तीन भाई और जादुई परी Teen Bhai Aur Jadui Pari ~ Tarai Ki Lok Katha

Teen Bhai Aur Jadui Pari

हिंदी लोक कथाएँ /लोक कहानियाँ (Lok Kathayen In HIndi) की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं ‘मन्मथनाथ गुप्त ’ द्वारा लिखी बहुत ही रोचक एवं मजेदार तराई की लोक कथा ‘’तीन भाई और जादुई परी” Tarai Ki Lok Katha ~ Teen Bhai Aur Jadui Pari ~ Folk Tale in Hindi

“तीन भाई और जादुई परी”
Teen Bhai Aur Jadui Pari ~ Tarai Ki Lok Katha

किसी गाँव में तीन भाई रहते थे। वे इतने गरीब थे कि उनके पास अपना कहने के लिए सिवाय एक नाशपाती के पेड़ के सिवाए और कुछ नहीं था। वे जिस छोटी-सी झोपडी में रहते थे, उसी के पास वह नाशपाती का पेड़ खड़ा था।

उन्हें उस नाशपाती के पेड़ से बहुत प्रेम था। जब नाशपाती गदराने लगती थी, तो वे उस पर बारी-बारी से पहरा देते थे।

एक न एक भाई देर समय नाशपाती के पेड़ के पास डटा रहता था। जिस समय एक भाई पहरे पर होता था, उस समय बाफी दो भाई खेतों में काम करने जाते थे। पर अधिक-से-अधिक काम करने पर भी वे किसी तरह अपना पेट न पाल पाते थे, यहाँ तक कि पहनने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं मिलते थे।

एक दिच एक दयालु परी उस रास्ते से निकली। उसने देखा कि ये तीन लड़के कितने अच्छे हैं, फिर भी इनके पास खाने के लिए कोई अच्छी चीज नहीं है, ये बहुत गरीब हैं। इस पर परी के मन में दया आ गई, और वह सोचने लगी कि किसी प्रकार इन लडकों की सहायता करनी चादिए।

बहुत सोचने पर उसके दिमाग में एक योजना आई। वह भेष बदल कर एक भिखमंगिन बन गई, और लगड़ाती हुई नाशपाती के पेड़ के पास पहुँची। जब वह वहाँ पहुँची, तो उस समय सबसे बड़ा भाई पेड़ पर पहरा दे रहा था।

भिखमंगिन ने कहा-‘‘मुझे कुछ नाशपाती मिल जायें।’’

लड़के ने फौरन कुछ नाशपातियाँ तोढ़ीं, और कहा-‘‘तुम मेरे हिस्से की सब नाशपातियाँ ले लो। मैं तुम्हें इससे अधिक नहीं दे सकता क्योंकि बाकी नाशपाती मेरे भाइयों की हैं।’’

भिखमंगिन ने नाशपाती ले लीं, ओर बडे भाई को आशीर्वाद देकर वहाँ से चली गई।

अगले दिन संभला भाई पेड़ के पहरे पर था। दयालु परी भिखमगिन के रूप से फिर आई, और उसने उसी प्रकार से कुछ नाशपाती माँगी। सभले भाई ने अपने हिस्से की सारी नाशपातियाँ उस बुढ़िया को दे दीं। वह तो और भी देने के लिए तैयार था, पर छोटे भाई के हिस्से में वह हाथ लगाना उचित नहीं समझता था।

उससे अगले दिन तीसरे भाई के पहरे की बारी आई। दयालु परी उसी प्रकार भिखमंगिन के भेष से आई, ओर उसने छोटे भाई से नाशपाती मांगी। छोटे भाई ने बाकी सब नाशपातियों दे दीं, इस प्रकार पेड़ में एक भी लाशपाती न रह गई।

अगले दिन प्रातःकाल तीनों लड़के खेत पर जाने की तैयारी में व्यस्त थे कि इतने में वह दयालु परी अपने असली रूप में उनके जंगले पर उड़ कर बंठ गई ओर बोली- ‘‘लड़को, मैंने तुम तीनों की परीक्षा ली, और मेंने यह देखा कि जहॉ तक दयालु होने की बात है तुम मे से कोई किसी से कम नहीं। मैं तुम लोगो पर प्रसन्न हूँ । अब तुम लोग मेरे साथ आओ, और में तुम्हे यह बताऊँगी कि किस प्रकार तुम अच्छा खाना और कपड़े पा सकते हो ?’’

