अकबर का नया दीवान ~ Akbar ka Naya Deewan | Akbar Birbal Story in Hindi

Akbar ka Naya Deewan Akbar Birbal Story in Hindi

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “अकबर का नया दीवान ~ Akbar ka Naya Deewan | Akbar Birbal Story in Hindi” आइये जानते हैं ;

अकबर का नया दीवान | Akbar ka Naya Deewan
Akbar Birbal Story in Hindi

यह तो किसी से छिपा नहीं है कि बीरबल अकबर का मुँह लगा दीवान था। वह उसको हर प्रकार से मात किये रहता था। एक दिन बादशाह गुस्से में था। बीरबल उसके मनोगत भावों को ताड़ न सका और बातों बातों में उसकी हँसी उड़ाने लगा।

बादशाह को उसकी हँसी से मार्मिक वेदना हो रही थी। वह बोला-‘‘बीरबल तुम्हारा मिजाज बहुत दढ़ गया है इसलिये बराबर बेअदबी किया करते हो, अब तुम्हे ऐसा मौका नहीं दिया जायेगा। भविष्य में यदि फिर कोई तुम्हे ऐसा मौका नहीं दिया जायेगा । भविष्य में यदि फिर कोई ऐसा काम करोगे तो स्मरण रहे कठिन दण्ड के भागी होगे।’’

बीरबल ने अपनी बात रखने के लिये फिर कोई हँसी की बात निकाली, परन्तु बादशाह ने उसे बीच में ही क्रुद्ध होकर दबा दिया। अब बीरबल को बादशाह का क्रुद्ध होना प्रगट हो गया और वह चुप्पी साध गया।

बादशाह बीरबल की बेअदवी से चिढ़ गया था जिस कारण आँखे लाल कर बोला-‘‘ अब तुम फिर मेरे दरबार में कभी न आना, अभी दरबार से बाहर निकल जाओ।’’

बीरबल उत्तर देना उचित न समझकर चुपके से वहाँ से सटक लिया। यह सोचकर मन में ढाढ़स किया कि यह तो बादशाहों की गति ही है, जब काल आयेगा तो झख मारेगे और बुलावेगे। ऐसी ऐसी बहुतेरी कल्पनाएँ करता हुआ घर पहुँचा और अपने घर वालों को सावधान कर महीनों गुम रहा। न उसकी बुलाहट हुई न फिर गया ही।

इधर बादशाह ने एक दूसरा नया दीवान नियुक्त कर लिया।

जब बीरबल को बादशाह का रूख बदलते न दिखलाई पड़ा तो वह चुपचाप वायु परिवर्तन करने के लिये नगर से बाहर किसी दूसरे शहर को चला गया। उसका जाना किसी को मालूम नहीं था। अपना समूचा परिवार दिल्ली में ही छोड़ गया।

येनकेन प्रकारेण कई महीना बीत गया, पर न बीरबल को दरबार का समाचार मिला और न बदशाह को बीरबल का ही।

नया दीवान बीरबल के टक्कर का नहीं था, इसलिये बादशाह का दिल उसपर भलीभॉति जमता न था। वह गुप्तरूप से एक दूसरे दीवान की खोज में था। कितनों की गुप्त छिपे रूप से परीक्षाएँ ली, परन्तु कोई उत्तीर्ण नहीं हुआ।

तब लाचार होकर उसे विज्ञापनबाजी करने की धुन सवार हुई, उसने शहर शहर और दिहात दिहात में यह घोषणा करवा दी कि जो कोई मेरे प्रश्नों का उचित उत्तर देगा वह नया दीवान बनाया जायगा, उत्तर न दे सकने पर उसपर कुछ विचार न किया जायेगा।

दरबारी लोग दीवान पद के लिये लालायित हो रहे थे, परन्तु परीक्षोत्तीर्ण होना कठिन समझ, उपहास के भय से खामोश रह गये।

बादशाह ने अपनी घोषणा में एक मास की निश्चित तिथि निर्धारित की थी। समय अब करीब आ पहुँचा और सभा का आयोजन किया गया। यह सभा दीवान के चुनाव की थी अतएवं इसमें आम जनता को जाने का हुक्म नहीं था, केवल दरबार के लोग और कुछ वे लोग सम्मिलित किये गये जो दीवान पद के प्रलोभन से उम्मेदवार बन आये थे।

उन उम्मीदवारों में एक आदमी ऐसा आया था जो देखने में बड़ा प्रतिमाशाली ज्ञान पड़ता था, उसकी दोनों आँखें बड़ी बड़ी और चमकीली थी, सिर पर सफेद पगड़ी बाँधे हुए था, दाड़ी छाती तक लटक रही थी। उसके कुछ केस काले ओर कुछ सफेद थे। जिससे देखने में अधेड़ जान पड़ता था।

