लोहार की बुद्धिमान लड़की – कश्मीरी लोक कथा ~ Lohar ki Budhiman Ladki

Lohar ki Budhiman Ladki

हिंदी लोक कथाएँ /लोक कहानियाँ (Lok Kathayen In HIndi) की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं ‘नन्दलाल चत्ता ’ द्वारा लिखी बहुत ही रोचक एवं मजेदार कश्मीर की लोक कथा ‘’लोहार की बुद्धिमान लड़की – कश्मीरी लोक कथा ~ Lohar ki Budhiman Ladki ~ Kashmiri Lok Katha

लोहार की बुद्धिमान लड़की
कश्मीरी लोक कथा ~ Lohar ki Budhiman Ladki

श्रीनगर में एक बहुत अमीर सौदागर रहता था। उसके पास हर प्रकार के सुख की सामग्री थी, परन्तु उसे एक बात का बढ़ा दुःख था। उसका एक ही पुत्र था, और वह भी महामुर्ख।

सौदागर यह सोच-सोच कर कि उसका नालायक बेटा उसके कमाये हुए धन का नाश करेगा अत्यन्त चिन्तित रहता था। परन्तु सौदागर की पत्नी कुछ और ही सोचती थी। उसका ख्याल था कि उसका नालायक बेटा सुयोग्य पत्नी पाकर मूर्ख नहीं रह पायेगा। इसलिये वह प्रतिदिन अपने पति, सौदागर, से कहती-‘‘बेटा बढ़ा हो गया है, इसका विवाद करना चाहिए जिससे हम भी घर में एक बहू लाकर अपने जीवन के शेष दिन सुख में बिता सकें।’’

सौदागर उत्तर में कहता-‘‘विवाह करना तो ठीक है। पर क्यों किसी अबला को इस मूर्ख के पल्ले बाँधने को कहती हो। उस बेचारी का जीवन नष्ट हो जायगा। बेटा सुधर नहीं सकता। मूर्ख है ही, ओर मूर्ख रहेगा भी। हमारा नाम डुबायेगा, इसलिए मुझसे इस बारे में कुछ भी न कहा करो।’’

परन्तु पत्नी के बार-बार अनुरोध करने पर वह एक दिन राजी हो गया। पर एक शर्त तय हुईं। वह यह थी कि सोदागर मूर्ख बेटे को एक बार फिर से आजमाये। पत्नीने यह शर्तें स्वीकार कर ली।

सौदागर ने दूसरे दिन अपने पुत्र को पास बुला कर कहा-‘‘बेटा यह लो तीन पैसे। इनको लेकर बाजार जाओ। एक पैसे में अपने लिए कुछ चबेना लो। दूसरे को पानी में डाल दो। तीसरे पैसे से पाँच चीजें मोल लो, कुछ खाने की, कुछ पीने की, कुछ चबाने की, कुछ बाग में वोने की और कुछ गाय को खिलाने के लिए।’’

सौदागर का पुत्र तीन पैसे लेकर बाजार गया। पहले पैसे में अपने लिए कुछ खाने की चीजें लीं, और नदी की ओर चला। नदी पर पहुँच कर वह सोचने लगा कि पैसा तो काम की चीज है, मैं इसे नदी में क्यों फेंक दूँ, पर पिता की आज्ञा को भी तो मानना
ही है।

यह सोचते-सोचते उसने न तो नदी मै पैसा ही फेंका, और न यह सोच सका कि क्या किया जाय। वह वहीं नदी किनारे बुत की तरह खड़ा हो गया। इतने में वहाँ एक नवयुवती आई। उसने जब सौदागर-पुत्र को इस प्रकार देखा, तो पास आकर बोली- ‘‘आप क्या सोच रहे हैं?’’

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Lohar ki Budhiman Ladki

सौदागर के पुत्र ने सारी बात कह सुनाई तो वह बोली-‘‘पैसा नदी में फेंकना मूर्खता है। यह तो पास रखने की चीज है, और एक पैसे में पॉच चीजें मोल लेने से तुम्हारे पिता का अर्थ है कि तुम एक तरबूज मोल ले लो। उसमे ही पांचों चीजे हैं।’’

यह नवयुवती वहॉ के लुहार की बुद्धिमान बेटी थी। सौदागर-पुत्र ने उसकी बात मान ली। वह बाजार से एक तरबूज मोल लेकर घर गया, और उसे अपने पिता के सामने रखा। उसका पिता यह देख हैरान हुआ कि उसका मूर्ख पुत्र एकदम बुद्धिमान कैसे हो गया।

इस पर उसने उससे पूछा- ‘‘बेटा सच बताओ तुम्हे यह वस्तु मोल लेने में किसने मदद दी। यह तो तुम्हारी बुद्धि से बाहर है।’’ बेटे ने झट से सारी बात कह दी।

