संतरे वाली राजकुमारी Uttar Pradesh ki Lok Katha ~Santre Wali Rajkumari

Santre Wali Rajkumari

हिंदी लोक कथाएँ /लोक कहानियाँ (Lok Kathayen In HIndi) की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं ‘शिवनयना मेहता’ द्वारा लिखी बहुत ही रोचक एवं मजेदार उत्तर प्रदेश की लोक कथा ‘’संतरे वाली राजकुमारी” Uttar Pradesh Ki Lok Katha ~ Santre Wali Rajkumari ~ Folk Tale in Hindi

संतरे वाली राजकुमारी
Bharat Ki Lok Katha ~ Santre Wali Rajkumari

किसी देश में एक बहुत बड़ा जंगल था। उस जंगल के बीचों-बीच एक संतरे का पेड़ था। उस पेड़ के नीचे एक संतरी पहरा दिया करता था। एक दिन दो शिकारी राजकुमार शिकार करते हुए उधर आ निकले। संतरे के पेड़ के नीचे खड़े उस संतरी को देख उन्हें बड़ा अचम्भा हुआ। कुछ देर तो वह दूर से खड़े उस संतरी की ओर देखते रहे, पर वह कुछ समझ न सके। फिर आपस में कुछ सलाह करके वह आगे बढ़े और संतरी के निकट जाकर पूछा-‘‘संतरी जी आप क्यों उस सतरे के पेड़ के नीचे पहरा दे रहे दो?

संतरी यह सुन हँस पडा और फिर कुछ देर बाद बोला -‘‘भाई तुम्हें इन बातों से क्या लेना है? अपना काम-धन्धा देखो।’’

यह सुन शिकारी ओर भी हैरान हुए और सोचने लगे कि ‘ऐसी क्या बात है जो संतरी बताना नहीं चाहता।’ उन्होंने फिर आग्रह से पूछा – ‘‘संतरी जी, हम तुम्हारे यहाँ पहरा देने का कारण जाने बिना यहाँ से नहीं जायेंगे।’’

संतरी बोला, “कारण बताने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर तुम्हें जान कर केवल दुःख के और कुछ न प्राप्त होगा, इसीलिए में नहीं बताना चाहता।’’

बड़ा राजकुमार बोला, ‘‘हम किसी प्रकार के दु.ख अथवा संकट से नहीं घबराते, हम हर प्रकार के संकट का मुकाबला करेंगे और दु.ख भोगने को तैयार हैं।’’

छोटा राजकुमार अपने बड़े भाई से बोला, ‘‘भैया, चलो घर चले, न जाने क्या मुसीबत आ जाएगी। यहाँ जंगल में तो कोई सहायक भी नहीं मिलेगा।’’

बडा भाई बोला – ‘‘डरने की क्या बात है। हम तो राजपूत हैं। यदि तुम्हे डर लगता है तो तुम सहर्ष घर लौट जाओ। में तो सारी बात की खोज करके ही चैन लूगा।’’

छोटा भाई बोला -‘‘ना भाई, में तुम्हें यहाँ अकेला छोड़ कर नहीं जाऊँगा। अकेला में पिता जी को क्या मुॅह दिखाऊँगा जैसा तुम कहो वैसे ही मैं करूँगा।’’

संतरी बोला, ‘‘तो तुम लोग नहीं मानोगे कारण जाने बगैर। अच्छा, तो जैसे भगवान की इच्छा। लो, बैठ जाओ उस पत्थर पर और ध्यान से सुनो।’’

इतना कह, वह संतरी भी वहीं एक पत्थर पर बैठ गया और कुछ देर सोच कर सिर खुजलाते हुए उसने कहना आरम्म किया-

ज्ञान की महिमा

Uttar Pradesh ki Lok Katha ~Santre Wali Rajkumari

‘‘इस संतरे के पेड़ का तना खोखला है। इसमें उतर कर अन्दर बड़ा सुन्दर, हीरे-जवाहरात से चमकता हुआ एक महल है जिसमे एक राजकुमारी रहती है। उस राजकुमारी के बराबर की सुन्दरी इस संसार में और कोई दूसरी नहीं है। वह राजकुमारी महीने में एक बार अपनी सखियों के साथ बाहर जंगल में घूमने निकलती है ।

पूर्णमासी की अर्धरात्रि को यहाँ जंगल में मंगल हो जाता है । बस, सवेरा होने से पहले ही राजकुमारी और उसकी मंडली वापस अपने महल मे चली जाती है। में यहाँ उसी राजकुमारी के महल की रखवाली करता हूँ।

इस तने के भीतर महल के चारों ओर भी पहरेदार हैं। यहाँ अनेक राजकुमार आ चुके हैं ओर राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा मन में लिए हुए ही मौत के मुँह में चले गए हैं। उनकी दशा देखकर मुझे बहुत दया आती थी, पर वह भी तुम्हारी तरह जिद्दी थे। मेरे लाख मना करने पर भी वह नहीं माने।’’

