महात्मा जी और बारात Hindi Poranik Katha – Mahatma ji or Baraat

Hindi Poranik Katha - Mahatma ji or Baraat

पौराणिक कथा महात्मा जी और सांसारिक जीवन Mahatma ji or Baraat – Hindi Poranik Katha / Kahaniya : पौराणिक कथा / पौराणिक कहानियां

महात्मा जी और बारात
Hindi Poranik Katha – Mahatma ji or Baraat

एक परमहंस महात्मा थे। बचपन में ही घर त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था। एकांत में रह कर भजन करते थे । संसार से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं था। उनका जीवन शांति से बीत रहा था। महात्मा के त्याग और तपस्या की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी।

एक दिन वह तीर्थ यात्रा पर निकले। चलते-चलते किसी गांव के समीप से गुजरे। गांव के बाहर बाग था। महात्मा वहां आए, तो वहां भी भीड़-भाड़ थी। बाजे बज रहे थे। घोड़े, रथ सजे खड़े थे। खाना-पीना चल रहा था।

यह देखकर महात्मा जी को कौतुहल हुआ । उन्होंने एक आदमी से पूछा, ‘‘यह भीड़-भाड़ कैसी है? क्या हो रहा है यहां? किसी युद्ध की तैयारी तो नहीं हो रही ?’’

महात्मा जी के भोलेपन पर गांव वाले को हँसी आ गई ? उसने विनम्रता से कहा, ‘‘यह बारात है, गांव में आाई है, उसी का स्वागत-सत्कार हो रहा है। खा-पीकर बारात घोड़े, रथों पर बैठ कर बेटी वाले के घर जाएगी। अभी इससे भी अधिक धूम-धड़ाका होगा।’’

महात्मा जी ने कभी बारात देखी नहीं थी। उन्हें यह भी पता न था कि बारात होती क्या है। अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिये उन्होंने पूछ ही लिया, ‘‘भइया, यह बारात क्या होती है ?’’

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‘‘महाराज, हमारे गांव में एक किसान की लड़की की शादी है। ये बेटे वाले हैं, शादी करने आए हैं । इसी की खुशी में आज नाच-गाना भी होगा ।’’ उस आदमी ने बताया।

‘‘मगर शादी क्या होती है, कैसे होती है?’’ महात्मा जी ने पूछा।

गांव वाले ने बताया, ‘‘दूल्हा-दुल्हन मण्डप में आते हैं फिर उनकी शादी होती है। शादी के बाद वे अपनी गृहस्थी बसाते हैँ । संसार का सुख भोगते हैं।’’

महात्मा जी सोचने लगे, ‘यह सुख क्या होता है। मुझे भी शादी करके संसार का सुख भोगना चाहिए। चलो, पहले बारात के साथ रहकर शादी कैसे होती है, यह देखा जाए।

बस, महात्मा जी बारात के साथ चल पड़े। गांव वालों ने महात्मा जी का भी बारात के साथ स्वागत किया। महात्मा जी खाते थे कंद, मूल, फल। आज उन्होंने स्वादिष्ट पकवान खाए। यद्यपि स्वाद को वह पहचानते न थे फिर भी नए तरह का खाना खाकर उन्हें नया-नया लग रहा था।

इसके बाद महात्मा जी ने बाजे सुने, महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले गीतों को सुना। रात को विवाह मण्डप में जाकरशादी होती भी देखी। आधी रात तक यह सब कुछ होता रहा। उसके बाद बाराती सो गए।

महात्मा जी भी एक कएं के चबूतरे पर आकर लेट गए । आज उन्होंने भजन-पूजन भी नहीं किया। पेट भरा था, लेटते ही नींद आ गई।

दिन भर जो देखा था, वह अचेतन मन में था। स्वप्न में उन्होंने देखा कि उन का भी विवाह हो रहा है। बारात भी चढ़ी है। वह घोड़ी पर बैठे हैं । घोड़ी उछल रही है । उन्हें डर लगा, बस जरा करवट ली, और धड़ाम से कुएं में जा गिरे।

महात्मा जी कुएं में गिरे तो जोर से आवाज हुई। कुछ बाराती जाग रहे थे। कुएं में किसी के गिरने की आवाज सुन वे भागे आए। गांव वाले भी इकट्ठा हो गए। महात्मा जी को बाहर निकाला गया। वह जिदा थे मगर सिर में चोट लगी थी, खून वह रहा था, गांव वालों ने वैद्य को बुलवाया, उपचार हुआ। कुछ देर में उन्हें होश आ गया।

गांव वालों ने पूछा, ‘‘महात्मा जी आप गिर कैसे गए’’?

महात्मा जी ने कान पकड़ कर कहा, ‘‘हुआ क्या, मैंने विवाह देखा। उसी का यह परिणाम मिला। जब संसार के सुखों को देखने मात्र से यह दुर्दशा हुई, तो न जाने उन सुखों को भोगने वालों की क्या दुर्दशा होती होगी । मैं तो आप की सहायता से कुएं से बाहर भी निकल आया, किन्तु जो इस संसार के भोगों को ही सब कुछ समझते हैं वे शायद ही मोह के अंधकूप से कभी बाहर निकल सकें।’’

यह कहते हुए महात्मा जी अपने रास्ते पर चल दिए।

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