तीनों भाई उसके पीछे हो लिये । दयालु परी उन्हे एक जंगल में ले गई। उस जंगल में पेड़ इतने घने थे कि सूर्य की किरणें भी कभी जमीन पर नहीं पहुँच पाती थीं। परी उन्हें कभी पहाड़ पर चढ़ाती तो कभी घाटियों से ले जाती रही, ओर अन्त में वे एक बहुत बढ़ी नदी के पास पहुँच गये, जो पहाड़ से उछलती-कूदती हुई मैदानों की ओर जा रही थी।

जब सब लोग यहाँ आ गये तो परी खड़ी हो गई और उसने बोलना शुरू किया। पर नदी के स्त्रोत से इतनी आवाज आ रही थी कि उसकी एक भी बात किसी को सुनाई नहीं पड़ी, और उसने हर एक के पास जाकर उसके कान से अपनी बात कही।

बडे लड़के से वह बोली-‘‘यहॉ पर में तुम्हें जो तुम मांगोगे वह दूॅगी। इसलिए कोई वर मॉग लो।’’

चीनी लोक-कथा ; आग के बीज

Teen Bhai Aur Jadui Pari ~ Tarai Ki Lok Katha

बड़ा भाई उस समय प्यास के मारे परेशान हो रहा था, उसने बिना कुछ सोचे-उससे कह दिया-मैं यह चाहता हूँ कि यह पूरी नदी शर्बत बन जाय, और यह मेरी हो।’’

परी ने अपनी जादू की लकड़ी घुमाई, ओर वह पहाड़ी नदी झागदार श्वेत जल-राशि से बदल कर लाल शर्बत के रूप में हो गईं। जब ऐसा हो गया तो परी बोली- ‘‘तुमने जो मॉगा वह पूरा हो गया, अब इतनी बात याद रखना कि तुम इसका अच्छा
इस्तेमाल करना।’’

बड़ा भाई वही रह गया। परी छोटे दोनों भाइयों की एक हरे-भरे खेत के सामने ले गई। उस खेत के पास एक घासवाला मैदान था और उसमे सैकड़ों फाख्ते थे। वह फसले बीज औश्र कीडे खोजने से व्यरत थे। दयालु परी ने संमले भाई से कहा-‘‘अब तुम कोई वर मॉग लो, पर सोच-समझ कर मॉगना।’’

सभले भाई ने थोड़ी देर तक सोच कर कहा-‘‘मैं यह चाहता हूॅ कि में एक अच्छा किसान बन जाऊं, इसलिए आप इन फसलों को भेट बना दें और में उनका मालिक हो जाऊ।’’

दयालु परी ने जादू की लकड़ी घुसाई, ओर यह देखा गया कि वहाँ पर फाख्तों के बजाय भेड़ें चर रही हैं। परी बोली-‘‘वह देखो, वह सामने वाल खेत तुम्हारा है, ये भेड़ें भी तुम्हारी हैं। यदि तुम चाहो तो एक अच्छे किसान बन सकते हो, ओर तुम्हें किसी बात की कमी नहीं रहेगी । अपना भविष्य बनाना या बिगाड़ना, यह तुम्हारे ही हाथ में है।’’

Teen Bhai Aur Jadui Pari Ki Story

इसके बाद परी सबसे छोटे भाई को लेकर पहाड़ों की ओर चली। जब वह एक पहाड़ के नीचे पहुँच गई, तो उसने छोटे भाई से पूछा- ‘‘तुम्हारे मन में क्या इच्छा है? जो वर चाहो मॉग लो।’’

