Lok Kathayen लोक कथाएँ/कहानियाँ की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं मजेदार लोक कथा ‘लक्ष्मी माता का आशीर्वाद ~ Hindi Lok Katha | Laxmi Mata ka Ashirwad ~ Folk Tale in Hindi’ आइये जानते हैं !
लक्ष्मी माता का आशीर्वाद
Hindi Lok Katha | Laxmi Mata ka Ashirwad
एक बार धर्मराज और लक्ष्मी लोगों की परीक्षा लेने के लिये एक जाड़े की मुसलाधार धरसती हुई संध्या में अत्यन्त बूढ़े स्त्री पुरुष का रूप धारण करके प्रथ्वी लोक में आये।
नगर के एक धनी सेठ के द्वार पर जा कर वे फाटक खटखटाने लगे।
दरवाजा खोलकर सेठ जी ने जब उन्हें देखा तो विगड़ कर बोले–‘‘अरे, कीचड-सने पॉवों से सारे दालान में मिट्टी फेला दी। भागो यहाँ से।’’
‘‘सेठ जी हम इस रात में कहाँ जाय’’- बृद्धा गिड़गिड़ाई, ‘‘ठंड से प्राण निकल रहे हैं। कहीं ठहरने भर को जगह दे दो।’’ परन्तु सेठ ने द्वार बन्द कर लिया।
उन दोनों को प्रकाश में सेठ के महल के पास ही एक टूटा-फृटा सा घर दिखाई पड़ा। उसके टूटे किवाड़ से दिये के प्रकाश की एक किरण दिखाई पड़ी। बुढ्ढे ने बुढ़िया से कहा–‘‘आओ चलो, उस घर में ही आश्रय मांग कर देखें।’’
बुढ़िया ने कहा-‘‘जब इतने बढ़े सेठ ने अपने यहां स्थान नहीं दिया, तो ये कंगाल क्या देंगे, और ठहरने को जगह मिल भी गई तो रात भर में बिना ओढ्ने-विछोले के इन फटे भीगे कपड़ो में तो प्राण ही निकल जायेंगे।’’
वृद्ध बोला ‘‘कुछ भी हो, मुझ से तो अब ओर चला नहीं जाता।’’ ओर उसने आगे बढ़कर द्वार थपथपाया। दूसरे ही क्षण हाथ में दिया थामे, मैली फटी धोती पहिने एक स्त्री ने द्वार खोला।
उन दोनों की दशा देखते ही वह करुणा-भरे स्वर में बोली-‘‘हाय! हाय! तुम इस अन्धेरी रात से कहॉ भटक रहे हो। आओ, आओ, भीतर आ जाओं।’’
उन्हें सहारा देकर वह भीतर ले गई। छोटी सी कोठरी में दो टूटी-फूटी चार-पाइयां पड़ी थीं। उनमें से एक को खाली करके स्त्री ने उनसे बैठने को कहा।
Laxmi Mata ka Ashirwad
दोनों के कपड़ों से जल चूकर कोठरी गीली हो चली, परन्तु उस स्त्री ने उसकी तनिक भी चिन्ता न करके, जल्दी-जल्दी अंगीठी में आग सुलगा कर उन्हें तापने को कहा।
फिर अरगनी पर से दो पुराने परन्तु धुले हुए कपडे लाकर बोली, ‘‘बाबा! आप लोग अपने भीगे कपडे उतार कर इन्हें लपेट लो। क्या करू में बहुत गरीब हूँ। इससे इन्हीं दो कपड़ों में गुजर करनी होगी। आपके कपड़े मैं निचोड़ कर फैला दूगी।’’
उन्हें कपड़े बदलवा कर वह दालान में गई और दो पीतल की छोटी-छोटी थालियों में बथुए का साग तथा बाजरे की रोटिया रख कर ले आई। ‘‘माता जी।’’ उसने बृद्धा से कहा–‘‘आज मेरे घर में यही भगवान का प्रसाद है। मुझे बहुत दुख है कि न तो घर में घी है, न ही दूध और न चीनी।’’
‘‘कोई बात नहीं बेटी। हमें तो यह भोजन बड़ा स्वादिष्ट लगा।’’ वे दोनों खाते हुए बोले ।
थोड़ी देर में उस स्त्री का पति भी आ गया। वह बेचारा भी रोजगार की तलाश मे दिन भर घुम कर अब थका-मांदा लौटा था।
पत्नी ने अतिथियों को भोजन खिला देने के बाद उसे चुपके से द्वार पर हुई बता दी थी।सुनकर वह भी बडा प्रसन्न हुआ।
फिर दोनों ने अपने बिछोने उन दोनों बृद्धों को देकर उन्हें तो खाट पर सुलाया और आप दोनों एक फटा टाट ओढ़ कर धरती पए लेट गये।