सौदागर ने लुहार की लड़की की बुद्धिमत्ता की दाद दी, और मन में निश्चय कर लिया कि यदि बेटे का विवाह करना ही है, तो इसी लड़की से होना चाहिए। उसने यह बात अपनी पत्नी से भी कह दी। उसे भी यह बात बहुत पसन्द आई ।

दिन बीतते गये। एक दिन सौदागर लुहार के घर इस ख्याल से गया कि उसकी लड़की से बेटे के विवाह की बात पक्की कर दे। परन्तु उस समय न तो लुहार ही घर में मौजूद था, और न उसकी पत्नी ही। लुहार की बेटी ने धनवान मेहमान का सादर आसन दिया, और चाय बनाई। सौदागर ने चाय का प्याला पीते हुए कहा-बेटी तुम्हारे माता-पिता कहाँ गये हैँ ?’’

चतुर बालिका ने कहा-‘‘मेरे पिता जो तो बाजार एक कौड़ी का हीरा मोल लाने और माता जी एक के घर कुछ बातें बेचने गई है।’’

सौदागर ने लाख कोशिश की कि इस बात को समझ ले, पर समझ न सका। सो उसने फिर कहा- ‘‘बेटी, में तुम्हारा बातें नहीं समझ सका, कृपा करके मुझे समझा दो।’’

यह सुन वह बोली-‘‘मेरे पिता जी तो दिये के लिए एक कौड़ी का तेल लाने गये है। मेरी माता जी किसी का विवाह निश्चित करने के लिए गई है। वही इसका अर्थ है।’’

इतनी देर में लुहार उसकी पत्नी भी आ गई। सौदागर ने उसको अपने आने का कारण कह सुनाया। वह इस बात को मान गये और मूर्ख सौदागर-पुत्र दा विवाह चतुर लुहार-पुत्री से होना पका हो गया।

दूसरे दिन ही सारे शहर में यह खबर फैल गई कि सौदागर अपने पुत्र का विवाह एक लुहार की पुत्री से करने जा रहा है। शहर में तरह-तरह की बातें होने लगी। बहुत से दुष्टो को जलन भी हुई कि एक गरीब बाप की बेटी बढ़े सौदागर की बहु हो जायेगी ।

कुछ लोग तो इसको सहन न कर सके और एक दिन सौदागर-पुत्र से जाकर बोले-‘‘देखो जी तुमअमीर हो। इस पत्नी से, जोकि तुम जानते हो गरीब बाप की बेटी है, तुम दुख पाओ। इसलिए उसे काबू में रखने के लिए उसकी प्रतिरात जूतों से मरम्मत करते रहना, नहीं तो अन्त से वह सिर पर सवार हो जायेगी।’’

मित्रों की यह बात उस मूर्ख ने मान ली।

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जब इस बात का पता लुहार को चला तो उसने अपनी पुत्री को इस बात पर मजबूर करना चाहा कि वह ऐसे मूर्ख से विवाह न करे। पर उसने कहा-‘‘मैं विवाह करूँगी और इसी सौदागर-पुत्र से ही करूँगी।’’ फिर समझा कर बोली-

‘‘आप कोई चिन्ता न करें, वह जो कुछ कहता है, वैसा कभी नहीं होगा और मैं अपनी बुद्धि से सब के जीवन को सुखी बना लूँगी।’’

कुछ दिनों बाद बड़ी धूम-धाम के साथ उनका विवाह रचा गया। पहली रात को ही मूर्ख सौदागर-पुत्र ने अपने दुष्ट मित्रों की शिक्षा पर चलने के इरादे से जूता उठा लिया और यह सोच कर कि उसकी पत्नी सोई हुई है उसने उसको जूतों से मारने की कोशिश की पर उसने हाथ पकड़ते हुए कहा-‘‘देवता, सुहागरात को ऐसा नहीं होना चाहिए यह बुरी बात है।’’

उसका पति, सौदागर-पुत्र, मान गया। इस प्रकार वह प्रतिरात उसको कुछ न कुछ कह कर टालती रही। सात दिन के बाद बहू अपने मायके चली गई। यार लोगों को जब सौदागर-पुत्र से पता चला कि उसने उनके कहने पर अमल नहीं किया है तो बोले-‘‘तुम तो डरपोक ही निकले। अब देखना तुम्हारी बीवी तुमको कैसा नाच नचायेगी।’’

बहू तो मायके आ गई, और इधर सौदागर ने अपने पुत्र को बहुत सा धन, माल, नौकर-चाकर, सवारी इत्यादि देकर बाहर के देश में व्यापार करने को भेजा। सौदागर का विचार था कि इससे उसका पुत्र कुछ तजर्बा प्राप्त करेगा।

