सेर भर मांस ~ Birbal ki Budhimani Ki Kahani ~ Birbal’s Wisdom Story in Hindi

Birbal ki Budhimani Ki Kahani

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “सेर भर मांस (वज़न का माप)~ Birbal ki Budhimani Ki Kahani ~ Birbal’s Wisdom Story in Hindi” आइये जानते हैं ;

सेर भर मांस
Birbal ki Budhimani Ki Kahani

दिल्ली शहर में दीनदयाल नामी एक पुराना व्यापारी रहता था। उसका कारोबार बहुत बड़ा था जिस कारण उसकी ख्याति दूर देशों तक फैली थी।

एक समय की बात है उसको आर्डर मिला, जिसमें काफी सारा पैसा लगना था और उसके पास रुपये आने में तीन चार दिनों की देर थी। जो कुछ पास था उसको जमा करने पर भी पांच लाख रुपये कम पड़ रहे थे।

जब दीनदयाल को मौके पर रुपए प्रबन्ध होना असम्भव दीख रहा था तो रूपये की तलाश में बाहर निकला। उस समय नगर में एक महाजन के अतिरिक्त ऐसा दूसरा कोई भी बड़ा महाजन नहीं था जो एकमुस्त पाँच लाख थैली उधार देता।

दीनदयाल ने उसी से कर्ज लेकर आर्डर पूरा करने का निश्रचय किया। वह साहूकार महाजन बड़ा धूर्त, और चालाक था, परन्तु लाचार, कोई दूसरी सूरत न पड़ने पर दीनदयाल को उसके द्वार पर कर्ज के लिए जाना पड़ा।

दीनदयाल ने उस महाजन से बारह दिन की अवधि पर पाँच लाख रुपये कर्ज माँगा। उसे विश्वास था की उपरोक्त समय के अन्दर उसके पास बहुत सा रूपया आ जावेगा।

उधर महाजन भी एक व्यापारी था जो दीनदयाल को नष्ट करने की चेष्टा में लगा रहता था कारण था उसका और दिनदयाल का व्यापारिक द्वेष। दीनदयाल का कारोबार इतना बड़ा और संपन्न था कि उसके आगे अनय व्यापारियों को व्यापार चलाना कठिन हो रहा था।

ऐसी ईर्ष्या वश केशवदास उसको अपने पंजे में फाँस लेना चाहता था। उसे विश्रवास था कि यदि वह रुपये न देगा तो दीनदयाल की इतनी ख्याति है कि कही न कहीं से रूपये अवश्य प्राप्त कर लेगा।

सुअवसर आया देख उसने अपनी दुष्ठ प्रकृत्यानुसार एक तरकीब खूब सोच विचारकर निकाली और दीनदयाल से बोला ‘‘महाशय जी! आज आप कर्ज लेने के विचार से पहले पहल मेरे द्वार पर आये हैं अतएवं मैं इतने अल्प समय के लिये रूपयों का सूद लेना उचित नहीं समझता, परन्तु इसके साथ आपको भी मेरी एक शर्तें माननी पडे़गी।

यदि आप एक हफ्ते में मेरे रुपये वापस न कर देंगे तो मैं अपने हाथ से आपके शरीर के किसी भी भाग से एक सेर मांस काट कर निकाल लूँगा।’’

दीनदयाल ने रूपया लौटाने का पहले ही से इतना थोड़ा समय रखा था कि उसके अन्तरगत उसका लौटाया जाना कठिन था। अब तो मारवाड़ी ने तीन दिनों, की अवधि और कम कर दी। परन्तु कोई दूसरी सूरत न देख दीनदयाल को लाचार होकर मारवाड़ी के शर्तंनामे पर हस्ताक्षर कर रूपये लेने पड़े।

घर पहुँच कर उन रूपयों से उसने आर्डन की रकम अदा कर दी। लेनदान रूपये पाकर लौट गये और ईश्वर की कृपा से उसकी धाक जस की तख बनी रही।

दीनदयाल को किसी कार्य विशेष के कारण एक दूसरे नगर को जाना पड़ा। जब लौट कर घर आया तो उसको मारवाड़ी के रूपये चुकाने की बात याद आई। इसने अल्प कर्ज देने के समय तक उसके पास पैसे जमा नहीं हुए लेकिन फिर भी इधर उधर से संग्रह कर सूद के सहित रूपये कर उसके पास गया।

