स्वामी विवेकानंद के सुविचार / अनमोल विचार ~ Swami Vivekananda Quotes in Hindi

Swami Vivekananda Quotes

आध्यात्मिक गुरु, संत, समाज सुधारक युवाओं के प्रेरणास्रोत एवं मार्गदर्शन स्वामी विवेकानंद जी के प्रेरणादायक और अनमोल सुविचारSwami Vivekananda Quotes in Hindi

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Famous Swami Vivekananda Quotes In Hindi

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनके गुरु जी का नाम रामकृष्ण परमहंस था। स्वामी विवेकानंद जी ने 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो की धर्म संसद में जो सम्मेलन भाषण (Chicago Speech) दिया उसने पूरी दुनिया के सामने भारत को एक मजबूत छवि के साथ पेश किया। उन्होंने समाज सेवा कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। आइये जानते हैं स्वामी विवेकानंद को प्रेरित करते ज्ञानमय विचार Swami Vivekananda Quotes in Hindi

स्वामी विवेकानंद के सुविचार / अनमोल विचार

“उठो मेरे शेरो, मिटा दो इस भ्रम को कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हो।”

“जब लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो सोचो, तुम्हारी झूठी शान को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।”

“उठो, निडर बनो, मजबूत बनो। सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लो, और जान लो कि तुम अपने भाग्य के निर्माता खुद हो। आप जो भी ताकत और सहायता चाहते हैं, वह आपके भीतर है।”

“एक नायक बनो और सदैव खुद से कहो मुझे कोई डर नहीं है जैसा मैं सोच सकता हूं वैसा जीवन में जी भी सकता हूँ।”

“जो कुछ भी तुम्हें शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक रूप से कमजोर बनाता है, वो जहर के समान है। उसे त्याग दो।”

तुम प्रभु की सन्तान, अमर आनन्द के हिस्सेंदार, पवित्र और पूर्ण हो। हे पृथ्वीनिवासी ईश्वस्स्वरूप भाइयो! तुम भला पापी? मनुष्य को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानवस्वरूप पर एक लांछन है। ऐ सिहों, आओ और अपने भेड़-बकरी होने का का भ्रम दूर कर दो। तुम अमर आत्मा, शुद्ध-बुद्ध-मुक्त- स्वभाव, शाश्रवत और मंगलमय हो। तुम उसके गुलाम नहीं।

“शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है। विस्तार ही जीवन है, संकुचन ही मृत्यु है। प्रेम ही जीवन है, घृणा मृत्यु है।”

संसार की क्रूयता और पापों की बात मत करो। इसी बात पर खेद करे कि तुम अभी भी क्रूरता देखने को विवश हो। इसी का तुमको दुःख होना चाहिए कि तुम सब ओर केवल पाप देखने के लिए बाध्य हो। यदि तुम संसार की सहायता करना आवश्यक समझते हो, तो उसकी निंदा मत करो उसे और अधिक कमजोर मत बनाओ। पाप, दुःख आदि सब क्या हैं? कुछ भी नहीं, वे कमजोरी के ही परिणाम हैं। इस प्रकार के उपदेशों से संसार दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक कमजोर बनाया जा रहा है।

“जब भी आपके हृदय और मस्तिष्क के बीच संघर्ष हो, हमेशा अपने हृदय का अनुसरण करो।”

स्वामी विवेकानंद विचार इन हिंदी

स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक विचार हम सभी को सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। स्वामी जी की शिक्षाओं से लोगों में ताकत, दृण संकल्प और सफलता जैसी मजबूत भावनाएं पैदा होती हैं। Swami Vivekananda Quotes offer guidance towards a successful life.

Best Hindi Quotes of Swami Vivekananda

“आपको अंदर से बाहर निकलना होगा। कोई आपको सिखा नहीं सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के सिवा कोई दूसरा गुरु नहीं है।”

जो अपने आपमें विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वहनास्तिक हैं जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।

बाल्यकाल से ही उनके मस्तिष्क में निश्चित, हढ़ और सहायक विचारों को प्रवेश करने दो। अपने आपको इन विचारों के प्रति उन्मुक्त रखो, न कि कमजोर तथा अकर्मण्य बनाने वाले विचारों के प्रति।

दृढ़ संकल्प कर लो कि तुम किसी दूसरे को नहीं कोसोगे, किसी दूसरे को दोष नहीं दोगे, पर तुम ‘मनुष्य’ बन जाओ, खड़े होओ और अपने आपको दोष दो, स्वयं की ओर ही ध्यान दो, – यही जीवन का पहला पाठ हैं, यह सच्ची बात है।

