भगवान श्री कृष्ण के बारे में कहा जाता है की वो सम्पूर्ण अवतार थे अर्थात भगवान श्री कृष्ण 16 कालयों के स्वामी थे। Shri Krishan 16 Kalayen – 1 श्री संपदा, 2 भू संपदा, 3 वाणी सम्मोहन, 4 लीला, 5 कांति, 6 विद्या, 7 विमला, 8 विवेक, 9 कर्मण्यता, 10 योगबल, 11 विनय, 12 सत्य, 13 अधिपत्य, 14 परोपकार, 15 कीर्ति, 16 प्रेरणा।
आइये जानते हैं श्री कृष्ण की इन 16 कलाओं (Shri Krishan 16 Kalayen) को विस्तृत रूप से ….
Bhagwan Shri Krishan 16 Kalayen
1 श्री संपदा –
श्री कृष्ण की यह पहली कला जिस किसी की पास होती है वो धन – धान्य से भरपूर होता है। रूपये पैसे की कोई कमी नहीं होती। ऐसे व्यक्ति के घर से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटना है। भगवान श्री कृष्ण श्री-धन संपदा- प्रथम कला में परिपूर्ण हैं।
2 भू संपदा –
इस कला से पूर्ण व्यक्ति के पास खूब ज़मीन जायजाद होती है। ऐसा व्यक्ति पृथ्वी पर राज़ करता है और बड़े भू – भाग का स्वामी होता है। प्रभु श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं और इसी योग्यता से उन्होंने द्वारिकापुरी को बसाया।
3 वाणी सम्मोहन –
ऐसे व्यक्ति प्रभावशाली आवाज़ के स्वामी होते हैं और अपनी वाणी से हर किसी को मोहित कर देते हैं। इस गुण के व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध ख़त्म हो जाता है और उसके मन में प्रेम और भक्ति की भावना जाग्रत हो जाती है। भगवान श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं। जो गोपियाँ यशोदा माँ की पास कृष्ण की शिकायत करने आती थी वो प्रभु श्री कृष्ण की वाणी से सम्मोहित होकर उनका गुणगान करने लगती थीं।
4 लीला –
ऐसे व्यक्ति चमत्कारी होते हैं। ऐसे व्यक्ति के दर्शन मात्र से ही सुख और आनंद मिलता है। श्री कृष्ण को तो लीलाधर भी कहते हैं। श्री कृष्ण की तो कई ऐसी लीलायें हैं जिसे सुनकर ही मन भाव विभोर हो जाता है।
5 कांति –
ऐसे व्यक्ति के मुख मंडल पर एक अलौकिक तेज़ होता है। ऐसे व्यक्ति के रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता है। श्री कृष्ण को देखकर उनके मुख से कोई भी अपनी आखे हटा नहीं पाता। बार बार श्री कृष्ण की छवि को निहारने का मन करता है। इसी कला से मोहित होकर गोपियाँ श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कामना करती रहती थीं।
6 विद्या –
इस कला से संपन्न व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, राजनीति और कूटनीति में माहिर, युद्ध कौशल को जानने वाला और संगीत – नृत्य कला में माहिर होता है। श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं । वह वेद और वेदांग के साथ ही युद्ध, राजनीति एवं कूटनीत और संगीत कला में पारंगत हैं।
7 विमला –
ऐसे व्यक्ति में कोई छल कपट नहीं होता। ऐसा व्यक्ति सभी का समान दृष्टि से देखता है। ऐसा व्यक्ति आचार – विचार और व्यवहार में निर्मल होता है। श्री कृष्ण इस कला में स्वामी हैं। उन्होंने सुदामा के प्रति अपने इस गुण को प्रकट किया।
8 विवेक –
ऐसे व्यक्ति न्यायोचित फैसला लेने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त करने वाले होते हैं। महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन को सही रास्ता दिखाया जब अर्जुन अपने लक्ष्य से भटक रहा था।
9 कर्मण्यता –
ऐसे व्यक्ति कर्म प्रधान होता है। ऐसा व्यक्ति न केवल दूसरों को कर्म करने के लिए कहता है बल्कि खुद भी कर्म करता है। श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं। महाभारत के युद्ध में वो अर्जुन के सारथी बने और युद्ध का संचालन किया।
10 योगबल –
ऐसा व्यक्ति अपने मन को अपनी आत्मा से जोड़ देता है। श्री कृष्ण परम योगी हैं । उन्होंने अपने योग बल से ब्रह्मास्त्र के प्रहार से माता के गर्भ में पल रहे परीक्षित की रक्षा की और मृत गुरू पुत्र को पुर्नजीवन प्रदान किया।
11 विनय –
जो विनम्र होता है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार का भाव छू भी नहीं सकता। ऐसे व्यक्ति का व्यव्हार शालीनपूर्ण होता है। श्री कृष्ण अद्भुत शक्तियों से स्वामी हैं और पूरी श्रस्टि के पालनहार हैं पर उनमे ज़रा भी अहंकार नहीं था। हर व्यक्ति को विनम्रता से समझने का प्रयास करते थे। गरीब सुदामा के पैर धोकर उनका आदर करना। युद्ध में विजयी होने का पूरा श्रय पांडवों को देना आदि बहतु से उनकी विनम्रता के उदाहरण हैं।
12 सत्य –
ऐसे व्यक्ति सत्य बोलने वाले होते हैं। ऐसे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितयों में सत्य का साथ नहीं छोड़ते। प्रभु श्री कृष्ण इस कला में स्वामी हैं। वो धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करते हैं। शिशुपाल की माता ने जब उनसे पूछा की क्या शिशुपाल का वध तुम्हारे हाथों होगा तो श्री कृष्ण नि:संकोच कह देते हैं यह तो विधि का विधान है और मुझे ऐसा करना पड़ेगा।
13 अधिपत्य –
यह ऐसा गुण है जिसमे लोग उस व्यक्ति के संरक्षण में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं। श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं। इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए उन्होने गोवर्धन पर्वत को उठाया। मथुरा वासियों को द्वारिका नगरी में बसने के लिए भी तैयार किया।
14 परोपकार –
ऐसे व्यक्ति निस्वार्थ भाव से दूसरों पर परोपकार करते हैं। श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं। उन्होनें अपने भक्तों से कभी कुछ पाने की उम्मीद नहीं की। बल्कि जो भक्त उनमे पूर्ण श्रद्धा से मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
15 कीर्ति –
जिसका यश, मान सम्मान जिसकी ख्याति चारों दिशाओं में गूंजती है। भगवान श्री कृष्ण इस कला के स्वामी हैं। हर व्यक्ति उनकी जयजयकार करता है।
16 प्रेरणा –
ऐसे व्यक्ति प्रेरणा का श्रोत होते हैं। श्री कृष्ण इस कला में स्वामी हैं। उन्होने अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया।
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