बडा शिकारी बोला, ‘‘भाई संतरी, मैं भी इस राजकुमारी को देखना अवश्य चाहता हूँः भला ऐसी भी क्या बात है जो इतने लोग इसके पीछे अपने प्राणों से हाथ धो बैठे हैं।’’

संतरी ने बहुत समझाया-बुझाया, पर जब वह नहीं माने तो उसने कहा, ‘‘अच्छा, पृर्णमासी की रात्रि को यहाँ आकर किसी झाड़ी मे छुप कर बैठ जाना। जब अर्धरात्रि को राजकुमारी ओर उसकी सखियों बाहर निकले तो उसे देख लेना। परन्तु याद रखना कि बिलकुल चुपचाप बेठना होगा, जरा भी आवाज आने पर खैर न होगी।’’

संतरी की बात सुन दोनों शिकारी राजकुमार अति प्रसन्न हुए, और पृर्णमासी की रात्रि को फिर से वहॉ आने की ठान वहॉ से अपने घर लौट गए।

जसे-तैसे पूणमासी की प्रतीक्षा की और समय आने पर अपने पिता की आज्ञा ले दोनों राजकुमार शिकार को चल दिये। जंगल में पहुँच कर दिन भर विश्राम किया और रात्रि पढ़ने पर संतरे के पेड़ के निकट एक झाड़ी में जा छुपे।

आधी रात होने पर तने की खोल मे थोड़ा प्रकाश दिखाई दिया। फिर एक अत्यन्त सुन्दर लडकी धीरे से बाहर निकली।

चारों ओर देख कर फिर अंदर चली गई। पॉच-दस मिनट के बाद आठ-दस लड़कियाँ बाहर निकली। सब की सब बड़ी सुन्दर थीं। फिए राजकुमारी धीरे-धीरे बाहर आई।

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Santre Wali Rajkumari : Uttar Pradesh Lok Katha

उसके बाहर आते हीं चन्द्रमा ने भी अपना मुख एक बादल की टुकडी में छुपा लिया।

राजकुमारी की सुन्दरता देख दोनों राजकुमार होश खोबैठे। उन्हे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वे एक अद्भुत स्वप्न देख रहे हों।

राजकुमारी और उसकी सखियाँ बड़ी देर तक वहाँ गाती-बजाती, नाचती और आँखमिचौनी खेलती रहीं, फिर घूम-फिर कर सबेरा होने से पहले ही सब वापस अपने महल में चली गई।

बड़े राजकुमार ने उनका पीछा करना चाहा, पर छोटे राजकुमार ने ज्यों-त्यों उसे रोक लिया।

प्रातः संतरी को देखते ही बडे राजकुमार ने राजकुमारी के महल में जाने को इच्छा प्रकट की, पर संतरी ने सिर हिला दिया और कहा-

‘‘वहॉ पहुँचना असम्भव है. राजकुमारी के ऊपर किसी ने जादू किया है, इसलिए उसके पास कोई नहीं जा सकता।

हाँ, एक विधि है, जो कोई इस संतरे के पेड़ पर से दो फूल ला सकेगा वही व्यक्ति राजकुमारी के महल में जा सकेगा। परन्तु संतरे के पेड़ को छूना मना है ओर जमीन पर पडे फूल हाथ उठाने से भी काम नहीं चलेगा।

पेड़ पर लगे फूल हाथ से तोड़ना भी मना है। अब सोच लो, अगले महीने इस पेड़ पर फूल आएंगे।

सुनकर दोनों राजकुमार घर चले गए।

अगले महीने, दोनों राजकुमार शिकार का बहाना बना कर फिर उसी जंगल में पहुँचे । वे बड़े असमंजस में थे कि हाथ लगाए बिना संतरे के पेड़ से फूल कैसे तोड़े जाएँ।

तीन दिन और रात वे प्रयत्न करते रहे, पर फूल हाथ न लगे। रात को थक कर उसी पेड़ के नीचे बैठे कर विचार करने लगे।

चौथे दिन बडे बेग से हवा चलने लगी ओर पेड़ पर से फूल जमीन पर गिरने लगे। यह देख बड़ा राजकुमार उठा और उसने दो फूल जमीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिए। एक फूल छोटे राजकुमार के हाथ भी गया।

संतरी ने बडे़ आदर-प्रेम से उन्हे नीचे महल में पहुंच दिया। वहाँ घूमधाम से बड़े राजकुमार का विवाह संतरे की राजकुमारी के साथ हो गया ओर छोटे राजकुमार का राजकुसारी की सबसे प्यारी सखी के साथ।

दोनों राजकुमार अपनी-अपली पत्नी को साथ ले अपने पिता को प्रणाम करने पहुँचे, ओर उसका आशीर्वाद लिया। सारी राजधानी में बड़ी खुशी मनाई गई।

बढ़ा राजकुमार तो पिता के साथ राज-काज सँभालने लगा और छोटा राजकुमार संतरे के महल में रहने लगा।

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