“आपके मस्तिष्क की शक्ति सूर्य की किरणों के समान है, जब वो केंद्रित होती हैं, चमक उठती हैं।”

“अनुभव ही हमारे पास एकमात्र शिक्षक है। हम जीवन भर बात और तर्क कर सकते हैं, लेकिन हम सत्य के एक शब्द को नहीं समझेंगे। “

विश्वास, विश्वास, अपने आप में विश्वास, ईश्वर में विश्वास यही महानता का रहस्य है। यदि तुम पुराण के तैतीस करोड़ देवताओं और विदेशियों द्वारा बतलाये हुए सब देवताओं में भी विश्वास करते हो, पर यदि अपने आप में विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती। अपने आप में विश्वास करो, उस पर स्थिर रहो और शक्तिशाली बनो।

Swami Vivekananda Hindi Quotes for success

सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो। प्रयत्नशील व्याक्ति कहता है, ‘‘मैं समुद्र पी जाऊँगा, मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े टुकड़े हो जाएँगे।’’ इस प्रकार की शक्ति और इच्छा रखो, कड़ा परिश्रम करो, तुम अपने उद्देश्य को निश्चित पा जाओगे।

असफलता की चिन्ता मत करो, वे बिलकुल स्वाभाविक है, वे असफलताएँ जीवन के सौन्दर्य हैं। उनके बिना जीवन क्या होता? जीवन में यदि संघर्ष न रहे, तो जीवित रहना ही व्यर्थ हैं- इसी संघर्ष में हैं जीवन का काव्य। संघर्ष और त्रुटियों की परवाह मत करो। मैने किसी गाय को झूठ बोलते नहीं सुना, पर वह केवल गाय है, मनुष्य कभी नहीं, इसलिए इन असफलताओं पर ध्यान मत दो, ये छोटी फिसलनें हैं। आदर्श को सामनें रखकर हजार बार आगे बढ़ने का प्रयत्न करो। यदि तुम हजार बार भी असफल होते हो, तो एक बार फिर प्रयत्न करो।

“भगवान उनकी मदद करते हैं जो खुद की मदद करते हैं।”

कर्म करना बहुत अच्छा है, पर वह विचारों से आता है…., इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शो से भर लो, उन्हें रात-दिन अपने सामने रखो, उन्हीं में से महान् कार्यो का जन्म होगा।

“किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा थर्मामीटर उसकी महिलाओं के प्रति उसका व्यवहार है।”

यह एक बड़ी सचाई है, शक्ति ही जीवन और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति -परम सुख है, अजर अमर जीवन है। कमजोरी- कभी न हटनेवाला बोझ और यन्त्रणा है, कमजोरी ही मृत्यु है।

‘‘जड़’’ यदि शक्तिशाली है, तो ‘विचार’ सर्वशक्तिमान है। इस विचार को अपने जीवन में उतारो और अपने आपको सर्वशक्तिमान, महिमान्वित और गौरवसम्पन्न अनुभव करोे। ईश्वर करे, तुम्हारे मस्तिष्क में किसी कुसंस्कार को स्थान न मिले। ईश्वर करे, हम जन्म से ही कुसंस्कार डालनेवाले वातावरण में न रहें और कमजोर तथा बुराई के विचारों से बचें।

“अपने जीवन में जोखिम उठाएं। यदि आप जीतते हैं, तो आप नेतृत्व कर सकते हैं, यदि आप हारते हैं, तो आप मार्गदर्शन कर सकते हैं।”

अपने स्नायु शक्तिशाली बनाओ। हम लोहे की मांसपेशियाँ और फौलाद के स्नायु चाहते हैं। हम बहुत रो चुके – अब और अधिक न रोओ, वरन् अपने पैरों पर खड़े होओ और मनुष्य बनो।

“जब मैंने भगवान से शक्ति मांगी, तो उन्होंने मुझे कठिन परिस्थितियों में डाल दिया।”

“जो आग हमें गर्म करती है, वह हमें भी भस्म कर सकती है; यह आग का दोष नहीं है।”

“जब कोई विचार विशेष रूप से दिमाग पर कब्जा कर लेता है, तो यह वास्तविक शारीरिक या मानसिक स्थिति में बदल जाता है।”

“जब मनुष्य इन्द्रियों के वश में होता है। वह संसार का है। जब उसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है तो संसार उसी का है।”

“हम वही हैं जो हमारे विचारों ने हमें बनाया है; इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं; वे दूर यात्रा करते हैं।”

