सबसे प्यारी वस्तु Sabse Pyari Vastu ~ Akbar Birbal Short Story

Sabse Pyari Vastu _ Akbar Birbal Short Story

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “सबसे प्यारी वस्तु Sabse Pyari Vastu ~ Akbar Birbal Short Story” आइये जानते हैं ;

सबसे प्यारी वस्तु
Sabse Pyari Vastu ~ Akbar Birbal Short Story

एक दिन बादशाह जनाने महल में अपने सबसे प्रिय बेगम से कुछ बाते कर रहा था। बात बात में कोई ऐसा विषय आ गया जिससे बादशाह बेगम से नाराज हो गया और उसे आज्ञा दी कि तुम आज शाम तक महल खाली कर दो।

बेगम विचारी ने यद्यपि बादशाह के गुस्से को शान्त करने के लिये बहुतेरा प्रयास किया, परन्तु सब निष्फल गया।

बादशाह उसी क्रोधावेश में महल से बाहर चले गये। बेगम भय से थरथर काँपने लगी।

जब अपने बचाव के लिये बहुत मूड़मार कर भी कोई युक्ति न निकाल सकी तो उसका ध्यान बीरबल की तरफ गया।

उसने दास को भेजकर चुपके से बीरबल को महल में बुलवाकर अपना सारा हाल कह सुनाया।

बीरबल उसे एक गुप्त परामर्श देकर तुरन्त महल से बाहर आया और फिर दरबार के कामों को इस ढंग से मौन होकर करने लगा मानो उसे इसकी कुछ खबर ही नहीं।

जब थोड़ा दिन ढलने को बाकी रह गया तो बेगम ने कुछ सामानों के अलग अलग कई गट्ठर बाँधकर बादशाह को बुलवाया।

जब वे आये तोे बेगम ने बहुतेरा अनुनय विनय किया, परन्तु फिर भी बादशाह का मन पल्टा नहीं । वे बोले-‘‘अब समय नहीं है, सूर्यास्त हो रहा है अतएवं अपनी प्यारी सामग्रियों को लेकर फौरल मकान खाली कर दो।’’

बेगम बोली-‘‘स्वामी! जब आप मुझे त्यागते ही है तो मेरी एक अन्तिम प्रार्थना स्वीकार करे। मैं चाहती हूँ कि इस जुदाई के समय मेरे हाथ से एक गिलास शर्बत पान कर लें, अब जब मेरा सौभाग्य कहीं फिर से उदय होगा तब न मुझे आपका दर्शन मिलेगा।’’

बादशाह ने हामी भर दी।

बीरबल की चतुराई

बेगम एक प्याले में खूब अच्छी शराब भर लाई और बादशाह को अपने हाथों से पिला दिया।

थोड़ी देर में बादशाह शराब की नशें में ऊँघने लगा।

बेगम पहले ही से अपने नौकर को सावधान कर चुकी थी, वे बादशाह को ले जाकर एक पालकी में सुला दिया।

फिर बेगम भी एक दूसरी पालकी में सवार होकर बादशाह के सहित अपने पीहर चली गई।

वह बादशाह को एक पलँग पर सुलाकर आप स्वयं उसकी पहरेदारी करने लगी।

दूसरे दिन जब बादशाह की नींद खुली और नशे का झोका टूटा तो अपने को एक अपरिचित स्थान में पाया।

उन्हे सन्हेह हुआ-‘‘क्या मैं स्वप्न देख रहा हूँ?’’

बेगम सामने पंखा झल रही थी बादशाह ने उससे पूछा-‘‘क्या तुम बतला सकती हो कि मैं इस समय सोया हूँ अथवा जाग रहा हूँ।’’ बेगम ने उत्तर दिया-‘‘स्वामीनाथ! पहले आप सो रहे थे, परन्तु अब सबेरा होने पर आपकी निन्द्रा भंग हो गई है। उठिये हाथ मुँह धो लीजिये।

बादशाह बोले-‘‘पहले बतलाओ कि यह किसका महल है और हम कहाँ पर आये हुए हैं।’’

बेगम ने अपना दोनों हाथ जोड़कर कहा- ‘‘प्रभु! यह आप की ससुराल यानी मेरे पिता का घर है। मैं भी आपकी आज्ञा पालन करने के लिये यहाँ पर आई हूँ।’’

बादशाह ने फिर पूछा-‘‘तब मैं कैसे आया।’’

बेगम ने उत्तर दिया-‘‘स्वामी! आपने मुझे आज्ञा दी थी कि जो तुम्हारी सब से प्यारी वस्तु हो उसे अपने साथ लेती जाओ।’’ मैं ईश्वर की साक्षी देकर कहती हूँ कि महल भर में ही नहीं बल्कि समस्त संसार में आपसे बढ़कर मुझे कुछ भी प्यारा नहीं है। इसलिय मैं आपको अपने साथ लेकर यहाँ चली आई हूँ।’’

बेगम के ऐसे अनुराग को देखकर बादशाह को दया आ गई और उसके अपराधों की माफी दी। फिर अपने ससुर से मिल भेट सबकी राजी कर सास ससूर की अनुमति से उसी दिन बेगम के सहित अपने नगर को लौट आये।

कुछ दिनों के बाद जब फिर बेगम और बादशाह में भली भाँति प्रेम हो गया तो एक दिन ससुराल जाने वाली बात बादशाह के ध्यान में आ गई, तुरत बेगम से पूछा-‘‘प्रिये! क्या तू बतला सकती हो कि उस रोज तुम किसकी सम्मति से मुझे अपने पीहर ले गई थी।’’

बेगम ने उत्तर दिया-‘‘स्वामी! वह आपके चतुर दीवान बीरबल की युक्ति थी। उन्ही की कृपा से मुझे आप फिर से प्राप्त हुए हैं।’’ बादशाह बीरबल पर प्रसन्न होकर उसे बहुत धन्यवाद दिया।

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