छोटे भाई ने फौरन उत्तर नहीं दिया। वह बडी देर तक सोचता रहा, फिर अन्त में बोला-‘‘में एक सुन्दर-सी राजकुमारी चाहता हूँ, जिससे में शादी कर सकू ।’’

इस पर वह परी मुस्कराई। बोली-‘‘तुम जो मॉग रहे हो, वह बहुत मुश्किल है, फिर भी मेरे साथ आओ, देखूँ कि क्या किया जा सकता है।’’

बहुत दिनों तक परी उस लड़के को अपने साथ लेकर घूमती रही। ऐसे कई दिन बीत गये। अन्त में वे एक शहर में आये जहॉ एक बडा राजा रहता था। परी सीधे ही राजमहल में गई और बोली-‘‘क्या में राजकुमारी से मिल सकती हूँ ? मैंने सुना है कि
राजकुमारी बहुत अच्छी और सुन्दर है, अब यह देखना है कि वह है कैसी ?’’

परी को आज्ञा मिल गई, पर छोटा भाई मन ही मन घबड़ा रहा था कि मैं एक बहुत ही साधारण व्यक्ति हूँ, भला मेरी शादी एक राजकुमारी से कैसे हो सकती है। परी ने यह उसने बिना कुछ सोचे-समझे कह दिया।

गधे की हजामत

Teen Bhai Ki Kahani

परी ने ताड़ लिया कि वह लड़का क्या सोच रहा है। वह उसका ढाढ़स बढ़ाती रही। इतने में वे राजमहल के बड़े दालान के अन्दर आ गये।

जब वे वहाँ पर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि उनसे पहले से बहुत से दूसरे लोग राजकुमारी से शादी करने की उम्मीदवारी में बैठे हैं। मालूम पड़ा कि इनमें से दो तो विशेष उम्मीदवार हैं।

सामने ही वह सारा उपहार और सौगाते रखी हुई थीं, जो दूल्हे ले आये थे। परी ने उन चीजों के बगल में बेरो की वह टोकरी रख दी जिसे वे रास्ते में बटोर कर लाये थे।

छोटे भाई ने परी को जब ऐसा करते हुए देखा, उसे बढ़ी शर्म आई और उसने उसे ऐसा करने से रोकना चाहा। उसने मन में यह सोचा कि यह लोग तो हीरा, सोना, चॉदी और न मालूम क्या-क्या लाये हैं, इनके बगल में बेरों की यह टोकरी होगी, तो
उससे काम तो कुछ बनेगा नहीं, केवल हँसी ही होगी। पर इस बात पर परी मुस्कराती रही, और मना करने पर भी उसने बेरों की टोकरी वहीं पर रहने दी।

Teen Bhai Aur Jadui Pari Ki Kahani

इसके बाद ही दालान के लोगों में कुछ चहल-पहल-सी मालूम पड़ी, सब के सब खड़े हो गये क्योंकि राजा इस समय राजकुमारी के साथ उस दालान में प्रवेश कर रहे थे। उनके लिए एक किनारे पर एक सिंहासन रखा हुआ था, वे उसी में जाकर बैठ गये।

जब वे बेठ गये तो तीनों उम्मीदवार सिर नीचा करके खड़े हो गये।

राजकुमारी ने जल्दी ही इस बात को ताढ़ लिया कि यद्यपि छोटा भाई फटे कपड़ों में था फिर भी वह देखने मे दूसरे उम्मीदवारों से अधिक सुन्दर मालूम होता था, और वह स्वभाव से भी अच्छा जान पड़ता था। दो उस्मीदवारों मे से एक अधेड़ ओर मोटा था, तथा दूसरा लम्बा और दुबला था। राजकुमारी को वे दोनों पसन्द नहीं आये। उसने अपने पिता से कहा कि वह उस फटे कपड़े वाले नौजवान से शादी करना पसन्द करेगी, पर राजा की यह इच्छा थी कि राजकुमारी बाकी उम्मीदवारों में से किसी से शादी करे क्योंकि वे सब बहुत धनी थे। पर राजा को साथ ही साथ अपनी लड़की का बहुत ख्याल था, इसलिए वह उसे दुःखी नहीं करना चादते थे। राजा ने सोचा भला यह कैसे पता लगे कि इनमें से कौन सब से अच्छा है ?