“एक समय में एक काम करो, और इसे करते समय अपनी पूरी आत्मा को इसमें डाल दो और सब कुछ छोड़ दें।”

“दुनिया एक महान व्यायामशाला है जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।”

स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Motivational Quotes in Hindi

संसार को बस कुछ सौ साहसी स्त्री-पुरुषों की आवश्यकता हैं उस साहस का अभ्यास करो, जिसमें सच्चाई जानने की हिम्मत है, जिसमें जीवन के सत्य को बतलाने की हिम्मत है, जो मृत्यु से नहीं काँपता, मृत्यु का स्वागत करता है, और मनुष्य को बतलाता है कि वह अमर आत्मा है, समस्त विश्व में कोई उसका हनन नहीं कर सकता। तब तुम स्वतन्त्र हो जाओगे।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। उनके व्याख्यानों में शरीर और आत्मा को हिलाने की शक्ति होती है। उनके विचार ‘Swami Vivekananda Quotes’ मानव जाति को प्रगति पथ पर चलने के लिए अग्रसर करते हैं।

विश्व की समस्त शक्तियाँ हमारी हैं। हमने अपने हाथ अपनी आँखों पर रख लिये हैं और चिल्लाते हैं कि सब ओर अँधेरा है। जान लो कि हमारे चारें ओर अँधेरा नहीं है, अपने हाथ अलग करो, तुम्हें प्रकाश दिखाई देने लगेगा, जो पहले भी था। अँधेरा कभी नहीं था, कमजोरी कभी नहीं थी। हम सब मूर्ख हैं जो चिल्लाते हैं कि हम कमजोर हैं, अपवित्र हैं।

“रुपये के बिना एक आदमी गरीब नहीं है लेकिन एक आदमी सपने और महत्वाकांक्षा के बिना वास्तव में गरीब है।”

इच्छाशक्ति ही सब से अधिक बलवती है। इसके सामनें हर एक वस्तु झुक सकती है, क्योंकि वह ईश्वर और स्वयं ईश्वर से ही आती हैं, पवित्र और हढ़ इच्छाशक्ति सर्वशक्तिमान है। क्या तुम इसमें विश्वास करते हो?

“सच्ची प्रगति धीमी है लेकिन निश्चित है।”

हम देख सकते हैं कि एक तथा दूसरे मनुष्य के बीच अन्तर होने का कारण उसका अपने आप में विश्वास होना और न होना ही है। होने से सब कुछ हो सकता है। मैंने अपने जीवन में इसका अनुभव किया है, अब भी कर रहा हूँ और जैसे जैसे मैं बड़ा होता-जा रहा हूँ, मेरा विश्वास और भी हढ़ होता जा रहा है।

Swami Vivekananda Quotes in Hindi

“ज्ञान का उपहार दुनिया में सबसे बड़ा उपहार है।”

“मस्तिष्क और मांसपेशियों को एक साथ विकसित होना चाहिए। एक बुद्धिमान मस्तिष्क के साथ लोहे की नसें – और पूरी दुनिया आपके चरणों में है। ”

क्या तुम जानते हो, तुम्हारे भीतर अभी भी कितना तेज, कितनी शक्तियाँ छिपी हुई हैं? क्या कोई वैज्ञानिक भी इन्हें जान सका है? मनुष्य का जन्म हुए लाखों वर्ष हो गये, पर अभी तक उसकी असीम शक्ति का केवल एक अत्यन्त क्षुद्र भाग ही अभिव्यक्त हुआ है। इसलिए तुम्हें यह न कहना चाहिए कि तुम शक्तिहीन हो। तुम क्या जानों कि ऊपर दिखाई देनेवालें पतन की ओट में शक्ति की कितनी सम्भावनाएँ हैं? जो शक्ति तुममें है, उसके बहुत ही कम भाग को तुम जानते हो, तुम्हारे पीछे अनन्त शक्ति और शान्ति का सागर है।

यदि मानवजाति के आज तक के इतिडास में महान् पुरुषों और स्त्रियों के जीवन में सब से बड़ी प्रवर्तक शक्ति कोई है, तो वह आत्माविश्वास ही है। जन्म से ही यह विश्वास रहने के कारण कि वे महान होने के लिए ही पैदा हुए हैं, वे महान बने।

“जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।”

