काठ का उड़न घोड़ा ~ Wooden Flying Horse | Lok Kathayen | लोक कथाएँ/कहानियाँ

Wooden Flying Horse - Lok Kathayen

दोस्तों Lok Kathayen लोक कथाएँ/कहानियाँ की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं मजेदार लोक कथा काठ का उड़न घोड़ा ~ Wooden Flying Horse | Lok Kathayen .. आइये जानते हैं !

काठ का उड़न घोड़ा
Wooden Flying Horse | Lok Kathayen

पाटन नगर में कपूरसिंह नाम का एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर भी उसके कोई पुत्र न हुआ था, इसलिए ब्राह्मणों और पढ़ितों के कहने पर उसने भगवान शिव की आराधना प्रारम्भ की ।

कुछ दिन बाद शिवजी की कृपा से उसके यहाँ एक बहुत सुन्दर बालक ने जन्म लिया।

सातवें वर्ष राजकुमार को एक पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया । वहाँ एक बढ़ई के लड़के से उसकी बहुत गहरी मित्रता हो गई ।

उन दोनों में इतना अधिक प्रेम बढ़ गया कि राजा और दरबारियों को बड़ी चिन्ता हुई, और वे उन्हें एक दूसरे से अलग करने का उपाय सोचने लगे। किन्तु राजकुमार किसी की बात भी नहीं सुनता था । उसने सबसे कह रखा था कि यदि कोई मेरे मित्र का अपमान करेगा और उसे नाराज करेगा तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा ।

आखिर बढ़ई का लड़का राजकुमार का गहरा मित्र था सो बढ़ई के लड़के ने ही अपनी बुद्धिमानी से राजकुमार से अलग होने की एक तरकीब सोची । वह उसकी आज्ञा लेकर बढ़ई का काम सीखने के लिए किसी दूर नगर में चला गया ।

राजकुमार को इससे दुख तो बहुत हुआ, लेकिन उसने अपने मित्र की भलाई का ख्याल करके उसे जाने की आज्ञा दे दी ।

जाते हुए उसने बढई के लड़के से यह प्रतिज्ञा करा ली कि वह लौटते हुए उसके लिए कोई आश्चर्यजनक वस्तु लेकर लौटे ।

बढ़ई का लड़का किसी अच्छे गुरु की खोज में इधर-उधर भटकता रहा । दूर बहुत
दूर, नदी-नाले पार करके, कई गॉवों, वस्तियों और शहरों को लाघ कर वह एक नगर में पहुँचा, जहॉ एक बहुत वड़े शिल्पी से उसकी भेंट हुई ।

शिल्पी ने बहुत प्रेम से बढ़ई के लडके को अपने पास रखा, और काम सिखाने लगा।

आठ वर्ष तक लगातार मेहनत करने के बाद वह एक निपुण कारीगर हो गया । शिल्पी ने एक दिन उससे कहा, ‘‘अब तुम अपने घर जाकर घन और प्रसिद्धि प्राप्त कर सकते हो ।’’

बढ़ई के लड़के ने उत्तर दिया– ‘‘मैं अपने नगर में तब तक नही घुस सकता, जब तक कि अपने प्यारे मित्र राजकुमार के लिए कोई आश्चर्यजनक चीज न ले र्जाऊँ ।’’

शिल्पी उसे तुरन्त गोदाम में ले गया, और उसने उसे एक खूबसूरत, काठ का उड़ने वाला घोड़ा दिया, जो घुमावदार पेंचों की सहायता से आकाश में उड़ता था।

शिल्पी ने घोड़े को उड़ाने और रोकने की तरकीव उसे सिखा दी ।

गधे की हजामत

Wooden Flying Horse | Lok Kathayen In Hindi

घोड़ा पाकर बढ़ई का लड़का बहुत खुश हुआ और ड्डतज्ञ-हृदय से अपने नगर को लौटा, जहॉ उसका खूब धूमघाम से स्वागत किया गया ।