बादशाह की आज्ञा से एक परीक्षक बोला-‘‘आज की सभा में जो मनुष्य उत्तीर्ण होगा वह दीवान पद पर नियुक्त किया जायेगा। यदि उत्तर देने में भूल होगी तो दुबारा उसकी सुनवाई न होगी।

पहला प्रश्न यों है ;1- इस भौगोलिक सागर में मोती की सीपियों की गणना क्या
है? मैं ऊपर लिख चुका हूँ कि दीवान पद प्राप्त करने के लिये पाँच उम्मेदवार आये थे सो उनमें चार तो इस प्रश्न को सुनते ही विचार सागम में निमग्न हो गये, परन्तु पाँचवाँ
व्यक्ति जो कि साफा बाँधकर आया हुआ था और जिसकी दाढ़ी छातीतक लटक रही थी, उत्तर माँगा गया।

किसी ने कहा-लाख, किसीने करोड़ और किसी ने अरब तक की संख्या बतलाई, परन्तु साफे वाला मनुष्य सबके अन्त में बोला- ‘‘सम्पूर्ण मनुष्यों की आँखों की जितनी गणना है उतनी ही सीपियों की भी है।’’

उसका उत्तर सुनकर चारो तरफ से वाह वाह की ध्वनि आने लगी। बादशाह भी मन में प्रसन्न हुआ। नियमानुसार चारो उम्मीदवार नाकामयाब हो गये एक साफे वाला ही बच रहा।

प्रश्नकर्त्ता ने दूसरा प्रश्न किया- ‘‘इस शरीर का पहला सुख क्या है ?’’ तब साफे वाले ने कहा-‘‘हेल्थ इज दी रूट आफ हैपीनेस’’ शरीर के लिये स्वस्थ रहना पहला सुख है।’’

तब दूसरे प्रश्नकर्त्ता बोले-‘‘यद्यपि संसार में अनेकों प्रकार के शस्त्र विद्यमान हैं, परन्तु उनमें प्रधान शस्त्र क्या है?’’ उत्तरदाता ने कहा-‘‘बुद्धि। ’’

तब डोडरमल नामी तीसरे प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न हुआ-‘‘यदि बालू के कण और चीनी किसी प्रकार एक में मिश्रित हो जायँ तो पानी डालकर अलग करने के अतिरिक्त दूसरा उपाय क्या है?’’

Akbar ka Naya Deewan

उत्तरदाता ने कहा-‘‘दोनों मिश्रित वस्तुओं को जमीन पर फैला दें कुछ समय में चीटियाँ चीनी उठा लेे जायँगी और बालू के कण जहाँ के तहाँ पड़े रह जायँगे।’’

पाँचवाँ प्रश्न नव्वाब खानखाना का हुआ-‘‘क्या आप समुद्र का जल पान कर सकेंगे?’’

उसने उत्तर दिया-‘‘हाँ मैं भली भाँति पान कर सकता हूँ।

नवाब ने पूछा-‘‘कैसे?’’

तब वह बोला-‘‘पान करना तो आसान बात है, परन्तु पहले आपको उसमें गिरने वाली नदियों को रोकना पड़ेगा।’’

नव्वाब भी मात हो गया।

जगन्नाथ प्रसाद का छठवॉ सवाल इस प्रकार हुआ-‘‘मनुष्य चिता में जलाये बिना और कैसे भस्म किया जा सकता है?’’

उसने उत्तर दिया-‘‘चिन्ता की ज्वाला में।’’

फिर साँतवाँ प्रश्न
टोडरमल का हुआ-‘‘सबसे हेठा व्यवसाथ क्या है?’’

उमीदवार ने बतलाया-‘‘भिक्षाटन करना।’’

इसी प्रकार के और और सवालों का उत्तर देने की प्रतीक्षा में बह मनुष्य अब्बल रहा, परन्तु प्रश्नों का बौछार एक दम बन्द हो गया, उसके हाजिर जवाबी से सभा के लोग मात हो गये।

सब को चुप देखकर उम्मीदवार बादशाह की सम्मति कर एक प्रश्न अपनी तरफ से किया।

बादशाह ने दरबारियों को उत्तर देने के लिये उत्तेजित किया। उनका प्रश्न इस प्रकार था-‘‘किवाड़ बन्द करते समय उसमें चुरमुर चुरमुर शब्द किस कारण होता है,’’ यानी उसका भावार्थ क्या है?