‘मनुष्य’- केवल ‘मनुष्य’ ही हमें चाहिए, फिर हर एक वस्तु हमें प्राप्त हो जाएगी। हमें चाहिए केवल हढ़ तेजस्वी, आत्मविश्वासी तरुण – ठीक ठीक सच्चे हृदयवाले युवक। यदि सौ भी ऐसे व्यक्ति हमें मिल जाएँ, तो संसारआन्दोलित हो उठेगा – उसमें विशाल परिवर्तन हो जाएगा।

“हम भगवान को खोजने के लिए कहां जा सकते हैं यदि हम उसे अपने दिल में और हर जीवित प्राणी में नहीं देख सकते हैं।”

“जो कुछ अच्छा है उसे दूसरों से सीखो, लेकिन इसे अंदर लाओ, और अपने तरीके से इसे अवशोषित करो; दूसरे मत बनो।”

“ब्रह्मांड में सभी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। यह हम हैं जिन्होंने अपनी आंखों के सामने हाथ रखा है और रोते हैं कि यह अंधेरा है।”

“अपने लक्ष्यों को अपनी क्षमताओं के स्तर तक कम न करें। इसके बजाय, अपनी क्षमताओं को अपने लक्ष्यों की ऊंचाई तक बढ़ाएं।”

“मन शरीर का सूक्ष्म हिस्सा है। आपको अपने मन और शब्दों में बड़ी ताकत रखनी चाहिए।”

प्रेम और निस्वार्थता पर स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Quotes in Hindi for Love and Selflessness

नःस्वार्थता अधिक लाभदायक है, किन्तु लोगों में उसका अभ्यास करने का धैर्य नहीं है।

शुद्ध बनना और दूसरों की भलाई करना ही सब उपासनाओं का सार है। जो गरीबों, निर्बलों और पीडितों में शिव को देखता है, वही वास्तव में शिव का उपासक है, पर यदि वह केवल मूर्ति में ही शिव को देखता है, तो यह उसकी उपासना का आरम्भ मात्र है।

तुम्हें ईश्वर को ढूंढने कहाँ जाना है? क्या गरीब, दुखी और निर्बल ईश्वर नहीं है? पहले उन्हीं की पूजा क्यो नहीं करते? तुम गंगा के किनोर खड़े डोकर कुआँ क्यों खोदते हो?

“पहले, दुनिया में विश्वास करो – कि हर चीज के पीछे अर्थ है।”

प्रेम की सर्वशक्तिमत्ता पर विश्वास करो।……क्या तुममें प्रेम हैं? तुम सर्वशक्तिमान हो। क्या तुम पूर्णतः निःस्वार्थी हो? यदि हाँ, तो तुम अजेय हो। चरित्र ही सर्वत्र फलदायक है।

स्वार्थ ही अनैतिकता और स्वार्थहीनता ही नैतिकता है।

उच्च स्थान पर खड़े होकर और हाथ में कुछ पैसे लेकर यह न कहो-‘‘ऐ भिखारी, आओ यह लो।’’ परन्तु इस बात के लिए उपकार मानो कि तुम्हारे सामने वह गरीब है, जिसे दान देकर तुम अपने आप की सहायता कर सकते हो। पानेवाले का सौभाग्य नहीं, पर वास्तव में देनेवाले का सौभाग्य है। उसका आभार मानो कि उसने तुम्हें संसार में अपनी उदारता और दया प्रकट करने का अवसर दिया और इस प्रकार तुम शुद्ध और पूर्ण बन सके।

प्रेम – केवल प्रेम का ही मैं प्रचार करता हूँ, और मेरे उपदेश वेदान्त की समता और आत्मा की विश्वव्यापकता – इन्हीं सत्यों पर प्रतिष्ठित हैं।

निःस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है। जो जितना अधिक निःस्वार्थी है, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक और शिव के समीप हैं….। और वह यदि स्वार्थी है, तो उसने चाहे सभी मन्दिरों में दर्शन किये हों, चाहे सभी तीर्थों का भ्रमण किया हो, चाहे वह रँगे हुए चीते के समान हो, फिर भी वह शिव से बहुत दूर है।

मुझे मुक्ति या भक्ति की परवाह नहीं है, मैं सैकडो-हज़ारों नरक में ही क्यों न जाऊँ, बसंत की तरह मौन दूसरो की सेवा करना ही मेरा धर्म है।

