‘गणेश’ जी के वरदान से ‘भिखारी बना मालामाल’Hindi Lok Katha | Ganesh Ji Ka Aashirwad ~ Folk Tale in Hindi

Ganesh Ji Ka Aashirwad

लोक कथाएँ/कहानियाँ (लोक कथाएँ/कहानियाँ (Lok Kathayen In HIndi) की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं मजेदार लोक कथा ‘’गणेश’ जी के वरदान से ‘भिखारी बना मालामाल’Hindi Lok Katha | Ganesh Ji Ka Aashirwad ~ Folk Tale in Hindi

‘गणेश’ जी के वरदान से ‘भिखारी बना मालामाल’Hindi Lok Katha | Ganesh Ji Ka Aashirwad ~ Folk Tale in Hindi

गाँव के बाहर बरगद का एक पेड़ था, जिसके पास ही गणेश जी का एक छोटा-सा मन्दिर था। गाँव में और मन्दिर नहीं थे, इसलिए सब लोग इसी मन्दिर में पूजा करने आया करते थे।

गाँव में एक भिखारी भी रहता था। भीख मांगना ही उसका काम था। गाँव छोटा सा था, भिखारी को काफी भीख नहीं मिलती थी, इसलिए यह और कोई उपाय न देख मन्दिर के दरवाजे पर बैठने लगा। उसने सोचा, लोग यहॉ धर्म करने आते हैं, और नहीं तो पेट भरने लायक भीख मिल ही जाया करेगी।

भिखारी दिन भर मन्दिर के दरवाजे पर बैठा रहता, ओर जब वहाँ किसी को आते देखता तो ‘शिव-शिव’ रटने लगता था। इस तरह् बेचारा दिन भर गणेश जी और शिव जी का नाम लिया करता था, मगर शाम तक उसे भीख मिलती थी–सिर्फ दो-चार मुट्ठी अन्न और कुछ फल-फूल ओर कभी-कभी चार-छ पैसे।

भला इतनी थोड़ी आमदनी से किसी की गुजर कैसे हो सकती है? फिर भिखारी को अपना ही नहीं, अपनी बेटी की भी चिन्ता करनी पड़ती थी।

उसकी बेटी का नाम था कमला और वह बडी चतुर–बड़ी समझदार थी। मगर चतुराई और समझदारी से तो पेट की आग बुझती नहीं, उसे तो भोजन चाहिए। इसलिए कमला कभी-कभी अपने बाप को भोजन-पानी के लिये तंग करने लगती थी।

उस वक्त भिखारी के दिल पर बड़ी चोट लगती थी। उसकी आंखे भर आती थीं। वह चिन्ता के समुद्र मे डूबने-उतराने लगता था।

चरित्र की परीक्षा

Ganesh Ji Ka Aashirwad

गर्मी के दिन थे। दोपहरी का समय था। ऊपर आसमान ओर नीचे धरती धक-धक जल रही थी। चारों तरफ सन्नाटा छा रहा था। ऐसे ही समय में महादेव पार्वती लोगों का सुख दुःख देखने इस संसार मे आए।

चलते-चलते वे उसी गाँव मे पहुँचे और गणेश जी के मन्दिर के सामने से निकले, भिखारी उन्हें आते देख जोरों से ‘जय-शिव, जय-शिव’ की रटना करने लगा।

भिखारी की यह हालत देख पार्वती को बड़ी दया आई। उन्होंने महादेव जी से कहा-‘‘उफ! इस भिखारी की तरफ तो देखो! बेचारा कितना दुःखी है। देखो तो, कितने प्रेम से तुम्हारा नाम जप रहा हैँ। पर एक तुम हो, कितने कठोर! तुमने आज तक इस पर दया न की। मैंने सुना था कि लोग अब बढ़े पापी हो गए हैं। वे अब देवताओं की पूजा नहीं करते। मगर नहीं, आज मालूम हुआ कि इसमे उनका कोई अपराध नहीं है। सब अपराध देवताओं का ही है। इसी आदमी को लो, बेचारे को तुम्हारा नाम लेते बरसों बीत गए, इतने पर भी अभागा पेट भर भोजन तक नहीं पाता। जब देवता ही ऐसे कठोर हो जाएंगे, तब कोई काहे को उनकी पूजा करेगा।’’

महादेव को पार्वती की बात लग गई। वे पार्वती से बोले-‘‘असल बात क्या है, यह तुम नहीं जानती। जान भी नहीं सकती, क्योंकि तुम्हारा हृदय ही इतना कोमल है। मगर नहीं, तुम रंज न करो। में आज ही कुछ बन्दोवस्त कराए देता हुँ, जिससे इस भिखारी का दुःख दूर हो जाएगा।’’

इतना कह कर महादेव जी पावती के साथ मन्दिर में पहुँचे। माता-पिता को आते देख गणेश जी उठ कर खड़े हो गए। उन्होंने बढ़े प्रेम से माता-पिता को प्रणाम किया।