ज्ञान की महिमा

Teen Bhai Aur Jadui Pari

जब परी ने यह देखा कि राजा उधेड़वुन में पड़ा हुआ है, तो वह आगे बढ़ आई, बोली-‘‘महाराज! आप इस प्रकार से यह मामला तय करें। आप तीन अंगूर की नयी वेल इन तीनों को अपने महल में लगाने को दें। जिसकी वेल में लगाने के तीन दिन के अन्दर ही फल आ जावे, उसी से आप अपनी लड़की की शादी कर दें।’’

राजा ने मन ही मन सोचा कि यह तरीका अच्छा रहेगा क्योंकि न तो तीन दिन में किसी बेल मे अंगूर लगेगा और न इनमें से किसी के साथ मेरी बेटी की शादी होगी। इसलिये राजा ने फ़ौरन हुक्म दे दिया और तीन अंगूर की नयी बेलें लाकर हाजिर की गई। उन बेलों पर उम्मीदवारों के नाम खोद दिये गये, ओर उन्हें राजमहल के बाग सें लगा दिया गया।

राजकुमारी हर घंटे देखती रही कि किसी बेल में फल आता है कि नहीं, पर किसी में भी फल आता हुआ दिखाई नहीं पड़ा। जब दो दिन हो गये तो राजकुमारी बहुत निराश हुई, और वह समझ गई कि इनमें से किसी में – फल नहीं आना है।

वह मन दी मन चाह रही थी कि उस गरीब नौजवान के नाम से जो बेल लगाई गई थी उसमें फल लगे जिससे कि उसके साथ शादी हो जाय।

तीसरे दिन राजकुमारी निराश होने पर भी अंगूर की बेल को देखने के लिए गई। रास्ते में वही गरीब नौजवान मिला। इस पर राजकुमारी ने यह समझा कि इतने बढ़े राजमहल में शायद यह रास्ता भूल गया है, पर गरीब नौजवान भी अंगूर की बेल देखने ही जा रहा था।

जब दोनों साथ ही साथ बेलों के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि एक बेल में बढ़ा सुन्दर अंगूर लगा है। जब राजकुमारी ने यह देखा कि यह वही बेल थी जिस पर उस नौजवान का नाम लिखा था, तो वह इतनी खुश हुई कि तालियाँ पीटने लगी।

नौजवान भी आनन्द से चिल्ला पढ़ा। दोनों मिल कर राजा के पास पहुँचे। राजा इस बात पर बहुत खुश नहीं हुआ क्योंकि राजा का यह कहना था कि इतने गरीब नौजवान के साथ राजकुमारी का ब्याह हो नहीं सकता। पर वादा तो किया जा चुका था। पीछे लौटने का कोई रास्ता नहीं था।

Teen Bhai Aur Jadui Pari Ki Lok Katha in Hindi

शादी हो गई और उसके बाद वह नौजवान अपनी दुलहिन को जंगल के अन्दर एक छोटे से मकान सें ले गया। यह मकान उसे परी से मिला था। इसी छोटे-से मकान में वे लोग खुशी के साथ रहने लगे।

एक साल के अन्त में परी यह देखने के लिए निकली कि तीनों भाई किस प्रकार जीवन बिता रहे हैं।

पहले वह बडे भाई के पास गई। वहाँ उसने भिखमगिन का रूप धर कर उससे एक प्याला शर्बत माँगा। जिन दिनों वह गरीब हुआ करता था, उन दिनों उसने भिखमगिन को अपना सर्वेस्व दे दिया था, पर अब जबकि उसके पास धन ही धन था तो एक प्याला शर्बत भी नहीं दिया।