पहले रोटी और फिर धर्म। सब बेचारे दरिद्री भूखों मर रहे हैं, तब हम उनमें व्यर्थ ही धर्म को ठूँसते हैं। किसी भी मतवाद से भूख की ज्वाला शान्त नहीं हो सकती….। तुम लाखों सिद्धांतों की चर्चा करो, करोड़ों सम्प्रदाय खड़े कर लो, पर जब तक तुम्हारे पास संवेदनशील हृदय नहीं है, जब तक तुम उन गरीबों के लिए वेदों की शिक्षा के अनुरूप तड़प नहीं उठते, जब तक उन्हें अपने शरीर का ही अंग नहीं समझते, जब तक यह अनुभव नहीं करते कि तुम और वे-दरिद्र और धनी, सन्त और पापी-सभी उस एक असीम पूर्ण के, जिसे तुम ब्रह्म कहते हो, अंश हैं, तब तक तुम्हारी धर्म-चर्चा व्यर्थ है।

विकास ही जीवन और संकोच ही मृत्यु है। प्रेम ही विकास और स्वार्थपरता संकोच है। इसलिए प्रेम ही जीवन का मूलमन्त्र है। प्रेम करने वाला ही जीता है और स्वार्थी मरता रहता है। इसलिए प्रेम प्रेम ही के लिए करो, क्योंकि एकमात्र प्रेम ही जीवन का ठीक वैसा ही आधार है, जैसा कि जीने के लिए श्रवास लेना। निःस्वार्थ प्रेम, निःस्वार्थ कार्य आदि का यही रहस्य है।

हे वत्स, प्रेम कभी विफल नहीं होता, आज कल या युगों के पश्चात कभी न कभी सत्य की विजय निश्चय होगी। प्रेम विजय प्राप्त करेगा। क्या तुम अपने साथियों से प्रेम करते हो?

स्मरण रखो, पूरा जीवन देने के लिए ही है। प्रकृति देने के लिए विवश करेंगी, इसीलिए अपनी खुशी से ही दो….। तुम संग्रह करने के लिये ही जीवन धारण करते हो। मुट्ठी-बँधे हाथ से तुम बटोरना चाहते हो, पर प्रकृति तुम्हारी गर्दन दबाती हैं और तुम्हारे हाथ खुल जाते हैं। तुम्हारी इच्छा हो या न हो, तुम्हें देना ही पड़ता है। जैसे ही तुम कहते हो, ‘मैं नहीं दूँगा’, एक घूँसा पडता है और तुम्हें चोट लगती है। ऐसा कोई भी नहीं है, जिसे अन्त में सब कुछ त्यागना न पड़े।

श्रेष्ठतम जीवन का पूर्ण प्रकाश है आत्मत्याग, न कि आत्माभिमाना।

Swami Vivekananda Quotes in Hindi

दुखियों के दुःख का अनुभव करे और उनकी सहायता करने को आगे बढ़ो, भगवान तुम्हें सफलता देंगे ही मैंने अपने हृदय में इस भार को और मस्तिष्क में इस विचार को रखकर बारह वर्ष तक भ्रमण किया। मैं तथाकथित बड़े और धनवान व्यक्तियों के दरवाजों पर गया। वेदना-भरा हृदय लेकर और संसार का आधा भाग पार कर, सहायता प्राप्त करने के लिए मैं इस देश (अमरीका) में आया। ईश्वर महान है। जानता हूँ, वह मेरी सहायता करेंगा। मैं इस भूखण्ड में शीत से या भूख से भले ही मर जाऊँ, पर हे तरुणो, मैं तुम्हारे लिए एक बसीयत छोड़ जाता हूँ, और वह है यह सहानुभूति – गरीबों, अज्ञानियों, और दुःखियों की सेवा के लिए प्राणपण से चेष्टा।

उन सभी की सहायता करना, जो अच्छे बनने तथा अच्छा कार्य करने का प्रयत्न करते हैं।

जहां सच्चा धर्म है, वहां सबसे मजबूत आत्म-बलिदान है। अपने लिए कुछ नहीं चाहतासब कुछ दूसरों के लिए करो – ईश्वर में अपने जीवन का यही हाल है, गति और उपलब्धि।

दूसरो की भलाई करने का अनवरत प्रयत्न करते हुए हम अपने आपको भूल जाने का प्रयत्न करते हैं। यह अपने आपको भूल जाना एक ऐसा बड़ा सबक है, जिसे हमें अपने जीवन में सीखना है। मनुष्य मूर्खता से यह सोचने लगता है कि वह अपने को सुखी बना सकता है, पर वर्षो के संघर्ष के पश्चात् अन्त में वह कहीं समझ पाता है कि सच्चा सुख स्वार्थ के नाश में है और उसे अपने आपके अतिरिक्त अन्य कोई सुखी नहीं बना सकता।

