चंदूभाई वीरानी की सफलता की कहानी | Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani Success Story

Chandubhai Virani Success Story

पढ़े पूरी कहानी Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani Real Life Motivational Success Story in Hindi – नमस्कार मित्रो आज के इस अंक में हम आपको बताने जा रहे है  पूरी कहानी Balaji Wafers Founder चंदूभाई वीरानी की जिन्होंने जीवन में छोटी शुरुआत के साथ लंबी उड़ान भरने के खातिर कई कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना किया और अर्श से फर्श तक का सफ़र पूरा किया | आइये जानते हैं Chandubhai Virani Success Story ही आपको सफलता के लिए प्रेरित करेगी। 

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Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani Success Story in Hindi

इन शख्स ने जीवन की इस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए कई विफलताओ का सामना किया पर कभी हार नही मानी | चलिए अब थोड़ा गहराई से जाने Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani Real Life Motivational Success Story की पूरी दास्तान :-

जाने Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani की बचपन और प्रारंभिक जीवन से जुड़ी कहानी :

चंदूभाई वीरानी का जन्म गुजरात के जामनगर जिले के कलावाड़ ताल्लुक में धुन-धोराजी गाँव में हुआ था जहाँ उनके पिताजी पोपटभाई पेशे से किसान थे | पिछले कुछ समय से उनके क्षेत्र में बारिश ना होने के कारण सूखा पड़ रहा था | ऐसे में उनके पिताजी ने अपना खेत बेच दिया और उनसे प्राप्त हुए 20000 रुपयों से Chandubhai Virani और उनके 4 भाईयो को देकर कुछ नया व्यापार प्रारंभ करने को कहा |

उनके और उनके 4 भाइयो ने अपने पिताजी की इच्छानुसार वैसा ही किया और उन पैसों से खाद और खाद और खेती के साजो-सामान का व्यापार शुरू किया लेकिन किसी ने वीरानी भाईयो की व्यापार में अनुभवहीनता का फायदा उठाते हुए धोखे से नकली सामान बेच दिया जिससे व्यापार में उन सभी भाइयो के पैसे डूब गये और व्यापार बंद हो गया | 

जाने Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani का अपने भाइयो के साथ राजकोट में जीवन के संघर्ष से जुड़ी कहानी :

व्यापार बंद होने के बाद Chandubhai Virani मात्र 17 वर्ष की आयु में अपने 4 भाईयो के साथ राजकोट जाकर कुछ करने की सोची और वहां जाकर एक कॉलेज के छात्रों के लिए बोर्डिंग और लोजिंग मैस शुरू की लेकिन यहाँ भी वीरानी भाईयो की किस्मत ने साथ नही दिया और ये काम भी बंद हो गया |

इसके बाद वर्ष 1964 में राजकोट में एस्त्रोन नामक सिनेमाहाल शुरू हुआ जिसकी कैंटीन में उन्हें और उनके भाईयो को कार्य मिल गया | सिनेमाहाल का मालिक उन सभी भाईयो से बहुत खुश रहता था क्योंकि वो सभी कैंटीन के काम के अतिरिक्त भी साफ़-सफ़ाई, टिकट काउंटर पर बैठने का या गार्ड आदि सभी प्रकार के कार्य कर लेते थे और आख़िरकार वर्ष 1976 में सिनेमाहाल के मालिक ने उन सभी भाईयो को सिनेमा की कैंटीन ठेके पर चलाने को दे दी |

एस्त्रोन सिनेमा के कैंटीन में सभी भाई सिनेमा देखने आने वाले दर्शको को चिप्स, नमकीन और सॉफ्टड्रिंक्स आदि बेचते थे | घीरे-धीरे काम भी अच्छा चलने लगा | शुरुआत में Chandubhai Virani अपने भाइयों के सहायक के रूप में काम किया और व्यापार की बारीकियो को समझना शुरू किया | उनको ये समझ में आ गया कि लोग कैंटीन में सबसे ज्यादा वैफर्स खरीदते थे | इसलिए उन्होंने अपने भाईयो के साथ मिलकर खुले वैफर्स खरीदकर उसे पैकेट में भरकर बेचने की योजना बनाई जो कि चल भी निकली | इसके बाद कैंटीन की मेन्यू में सैंडविच भी शामिल हो गया जिससे उनका मुनाफा और बढ़ने लगा | इसके बाद Chandubhai Virani ने इस व्यापार को और आगे बढ़ाने की ठान ली | 