वह बोला-‘‘इसी तरह में हर एक को शर्बंत दिया करूँ, तो बस हो चुका। फिर तो में इसी काम भर का रह जाऊँगा।’’ परी लौट गई, और उसके पीठ फेरते ही वह नदी शरर्बंत की नदी से बदल कर फिर से पानी की बन गई।

बडे भाई ने देखा कि उस पर क्या विपत्ति आई है, और वह परी का खुशामद करने लगा, पर परी ने सिर हिलाते हुए कहा- ‘‘जो जिस चीज के योग्य नहीं है, उसे वह चीज नहीं मिलनी चाहिए।’’

अब परी साभले भाई के पास पहुँची। वहॉ उसने खाना माँगा। इस पर ममता भाई बोला- ‘‘मैं कभी भी मुफ्त में कुछ नहीं देता। मेरी समझ में ऐसे देने का अर्थ है आलस्य को प्रोत्साहन देना।’’

उसका ऐसा कहना था कि वह सारी खेती और भेडें सब वहाँ से गायब हो गई। सामने एक उजडा हुआ मेदान दिखाई दिया जिसमें फाख्ताएँ चुग रही थीं।

तब परी बोली-‘‘जाकर उस नाशपाती के पेड़ के नीचे बेठो, और वहाँ पर बैठ कर अपनी गलती पर गौर करो। याद रखो कि भगवान ने यदि तुम्हें किसी योग्य बनाया है तो दूसरों कि मदद करने से पीछे मत हटो।’’

अब परी तीसरे भाई के यहाँ पहुँची। जिस समय वह उसके यहाँ पहुँची, उस समय छोटा भाई अपनी दुलहिन के साथ खाना खा रहा था। भिखमंगिन को सामने देखते ही

Lok Kaha ; Teen Bhai Aur Jadui Pari

उसे अपने पहले दिन याद आ गये और बिना कुछ कहे उसने कहा- ‘‘आओ, भीतर आओ, और हमारे साथ खाना खाओ।’’

लेकिन परी न जो दृष्टि दौड़ाई तो देखा कि वहाँ रोटियों खत्म हो चुकीं थीं, पर राजकुमारी बोली-‘‘मैं अभी और रोटी पका कर लाती हूँ। आप तब तक बैठ कर सुस्तावे। जो कुछ रूखा-सूखा घर में है में जल्द ही तैयार करके लाती हूँ।’’

राजकुमारी रोटी बनाने जुट गई ओर थोड़ी ही देर में रोटियों तैयार हो गयी। परी को भरपेट खाना खिलाया गया ओर इसके वाद जब वह जाने लगी तो राजकुमारी ने बढ़े प्रेम से कहा-‘‘माता जी आज रात को आप इधर ही ठहर जायें।’’

इस पर परी ने अपनी जादू की लकड़ी घुमाई और चारों तरफ बड़े जोर शोर से गर्जने सुनाई पड़ने लगी। डर कर छोटे भाई तथा राजकुमारी ने आँखें बन्द कर लीं ओर वह जमीन पर लेट गये। जब शोर बन्द हुआ, ओर उन्होंने आँखें खोलीं, वो देखा कि वह छोटा मकान उड़ गया ओर उसकी जगह पर एक बड़ा भारी राजमहल खड़ा है । यह राजमहल इतना बड़ा था कि राजकुमारी के पिता के पास भी इतना बढ़ा राजमहल नहीं था।

अब वे उसी में चैन-सुख से रहने लगे, ओर वर्षो तक लोगों की भलाई करते रहे।

मध्य भारत की लोक कथा ‘’कर्मों का चक्र

मित्रों ! उम्मीद करता हूँ “तीन भाई और जादुई परी Teen Bhai Aur Jadui Pari ~ Tarai Ki Lok Katha – Folk Tale in Hindi” आपको अवश्य पसंद आई होगी, कृपया कमेंट के माध्यम से अवश्य बतायें, आपके किसी भी प्रश्न एवं सुझावों का स्वागत है। कृपया Share करें.

Hello friends, I am Mukesh, the founder & author of ZindagiWow.Com to know more about me please visit About Me Page.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *