ईमानदारी का व्यापार ~ Business Of Honesty | Akbar Birbal Hindi Story With Moral

Business Of Honesty | Akbar Birbal Moral Story

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बुद्धिमत्ता की कहानी “ईमानदारी का व्यापार ~ Business Of Honesty | Akbar Birbal Hindi Story With Moral ” आइये जानते हैं ;

ईमानदारी का व्यापार Business Of Honesty

Akbar Birbal Hindi Story With Moral

दिल्ली नगर व्यापारों का केन्द्र था इसलिये वहाँ बहुत से व्यापारी रहते थे। घी के दो व्योपारियों में कुछ अनबन हो गई। इसलिये उनमें से एक व्यापारी बादशाह के पास पहुँचकर बोला-‘‘हुजूर! अमुक व्यापारी मुझसे पांच सौ मुद्राएं कर्ज लेकर अब देने में आना कानी करता है। उसकी नीयत रुपए देने की नहीं है।’’

बादशाह ने न्याय के लिये उन्हें बीरबल के पास भेज दिया। व्यापारी बीरबल से मिला तो बीरबल ने दूसरे व्यापारी को भी बुलवा लिया। जब वह आया तो पहले व्यापारी का अभिशाप पढ़कर सुनाया। तब वह व्यापार बोला-‘‘हुजूर को मालूम हो कि हम दोनों एक ही चीज के व्यापारी हैं इससे व्यापारिक प्रतिस्पर्था के कारण वह मुझसे बेर मानता है और मेरे व्यापार में नुकसान पहुँचाने की नीयत से आपके पास झूठा अर्जीदावा लेकर आया है, इसकी जाँच कराने पर आपको स्वयं झूठ सच का पता चल जायगा, इस संबन्ध में, मै और कुछ कहना नहीं चाहता।

बीरबल ने उसकी बात मानकर उसको घर जाने की मुहलत दी। फिर पहले व्यापारी को बुलाकर बोला- ‘‘इस मामले में आपको अभी खामोश रहना पडे़गा, समय पाकर मैं इसका उचित न्याय करूँगा। अभी आप इस ढंग से रहे मानो कुछ हुआ ही नहीं है।

वह बीरबल की बात मानने को लाचार था, चुपचाप अपने घर चला गया।

व्यापारियों के झगड़े का न्याय करना बीरबल को याद रहता था और वह उसी बारे में सोच रहा था, सोचते सोचत एक दिन उसे एक नई युक्ति सूझी।

बीरबल की चतुराई

Business Of Honesty | Akbar Birbal Hindi Story With Moral

बजार से चार घी से भरे कुप्पे मँगवाये गये जिनमें कुछ अलग अलग निशान बनाकर दो खाँस कुप्पों में एक-एक मोहरे डाल दी। फिर दोनों व्योपारियों को बुलवाकर बोला-‘‘देखो यह चार घी क कुप्पे मेरे पास बहुत दिनों से पडे़ हुए हैं अब इनके नष्ट होने का भय है, तुम दोनों इसमें से एक एक कुप्पा अपने साथ ले जाओ, बाकी दो कुप्पे मैं दूसरे व्यापारियों को बेच दूँगा। कुप्पों को बाजार में उचित दाम पर बेचकर जो मिले उसमे से अपना नफा निकाल शेष मूल्य मेरे हवाले करना।’’

पहले वाले व्यापारी ने तो कुछ इतराज न किया, परन्तु दूसरा व्योपारी ;यानी प्रतिवादीद्ध बोला-‘‘दीवानजी! इतने थोड़े घी के लिये चार व्योपारियों का क्या काम है,\ आप एक ही को चारो सुपुर्द कर दें। वह बेचकर सबका मूल्य एकमुस्त अदा कर देगा।’’

बीरबल ने जबाव दिया-‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, हमारे लिये सभी समान हैं और हमें सबका ध्यान है। तुम एक एक कुप्पे अपने साथ ले जावो बाकी मैं दूसरों के हवाले करूँगा।