महादेव जी ने गणेश जी को आशीवाद दिया ओर कहा-‘‘देखो बोटा, यह भिखारी बरसों से तुम्हारे द्वार पर बैठा, मेरा नाम जपा करता है। मगर तुमने अब तक इस पर दया नहीं की। अब ऐसा कुछ उपाय करो, जिससे इस बेचारे का दुःख दूर हो जाए।’’

गणेश जी ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया -‘‘अच्छी बात है पिता जी, सात दिन के भीतर उसका दुःख दूर हो जाएगा। उसे कहीं न कही से दो लाख रूपये मिल जाएंगे।’’

गणेश जी का उत्तर सुन कर महादेव पार्वती आगे चले गए ।

बिना सोचे समझे फैसला लेने का परिणाम

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इसी समय एक बनिया मन्दिर से पूजा करने आया था। वह आड़ में छिपा-छिपा महादेव जी ओर गणेश जी की बातें सुन रह्य था। उसने सोचा, यह तो बहुत अच्छा मौका है। यदि थोड़ी चतुराई से काम लू, तो सहज ही दो लाख का मालिक हो सकता हूँ। बस, वह बड़ी खुशी से भिखारी के सामने पहुँचा, और उसे प्रणाम कर एक तरफ बैठ गया।

भिखारी को आज तक किसी ने प्रणाम किया था, न कोई उसके पास आकर बैठा ही था। बनिये के इस काम से भिखारी ने समझा कि यह बेशक कोई भलामानुस है।

वह मन-ही-मन प्रसन्न हआ और वनिये से बोला-‘‘बाबा आप बहुत दयालु जान पढ़ते है। कहिए मेरे पास आने की कृपा क्यों कर हुई? आप नहीं जानते, मे एफ गरीब भिखारी हूँ।’’

बनिये को तो अपना मतलब गांठना था, मीठेपन से बोल–‘‘आप भिखारी है। कौन कहता है कि आप भिखारी हैं ? मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आप एक पहुँचे हुए महात्मा हैं, और आपके दर्शन से लोगों के पाप दूर हो जाते हैं। में भी आपके दर्शन करने चला आया हूँ। मुझे आप से कुछ पूछना है, यदि आज्ञा दो तो पूछू।’’

भिखारी–‘‘खुशी से पूछिए।’’

बनिया–‘‘भला दिन भर में आपको कितनी भीख मिल जाती है?’’

भिखारी–‘‘भाई, मिलने की क्यों पूछते हो, पेट के भी लाले पड़े रहते हैं। रोजाना दो-चार मुट्टी अन्न मिल जाता है, कभी दो-चार पैसे भी मिल जाते हैं। किसी तरह दिन काट लेता हूँ ।’’

बनिया ‘‘राम राम। आप जैसे महात्मा ओर यह कष्ट। इस गॉव के आदमी भी क्या आदमी हैं? आप की थोड़ी भी सहायता नहीं कर सकते। आप कैसे यह कष्ट सह लेते हैं? मुझे तो आप पर बढ़ी दया आती है। मेरे जी में आता है कि आपकी कुछ सेवा करू, पर कहने में डर मालूम होता है।’’

भिखारी –‘‘आप, मेरी सहायता कर सकते हैं ?

‘‘हे-हे-हे !! बनिया दात निकाल कर बोला-‘‘मेरी इतनी हैसियत कहॉ, जो आपकी कुछ सेवा कर सकू। मगर एक बात है। आज से सात दिन तक आप को जो कुछ भी मिले, वह मुझे दे दीजिये। बदले में, आपको सौ रुपये दे दूगा।’’

सौ रुपये का नाम सुनते ही भिखारी मारे खुशी के उछल पढ़ा। उसने सोचा, ‘अगर सौ रुपये मिल जाएं, तो क्या कहना। यहाँ तो सात दिन में सात आने का सामान भी न मिलेगा। तब तो सौ रुपये छोड़ देना सरासर वेवकूफी है -पूरा गधापन है।’

मगर इसी समय उसे लड़की का ख्याल आ गया। में सौ रुपये लेकर घर पहुँचा और कमला बिगढ़ने लगी तो? उसकी सलाह भी ले लेनी चाहिए। बस, यह विचार आते ही उसने बनिये को जवाब दिया–‘‘आपने मुझ पर बढ़ी कृपा की, मगर मैं अभी कुछ नहीं कह सकता, सोच-विचार कर कल कहूँगा।’’

जब बनिया चला गया, तब भिखारी ने कमला को बुलाया और उसे सब हाल सुनाया।

चतुर कमला फ़ौरन समझ गई कि इसमें जरूर बनिये की कोई शेतानी है। उसने पिता से कहा-बनिया बिना अपने फायदे के क्यों सौ रुपये देने चला। खैर, मैं कल उससे सब बातें तय कर लूंगी, मगर तुम बीच में न बोलना।’’

