गुदड़ी का लाल रैक्व कहावत पर लोक कथा ! Gudadi Ke Laal raikv lok katha !

Gudadi Ke Laal raikv lok katha

दोस्तों गुदड़ी का लाल (Gudadi Ke Laal) कहावत तो शायद आपने सुनी होगी। इस कहावत का अर्थ है “गुणवान इंसान जहाँ कहीं भी होगा (चाहें लोग उसे उस स्थान पर मिलने की आशा न करते हों ) उसकी प्रतिभा एक न एक दिन बाहर जरूर आती है। जैसे – एक गरीब के घर में गुणवान बालक का जन्म होना। आज की लोक कथा इसी कहावत की व्याख्या हेतु श्री अशोक कौशिक द्वारा लिखी गई है।

चलिए जानते हैं – Gudadi Ke Laal raikv lok katha !

गुदड़ी का लाल रैक्व कहावत पर लोक कथा !
Gudadi Ke Laal raikv lok katha !

गुदड़ी में कभी किसी को लाल छिपा मिला या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु यह। कहावत पुराने जमाने से ही चली आ रही है। शायद यह कहावत ऐसे लोगों के कारण ही प्रचलित .हुई होगी जैसा कि इस कहानी का रैक्व गाड़ीवाला था।

पुराने जमाने की बात है। उन दिनों जनश्रुति नाम का एक बहुत ही दानी राजा था, उसने नगर-नगर में स्थान-स्थान पर धर्मशालाएं बनवा दी थीं और अन्न के भण्डार खुलवा रखे थे। अर्थात उसके राज्य में प्रजा को न तो रहने के स्थान की कठिनाई होती थी और न खाने-पीने की।

एक बार की बात है कि मानसरोवर के कुछ हंस उड़कर जनश्रुति की राजधानी आए । संयोगवश रात के समय वे राजमहल की छत पर ही उतरे। उनमें से एक हंस ने अपने साथी से कहा, ‘‘तुमने इस राजा का तेज देखा? कितना तेजस्वी है यह राजा, उसके समीप मत जाना, कहीं तुम उसके तेज से जल न जाओ।’’

उसका साथी बोला, ‘‘मालूम होता है कि तुमने उस गाड़ीवाले रैक्व को नहीं देखा है, तभी तुम इस राजा के तेज की प्रशंसा कर रहे हो।’’

‘‘कैसा तेजवाला है वह गाड़ीवाला?’’ पहले ने पूछा।

‘‘अरे भाई उसकी महिमा का क्या बखान किया जाए। बस, उसकी तो समझो पांचों उंगलियां घी में है। वह तो बहुत ही ज्ञानी है और अपने ज्ञान के सहारे वह सारे संसार के प्राणियों का भला करता रहता है। इस कारण उसका चेहरा तेज से चमकता है ।’’

अपने महल की छत पर बैठे हंसों के इस वार्तालाप को महाराज जनश्रुति सुन रहे थे। उनके लिए रात बिताना कठिन हो गया। ज्यों ही सबेरा हुआ राजा ने अपने सेवकों को बुला कर कहा, ‘‘देखो, हमारे राज्य में कोई रैक्व गाड़ीवाला है। उसके पास जाओ और कहो कि हम उससे मिलना चाहते हैं।

सेवकों को बडा विस्मय हुआ कि कहां तो गाड़ीवाला रैक्व और कहां महाराजा जनश्रुति। इससे भी विस्मय की बात कि उस गाड़ीवाले का कोई अता-पता भी नहीं था।

राजा से यह प्रतिप्रश्न तो किया नहीं जा सकता था कि उस गाड़ीवाले के विषय में आपने कहां सुना और क्या सुना। अस्तु, सारे विश्वस्त सेवकों की बैठक बुलाई गई और उसमें रैक्व गाड़ी- वाले के विषय पर विचार-विमर्श होने लगा। किन्तु किसी को भी उसका पता नहीं था।

जब किसी से कुछ पता नहीं चल पाया कि रैक्व गाड़ीवाला कहां रहता है और किसकी गाड़ी चलाता है तो चारों दिशाओं में उसकी खोज के लिए नौकर-चाकर, सैनिक आदि भेजे गए। राजधानी के आसपास के प्रत्येक गाड़ीवाले से पूछा गया। किन्तु न तो उनमें से ही कोई रैक्व था और न ही किसी को उसके विषय में कोई ज्ञान था।

राजधानी में जब इस गाड़ीवाले का पता कुछ नहीं चला तो राजधानी से बाहर उसकी खोज होने लगी। सभी नगर छान मारे पर कहीं रैक्व का पता नहीं चला। नगरों के बाद ग्रामों की बारी आईं। किन्तु आश्चर्य की बात कि गांवों में भी कहीं से रैक्व गाड़ीवाले के विषय में कुछ मालूम नहीं हो सका।