मारवाड़ी तो एक सेर मांस का भूखा था, वैसे भी वो दीनदयाल को अपने रास्ते से हटाना चाहता था, इधर शर्तनामे की तिथि भी बीत चुकी थी इसलिये महाजन रूपया लेने से साफ इनकार कर दिया और शर्तनामे के अनुसार उससे एक सेर मांस माँगा।

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Birbal ki Budhimani Ki Kahani

दीनदयाल बाहर जाकर अस्वस्थ होग या था अब मांस देने की चिन्ता से और भी बीमार हो गया। बीमारी के बहाने से टाल मटोल में दो तीन दिन का समय और निकल गया।

जब महाजन ने देखा कि इस प्रकार काम बनना कठिन है तो वह शर्तनामे को लेकर अदालत पहुंच गया।

दीनदयाल को अदालत का नोटिस आया। वह लाचार होकर बीमारी की हालत में पालकी में बैठकर न्यायालय में उपस्थित हुआ।

मुकदमा पेश हुआ, काजी ने दीनदयाल से पूछा-‘‘क्या इस शर्तनामे के मुताबिक तुमने इस मारवाड़ी से एक हफ्ते की मुद्दत पर पाँच लाख रूपये उधार लिये हैं? शर्तनामें में लिखा है ‘‘कि यदि निर्धारित समय के अन्तर्गत रूपये न चुका सकोगे तो मारवाड़ी के इच्छानुसार तुम्हें अपने शरीर के किसी भाग का एक सेर मांस देना पडे़गा।

वह इतना बिख्यात व्योपारी होकर झूठ नहीं कहना चाहता था। इसलिये बोला- ‘‘साहब! शर्तनामे की बात सही है, उस समय मुझ से और मारवाड़ी से ऐसी ही शर्तें तयँ थीं, परन्तु इस समय मैं मय सूद के इसका रूपया अदा करने को प्रस्तुत हूँ। परन्तु यह रूपया लेने से इन्कार कर मेरे से एक सेर मांस मांगता हैं। सरकार इस पर भलीभाँति विचार कर उचित न्याय करें।’’

साहूकार और दीनदयाल के अन्तरगत तय पाई शर्तों को सुनकर काजी बोला-‘‘इसका न्याय अब हमारे बूते का नहीं हैं, न्याय तो तुम्हारा शर्तनामा ही कर रहा है। मैं हुक्म देता हूँ कि यह मारबाड़ी इसी समय आपके शरीर का एक सेर मांस अपनी इच्छानुसार काटकर ले लेवे।’’

दीनदयाल के रहे सहे होस हवास भी जाते रहे। बड़ा चिन्तित हुआ अन्त में कुछ सोच समझकर काजी से बोला- ‘‘मै इस मामले को बादशाह के पास ले जाऊँगा, काजी को लाचार होकर उसकी अर्जी मंजूर करनी पड़ी। उस मारवाड़ी को एक महीने की मुद्दत देकर काजी ने अपना काम समाप्त किया।

दीनदयाल दूसरे ही दिन बादशाह के दरवार में जा पहुँचा, और बादशाह को अदब से सलाम कर एक तरफ लगे आसन लगाकर बैठ गया।

उस समय बादशाह अपने फौज का प्रबन्ध कर रहे थे। जब वह काम शेष हो गया तो उनकी दृष्टि दीनदयाल पर पड़ी। उसका चेहरा उतरा हुआ देखकर बादशाह ने उसके उदासी का कारण पूछा।

दीनदयाल अपने और मारवाड़ी के बीच जो कुछ मामला चल रहा था बादशाह को कहकर समझाया। यह एक नवीन घटना थी, सुनकर बादशाह दंग हो गया। वह इस सौदागर को भलीभाँति जानता था, वह दिल्ली नगर का बहुत प्राचीन व्यापारी था। उसने अनेक अवसरों पर अपना तन मन धन लगाकर सरकारी सहायता की थी जिस कारण बादशाह को उसकी दशा पर बड़ी दया आई और उसकी रक्षा का भार स्वयं अपने शिर लिया।

तत्क्षण साहूकार को घर जाने की आज्ञा देकर आप दीवानखाने में पहुँचे। बीरबल स्वागत के लिये अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और बादशाह उसकी बगल में एक कुर्सी पर जा बैठे। दोनों में अन्तरंग गोष्टी होने लगी।

बादशाह बीरबल को दीनदयाल का सारा कच्चा चिट्ठा सुना कर बोला-‘‘बीरबल! इस साहूकार का न्याय ऐसी युक्ति से करो, जिसमें उसकी जान बचे और अन्याय भी न हो, मैं इसकी इस हालत पर बड़ा चिन्तित हो रहा हूँ।