बीरबल उन दोनों को दोनों गुप्त निशान वाले कुप्पे देकर बिदा किया। घी कुछ बिगड़ा हुआ था व्यापारियों ने सोचा कि बिना तपाये इसका ऐब दूर न होगा। इसलिये पहले व्यापारी ने कुप्पे को तपाना शुरू किया।

जब घी पिघल गया तो उसे एक बड़े कढ़ाई में छोड़कर खराया। जब उसके मर्जी के अनुसार घी एक दम तैयार हो गया और उससे सुगन्धि आने लगी तो उसने फिर घी को
उसी कुप्पे में भरना प्रारम्भ किया। जब घी पेनी में पहुँचा तो किसी चीज के खड़कने की आवाज सुनाई पड़ी। उसे बाहर निकाल कर देखा तो वह अकबरी मुहर थी। पहला व्यापारी मन में सोचने लगा-‘‘यह मुहर बीरबल की है भूल से इस में आ पड़ी है।उसकी वस्तु उसी को देना सही है।’’ व्यापारी मुहर को लेकर बीरबल के पास पहुँचा और उसकी मुहर उसे देकर अपने घर लौट आया।

बीरबल मुहर पाकर सोचने लगा-‘‘यह व्यापारी सच्चा है।’’

भाग्य बड़ा है कि मेहनत

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दूसरे व्यापारी के कुप्पे से भी उसी प्रकार मुहर निकली, प्ररन्तु उस लालची को सोना देखकर लोभ समा गया उसे अपने जेठे पुत्र को देकर बोला-‘‘इसकोे यत्न से अपने पास रखो, जरूरत पड़ने पर लौटा देना।

इधर जो कुप्पे बिना असरफी के थे दूसरे दो व्योपारियों को देकर बीरबल बोला-‘‘इसे बेचकर चौथे दिन सबके साथ मूल्य लेकर हाजिर होना।’’

इस प्रकार यत्र तन्त्र कुप्पों को बेचने और धन संग्रह करने में चारो व्यापारी जा लगे।

जब रुपया जमा करने की निश्चित तिथि आई तो वे सभी रूपये लेकर बीरबल के पास आये।

बीरबल ने तीन व्यापारियों का द्रव्य सहेज लिया जब चौथे को ;प्रतिवादी कीद्ध बारी आई तो उसका द्रव्य सहेजते हुये बोला-‘‘तुम्हारे कप्पे मे अन्य व्यापारियों से अधिक घी था यानी तीन में तों एक मन था, परन्तु तुम्हारे कुप्पे में सवा मन था।’’

बीरबल की यह बात सुनकर प्रतिवादी घबड़ा गया और बोला-‘‘हुजूर क्या कह रहे हैं, मेरे कुप्पे मे भी एक ही मन था। गरमाते और तौलते समय उस जगह मेरे घर के और प्राणी भी मौजूद थे, आपको विश्वास न हो तो उनको बुलवाकर जाँच कर लें, घी की वजन सबके सामने की गई थी।’’

बीरबल अपने एक सेवक के कान में कुछ समझाकर बोला-‘‘तू उसके लड़के से जाकर कहो कि तुम्हारा बाप कुप्पे से निकली अशर्फी का तुरत माग रहा है, तू उसे अभी लेकर मेरे साथ चल।’’

वह कर्मचारी जाकर व्यापारी के लड़के से बोला-‘‘तेरा पिता बादशाह की सभा में बैठा है घी के कुप्पे से निकली अशर्फी लेकर तुझे बुलाया है, लड़का सेवक के साथ चल दिया।

अपने पुत्र को एकाएक दरबार में उपस्थित देख व्यापारी चिन्ताग्रस्त हुआ, परन्तु विवश था, बीरबल के सामने उससे कुछ कह भी नहीं सकता था।

बीरबल ने लड़के से पूछा-‘‘क्या तुम मुँहर लेकर आये हो?’’ ‘‘जी हाँ!’’ कहता हुआ लडका पिता के सामने ही मुहर को बीरबल के हवाले किया।

बीरबल के कुटुंब की परीक्षा

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बीरबल ने कहा-‘‘वाह, क्या ख्ूाब, यह तो एक ही मुँहर है और तुम्हारा पिता बतलाता था कि उस घी के कुप्पे से इसी तरह की चार मुँहर निकली है।’’

लड़का बाप की तरफ देखकर बोला-‘‘पिताजी! चार मोहर कब निकली थीं, आपने तो मुझको यही एक मुहर दिया था न।’’

पिता इशारे से पुत्र को दवाते हुए बोला- ‘‘भला यह तू क्या कहता है, कुप्पे से कब मुहर निकली थी?’’

