने की इतनी तीव्र इच्छा उसके मन में थी। फू फोन नीचे धूल भरी जमीन की ओर देखते हुए अपने दोनों हाथों में रखकर नाशपाती उन्हें भेंट की।

झुक कर धन्यवाद करने के बाद वृद्ध ने लोगों से बात की। ” क्योंकि आप में से कई लोगों ने अपना भोजन मेरे साथ बांटा है।”, उन्होंने कहा। “मैं हर एक को एक स्वादिष्ट नाशपाती खिलाऊंगा।” वह गांव के चौराहे में टहलते हुए आगे चले। भीड़ उनके साथ आती रही और अन्य लोगों की तरह उत्सुक किसान वू भी भीड़ के पीछे चलता रहा।

Bhikshuk Ka Jaadoo ; Chinese Lok Katha (Part 4) 

सन्यासी चौराहे के दूसरी तरफ रुक गए। उस छोटी नाशपाती को वह झटपट दांतो से काटकर खाने लगे। अंततः उनका एक छोटा काला बीज ही बचा।

पीठ पर लटकी एक थैली से उन्होंने एक फावड़ा निकाला। मिट्टी खोदकर एक गड्ढा बनाया और उसमें वह काला बीज बो दिया। “फू नान”, उन्होंने पुकारा, “केतली में उबला हुआ पानी लेकर आओ” निकट की एक चाय की दुकान से फू नान उबला हुआ पानी ले आया।

वृद्ध ने गर्म पानी मिट्टी में डाला, उसी पल एक हरा अंकुर मिट्टी से बाहर निकल आया। मिनटों में अंकुर पेड़ बन गया उसकी डालो पर पत्ती निकल आयीं। तितलियां और मधुमक्खियां आकर्षित होकर वहां आ गई। डालो पर पक्षी आकर गाने लगे।

कोपलें फूल बन गई। फूलों पर छोटी छोटी नाशपतियाँ निकल आई जो तुरंत ही पक कर सुनहरी भूरे रंग की हो गई। बृद्ध ने एक नाशपाती को सूंघा। “मुझे लगता है कि यह पक गई है, और हम इन्हें खा सकते हैं”,उन्होंने कहा। उन्होंने नाशपाती तोड़ी और हर ग्रामीण को एक नाशपाती दी। उन्होंने सबसे बड़ी और पक्की हुई नाशपाती लियांग को दी।

“मीठी रस भरी और स्वादिष्ट”, लोगों ने कहा। सन्यासी के जादू से सब आश्चर्यचकित हो गए।

Bhikshuk Ka Jaadoo ; Chinese Lok Katha (Part 5) 

जैसे ही अंतिम नाशपाती तोड़ी गई पेड़ के पत्ते सूख कर पीले हो गए और झड़ने लगे। जो डालें मज़बूत दिखाई दे रही थी थी वह सूख कर विकृत हो गई। “पेड़ ने सारे फल दे दिए है”, वृद्ध ने कहा। अपनी कुल्हाड़ी से पेड़ को उन्होंने काट डाला और उसकी लकड़िया लोगों को जलाने के लिए दे दी।

उन्होंने अपने हाथ झाड़कर धूल साफ़ की और अपने थैले से ढूंढ कर कागज का एक टुकड़ा निकाला जो उन्होंने फू नान को दिया। “जब तुम घर पहुंच जाओगे” उन्होंने फुसफुसाकर कहा। “इसको एक धागे से बांध देना और फिर देखना क्या होता है। फिर हाथ हिलाकर उन्होंने सबको अलविदा किया और पहाड़ों की ओर जाने वाले रास्ते पर चल दिए।

सब लोग इकट्ठे होकर उस जादू के विषय में बात करने लगे जो उन्होंने देखा था। फू नान ने कागज का टुकड़ा अपनी जेब में रख लिया और अपने माता-पिता को ढूंढने निकल पड़ा।

गांव के चौराहे से आई क्रोध भरी दहाड़ सुनकर फू नान रुक गया। लोगों ने किसानों को उस जगह खड़े देखा जहां उसका ठेला था। किसान वू की नाशपाती और उसका ठेला गायब हो गए थे। सिर्फ गधा और ठेले के दो पहिए वहां थे। तभी फू नान सब समझ गया। वृद्ध संन्यासी ने जादू से किसान वू की सारी नाशपाती गायब कर दी थी। पहिए को छोड़ ठेले की अन्य भाग पेड़ बनाने में उन्होंने उपयोग कर लिए थे।

किसान वू भी समझ गया कि क्या हुआ था। चौराहे में इकट्ठे लोगों को इधर-उधर धकेलते हुए वे सन्यासी के पीछे भागा और चिल्लाया “उस बूढ़े भिखारी को पकड़ो,उसने मेरी नाशपातीया चुरा ली।” लेकिन पहाड़ों की ओर जाते रास्ते पर सन्यासी बहुत दूर निकल गए थे। किसान वू के पीछे खड़े ग्रामीण इतनी जोर से हंस पड़े कि उनके लिए खड़े रहना भी कठिन हो गया।

उस दिन से आज भी किसान वू के नाशपाती खोने की कहानी सुनाकर गांव के लोग अपने बच्चों को आज भी सचेत करते हैं। उस मूर्ख इंसान की तरह कंजूसी ना करना अन्यथा अंत में जग हंसाई का कारण बन जाओगे।

उस दिन से टोकरी बनाने वाले के बेटे को आकाश में उड़ते हुए पक्षी देखना अच्छा लगता है लेकिन फिर उसने कभी कोई पक्षी नहीं पकड़ा। लियांग का कुआं मीठे स्वच्छ पानी से हमेशा भरा रहता है, सूखे के दिनों में भी। और जो कागज का टुकड़ा वृद्ध ने फू नान को दिया था वह एक विशाल शानदार पतंग बन गया।

उत्सव पर जब पहली बार उसने पतंग को शाम के समय उड़ाया तभी वो जान गया था कि जितनी भी पतंगे उसने अब तक ली थी ये पतंग सबसे अधिक सुंदर और मजबूत थी। पतंग के माझे को पकड़े हुए और हवा में पतंग की पूछ के फड़फड़ाने की आवाज सुनकर फू नान को लगा की वृद्ध संन्यासी उसके निकट ही थे। एक दिन उसने सोचा गांव त्याग कर वे वृद्ध संन्यासी का अनुसरण करते हुए पहाड़ों में जाने योग्य हो जाएगा।

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