हिंदी लोक कथाएँ /लोक कहानियाँ (Lok Kathayen In HIndi) की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं मजेदार लोक कथा ‘’सोने की ईंटें ~ The Gold Bricks ! Lok Katha / Kahani ~ Folk Tale in Hindi
सोने की ईंटें
The Gold Bricks ! Lok Katha / Kahani
एक भिखारी था। भीख मांगने में वह बड़ा चतुर था। जितना चतुर था, उतना ही बड़ा कंजूस भी था। उसने भीख मांग-मांग कर बहुत-सा धन जमा कर लिया। धन जमा हो गया तो उसकी सुरक्षा की उसे चिंता सवार हुई। उसने सोचा बहुत सोचा आखिर निर्णय किया इस छोटी-सी झोंपड़ी में इतना धन जमा करके रखना ठीक नहीं। उस धन से उसने सोने की चार ईंटें खरीद लीं, उन ईंटों को उसने पास के जंगल में जाकर गाड़ दिया। अब वह निश्चित था, मन में खुशी थी कि धन सुरिक्षत है।
भिखारी भीख मांग कर लौटता तो जहां ईंटें थीं, उस जगह को जाकर देख लेता था। पहले एक बार देखता था, फिर धीरे-धीरे ईंटों का मोह वढ़ गया। वह दिन में कई बार उस जगह को देखता। पैर से जमीन को अच्छी तरह थपथपाता, ताकि मालूम पड़े, किसी ने ईंटों को उखाड़ा तो नहीं, जगह खोखली तो नहीं हो गई।
एक दिन किसी चोर ने यह बात ताड़ ली। जब भिखारी ईंटों की जगह को देखकर लौट आया तो चोर ने पीछे से जाकर उस जगह को खोद डाला, सोने की ईंटें देख वह खुशी से उछल पड़ा। मन में कहने लगा यह तो बड़ा धनवान भिखारी निकला। चोर ने सोने की चारों ईंटें निकाल उनकी जगह मिट्टी की चार ईंटें रख, उस जगह को पहले की तरह समतल बना दिया।
भिखारी शाम को फिर ईटें देखने आया, सुबह तो ऊपर की मिट्टी कड़ी थी, अब भुरभुरी मिट्टी देख उसे शंका हुई। उसने उस जगह को खोदा। सोने की ईंटों की जगह मिट्टी की इंटें रखी थीं। भिखारी फूट-फूट कर रोने लगा, तभी उस रास्ते से एक महात्मा गुजरे। उन्होंने भिखारी को रोता देख, रोने का कारण पूछा। भिखारी बोला, ‘‘महात्मा जी, मैं लुट गया। मेरा सब कुछ चोरी हो गया। अब क्या होगा ?
महात्मा यह सुन कर आश्चर्य में थे। देखने में वह फटे हाल था शरीर पर अच्छी तरह कपड़े भी नहीं थे। जाड़े में कांप रहा था, था भी भिखारी। महात्मा जी सोचने लगे-इसका क्या लुट गया, इसका क्या चोरी हो गया, यह तो भिखारी है ही। लगता है, कुछ गड़बड़ है। उन्होंने भिखारी।के साथ हमदर्दी दिखाई। कहा, ‘‘रो नहीं, बता तेरा क्या लुट गया? मुझे तो नहीं लगता तरे पास धन होगा।’’
‘‘हा महाराज, धन था, मैंने भीख मांग-मांग कर सोने की चार ईंटें जोड़ी थीं। उन्हें चोरी के डर से यहां गाड़ गया था, मगर वे ही चोरी हो गईं। चोर उन्हें ले गया, उनकी जगह मिट्टी की ये इंटे रख गया।’’
महात्मा ने पूछा, ‘‘वेे सोने की ईटें क्या तुम्हें रोज खाना देती थीं ?’’
‘‘नहीं महात्मा जी, भला ईंटें खाना कैसे देतीं, ईंटें तो जड़ होती हैं।’’ भिखारी बोला।
‘‘तो फिर क्या देती थीं-कपड़ा, घोड़ा, गाड़ी, फल-फूल कुछ तो देती होंगी। उनका कुछ न कुछ उपयोग तो होगा ही, इसीलिए तो तुम इतने दुखी हो रहे हो,’’ महात्मा ने पूछा।
भिखारी आंसू पोंछ कर बोला , ‘‘इंटें देती तो कुछ नहीं थीं, बस उन्हें देखकर मन में संतोष हो जाता था।
सुन कर महात्मा जी मुस्कराए। बोले, ‘‘जब सोने की ईंटें केवल देखने के ही काम आती थीं तब इन्हें भी देखकर काम चला लो। जैसे सोने की ईटें देखीं, वैसे ही मिट्टी की, क्या अन्तर आता है?’’
भिखारी कुछ सोचने लगा। उसके मन में अभी भी शांति नहीं थी। महात्मा ने फिर कहा, ‘‘सुख संतोष में है, लालच में नहीं। सोने की इंटें तुम्हारे पास केवल थीं, काम कुछ नहीं आती थीं। ईंटें अब भी हैं, तुमने सोने की ईंटे भी मिट्टी में गाड़ रखी थीं। विचार करो और संतोष कर सुखी बनों।
भिखारी के बात समझ में आ गई। उसने महात्मा जी को नमस्कार किया और भिक्षा मांगने वाला कटोरा उठा कर अपनी राह पर चला गया।
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Achchhi laghu kahani.👍👍👍