अकबर बीरबल का अजीब तमाशा ! Hindi Story Akbar Birbal ‘Ajeeb Tamasha’

Akbar Birbal Story Hindi Ajeeb Tamasha

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “अकबर बीरबल का अजीब तमाशा ! Hindi Story Akbar Birbal  “Ajeeb Tamasha” आइये जानते हैं ;

अकबर बीरबल का अजीब तमाशा !
Hindi Story Akbar Birbal ; Ajeeb Tamasha

अकबर बादशाह को ठट्टेबाज़ी का बड़ा शौक़ था और दैवयोग से बीरबल भी बड़ा ठट्टेबाज़ था। एक दिन बादशाह और बीरबल में ठट्टेबाज़ी हो रही थी। बादशाह ने कहा-“बीरबल, बहुत दिन हुआ कोई नया कौतुक तुमने मुझे नहीं दिखलाया। अतएव अब कोई ऐसा नवीन कौतुक दिखलाओ जैसा फिर कभी देखने में न आवे।

“बीरबल ने हँसते हुये बादशाह की आज्ञा शिरोधार्य की और बोला ; “हुजूर, इसमें कोई कठिनता की बात नहीं है। परन्तु उसकी तैयारी करने में दो लाख रुपये ख़र्च पड़ेंगे।”बीरबल को तत्काल दो लाख रुपये दिये गये। वह उन रुपयों को लेकर घर गया।

दूसरे दिन स्नान ध्यान से निवृत्त होकर एक लाख तो ब्राह्मणों को दान किया, बाक़ी एक लाख रुपये अपने काम में ख़र्च किये।

जब रुपया लिये बहुत दिन हो गये तो एक दिन बीरबल के जी में आया कि जो बादशाह को किसी दिन कौतुक की बात याद आयेगी तो वह तत्काल तकाजा कर बैठेगा, इसलिये इसको गुपचुप इसी समय कर दिखाना चाहिये।

उसने बीमारी का बहाना कर दरबार जाना बन्द कर दिया। धीरे-धीरे बीरबल की बीमारी की बात बादशाह के कानों तक पहुँची। उसने घबड़ाकर इलाज के लिये बड़े-बड़े हकीम और वैद्यों को उसके पास भेजा, पर उसकी बीमारी घटने के बजाय दिनों-दिन बढ़ती ही गई।

यह समाचार सुन बादशाह एक दिन स्वयं बीरबल से मिलने गया। बादशाह को देखकर बीरबल रोने लगा और बोला-“हुज़ूर! अब मेरी ज़िन्दगी का अन्तिम दिन है। इस बीमारी से मैं बच नहीं सकता।

बीरबल की असाधारण बीमारी से बादशाह अकबर को बड़ा खेद हुआ और वह बीरबल को तसल्ली देता हुआ बोला-“बीरबल! तुम जानते ही हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ; तुम्हारे बिना मेरा एक क्षण भी सुख-पूर्वक नहीं बीत सकता। ख़ुदा करे ऐसा न हो; नहीं तो तुम्हारी मौत से बढ़कर मेरी मौत होगी।”

बादशाह के चार प्रश्न

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बीरबल ने उत्तर दिया-“ग़रीबपरवर! विधि के विधान में कोई उलट-फेर नहीं कर सकता। समय आने पर किसी की चाहे कितनी ही प्यारी वस्तु क्यों न हो; हाथ से निकल जाती है। आप से यह मेरी अन्तिम प्रार्थना है कि मेरे पीछे कृपा कर मेरे कुटुम्ब का पालन करते रहियेगा। आपके अतिरिक्त कोई उनको सहारा देनेवाला नहीं है।

आह! आह… !! मेरा जी बहुत घबड़ा रहा है। इस प्रकार ढोंग रचकर बीरबल अपने तई को ऐसा बनाया मानो कोई सचमुच असाधारण बीमार हो। बादशाह बोला, “तुम किसी प्रकार की चिन्ता न करो, मैं तुम्हारे बाल बच्चों का अच्छी तरह पालन करता रहूँगा।”

इसके बाद बादशाह अकबर वहाँ से विदा हो अपने महल को चला गया। इधर जब रात्रि आई तो बीरबल के घर से रोने की आवाज़ आने लगी। बीरबल के मृत्यु का समाचार लोगों के कानों कान पहुँचा।

क्रमशः ख़बर पाकर बीरबल के जाति बिरादरी के लोग एकत्रित हुये। सर्वसम्मति से उरद का एक पुतला बनाकर उसके साथ कुछ रिश्ते के लोग श्मशान पहुँचे और उसे चितापर विधिवत रखकर उसमें आग लगा दी।

इधर बीरबल तहखाने की एक कोठरी में छिपा रहा और अपने घर के लोगों से सख़्त मनाही कर दी कि उसके छिपने का हाल किसी पर विदित न हो।

जब बीरबल के मृत्यु का समाचार अकबर के पास पहुँचा, तो वह अपने प्यारे दीवान की मृत्यु पर शोक करने लगा, परन्तु अन्य मुसलमान अमीर उमराव बीरबल की मृत्यु से बड़े प्रसन्न हुए और इस खुशी में फकीरों को मिठाई खिलाई। हिन्द प्रजा अनाथ-सी होकर चारों तरफ शोक मनाने लगी। लोगों ने कई दिनों तक अपना-अपना कार्यक्रम बन्द रक्खा। हर तरफ़ से बीरबल की मृत्यु का समाचार आने लगा।

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बादशाह ने बीरबल के बालकों को उसकी क्रिया करने के लिये काफी सहायता दी। कुछ दिनों तक अकबर बिना दीवान के ही सभासदों की सहायता से राजकीय कार्यों को निपटाता रहा, परन्तु जब प्रजावर्ग और बादशाह दोनों को क्रमशः बीरबल विस्मरण हो गया तो सभासदों की सम्मति से एक मुसलमान को अपना दीवान बनाया।

नये दीवान की अन्धाधुन्धी से प्रजा वर्ग में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और चारों तरफ से त्राहि-त्राहि की ध्वनि सुन पड़ने लगी।

अपनी मृत्यु के एक वर्ष पश्चात् बीरबल अपने कार्य साधन के लिये तत्पर हुआ और अपने पुत्र को एक लाख रुपया देकर बोला, “तुम यहाँ से दो मील दूर किसी पहाड़ी पर एक बड़ा भव्य महल तैयार कराओ। महल ऐसा हो कि उसकी लपट (चमक) कई मीलों तक पहँचे। यह काम बड़े गुप्त रूप से करना है, अतएव महल का पूर्णतया निर्माण एक ही रात में होना चाहिये।”

बीरबल का पुत्र बड़ा समझदार था। पिता के आदेश पर पहले महल में लगने वाली वस्तुओं को बड़ी सावधानी से संग्रह किया। जब उसे भली भाँति सन्तोष हो गया कि अब सामान के अभाव में महल बनने का कोई काम न रुकेगा, तो उसने गुप्त रीति से बहुत से कारीगरों को नियुक्त कर एक रात में हल्ला बोल दिया और कारीगरों को भली भाँति ताकीद कर दी कि महल बनने का काम बड़ी गुप्त रीति से किया जाय और महल एक ही रात में बनकर तय्यार हो।

महल रातों-रात बनकर तय्यार हो गया। कारीगरों ने भली-भाँति दस्तकारी दिखलाई। लकड़ी पर इस सफाई से रोगन किया कि कोई भी देखकर नहीं कह सकता था कि वह लकड़ी का बना है। स्थान-स्थान पर शीशों को ऐसी खूबी से जड़ दिया कि उसकी चमक कोसों तक फैलती थी।

तब बीरबल खूब साफ़ सुथरे वस्त्रों से सुसज्जित होकर उस नये महल में आबाद हुआ। सबेरा होते ही वह बड़े ठाट बाट से सजकर नगर में पहुँचा। एक वर्ष का विश्राम पाकर बीरबल खूब तगड़ा हो गया था।

अच्छी सेवा होने से उसके शरीर के अंग प्रत्यंग खिल गये थे। नगर में जाते समय उसे देखकर किसी को बीरबल होने का भ्रम न हुआ। इस प्रकार देखता भालता राजदरबार में जा पहुँचा।

भाग्य बड़ा है कि मेहनत

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एक लब्ध प्रतिष्ठित आगन्तुक को देखकर सभासदगण एकटक उसी की तरफ़ देखने लगे, सभा का काम बन्द हो गया; परन्तु किसी ने उसको छेड़ा नहीं। अन्त में कुछ देर बाद बादशाह ने पूछा “आप कौन हैं! कहाँ से आये हैं, और यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?”

बादशाह अकबर के ऐसे अपरिचितों से प्रश्नों को सुनकर बीरबल बोला, “ग़रीबपरवर! मैं आपका पुराना दीवान बीरबल हूँ।”

बादशाह भौंचक-सा हो गया और रुखाई से बोला, “अयं! बीरबल; तू तो मर गया था न, फिर सजीव कैसे लौटा?”

बीरबल ने उत्तर दिया, “हुजूर! ___ मैं मर तो गया था परन्तु जब स्वर्ग लोक को गया तो इन्द्र ने मुझ पर प्रसन्न होकर मुझे अपना मंत्री बना लिया, तबसे मेरा दिन बड़ा सुखपूर्वक बीतता है। मेरी सेवा के लिये अप्सराएँ नियुक्त हुई हैं। सर्वदा खाने को उत्तमोत्तम पदार्थ और पान करने के लिये अमृत प्रस्तुत रहता है।”

बीरबल की ऐसी बातें सुन अकबर ने पूछा, “तो ऐसे आनन्द उपभोग को छोड़कर तुम्हारा यहाँ आना कैसे हुआ?”

बीरबल ने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया, “पृथ्वीनाथ! आप हमारे पुराने अन्नदाता हैं, यह स्मरण कर इन्द्र से मुहलत लेकर आपसे मिलने आया हूँ। आपके किये हुए उपकार मेरे हृदय-पट पर अंकित हैं। इसीलिये आपके निमित्त स्वर्गलोक से एक उत्तम महल और एक परी साथ लाया हूँ। उपरोक्त दोनों चीजें यहाँ से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर छोड़ आया हूँ। यदि आप वहाँ तक चलने का कष्ट करें तो मैं उन्हें आपको दिखला हूँ।”

बीरबल की बातें अकबर को सच्ची जान पड़ी। उसने मन में अनुमान किया, “जब बीरबल मर गया था तो बिना प्रयोजन के लौटकर कैसे आया, और आया भी तो परी और महल इसके हाथ कैसे लगा।

निःसन्देह बीरबल सत्य कहता है!” उन चीजों की परीक्षा के लिये नये दीवान और कुछ अन्य प्रतिष्ठित लोगों को उसके साथ भेजा।

बीरबल सबके साथ चलकर उस पहाड़ी के समीप जा पहुँचा और उन लोगों को दूर से अँगुली का इशारा करके बोला, “देखो वह सातवें खंड पर बैठी हुई परी हम लोगों की तरफ ध्यानपूर्वक देख रही है।

अधिक आदमियों को एक साथ अपने ही तरफ आते देखकर उसे ताज्जुब हो रहा है, उसका चन्द्रमुख कैसा चमक रहा है? उसकी बिखरी लटें क्या ही काली नागिन के समान लपलपा रही हैं।”

आदि-आदि कई प्रकार के चकमे देकर बड़ी मुलायमी से पूछा, “क्यों, वे सब बातें अब तक आप लोगों को दिखलाई पड़ीं या नहीं, यदि न दीख पड़ती हों तो अभी मौक़ा है, उन्हें भली भाँति देख लें, ये सब बातें आप लोगों को बादशाह से कहनी पड़ेंगी। फिर किसी प्रकार हीला हवाली करने से काम न चलेगा।”

बीरबल के साथ एक से एक सुप्रतिष्ठित नागरिक और दरबारी भेजे गये थे। वे ऐसी कौतूहल भरी वार्ता सुन मन में कहने लगे, “हो न हो, यह बीरबल प्रेत होकर आया हो! क्योंकि सिवा महल के इसकी बतलाई एक बात भी हमें नहीं दीख पड़ती।”

बीरबल के बारंबार पूछने पर उन लोगों ने एक स्वर से कहा, “अफ़सोस हमें सिवा महल के और कुछ भी नहीं दीख पड़ता।” तब बीरबल बोला, “आप लोग क्षमा करेंगे, मैं पहले आप लोगों से एक बात कहना भूल गया था। वह यह कि इस लोक के मनुष्य अधिकतर पाप-कर्म में रत हैं, दूसरे बहुत से लोग वर्णसंकर भी हो गये हैं। इसलिये इन दोनों श्रेणी के मनुष्यों के अतिरिक्त बाक़ी लोगों को ही ये स्वर्गीय चीजें दीख पड़ेंगी।

एक बार फिर से देखकर आप लोग सत्यासत्य का निर्णय कर लें।”

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बीरबल ने फिर पहले की तरह सबको दिखलाना शुरू किया। इस बार लोग बड़ी सतर्कता से देख रहे थे, पर कुछ हो तब तो दिखलाई पड़े, सिवा महल के उनकी दृष्टि में और कुछ भी न आया। परन्तु पापी कहलाने के भय से सब लोगों ने परी का दिखलाई पड़ना स्वीकार किया और एक साथ ही बोल उठे, “वाह वाह! क्या कहना!! जो परी का नाम सुना था सो आज प्रत्यक्ष देखने में आई। ऐसी वारांगणा आज तक मृत्यु-लोक में किसी को दृष्टिगत न हुई होगी।”

बीरबल बोला, “आप लोग भली-भाँति पुनः-पुनः देख लीजिये, क्योंकि यह बात बादशाह के सामने कहनी पड़ेगी।” दरबारियों ने कहा, “निःसन्देह हम सब इस बात को बादशाह अकबर के सामने भी इसी प्रकार ज्यों की त्यों कह देंगे।”

पहले तो बीरबल इन लोगों की मूर्खता पर मन में बड़ी देर तक हर्ष मनाता रहा, परन्तु उनको अपने माफ़िक समझ कर शान्त रहा। इन्हें यह सब देखते सुनते बहुत देर हो गई। उधर अकबर भी इनकी प्रतीक्षा करते करते घबड़ा रहा था, इसी बीच बीरबल सबको साथ लिये हुये जा पहुँचा।

इनको देखते ही बादशाह प्रफुल्लित हो गया और हर्ष सहित नये दीवान तथा अन्य बड़े-बड़े कर्मचारियों से वहाँ का समाचार पूछा। उन्होंने बीरबल के कथन की पुष्टि करते हुए महल और परी का होना स्वीकार किया, बल्कि कुछ और बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन किया।

नया दीवान बोला, “हुजूर, लाहौल बिला कूवत! ऐसी परी क्या आज तक किसी को नसीब हुई होगी। नाहक यहाँ की स्त्रियाँ अपनी खूबसूरती की डींग हाँकती हैं। महल की शोभा और चमक तो सूर्य के तेज को भी मात करने वाली है।”

दीवान के मुख से वहाँ की प्रशंसा सुन अकबर और भी भुलावे में पड़ गया और उसका हृदय क़ाबू से बाहर होने लगा। वह तुरंत बीरलब से बोला, “बीरबल! उसको यहाँ लिवा लाओ।”

बीरबल अकबर की बात काटते हुए बोला, “हुज़ूर, वह स्वर्ग की परी है, पैदल चलकर यहाँ नहीं आ सकती। हाँ, यदि आप स्वयं चलकर उसे लिवा लाएँ तो भले ही आपके प्रेम में पड़कर शायद चली आये।”

वह तो दीवान के मुख से परी की प्रशंसा सुनकर मरा जा रहा था, इनकार कब करता। तत्काल सवारी तैयार करने की आज्ञा दी और आप भी कपड़े-लत्ते से लैस हो गया।

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थोड़ी देर बाद सवारी तैयार होकर वहॉं पहुँची, सभा के लोग पहले ही से सुसज्जित थे, अकबर-बीरबल व अन्य सब लोग नगर से बाहर निकले। जिस समय बादशाह की सवारी इस ठाठ-बाट से निकली, वह देखते ही बनती थी। अगर कोई अपरिचित मनुष्य उस समय के समाज को देखता तो उसकी और उसके वैभव की भूरि-भूरि प्रशंसा करता।

मध्याह्न में बादशाह अकबर पहाड़ी के समीप जा पहुँचा, धूप बड़ी तेज़ पड़ रही थी। धूप की लपट महल के शीशों पर पड़ने से उसका प्रतिबिम्ब बहुत दूर तक पहुँचता था, जिससे महल की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी हो रही थी । दृष्टि पड़ते ही आँखें चौंधिया जाती थीं।

बादशाह ऐसे अपूर्व महल को देख सारे महलों की उत्तमता भूल गया और बीरबल के आग्रह से अपनी मण्डली सहित पहाड़ी पर चढ़ने लगा। थोड़ी देर चलकर महल के नीचे जा पहुँचा और महल की सुन्दरता देखने लगा।

बीरबल बोला, “ग़रीबपरवर! ऊपर दृष्टि फैलाकर देखिये । वह सातवें खण्ड की खिड़की पर बैठी हुई परी हम लोगों की तरफ़ देख रही है, उसकी दासी पीछे से पान बीड़ा थमा रही है। यह दासी क्या है मानो सुन्दरता की सीमा है, इसकी जोड़ की सारे महल में एक भी बेगम नहीं है। वाह, परी का क्या कहना! जिस की दासी ऐसी है उसके मालिकिन की प्रशंसा करना तो मानो सूर्य को दीपक दिखाना है ।”

बीरबल बारंबार उँगली का संकेत कर उसे दिखलाने लगा, फिर भी कुछ न देख पड़ने पर बादशाह अकबर ताज्जुब से बोला, “आप न जाने क्या देख रहे हैं। मुझे तो कुछ भी दिखलाई नहीं पड़ता।”

बीरबल बोला, “यदि आपको मेरे कहने पर विश्वास नहीं पड़ता तो आप अपने दीवान और अन्य मुसाहिबों से पूछ लीजिये।” वे लोग तो पहले ही से बीरबल के पंजे में पड़ चुके थे। उन्होंने एक स्वर से परी का दीख पड़ना स्वीकार किया और बादशाह को उसके न दिखाई पड़ने पर आश्चर्य प्रकट करने लगे।

अकबर विचार सागर में लहरें मार रहा था। उसका मन नितान्त चंचल हो रहा था। इसी बीच बीरबल ने कहा, “पृथ्वीनाथ! मैं पहले आपसे एक बात कहना भूल गया था, वह यह कि स्वर्गीय वस्तुएँ यहाँ के निवासियों को बड़ी कठिनता से दीख पड़ती हैं कारण कि आजकल अधिकतर लोग पापी हो गये हैं और पापियों को स्वर्गीय वस्तुएँ स्वप्न में भी नहीं दृष्टिगत होतीं। प्रत्यक्ष की तो बात हो निराली है। आपको खूब दृष्टि गड़ाकर ध्यान पूर्वक देखना चाहिये। देखिये, दूज का चाँद थोड़े अर्से के लिये अवश्य उदय होता है परन्तु सभी देखने वाले उसको नहीं देख पाते हैं। जो जन्मजात कुलीन और कर्म से पवित्र होते हैं, वे उसे तुरत देख लेते हैं।”

बादशाह का तोता

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बीरबल की इन बातों से बादशाह और घबड़ाया और मन में कल्पना करने लगा, “सबको तो वह स्वर्ग की परी और उसकी दासी प्रत्यक्ष दिखलाई पड़ती है और मुझे नहीं, इसका क्या कारण है? हो न हो, मैं ही पापी होऊँ । अब तक मैं अपने को पापी नहीं समझता था, परन्तु आज इस स्वर्ग की परी के सामने परीक्षा होने पर मुझे अपना पापी होना निश्चित हो गया। मेरे ऐसे पतित जीवन को कोटिशः धिक्कार है। अब मुझे इस भेद को छिपाना आवश्यक है। नहीं तो प्रजावर्ग में मेरी बड़ी अपकीर्ति फैलेगी। मुँह पर तो सब वाह वाह करेंगे, पीछे पापी समझकर मेरी हँसी उड़ावेंगे।”

इतने में बीरबल फिर अंगुली का संकेत करता हुआ बोला, “देखिये- देखिये पृथ्वीनाथ! वह चन्द्रानना बैठी है और उसकी दासी बगल में खड़ी है।” बादशाह ने लाचार होकर उसकी बात मान ली और बोला, “हाँ हाँ, अबकी बार वह मुझे प्रत्यक्ष दीख पड़ी। वह खिड़की में खड़ी होकर इधर को ही देख रही है।”

बादशाह का परी का देख पड़ना स्वीकार करने पर बीरबल सब सभासद और नये मंत्री के सहित महल के चौथे खंड पर गया। वहाँ पर पहले से मुलायम कोंच और
मखमल की तकिया सुसज्जित रक्खी जा चुकी थी, बीरबल बादशाह को कोच पर बैठाकर उनसे गपाष्टक मारने लगा, पर यह बात बादशाह को पसंद नहीं आती थी, उसका मन तो परी के देखने में लगा था।

बीरबल तत्क्षण बादशाह के मनकी बात ताड़ गया, जल्दी में फूल और इस तथा गुलाबजल से सबका स्वागत कर बोला-‘‘गरीबपरवर! आप और आपके साथी मृत्यु लोक के वस्त्राभूषणों को धारण किये हुए हैं, और ये सब नश्वर हैं, मैं सबको स्वर्गीय वस्त्र देता हूँ कृपया उसे धारण कर इहलोक और परलोक दोनो का सुख अनुभव करे।

ये कपड़े मैं पहले ही से अपने साथ लेता आया हूँ और ये कभी नष्ट होने वाले भी नहीं है। भला बीरबल के चकमें से कौन निकल सकता था, बादशाह के स्वीकार करते
ही सब लोग अपने कपडे उतार 2 कर अलक घर दिये और बीरबल के दिये कपडों को धारण करने पर उधत हुए।

बीरबल कुछ सोच विचार कर बादशाह को तो असली वस्त्र पहनाया परन्तु दीवान आदिकों को इतना ही कहकर रह गया कि इन स्वर्गीय कपड़ों को पहन लीजिये।

नये दीवान ने अपनी आँखों के सामने कोई वस्त्र न देख कर मन में सोचा-‘‘ऐसे कपड़े पहनने का अर्थ तो अपने को नम्र करना है, परन्तु बीरबल की बात नामंजूर कर वर्णशंकर कौन बने, इस बेइज्जती से तो नग्न होकर रहना ही अच्छा है।

उसके बदन पर केवल पाजामा शेष था उसे भी उतार कर अलग फेंक दिया और ऐसा ढोंग बनाया मानों लोगों के देखने में स्वर्गीय कपड़े ही पहन रहा हो। फिर कपड़े पहने हुओं के समान ऐड़कर अपनी जगह पर नंग घड़ंग जा बैठा। उसके बदन पर यदि एक लगोट न रह गया होता तो गुप्तेन्द्रियाँ भी प्रगट दिखलाई पड़ने लगती।

दीवान का ऐसा भेष देखकर लोगो का हँसी आने लगी, परन्तु समय हँसने के
विपरीत था इसलिये लोगो ने उसे प्रगट नहीं होने दिया। हँसकर वर्णशंकर बनना किसी को मंजूर नही था-‘‘भाई तू भी चुप, मै भी चुप।’’

नये दीवान के नग्र हो जाने पर बीरबल ने बारी-बारी सबको तझ कर दिया। क्या कहना था दरबार का दरबार नगोटिया हो गया, बादशाह मन ही मन आन को तान सोचते रहा अन्त में उसकी हृदय तंबी बोली-‘‘भाई स्वर्गीय चरित्र बड़े ही अद्भुत हैं।’’

तब बादशाह ने बीरबल से पूछा-‘‘क्यो साहब अब तक लोग स्वर्गीय पोशाक पहन
चुके या नहीं?’’

बीरबल ने उत्तर दिया’’-जी हाँ, अब सब लोग एक दम कपड़े लत्ते से लैस हैं, परन्तु एकाएक वहाँ (परी के पास) सबको न लिवा चलकर पछले मै उसकी अनुमति ले लेना उत्तम समझता हूँ, आप लोग यहीं ठहरे मैं उसकी स्वीकृति लेकर तत्काल लौट आता हूँ।

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बीरबल बगल के एक कमरे में भीतर से सिटकुना बन्द कर छिप रहा, कुछ समय बिताकर बाहर निकला और बादशाह से प्रार्थना कर बोला-‘‘गरीबपरवर! परी क ऐसी अनुमति है कि यह दिन का समय है, इस वक्त सब लोग वापस जावें रात्रि में मुझसे मिल सकते हैं।

उसने एक बात और भी कहा है-‘‘अपने मालिक से बोलना कि मुझे इस पहाड़ी की आबहवा बड़ी सुहावनी और निरोग जान पड़ती है इसलिये कुछ दिनों तक मेरा यही रहने का विचार है। मैं पहले से बादशाह की हो चुकी हूँ तदर्थ किसी न किसी दिन उनसे अवश्य मिलूँगी। इस समय बादशाह के साथ और बहुत से लोग आये हुए हैं, मैं उनके सामने नहीं मिल सकती’’

स्वर्गीय परी का ऐसा सन्देश सुनाकर बीरबल फिर बोला-‘‘पृथि-वीनाथ! मुझे भी मुनासिव यही जान पड़ता है। हम लोग उसकी मर्ज़ी के अनुसार चले, नहीं तो यदि हमारे व्योहारों से ऊबकर कहीं वह रूष्ट हो गई तो फिर बना बनाया काम बिगड़ जायगा। इस समय लौट ही चलना बुद्धिमानी है।

कोई उपाय कार्यान्वित होते न देख बादशाह लाचार होकर मनगढंत परी की आज्ञा पालन करता हुआ नगर की तरफ चला। आगेे-आगेे बीरबल उसके पीछे बादशाह और सबके पीछे कतार से अन्य लोग चल रहे थे।

बीरबल और बादशाह तो कपड़े पहने हुये थे लेकिन पीछे वाले सब नग्न शरीर केवल एक लगोटी पहने हुये थे। बादशाह विमुख लौटने के कारण बड़ा दुखी था, लेकिन चूँकि परी ने रात को उससे मिलने का वादा किया था इससे भीतर भीतर कुछ धैर्य भी बँधा हुआ था।

बीरबल की पारखी नजर

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इस प्रकार सबको लिये हुए बीरबल नगर में पहुंचा। शहर के रईसों को योजंगधड़ंग घूमते देख नागरिकों को हँसी आने लगी। यह दल लिये हुये बीरबल जिस गली से होकर जाता वहाँ के लोग इन को देखकर हँस पड़ते। जब इनसे रहा न गया तो नागरिकों को डाटकर बोले-‘‘तुम लोग बड़े मूर्ख हो जो हमको देखकर हँस रहे हो, तुम्हें मालूम नहीं कि बीरबल हम को स्वर्गीय आनन्द लुटा रहा है। हमारे इन पवित्र वस्त्रों को मृत्युलोक निवासी देख नहीं सकते इसीसे तुम मुझे नग्न देख रहे हो।’’

नगर निवासी निरे भोदू नहीं थे, उनमें भी एक से एक घुर्रधर विद्रान थे। आपस में बोलेे-‘‘हो न हो! यह सब बीरबल के ही बहकाये में आ गये हो। तुम लोग जानते हो कि बीरबल को मरे आज कई वर्षो का समय बीत गया, फिर बीर-बल कहाँ से आ पहुँचा।

यह बात सबको स्मरण होगा कि एक समय बादशाह ने बीरबल से एक अजीब तमाशा दिखलाने को कहा था। जिस कारण इतने दिनों तक गुप्त रह कर आज बादशाह को अजीब तमाशा दिखलाता हुआ आ रहा है।’’

सब नागरिकों ने इस बात को स्वीकार किया और सब बीरबल की बुद्धिमानी पर और जोर जोर से हँसने लगे।

नागरिकों के ऐसे हास्य और भाषण को सुनकर नग्न अमीरों के कान खडे़ हो गये, परन्तु फिर भी वे बीरबल की सारी बातें सच्ची मानकर नगर वासियों की उपेक्षा करते हुये महल की तरफ चले।

बीरबल अपने दल के सहित सारे नगर में घूमता फिरता शाही दरवार में जा पहुँचा। सब लोग जगह बा जगह खडे़ हो गये, परन्तु बीरबल बादशाह का सबसे अलग ले गया और तब एकांत में अपना दोनों हाथ जोड़कर बोला- ‘‘पृथ्वीनाथ! यदि मेरे अपराधी की माफी मिले तो में कुछ निवेदन करूँ।’’

बादशाह ने कहा-‘‘अच्छा कहो, तुम्हे माफी दी जायगी।’’

तब बीरबल बोला-‘‘हुजूर को स्मर्ण होगा कि एक समय वर्ष के भीतर मुझे एक अजीब तमाशा दिखलाने की श्रीमान् ने हुक्त दिया था और यह भी वचन दिया था कि उस अजीब तमाशा के दिखलाने में मुझ से की गई गुस्ताखियाँ भी माफ कर दी जायँगी।

उसी के मुताविक हुजूर को यह नया तमाशा दिखलाया गया है, कभी आपको इस प्रकार की नग्न सभा देखने में न आई होगी और न फिर भविष्य में देखने ही सकेगे यही इसका अन्त है। पृथ्वीनाथ! कही मरा हुआ आदमी भी लौट कर आ सकता है? भला स्वर्ग की पर यहाँ क्योंकर आवेगी?’’

बादशाह लाचार था वह बीरबल के कथनानुसार उसको पहले से माफी दे रक्खी थी, अतएवं सभासदों से बोला- ‘‘दीवानजी! आजसे लगभग एक वर्ष पहले मैने अपने दीवान बीरबल को एक अजीब तमाशा दिखलाने की आज्ञा दी थी और उसमें होने वाले सभी अपराधों के लिये उसको माफी भी दी गई थी। सो आज बीरबल ने वही अजीब तमाशा हमको दिखलाया है। आशा करता हू आप लोग उसपर रूष्ट न होगे। यह जो कुछ भी हुआ सब मेरी आज्ञा के कारण हुआ है। इस बात का मुझे भी दुःख है कि उसने आपलोगों की बड़ी हँसी फराई है। मैं ऐसा नहीं चाहता था। मैं तो केवल अजीब तमाशा ही देखने की लालसा रखता था। आपलोग इस बात को एकदम भूल जायें और बीरबल से पहले सा ही प्रेम रक्खें।’’

बादशाह की आज्ञा सुनकर समस्त हिन्दू दरबारी धन्य धन्य कहने लगे, परन्तु मुसलमान दरबारियों का मुँह लटक गया और मनही मन बीरबल की घृष्टता पर गालियों का बौछार उड़ाने लगे। बीरबल उनके वस्त्रों का गट्ठर पहले ही से दरबार में भेज चुका था इसलिये उसको खुलवा कर सबके हवाले किया। सब लोग असलो वस्त्र धारण कर अपनी-अपनी जगहों पर जा विराजे और सभाका दूसरा कार्यारम्भ हुआ।

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