युवक बढ़ई ने वह घोड़ा अपने मित्र राजकुमार को दिखलाया।

दूसरे दिन सुबह वे दोनों घोड़े की परीक्षा के लिए एक बाग में गए । राजकुमार घोड़े की पीठ पर सवारहो गया और उसका ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने लगा।

न जाने कब और कैसे उसकी उंगली असली पेंच को छू गई । घोड़ा बड़े जोर से ऊपर आकाश की ओेर उड़ा, और साथ ही राजकुमार को भी ले गया।

बढ़ई का लड़का भोंचका सा मुॅह बनाए आकाश कीओर ताकता खड़ा रह गया।

कुछ देर वाद राजकुमार की खोज के लिए चारों तरफ दौड़-धूप होने लगी । बढ़ई के लड़के ने सारी घटना कह सुनाई, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हुआ, और सन्देह में
उसे पकड़ कर जेल मे डाल दिया गया ।

इधर आकाश मे उढ़ते हुए राजकुमार ने हर तरह से कोशिश की कि किसी प्रकार घोड़े की तेज चाल कम हो जाए, लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली ।

अन्त में बहुत देर बाद अचानक उसका हाथ ऐसे पुर्जे पर पढ़ गया, जिससे कि उड़ता हुमा घोड़ा रुक गया, और कनकपुर में जाकर टिका।

फैसला सूझबूझ का

Wooden Flying Horse | Indian Lok-Katha

प्रथ्वी पर उतर कर राजकुमार को पास ही एक छोटा-सा सुन्दर बंगीचा दिखाई पड़ा । वह उसी मे घुस गया, और पेड़ की शीतल छाया में पड़ कर सो गया ।

बगीचे मे राजा की मालिन रहती थी । उसने सोते हुए राजकुमार को जगाया ओर उसकी दुःख भरी कद्दानी सुन कर पुत्र की भांति उसे अपने पास रख लिया।

वह वहा अत्यन्त सुखपूर्वक रहने लगा ।

मालिन रोज कनकपुर की राजकुमारी के लिए सुगन्धित फूल, माला, गुलदस्ते आदी सजा कर ले जाया करती थी।

एक दिन स्वयं राजकुमार ने राजकुमारी के लिए एक बहुत सुन्दर गजरा गूथा’ और उसमें अपने हाथ की अगूठी छिपा कर रख दी।

राजकुमारी गजरा और अगूठी पाकर बड़ी खुश हुईं। वह अंगृठी वाले राजकुमार को देखने के लिए लालायित हो उठी और उसने छिपा कर उसे अपने महलों में बुलाया।

राजकुमार काठ के घोड़े पर चढ़ कर आकाश-मार्ग से महल में दाखिल हुआ। वहाँ दोनों ने चुपचाप, बिना किसी को बताए, गुप्त रीति से अपना विवाह आपस में कर लिया ।

बहुत दिनों तक महल में रहते-रहते राजकुमार का मन भर गया, इसलिए एक दिन चुपचाप वह् राजकुमारी के साथ घोड़े पर बैठ कर आकाश में उड़ चला। घोड़ा एक घने, सुनसान जंगल में आकर रुका।

पसीने की कमाई

Wooden Flying Horse | Hindi Lok-Katha

राजकुमारी बहुत थक गई थी, उसे जोरों की प्यास भी लगी थी, आस-पास पानी मिलना मुश्किल था, अतः राजकुमार घोड़े पर चढ़ कर उसके लिए पानी ढूंढ़ने चला गया, और वह वहाँ अकेली रह गई ।

जब राजकुमार घोड़े पर चढ़ा हुआ बड़ी तेजी से उड़ा जा रहा था, तो अचानक उसका घोड़ा पहाड की चोटी से टकरा कर एक विशात्न नदी सें जा गिरा।

इधर राजकुमारी प्यास से छटपटा कर अचेत सी हो रही थी, तभी उसके एक सुन्दर पुत्र ने जन्म लिया। वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी।