बीरबल बोला-‘‘हुजूर! चिन्ता करने की कोई बात नहीं है आपकी आज्ञा का यथोचित पालन करूँगा।

उधर वे बीरबल को समझा कर अपनी सभा में पहुँचे इधर बीरबल उसके छुटकारे की तरकीब सोचने लगा। एकाएक उसका चेहरा प्रफुल्लित हो गया और फिर अपने कार्य में दत्तचित्त हुआ।

उधर केशवदास मारबाड़ी को भी नींद नहीं आती थी, वह तो दीनदयाल के पीछे हाथ धोकर पड़ा हुआ था पाँच छः दिनों की मुहलत देकर फिर बादशाह की अदालत में दावा दायर किया-‘‘शर्त के मुवाफिक अदालत दीनदयाल से उसके शरीर का एक सेर मांस दिलवा दे।’’

बीरबल इस अभियोग को न्यायाधीश बनाया गया। वह बादशाह की आशा स्वीकार करते हुए बोला-‘‘हुजूर! मैं यथाशीघ्र इसका न्याय करने का प्रयत्न करूँगा।’’

बादशाह के चार प्रश्न

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वह मारबाड़ी को एक ओर बैठाकर दीनदयाल को बुलाने के लिये एक कर्मचारी को भेजा। जब महाजन आया तो बीरबल ने पूछा-‘‘क्या तुम्हे अपना कर्ज लेना मंजूर नहीं है? मारबाड़ी रूपया लेना नहीं चाहता था इससे साफ इनकार कर दिया।

तब बीरबल ने कहा -‘‘मुझे काजी का फैसला शर्तनामे के अनुसार स्वीकार है अतः मारबाड़ी को हुक्म देता हूँ कि सौदागर के शरीर से एक सेर मांस का टुकड़ा अपने हाथ से निकाल ले, परन्तु ध्यान रहे, अगर टुकड़ा जरा भी छोटा बड़ा हुआ तो तुम्हेंकड़ी सजा दी जायेगी और घर बार तथा तुम्हारा सारा धन जब्त कर लिया जायगा।’’

इस बात से मारबाड़ी दहल गया और उससे कुछ उत्तर देते न बना। बीरबल उसे चुप देखकर जबाव के लिये उत्तेजित करने लगा।

तब वह बोला- दीवान जी! मुझे माँस लेने की खाहिश नहीं है, मैं केवल पाँच लाख रूपये लेकर अपने मामले को उठा लेना चाहता हूँ, सूद भी छोड़े देता हूँ।’’

बीरबल ने कहा-‘‘यह हरगिज नहीं हो सकता, तुम्हें मांस का टुकड़ा ही लेना पड़ेगा, क्योकि पहले तूँ साहूकार से रूपये लेना नामंजूर कर चुका है।’’ यदि तूँ शर्तनामें के अनुसार माँस न लेगा तो राजाता भंग करने के अपराध में तुझे सात लाख रूपये जुर्माने के ओर देने पड़ेगें। इस बार खूब सोच समझ कर उत्तर दो, दोनों बातों में किसे मंजूर करते हो और किसे नामंजूर?

मारबाड़ी गरदन नीची करके बोला-‘‘दीवान जी! मुझे कुछ भी नहीं चाहिये।’’

बीरबल ने कहा-‘‘जो तू अब कुछ भी नहीं लेना चाहता तो तुझे पहले की राजाज्ञा न मानने के अपराध में सात लाख रूपये दण्ड देने पडेगे, और दूसरा अपराध यह है कि तू ने दीनदयाल को कष्ट पहुँचाने की नीयत से उसके शरीर का मांस काट लेने की शर्त करायी थी, इस कारण चार साल की सजा और भुगतनी पडेगी।’’

मारबाड़ी का होश ठिकाने न रहा। राजदूतों ने बीरबल की आज्ञा से महाजन कोपकड़ लियाऔर उसी क्षण जेलखाने में बन्द कर दिया गया।महाजन के घर वालों से सात लाख रूपये बसूल किये गये।

बीरबल के इस न्याय को सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और बीरबल केबुद्धिमानी की प्रशंसा की।

चूँकि दीनदयाल नेक नीयती कर पहले ही उसके पास रूपये भेज दिये था, इसलिये उसकी दुकान की प्रतिष्ठा रखने के लिये बादशाह ने उसको पारितोषिक देकर विदा किया। जो रूपये मारबाड़ी से दंड में लिये गये थे वह बीरबल को मिले।

बीरबल की पारखी नजर

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