पत्नी के बाल मुंडवा दूंगा। Patni Ke Baal Mundwa Doonga अकबर-बीरबल की कहानी

Patni Ke Baal Mundwa Doonga

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “पत्नी के बाल मुंडवा दूंगा। Patni Ke Baal Mundwa Doonga अकबर-बीरबल की कहानी” आइये जानते हैं ;

पत्नी के बाल मुंडवा दूंगा।
Patni Ke Baal Mundwa Doonga
अकबर-बीरबल की कहानी

दिल्ली नगर में एक बड़े सुप्रतिष्ठित और विद्वान ब्राह्मण रहते थे, उनके श्रेष्ठाचरण से दरबार में उनका बड़ा सम्मान था। पंडित जी का स्वभाव था कि वे बिना समझे बूझे किसी कार्य में हाथ नहीं डालते थे और जिस बात को मुख से एक बार कह देते उसको प्राणप्रण से पालन करते थे। पंडित जी की इसी बात से सभी भयभीत रहते थे।

एक दिन ऐसो घटना घटी, जब पंडित जी चौके मेें मैं बैठकर भोजन कर रहे थे। उनकी थाली में परोसे खाद्य पदार्थ मैं एक बाल निकला जिस कारण पंडितजी को बड़ा रंज हुआ और अपनी स्त्री को संबोधित कर बोले-‘‘देखो! आज तो मैं तुम्हारी पहली चूक के कारण तुम्हें क्षमा करता हूँ, परन्तु फिर यदि ऐसी असावधानी करोगी (खाद्य पदार्थ में बाल निकलेगा) तो तुम्हारे शिर के बाल मूड़ लूँगा।’’

‘‘हरि इच्छा भावी बलवाना।’’ यद्यपि विचारी स्त्री अपने स्वामी का जिद्दी स्वभाव समझ कर बराबर भयभीत रहा करती थी और भोजन बनाने या परोसने के समय अपने बालों कों खूब सम्हार कर बाँधे रहती है।

कुछ दिनोपरान्त एक दिन जब पंडितजी फिर भोजन करने बैठे तो उनकी खाद्य सामग्री में एक बाल निकला, पंडितजी बहुत नाराज हुए और अपने स्त्री का बाल मुड़ा देने के लिये नाई को बुलवाया।

अपने स्वामी को नितान्त क्रोधित देखकर स्त्री ने भीतर से किवाड़ बन्द कर लिया। पंडित जी ने हजार डाट फटकार सुनाई परन्तु स्त्री ने किवाड़ नहीं ही खोला। इतना सब हो जाने पर भी पंडित जी अपनी जिद्द पर तुले ही रहे।

बीरबल की पारखी नजर

स्त्री ने सोचा ‘‘अब इस प्रकार काम चलना कठिन दिख पड़ता है, कोई उपाय तत्काल करनी चाहिये। उसने एक आदमी को पीहर भेजकर अपने भाइयों को सहायता के लिये बुलवाया।

उसके चार भाई थे, अपनी बहिन को इस प्रकार अपमानित होते सुन उन्हे अपने बहनोई के हठवादिया पर बड़ा खेद हुआ और उसको बचाने का उपाय सोचने लगे।

इतने में उसके बड़े भाई को बीरबल से पुराना परिचय होने का स्मरण हो आया। वह तत्क्षण बहन को पंडित जी के क्रोध से बचने का उपाय पूछने के लिये बीरबल के घर पहुँचा।

उस समय बीरबल चारपाई पर पडे़ पडे़ पुस्तक पढ़ रहा था, अपने मित्र का सन्देशा सुन उसे पास बुलाकर उसका कुशल समाचार पूछा। वह अपने बहिन की दुर्दशा का पूरा कारण बतलाकर बोला-‘‘मैं आपसे अपने बहिन को बचाने की तरकीब पूझने आया हूँ। मेरी मदद कीजिये।’’

बीरबल बोला-‘‘तुम चारो भाई नंगे सिर (सिर मुड़वाकर) अपने बहनोई के पास इस ढ़ंग से जावो मानों कोई मर गया हो, तब तक मैं भी आ पहुँचता हूँ।

उधर पंडितजी स्त्री के द्वार न खोलने पर क्रोधित होकर नौकरों से कहा-‘‘अभी बढ़ई को बुला कर दरवाजे को तोड़ डालो।

इसी बीच चारो भाई भी नंगघड़ंग सिर खोले आ पहुँचे। इनके आने के थोड़ी देर पश्चात बीरबल भी शवदाह का सब सामान लिये हुए आया और पंडितजी के द्वार पर टिकठी बाँधने लगा।

उधर स्त्री के भाइयों ने पंडितजी को जबरन चारो तरफ से कपड़े से ढक कर कफन यात्रा प्रारम्भ कर दी, जब पंडितजी ने झटपटाना शुरू किया तो वे चारों भाई क्रोधित होकर बोले-‘‘खबरदार! चुपचाप पडे़ रहो, बिना पहले तुम्हे कफनियाये किसकी मजाल है जो मेरी बहन को हाथ लगाये।’’

वे पंडितजी को बाँध कर बीरबल के पास ले गये। इस नवीन कौतूहल को देखने के लिये वहाँ पर आदमियों की जमघट सी लग रही थी। अपने पड़ोसियों के सामने अपनी ऐसी दुर्गति देख पंडितजी का शिर लज्जा के बोझ से दब गया और अपनी रहाई के लिये चारो सालों से अनुरोध करने लगे।

उनकी स्त्री समीप की कोठरी से छिपकर सारी घटना देख रही थी, पति को भाइयों से गिड़गिड़ाते देख उसे दया आ गई और उसका पवित्र हृदय धर्म-सागर में गोते मारने लगा।

बीरबल के कुटुंब की परीक्षा

स्त्री ने कहा-‘‘चाहे जो हो, मैं पति की ऐसी दुर्दशा अपनी आँखों नही देख सकती। वह मेरा देवता है, उसके कोप करने से मेरा सर्वनाश हो जायगा। वह कपाट खोलकर बाहर आई और अपने भाइयों से उसे छोड़ देने का आग्रह करने लगी।

भाइयों को बहन की बातों परअमल न करते देख बीरबल स्वयं उनसे क्षमा-प्रार्थी हुआ और उसके पति को छोड़ देने की आज्ञा दी।

पण्डितजी छोड़ दिये गये।

अन्त में उन्हें अपनी हठधर्मीं पर पड़ा पश्चाताप हुआ।

इस स्वॉग से बीरबल का अभिप्राय था कि पति के जीवितावस्था मेें स्त्री का मुंडन नहीं हो सकता था। पहले पति मर ले तो स्त्री का मुंडन किया जाय। बीरबल पंडितजी को छोड़वा और उनकी स्त्री का कष्ट निवारण कर लौट गया। चारो भाई अपनी बहन के घर मिहमानी करने के लिये टिक रहे।

धन्य है हमारी उन भारत की स्त्री को जो कठिन संकट आने पर भी पतिव्रत की रक्षा करती है। ऐ देवियों! पति से कष्ट उठाकर भी पति सेवा करना तेरा ही काम है!

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