अपने आपमें विश्वास रखने का आदर्श ही हमारा सब से बड़ा सहायक है। सभी क्षेत्रों में यदि अपने आप में विश्वास करना हमें सिखाया जाता और उसका अभ्यारा कराया जाता, तो मुझें विश्वास हैं कि हमारी बुराइयों तथा दुःखों का बड़ुत बड़ा भाग आज तक मिट गया होता।

मनुष्य अल्पायु है और संसार की सब वस्तुएँ वृथा तथा क्षणभंगुर हैं, पर वे ही जीवित हैं, जो दूसरो के लिए जीते हैं, शेष सब तो जीवित की अपेक्ष मृत ही अधिक हैं।

जो आपकी मदद कर रहा है, उन्हें कभी मत भूलना। जो तुमसे प्यार कर रहा है, तुम्हारी परवाह कर रहा है उनसेकभी नफरत मत करना। और जो आप पर विश्वास कर रहा है, उन्हें कभी धोखा मत देना।

मैं उस धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, जो विधवा के आँसू पोंछने या अनाथों को रोटी देने में असमर्थ है।

“जो कोई भी आपको शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता है, उसे जहर के रूप में अस्वीकार करें।”

“दिन में कम से कम एक बार अपने आप से बात करें.. जिससे आप इस दुनिया में एक उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ एक बैठक को याद कर सकें।”

अगर हम भगवान को नहीं देख सकते हैं तो हम कहां जा सकते हैं?

ईश्वर और धर्म पर स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Quotes in Hindi for God and Religion

यदि ईश्वर है, तो हमें उसे देखना चाहिए। अन्यथा उन पर विश्वास न करना ही अच्छा है। ढोंगी बनने की अपेक्षा स्पष्ट रूप से नास्तिक बनना अच्छा है।

ईश्वर की पूजा करना अन्तर्निहित आत्मा की ही उपासना है।

जो दूसरों का सहारा ढूंढता है, वह सत्य स्वरूप भगवान की सेवा नहीं कर सकता।

अभ्यास अत्यावशयक है। तुम प्रतिदिन घण्टों बैठकर मेरा उपदेश सुनते, रहो, पर यदि तुम उसका अभ्यास नहीं करते, तो एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकते। यह सब तो अभ्यास पर ही निर्भर है। जब तक हम इन बातों का अनुभव नहीं करते, तब तक इन्हें नहीं समझ सकते। हमें इन्हें देखना और अनुभव करना पड़ेंगा। सिद्धानों और उनकी व्यारव्याओं को केवल सुनने से कुछ न होगा।

संसार में अनेक धर्म हैं, यद्यपि उनकी उपासना के नियम भिन्न हैं, तथापि वेवास्तव में एक ही हैं।

मैं अभी तक के सभी धर्मों को स्वीकार करता हूँ और उन सब की पूजा करता हूँ, मैं उनमें से प्रत्यके के साथ ईश्वर की उपासना करता हूँ वे स्वयं चाहे किसी भी रूप में उपासना करते हों। मैं मुसलमानों की मस्जिद में जाऊँगा, मै ईसाइयों के गिरजा में क्रास के सामने घुटने टेककर प्रार्थना करूँगा, मै बौद्ध मन्दिरों में जाकर बुद्ध और उनकी शिक्षा की शरण लूँगा। जंगल में जाकर हिन्दुओं के साथ ध्यान करूँगा, जो हृदयस्थ ज्योतिस्वरुप परमात्मा को प्रत्यक्ष करने में लगे हुए हैं।

जो अपने आपको ईश्वर को समर्पित कर देते हैं, वे तथाकथित कर्मियों की अपेक्षा संसार का अधिक हित करते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने को पूर्णतः शुद्ध कर लिया है, वह उपदेशकों के समूह की अपेक्षा अधिक सफलतापूर्वक कार्य करता है, चित्तशुशुद्धि और मौन से ही शब्द में शक्ति आती है।

Swami Vivekananda Quotes in Hindi

ईश्वर मुक्तिस्वरूप है, प्रकृति का नियन्ता है। तुम उसे मानने से इन्कार नहीं कर सकते। नहीं, क्योंकि तुम स्वतन्त्रता के भाव के बिना न कोई कार्य कर सकते हो, न जी सकते हो।

एक विचार ले लो उसी एक विचार के अनुसार अपने जीवन को बनाओ, उसी को सोचो, उसी का स्वप्न देंखो और उसी पर अवलम्बित रहो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुओं और शरीर के प्रत्येक भाग को उसी विचार से ओतप्रोत होने दो और दूसरे सब विचारो को अपने से दूर रखो। यही सफलता का रास्ता है और यही वह मार्ग है, जिसने महान् धार्मिक पुरुषों का निर्माण किया है।