उघर बनिये का बुरा हाल था। रात भर उसके पेट में चूहे उछलते रहे। बढ़ी मुश्किल से सवेरा हुआ। बनिए की जान में जान आई। वह हाथ-मुह घोते ही भिखारी के पास जा पहुँचा और छूटते ही बोला -‘‘क्या विचार किया आपने।’’

कमला भी बनिये से निबटने को तैयार बैठी थी। बानिये की बात सुनते ही उसने जवाब दिया–‘‘सेठ जी, हम लोगों ने विचार कर लिया। भला सौ रुपये में क्या होता है। इतना सस्ता सौदा होना मुश्किल है। माफ कीजिए।’’

कमला का उत्तर सुनते ही बनिए पर मानों बिजली गिर पड़ी। पर, लाख रुपये का लालच छोड़ना भी तो कठिन था। वह दो सौ रुपये देने को राजी हो गया। अब तो कमला का सन्देह और भी पक्का हो गया।

वह समझ गई कि बनिया जरूर किसी भारी लाभ के लिये ही इतने रुपये देना चाहता है। उसने जवाब दिया-‘‘सेठ जी, इतना सस्ता सौदा और कहीं होता होगा। सौ-दो-सौ या हजार-दो-हजार में होता ही क्या है! जो चीज आप कौड़ियों के मोल खरीदना चाहते हैं, वह लाख रुपये में भी सस्ती है।’’

यह सुन कर बनिया बहुत घबराया, परन्तु उसने अपनी कोशिश जारी रखी।

जब महात्मा बुद्ध ने उसके पिता को स्वर्ग भेजा

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मारे लोभ के वह अन्धा हो रहा था-उसको लोभ का भूत सवार हो गया था। उसने सौ-दो-सौ से बढ़ कर अन्त में पचास हजार लगा दिए।

अब कमला ने सोचा-इतने रुपये थोड़े नहीं होते। बेठे-ठाले इस फायदे को छोड़ना ठीक नहीं।’ उसने बनिये से कहा- ‘‘खैर, आप नहीं मानते, तो में ही आपकी बात माने लेती हूँ। मगर शर्ते यह है कि रुपये अभी मिलने चाहिएं।’’

यह शर्तें मन्जूर करने में बनिये को क्या उजर थी! वह खुशी-खुशी घर लौटा। उसने सोचा-पचास हजार रुपये देकर एक लाख लेना कुछ बुरा नहीं है। दो लाख न सही, डेढ़ लाख का मालिक तो बन ही जाऊंगा। अहा! मेरी तकदीर भी कितनी चोखी है। सात ही दिन मे पचास हजार का लाभ हो गया। उसने घर आते ही भिखारी के पास पचास हजार रुपये भेज दिए।

अब बनिया हर रोज भिखारी के पास आता, ओर उसकी दिन भर की भीख घर ले आता। इस तरह छ दिन बीत गए। अब तो बनिये को बड़ी फिक्र हुई।

सातवे दिन वह फिर गणेश जी के मन्दिर में पहुँचा। उसने देखा कि आज फिर महादेव-पार्वती मन्दिर में पधारे हैं। बस, वह दीवाल से कान सटा, उनकी बातें सुनने लग। मगर यह क्या- उसका कान दीवाल से चिपक गया। उसने कान छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर कान टस से मस न हुआ। तब वह दाहिने हाथ की सहायता से कान छुडाने लगा। इनने में हाथ भी दीवाल से चिपक गया।

इधर महादेव जी ने गणेश जी से पूछा-बेटा, इस भिखारी के लिये कुछ इन्तजाम हुआ?’’

गणेश जी बोले-‘‘जी हॉ, उसे पचास हजार रुपये तो दिलवा दिए है, बाकी के लिये बनिये को दीवाल से चिपक्का दिया है। यह बनिया बड़ा लोभी कंजुस है। इसने गरीबों से एक एक के चार-चार वसूल कर अपना घर बनाया है। रुपये बसूल करने मे इसने गरीबी पर दया नहीं की। उनके बच्चे भूखो मरते रहे पर इसने चौगुने रूपये बसुल करके भी सन्तोष नहीं किया। इस तरह इसने एक लाख रुपयों से अपनी तिजोरी भर ली।

गरीबों के माल से यह सुख नहीं उठा सकता। अब जब तक यह भिखारी को बाकी पचास हजार रुपये न दे देगा, तब तक दीवाल से ही चिपका रहेगा।

गगेश जी की बाते सुन कर बनिये ने अपना माथा पीट लिया। इसकी आंखें से आसू बरसने लगे। जब उसने घर से पचास हार रूपये मंगया कर भिखारी का दे दिए, तब कही दीवाल से उसका पीछा छूटा।

लक्ष्मी माता का आशीर्वाद

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