सब लोग अवाक हो गये। उसकी शंका का समाधान करने में एक दरबारी भी समर्थ न हुआ। बादशाह उसकी बुद्धि की बड़ी प्रशंसा की और मन ही मन बोला-‘‘बहुत दिनों के बाद आज मुझे बीरबल सा निपुण दीवान मिला है।’’

उसके मन से बीरबल के अभाव की चिन्ता घट गई और दीवान के योग्य पोशाक पहना कर उसे बीरबल के स्थान पर नियुक्त करने का विचार प्रकट किया।

तब उम्मीदवार बोला-‘‘गरीबपरवर! मैं दीवान बनने की योग्यता नहीं रखता, कारण की जिस कार्य को वीरबल सा बुद्धि सम्राट निभाता था वह मैं कैसे निभा सकूँगा?

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Akbar ka Naya Deewan

बादशाह ने कहा-‘‘मैने बीरबल को निकाल दिया है जिस कारण वह चिढ़कर यहाँ से कही बाहर चला गया है। मैंने उसको बहुतेरा ढुढ़वाया पर उसका कहीं पता नहीं चलता, तब लाचार होकर दूसरा दीवान नियुक्त करने पर आमादा हुआ हूँ। जो मैं जानता कि बीरबल अमुक स्थान में है तो मैं यत्नपूर्वक उसे बुलवा लेता।

नये दीवान ने उत्तर दिया-‘‘हुजूर आपका प्रताप पृथ्वी के कोेने कोने में फैला हुआ है, यदि आप तनमय होकर उसका खोज कराते तो वह कभी का प्रगट हो गया होता।’’

बादशाह ने कहा-‘‘नहीं ऐसी बात नहीं है, मैने उसके लिये बहुतेरा प्रयास किया, परन्तु उसको ढूढ़ नहीं पाया। हाँ अब एक युक्ति और बाकी है, यदि काम में लाई जाय तो सम्भव है कि उसका पता चल जाय।’’

उम्मीदवार ने कहा-‘‘हुजूर! यदि वह किसी समय स्वयं आपसे आ मिले तो फिर आप क्या करेगे, उसे रखेंगे या कोरा लौटा देगे?’’

बादशाह बोला-‘‘हाँ, मैं उसके लिये बड़ा उत्सुक हो रहा हूँ।

तब नये दीवान ने कहा-‘‘गरीबपरवर मैं उसका पता जानता हूँ।

बादशाह बोला-‘‘यदि तुम उसको मिला दोगे तो में तुमसे बहुत प्रसन्न होऊँगा।’’

नये दीवान को जब भलो- भाँति विदित हो गया कि बादशाह को बीरबल प्राप्ति की बड़ी उत्सुकता है तो अपना साफा ऊपर को खिलकाते हुए अपनी ढकी आँखों को बाहर निकाल! और पाजामा और जामा दोनों उतार कर अलग रख दिया। नकली दाढ़ी उतार फेंकी। तब वह खासा बीरबल हो गया।

बहुत दिनों के बिछुड़े बीरबल को प्राप्त कर दरबारी गदगद हो गये बादशाह का तो क्या कहना, वह मारे आनन्द के विहल हो गया। सब तरफ से वाह वाही के शब्द आने लगे। बादशाह के पूछने पर बीरबल ने अपने गुप्त बास का इतिहास इस प्रकार वर्णन शुरू किया-

‘‘मालिक! आपके पास से जाने के पश्चात् मैं एक मास तक घर पर बालबच्चों के साथ बिताया और सब से बराबर मिलता जुलता रहा, उसके बाद शहर छोड़कर बाहर चला गया और गुप्त रूप से रहने लगा। मैं रात्रि में नगर रक्षा के निमित्त भेष बदलकर
गस्त लगाया करता था, इतने दिनों के अन्तर्गत मैंने कितने चोरों को पकड़ कर उनको चोरी छुड़ाई है। जब मैने जान लिया कि अब मुझे कोई दरबारी नहीं पहचान सकेगा तो गुप्त रीति से दरबार में आता और परोक्ष में यहाँ की निगरानी कर घर लौट जाता। इस प्रकार गुप्त वास का दिन काटता हुआ आपके सामने उपस्थित हुआ हूँ।

बादशाह बीरबल की इस तत्परता से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसको नवीन वस्त्र प्रदान कर फिर से दीवान पद पर नियुक्त किया।

यह समाचार नगर में चारों तरफ बिजली के समान फैल गया। प्रजा के लोग बीरबल के पुनः मिलने से बड़े प्रसन्न हुए और सब तरफ से बादशाह को बधाई के समाचार आने लगे।

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