महाराज को सूचना तो देनी ही थी। अतः डरते-डरते उनसे कहा गया कि रैक्व नाम के किसी गाड़ीवाले का कहीं पता नहीं हैं। राजा सोचने लगा कि उसके सेवकों ने नगरों अथवा ग्रामों में ही खोजा होगा। राजा के विचार से ऐसा विद्वान गाड़ीवाला या तो जंगल में होगा या किसी आश्रम में। तब महाराज ने अपने सेवकों से कहा, ‘‘आप लोगों ने उसको नगरों अथवा ग्रामों में खोजा होगा । किन्तु सुना है, वह तो बड़ा ज्ञानी-ध्यानी है। और ऐसे ज्ञानी-ध्यानी लोग नगरों अथवा ग्रामों में नहीं अपितु जंगलों या आश्रमों में रहा करते हैं। वहां उसकी खोज की जाए।

महाराज से निर्देश मिलने पर जब खोज की गई तो सेवकों को सफलता मिल ही गई। कहीं दूर जंगल में एक गाड़ी के नीचे बैठा हुआ एक व्यक्ति अपना शरीर खुजला रहा था। राजसेवक उस के समीप गए। यद्यपि वह फटे हाल था किन्तु उसके चेहरे से तेज टपक रहा था और फिर महाराज जिससे मिलना चाहते हैं उस से सभ्यता से ही बात करनी चाहिए, यह विचार कर राजा के सेवक ने पूछा, ‘‘महात्मा जी! क्या रैक्व आपका ही शुभनाम है?’’

गाडीवाले ने अपनी गर्दन उठा कर पास खड़े सेवकों की ओर देखा। सिर हिलाते हुऐ उत्तर दिया, ‘‘हा नाम तो मेरा ही रैक्व है।’’

राजा के सेवकों सैनिकों को जब विश्वास हो गया तो वे वहां अधिक समय नहीं रुके। एक दो सेवकों को वहीं छोड़ शेष अपनी राजधानी की ओर कूच कर गए। महाराज को सूचना दी गई।

रैक्व का पता ठिकाना मिल गया है, यह जान कर महाराज को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने हाथी घोड़ों में धन लदवाया, छः सौ गायें दान के लिए तैयार करवाई और स्वयं एक रथ पर सवार होकर वे इस सब साज-सामान के साथ रैक्व की सेवा में उपस्थित हो गए।

रैक्व के समीप पहुंच कर राजा ने कहा, ‘‘प्रभु यह तुच्छ भेंट ग्रहण कीजिए। यह मैं आपके लिए ही लाया हूं। इसे स्वीकार कीजिए और मुझे ब्रह्मज्ञान का उपदेश दीजिए।

रैक्व ने इधर-उधर देखा। अपने चारों ओर भीड़ और साज-सामान देखकर उनको असन्तोष- सा हुआ वे बोला, यह आप अपने पास ही रखिए। मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है।’’

राजा को सन्देह हुआ कि कहीं रैक्व इस भेंट को कम न समझ रहे हों। इसलिए वह फिर अपनी राजधानी आया और इस बार एक सहस्त्र गाएं और अन्य साज-समान से लदे अनेक रथ भर कर ले गया।

एक बार फिर रैक्व के समीप पहुंच कर राजा ने विनम्र शब्दों में कहा, ‘‘प्रभो। यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए तथा मुझे ब्रह्मज्ञान का उपदेश देकर कृतार्थ कीजिए।’’

रैक्व को यह बात सुन कर क्रोध आ गया। उन्होंने कहा, ‘‘अरे मूर्ख, इन वस्तुओं को तू अपने पास ही रख। तू क्या समझता है कि ब्रह्मज्ञान खरीदी जाने वाली कोई वस्तु है ?’’

इतना कह कर रैक्व फिर मौन हो गए। राजा को ध्यान आया कि रैक्व को यह सब प्रलोभन दे कर वह कितनी बड़ी भूल कर रहा है। ब्रह्मज्ञानी को इस सबसे क्या वास्ता। राजा के मन में ज्यों ही यह विचार आया तो वह नतमस्तक होकर वहीं बैठ गया।

राजा को अपने सम्मुख नतमस्तक देख रैक्व समझ गए कि राजा को अब अपने किए का पश्चाताप हो रहा है। बड़े ही सरलचित्त थे रैक्व। उन्होंने राजा को कुछ दिन अपने समीप रहने को कहा। राजा ने वह सब हाथी-घोड़े और रथ राजधानी वापस भेज दिए और वह स्वयं रैक्व की सेवा में वहीं जंगल में रहने लगा। इस प्रकार मुनि के पास रह कर उसने ब्रह्मविद्या सीखीं।

मुनि के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए बाद में राजा ने उस सारे प्रदेश का नाम ही बदल दिया और उस का नाम ‘रैक्वपर्ण’ कर दिया। साधारण बैलगाड़ी चलाने वाला भी उस जमाने में कितना विद्वान था। शायद तभी यह कहावत प्रसिद्ध हुई होगी कि ‘‘लाल गुदड़ी में नहीं छिपते’ जिसका अर्थ होता है अच्छा इंसान अगर कहीं भी होगा उसकी प्रतिभा एक न एक दिन बाहर जरूर आती है उसे किसी संदूक या कमरे में बंद करके नहीं रखा जा सकता। जैसे सूरज को आप किसी चादर से ढक नहीं सकते उसका प्रकाश बाहर आयेगा ही। आम की गुठलियों को जमीन में गाड़ देने बाद भी वह पौधा बाहर निकल कर मीठे फल जरूर देगा। इसी लिए कहा गया है कि लाल गुदड़ी में नहीं छिपते।

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