प्रात काल ही जब बारिश बन्द हो गई तो वे बुडढे-बुढ़िया जाने लगे। सरला ने उन्हें हाथ जोड् कर सूरज निकलने तक रोका। फिर घर में जो चार दाने घने पड़े थे उन्हें पीस कर आटा गूंध, रोटिया बना, उनके साथ बाध दी ओर कहा–‘‘माता। हम निर्धन हैं। इसी से जैसी सेवा करनी चाहिये थी वैसी कर न सकी। आशा है आप क्षमा करेंगी।’’
बुढ़िया ने उत्तर दिया-‘‘बेटी। हम गरीबों की जो सेवा तूने की, उसका फल तुझे भगवान देंगे। पर आज तो तू जो चीज छूएगी वह दिन भर खाली न होगी।’’
वे लोग चले गये तो सरला को अपनी बधुए की हाडी को साफ करने की याद आई। रसोई में जाकर उसने हाँडी उठाई तो देख कर आश्चर्य से भर उठी। उस हांडी में अशरफिया भरी हुई थीं। अब जो उसने उसे उलट कर रखा तो वह् दुवारा भर गई।
वह उन अशरफियों को उठा कर रखती ओर हांडी में दूसरी भर जातीं। दिन भर में उसकी कोठरी अशरफियों से भर गई। बस फिर तो उसके पति ने उन अशरफियों को बेच कर बढ़िया मकान ले लिया। एक कपड़े की दूकान खोल ली। घोडागाड़ी और
टमटम खरीद की। और वे सुखपूर्वक रहने लगे।
Laxmi Mata ka Ashirwad
उस सेठ को जब यह समाचार मिला कि उसके निर्धन पड़ोसी एक रात में हीअमीर हो गये हैं, तो उसने सरला तथा उसके पति को बुला कर कारण पूछा।
सरला ने सरलतापूर्वक सब कथा सुना दी ।
अब तो सेठ और सेठानी को रात दिन यही चिन्ता रहने लगी कि किसी प्रकार वे करामाती बुडढे-बुढिया मिल जाये तो वे भी हृदय भर अशरफियां प्राप्त कर लें।
देवता तो लोग की इच्छा करते ही मनुष्य के हृदय की बात जान लेते हैं। एक रात जब बहुत जोर का पानी बरस रहा था, ओर ओले पड़ रहे थे तो वही बुडढे-बुढ़िया फिर
उसी सेठ के द्वार पर पहुँचे। द्वार पर खटखट सुनते ही सेठ ने बिजली के प्रकाश में से झांक कर उन्हें पहिचान लिया ओर जल्दी-जल्दी अपनी स्त्री को उन्हे लेने भेजा।
बिजली बुझा कर एक दिया हाथ में लेकर सेठानी बाहर आई और झूूठी ममता दिखा कर बोली -‘‘हाय! हाय! बाबा! तुम कहाँ भटक रहे हो, आओ अन्दर आ जाओ।’’
फिर घर की सबसे टूटी चारपाई पर उन्हें बैठा दिया। घर में अनेकों गरम वस्त्र होते हुये भी वह उनके लिये दो फटे-पुराने वस्त्र ले आई ओर बोली – ‘‘बाबा, घर में इस समय यही उपस्थित हैं ।’’ फिर उनसे बिना पूछे दी घर की सबसे घिसी-पुरानी थालियों में बथुए का साग तथा जुआर की रोटी भी ले आई। ओढ़ने को दो फटे कम्बल भी कहीं से मंगा दिये। फिर सेठ-सेठानी भी उसी कमरे में गद्दे बिछा कर घरती पर लेट रहे।
सवेरे अँधेरे ही जब बुड्ढे-बुढ़िया जाने लगे तो सेठानी ने चना पीस कर रोटी बनाई ओर उनके साथ बाध दी ओर ओर बोली–‘‘माता हम बड़े दरिद्र हैं। आपकी सेवा न कर सके, आशा है आप हमें क्षमा करेंगी।’’
बुढ़िया ने कहा–‘‘बेटी जैसी सेवा तूने की उसका फल तुमे भगवान देगा। हां, आज तू जिस काम को हाथ में लेगी वह दिन भर समाप्त न होगा।’’
उन लोगों के जाते ही सेठ-सेठानी में झगढ़ा हो पड़ा। सेठ चाहता था कि बथुए की डंडिया में खोलू और सेठानी चाहती थी कि में खोलू। अन्त में दोनों ने एक साथ डंडिया पकड़ी। इस छीना-झपटी में डंडिया टूट गई ओर कमरे में बथुआ ही वथुआा
बिखर गया।
सेठानी झाडू, लेकर कमरा धोने लगी। अब वह तो कमरा साफ करती, और कमरे में तुरन्त ही सड़ा हुआ बथुआ फिर बिखर जाता। सवेरे से संध्या तक उसे कमरा साफ करना पढ़ा।
ठीक ही तो है, जिसकी जैसी नीयत होती है, भगवान उसे वैसा ही फल देता है।
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