हमें आज जिस बात को जानने की आवश्यकता है वह है ईश्वर- हम उसे सर्वत्र देख और अनुभव कर सकते हैं।

ग्रन्थों के अध्ययन से कभी कभी हम भ्रम में पड़ जाते हैं कि उनसे हमें आध्यात्मिक सहायता मिलती हैं, पर यदि हम अपने ऊपर उन ग्रन्थों के अध्ययन से पड़नेवाले प्रभाव का विश्लेषण करें, तो ज्ञात होगा कि अधिक से अधिक हमारी बुद्धि पर ही उसका प्रभाव पडा है, न कि हमारे अन्तरात्मा पर। आध्यात्मिक विकास के लिए प्रेरक-शक्ति के रूप में ग्रन्थों का अध्ययन
अपर्याप्त है, क्योंकि यद्यपि हममें से प्रायः सभी आध्यात्मिक विषयों पर अत्यन्त आश्चर्यजनक भाषण दे सकते हैं, पर जब प्रत्यक्ष कार्य तथा वास्तविक आध्यात्मिक जीवन बिताने की बात आती है, तब अपने को बुरी तरह अयोग्य पाते हैं। आध्यात्मिक जागृति के लिए ब्रह्मनिष्ठ गुरु से प्रेरक-शक्ति प्राप्त होनी चाहिए।

‘भोजन, भोजन’ चिल्लाने और उसे खाने तथा ‘पानी, पानी’ कहने और उसे पीने में बहुत अन्तर है। इसी प्रकार केवल ‘ईश्वर, ईश्वर’ रटने से हम उसका अनुभव करने की आशा नहीं कर सकते। हमें उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए, साधना करनी चाहिए।

एकमात्र ईश्वर, आत्मा और आध्यात्मिकता ही सत्य हैं- शक्ति-स्वरूप हैं। केवल उन्हीं का आश्रय लो।

बुराईयों के बीच भी कहो-‘मेंरे प्रभु, मेरे प्रियतम।’ मृत्यु की यन्त्रणा में भी कहो-‘मेर प्रभु, मेरे प्रियतम।’ संसार की समस्त विपत्तियों में भी कहो-‘मेरे प्रभु, मेरे प्रियतम! तू यहाँ है, मैं तुझे देखता हूँ। तू मेरे साथ है, मैं तुझे अनुभव कराता हूँ मैं तेरा हूँ, मुझे सहारा दे। मैं संसार का नहीं, पर केवल तेरा हूँ, तू मुझे मत त्याग।’ हीरों की खान को छोड़कर काँच की मणियों के पीछे मत दौड़ो। यह जीवन एक अमूल्य सुयोग है। क्या तुम सांसरिक सुखों की खोज करते हो?- प्रभु ही समस्त सुख के सत्रोत हैं। उसी उच्चतम को खोजो, उसी को अपना लक्ष्य बनाओ और तुम अवश्य उसे प्राप्त करोगे।

बाह्मप्रकृति पर विजय प्राप्त करना बहुत अच्छी और बहुत बड़ी बात है, परअन्तः प्रकृति को जीत लेना इससे भी बडी बात है……। अपने भीतर के ‘मनुष्य’ को वश में कर लो, मानव-मन के सूक्ष्म कार्यों के रहस्य को समझ लो और उसके आश्चर्यजनक गुप्त भेद को अच्छी तरह जान लो- ये बातें धर्म के साथ अच्छे भाव से संभंधित हैं।

कोई भी जीवन असफल नहीं हो सकता संसार में असफल कही जानेवाली कोई वस्तु है ही नहीं सैकड़ों बार मनुष्य को चोट पहुँच सकती है, हजारों बार वह पछाड़ खा सकता है, पर अन्त में वह यही अनुभव करेंगा कि वह स्वयं ही ईश्वर है।

जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख में ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलो और उसे देखो।

भारत और मातृभमि पर स्वामी विवेकानंद के विचार

Swami Vivekananda Quotes in Hindi for India & Motherland

समस्त संसार हमारी मातृभमि का महान ऋणी है। किसी भी देश को ले लीजिए, इस जगत् में एक भी जाति ऐसी नहीं है, जिसका संसार उतना ऋणी हो, जितना कि वह यहाँ के धैर्यशील और विनम्र हिन्दुओं का है।