सौदागर-पुत्र विदेश जाते हुए एक दिन एक शहर में पहुँचा। वहाँ उसने एक विशाल महल की एक खिड़की से एक सुन्दर युवत्ती को झाकते हुए देखा। महल के चारों ओर एक ऊँची दीवार थी और इसके चारो और सेब, नाशपाती और बादाम का एक बड़ा बाग था। उस सुन्दर स्त्री ने सौदागर-पुत्र को महल में आन का संकेत किया। सौदागर-पुत्र महल के अन्दर अपने सब नौकर-चाकर और माल इत्यादि लेकर गया।

कुछ मीठीे-मोठी बातें करने के बाद युवती ने उसे नर्द ; काश्मीर में एक विशेष प्रकार का शतरंज खेलने को कहा। उसने खेलना स्वीकार कर लिया। पर सौदागर-पुत्र शतरंज खेलना तो जानता ही न था, और वह युवती इसमें माहिर थी। कुछ ही खेलों के बाद सौदागर-पुत्र अपना सब कुछ और अपने आपको भी हार गया।

उस युवती ने उसका माल-दौलत अपने कोष में जमा करवाया और उसको उसके नौकरों सहित जेल में बन्द कर दिया। जेल में उसके साथ बुरा व्यवहार होने लगा और वह बहुत दुबला हो गया।

जेल के सीखचों में से उसने एक दिन एक राह चलते से विनय की कि वह उसकी बात सुन ले । पथिक के यह कहने पर कि वह श्रीनगर का रहने वाला, सौदागर-पुत्र ने उसको पत्र ले जाने को कहा। पथिक ने उस पर दया करके उसको कलम, दवात और कागज लाकर दिया, और उसने दो पत्र लिख कर उसको दिये।

एक पत्र तो उसने अपने पिता को लिखा, जिसमें उसने सब हाल सच-सच लिख दिया और दूसरा अपनी पत्नी के लिए, जिसमें उसने लिखा, ‘‘मैं अब बहुत धनवान हो गया हूँ और अब जल्दी आकर तुम्हे खूब जूते मारुँगा।’’ पथिक दोनों पत्र लेकर विदा हुआ।

वह वेचारा अनपढ़ था। शहर में आकर उसने पिता के नाम का पत्र लुहार की लड़की को दिया और उसका पत्र सौदागर को। लुहार की लड़की ने पत्र देखा तो बहुत दुखित हुईं, और झट सौदागर के पास गई। उसने भी अपना पत्र दिखाया।

योग्य बहू ने सौदागर से माल-दौलत मॉग कर उसी प्रकार शहर से विदेश के लिए प्रस्थान किया और अपना रूप एक सौदागर का बना कर वह भी उसी महल के पास आई।

महल में जाकर उसने उस स्त्री को शतरंज खेलने के लिए ललकारा। युवती के नौकरों को प्रलोभन देकर उसने अपने पक्ष में पहले ही कर लिया और उस युवती के हर बार जीतने का भेद भी जान लिया।

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दूसरे दिन उसने शतरंज की सब वाजियाँ जीत कर उस युवती तक को जीत लिया और उसको अपना कैदी बनाया। उसी क्षण उसने अपने पति को जेल से बहार निकलवाया और उसके कपड़े बदलवाये। पर वह उसे न पहचान सका।

अगले दिन लुहार-पुत्री ने अपने शहर के लिए प्रस्थान किया। उस हारी हुई युवती का सब माल भी ऊँटों और घोड़ों पर लाद लिया और अपने पति के जेल की पोशाक को एक सन्दूक में बन्द करवा कर उसको अपने पास ही रख लिया।

शहर से बाहर पहुँचते ही उसने अपने पति को सब माल लेकर घर जाने को कहा और बोली-‘‘आप घर जाइये और में भी जल्दी ही आपसे मिलने आता हूँ ।’’

घर लौटने पर सौदागर-पुत्र का स्वागत बहुत अच्छी तरह हुआ। उसके माता-पिता के सुख का अन्त न रहा। कुछ समय के बाद उसकी पत्नी भी वहॉ आई। मूर्ख सौदागर-पुत्र यह सोच कर कि वह अब बहुत मालदार है एकदम से उठा, अपने पॉव से जूता उतारा और अपनी पत्नी को पीटने पर उतारू हुआ। उसकी पत्नी ने उसके जेल की निशानी, कपड़ों का संदूक, जो साथ लाई थी, मॅगवाई। उसने उसका ढकन खोल कर वह कपडे निकाल कर उसको दिखाये पर मुॅह से कुछ न कहा।

सौदागर-पुत्र यह देखकर हैरान हुआ ओर सब बात समझ गया कि उसको छुड़ानेवाला उसकी बुद्धिमान पत्नी के सिवा और कोई नहीं था। वह बड़ा लज्जित हुआ, और उसने अपनी सारी कहानी कह सुनाई और उससे माफी मॉग ली। इसके बाद वह दोनो सुख से जीवन बिताने लगे।

राजकुमार और बेलकुमारी

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