जाने Chandubhai Virani और उनके भाईयो द्वारा Balaji Wafers को शुरू करने से जुड़ी कहानी :

वर्ष 1982 में Chandubhai Virani ने अपने भाईयो से बात करके घर पर ही आलू के चिप्स बनाने की सोची जिसके लिए पूरी जिम्मेदारी उन्ही की थी | उन्होंने सबसे पहले चिप्स बनाने वाले एक रसोईया और तवे का इंतज़ाम किया और Chandubhai Virani की देखरेख में घर पर शुरू हो गया आलू के चिप्स बनाने का काम जो कि Balaji Wafers के नाम से कैंटीन और अन्य दुकानों में मोपेड पर लादकर सप्लाई होने लगी |

जाने Chandubhai Virani और उनके भाईयो की Balaji Wafers से जुड़ी अब तक के पूरे सफ़र की कहानी :

Balaji Wafers को आज यहाँ तक पहुंचाने के लिए Chandubhai Virani और उनके भाईयो ने बहुत संघर्ष और उतार-चढ़ाव का सामना किया है | शुरू में कई लोग ने उनकी पेमेंट नही की फिर भी उन लोगो की मेहनत और चिप्स स्वाद होने के कारण लोगो को Balaji Wafers पसंद आने लगा और इसकी डिमांड बढ़ने लगी | अब डिमांड बढ़ी तो सप्लाई के लिए पहले रिक्शा और बाद में टेम्पो लेना पड़ा | यहीं नही अब डिमांड बढ़ने के कारण उत्पादन भी बढ़ाना था जिसके लिए बहुत सोच-विचार करके एक बार में 10-20 किलो आलू छीलने की और इतने ही आलू काटने वाली स्पेशल मशीन बनवाई गई | 

अब Chandubhai Virani अपने इस बिज़नेस को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाने के उद्देश्य से सभी भाईयो से विचार-विमर्श के बाद लोन लेकर राजकोट में एक 1000 वर्गमीटर का प्लाट लिया और उसमे 8 तवे लगाकर और स्टाफ बढ़ा दिया | चंदूभाई वीरानी इतने पर भी नही रुके और उन्होंने वर्ष 1992 में ग्राहकों को बेहतर दाम और पैकेजिंग के साथ बेहतर क्वालिटी देने के लिए एक आटोमेटिक वेफ़र-मेकिंग प्लांट लगा लिया जिसको लगवाने के 6 माह तक वीरानी भाईयो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा | फिर उनके सामने एक और भारी समस्या आई बाज़ार में मिल रही प्रतिस्पर्धा की जिसके कारण उनकी कंपनी को नुकसान हो रहा था |

इसके लिए वीरानी भाइयों ने पैकेजिंग मशीन में निवेश करने का निर्णय लिया और एक 6 लाख रुपये की लोकल मशीन खरीद ली जो बिलकुल बेकार निकली और अगले उनके अगले 2-3 वर्ष इस मशीन के सप्लायर के साथ कानूनी लड़ाई में खराब हो गये | फिर भी Chandubhai Virani ने अपनी सूझबूझ से तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए कंपनी को आगे बढ़ाते चले गये और फिर वर्ष 1999 में कंपनी में 2000 किलो प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता का आटोमेटिक प्लांट और वर्ष 2003 में 5000 किलो प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता वाली एफएमसी पोटैटो प्रोसेसिंग मशीनरी लगाई गई |

इसके बाद Balaji Wafers ने नमकीन बनाने के क्षेत्र में भी कदम रख दिया जिसमे भी स्वाद और गुणवत्ता के साथ ही किफायती दामो की बदौलत वो आजतक टिकी हुई है | आप Balaji Wafers की तरक्की का हिसाब इसी बात से लगा सकते है कि वर्ष 2018 में कंपनी की वृधि दर 20-25 प्रतिशत और सलाना आया 2200 करोड़ रुपये का था | ये सब मुमकिन हो पाया Chandubhai Virani की दूरदर्शी सोच और सभी भाईयो की रात-दिन की मेहनत और लगन से |

हमे आशा है कि आपको हमारी ये Balaji Wafers Founder Chandubhai Virani Real Life Motivational Success Story पसंद आयेंगी |

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