जैसे जैसे मैं बड़ा होता हूँ, मैं इन प्राचीज भारतीय संस्थाओं को अधिक अच्छी तरह समझता जा रहा हूँ। एक समय था, जब मैं सोचता था कि उनमें से अनेक संस्थाएँ निरुपयोगी और व्यर्थ हैं, पर जैसे जैसे मैं बडा होता जा रहा हूँ, मुझे इनकी निन्दा करने में अधिकाधिक संकोच मालूम पड़ता है, क्योंकि इनमें से प्रत्येक, शताब्दियों के अनुभव का साकार स्वरूप है।

मेरी बात पर विश्वास कीजिए। दूसरे देशों में धर्म की केवल चर्चा ही होती है, पर ऐसे धार्मिक पुरुष, जिन्होंने धर्म को अपने जीवन में परिणत किया है, जो स्वयं साधक हैं, केवल भारत में ही हैं।

उपनिषदों के सत्य तुम्हारे सामने हैं। उन्हें स्वीकार करो, उनके अनुसार अपना जीवन बनाओ, और इसी से शीघ्र ही भारत का उद्धार होगा।

मैंने कहा कि अभी भी हमारे पास कुछ ऐसी बातें हैं, जिनकी शिक्षा हम संसार को दे सकते हैं। यही कारण है कि सैकड़ों वर्ष तक अत्यातारोें को सहने, लगभग हजार वर्ष तक विदेशी शासन में रहने और विदेशियों द्वारा पीड़ित होने पर भी यह देश आज तक जीवित रहा है। उसके अभी भी अरितत्व में रहने का कारण यही है कि वह सदैव और अभी भी ईश्वर का आश्रय लिये हुए है, तथा धर्म एवं आध्यात्मिकता के अमूल्य भण्डार का अनुसरण करता आया है।

भारत को छोड़ने के पहले मैंने उससे प्यार किया, और अब तो उसकी धूलि भी मेरे लिए पवित्र हो गयी है, उसकी हवा भी मेरे लिए पावन हो गयी है। वह अब एक पवित्र भूमि है, यात्रा का स्थान है, पवित्र तीर्थक्षेत्र है।

हमारे इस देश में अभी भी धर्म और आध्यात्मिकता विद्यमान है, जो मानो ऐसे स्त्रोत हैं, जिन्हें अबाध गति से बढ़ते हुए समस्त विश्व को अपनी बाढ़ से आप्लावित कर पाश्चात्य तथा अन्य देशों को नवजीवन तथा नवशक्ति प्रदान करनी होगी। राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं और सामाजिक कपटों के कारण ये सब देश आज अर्धमृत हो गये है, पतन की चरम सीमा पर पहुँच चुके हैं, उनमें अराजकता छा गयी है।

जब आपको ऐसे लोग मिलेंगे, जो देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हैं और जो हृदय के सच्चे हैं-जब ऐसे लोग उत्पन्न होंगे, तभी भारत प्रत्येक दृष्टि से महान् होगा। मनुष्य ही तो देश के भाग्यविधाता हैं।

आओ, मनुष्य बनो। अपनी संकीर्णता से बाहर आओ और अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाओ। देखों, दूसरे देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम मनुष्य से प्रेम करते हो? क्या तुम अपने देश को प्यार करते हो? तो आओ, हम उच्चतर तथा श्रेष्ठतर वस्तुओं के लिए प्राणपण से यत्न करे। पीछे मत देखो, यदि तुम अपने प्रियतमों तथा निकटतम सम्बन्धियों को भी रोते देखो तो भी नहीं। पीछे मत देखो, आगे बढ़ो।

यदि तुम अंग्रेजों या अमेरिकनों के बराबर होना चाहते हो, तो तुम्हें उनको शिक्षा देनी पडेगी और साथ ही साथ शिक्षा ग्रहण भी करनी पड़ेगी, और तुम्हारे पास अभी भी बहुत सी ऐसी बातें हैं जो तुम भविष्य में सैकड़ों वर्षो तक संसार को सिखा सकते हो। यह कार्य तुम्हें करना ही होगा।

पर ध्यान रखो, यदि तुम इस आध्यात्मिकता का त्याग कर दोगे और इसे एक ओर रखकर पश्चिम की जड़वादपूर्ण सभ्यता के पीछे दौड़ोगे, तो परिणाम यह होगा कि तीन पीढियों में तुम एक मृत जाति बन जाओगें, क्योंकि इससे राष्ट्र की रीढ़ टूट जाएगी, राष्ट्र की वह नींव जिस पर इसका निर्माण हुआ है, नीचे धँरा जाएगी और इसका फल सर्वांगीण विनाश होगा।

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