लड़का बिचारा भला अपने बाप की मंशा क्या जानता था, वह विनम्रतापूर्वक बोला-‘‘क्यों पिताजी! जब घी का कुप्पा तपाया जा रहा था तो उसमें से एकही अशर्फी निकाली थी न।’’

बाप बोला-‘‘लोग अपनो से ही हारते हैं।’’ फिर गुस्सा मन में मार कर कहा-‘‘तू इतना बड़ा हुआ परन्तु अभी तक तुझ में किसी बात की समझ न आई, भला तू मेरे व्यापार को कैसे कायम रखेगा?’’

इसी तरह बाप बेटों में कुछ देर तक गपड़चौथ होती रही। तब बीरबल बोला- ‘‘यह तुम्हारा घरेलू चरखा फिर चलता रहेगा अब साफ साफ बयान करो कि तुम्हें इस व्यापारी का उधार लिया रुपया देना मंजूर है या नहीं?

बीरबल की बात का दूसरे व्यापारी ने कुछ उत्तर नहीं दिया। तब भीतर से चिढ़कर बीरबल बोला-‘‘तू अब पट्टी पढ़ाकर मुझे धोखा नहीं दे सकता। जब एक मुहर के लिये ईमान छोड़ रहा है तो भला पाँच सौ की गठरी कब न दबाना चाहेगा।’’

बीरबल तो इतना कह गया, परन्तु व्यापारी को जू तक न रेंगी, इसकी घृष्टता देखकर बीरबल एक दम खिझला गया और एक सिपाही को तुरत आज्ञा दी-‘‘इस झूठे को अभी सौ कोड़े लगाओ।’’

सिपाही कोड़ा लेकर मारने को तैयार हुआ, इस बीच व्यापारी का लड़का फिर बोल उठा-‘‘वाह पिताजी! अभी उस दिन तो आप स्वयं कह रहे थे कि इस महाजन का मुझे पाँच सौ का ऋण चुकाना है, परन्तु चिन्ता की कोई बात नहीं है इस समय रुपए मेरे पास मौजूद हैं, किसी दिन चुका दूँगा। तब आप उन रूपयों को इसे क्यो नहीं दे देते?’’

लड़के की सम्यता देखकर बाप ने हार मान ली और बीरबल के सामने उन रूपयों को चुका देना स्वीकार किया।

किसी ने सत्य कहा है – ‘‘ मार के आगे भूत भागता है।’’ न सौ कोड़े की नौबत आती न रूपया बरामद होता।

बीरबल ने तत्क्षण मुहई के रूपयों को दिलवा दिया और प्रतिवादी को सजा देकर रूपया मारने के अपराध में जेल भेज दिया।

मुहई अपना धन पाकर बड़ा हर्षित हुआ और बीरबल के न्याय की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगा।

फिर बीरबल अन्य व्योपारियों को चिताकर बोला-यहाँ पर आप लोग अधिकतर व्यापारी ही उपस्थित है, सबको यह याद रहे कि ईमानदारी से व्यापार करें, बुरा करेगें तो उसका परिणाम बुरा निकलता है।

यह लड़का ;(सरे व्यापारी का बेटा) अभी तक बड़ा ईमानदान है, यदि इसको बुरों की संगत न होगी और धोकेवाजों का असर न आयेगा, तो आगे चलकर इसका व्यापार
तरक्की पर रहेगा।’’ फिर लड़के को शाबाशी देकर उसे सदैव सच बोलने की शिक्षा देकर बिदा किया। अन्य तीनों व्यापारी भी बीरबल की आज्ञा पाकर घर लौट गये।

बादशाह के चार प्रश्न

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