नवजात बालक को एक भेड़िया उठा कर ले गया।

नदी में गिरने पर राजकुमार को एक बहुत बडी मछली ने निगल लिया, लेकिन तत्काल वह मछली एक मछवारे के जाल में फल गई, और इस प्रकार मछली को चीरने पर राजकुमार के प्राणों की रक्षा हो गई।

राजकुमार की सुन्दरता ओर बुद्धिमानी से मछवाहा इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने अपनी नौका, मकान, मछली का व्यापारआदि सब उसके सुपुर्द कर दिये।

राजकुमार शीघ्र ही एक चतुर व्यापारी हो गया।

इधर बारिश हल्की फुद्दार से राजकुमारी की बेहोशी टूटी और जब उसे यह् ज्ञान हुआ कि वह अपना बच्चा और पति दोनों गवा बैठी, तो वह दुःख से पागल सी हो गई । रोती, कलपती, भूख और प्यास से व्याकुल होकर वह इघर-उघर भटकती रही ।

अन्त में, वह कोकिलपुर पहुँची, जहाँ कि एक बुढ़िया जादूगरनी ने उसे अपने आश्रय सें रख लिया ।

बुढ़िया बहुत अमीर थी और उसने एक सरोवर के बींच अपना महल बनवा रखा था।राजकुमारी बहुत सुखपूर्वक उसके पास रहने लगी और उसके मरने के बाद उसके धनओर महल की मालकिन हो गई। वह् फिर पहले की तरह शान से रहने लगी ।

राजकुमारी का पैदा हुआ बालक, जिसे कि भेड़िया उठा कर ले गया था, एक शिकारी राजा के हाथ पड़ गया। उसके कोई पुत्र न था। वह ऐसा सुन्दर बालक पाकर फूला न समाया और उसने अपनी रानी को जाकर उसे सोंप दिया ।

रानी अपने पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण करने लगी, और राजसी ठाठ-बाट में बालक बड़ा होने लगा। बूढे राजा के मरने के बाद रानी ने उसे अपने पति के सिंहासन पर बैठा दिया।

एक दिन राजा शिकार के लिए गया।

कोकिल्पुर में सरोवर के महल से भाकती हुई उसे सुन्दरी रानी की थोड़ी सी झलक मिली । उसने सोचा, इस सुन्दरी को राज दरबार में बुलवाया जाये । उसने हाजिर होने का हुक्म भेजा किन्तु रानी ने उसे अस्वीकार कर दिया ।

राजकुमार को इस पर बडा क्रोध आया, और उसने जबर्दस्ती उसे पकड़वा मगाया। जैसे ही आसू बहाती हुई रानी राज्य की सीमा में घुसी, वैसे ही भयकर असगुन होने लगे “अपमान करेगा तो प्रथ्वी पाताल में धस जाएगा।’’ यह सुन कर राजकुमार का दिल दहल गया, मुॅह फीका पड़ गया, और वह लज्जा और शर्म से जमीन से गढ़ सा गया।

वह दौड़ कर राज माता के पास गया, और अपने असली माता-पिता का हाल जानने का आग्रह करने लगा। राज माता ने कहा, ‘‘प्यारे बेटा! तू ईश्वर की ओर से हमारे पास आया था।

महाराज एक बार जब शिकार खेलने गए थे तो तू जंगल में पड़ा मिला था। तभी मे तू
सेरा प्यारा बेटा है ।’’

यह सुन कर युवक राजा उस नई रानी के पास गया, और उससे पिछले जीवन की सारी बातें पूछीं। उसने अपनी दुःख भरी कहानी राजकुमार को कह सुनाई।

उसे अब पूर्ण विश्वास हो गया कि यही मेरी असली माँ है। वह उसके चरणो पर गिर कर क्षमा मागने लगा ।

रानी ने भी अपने पुत्र को हृदय से लगा लिया। अब राज कुमार अपने खोए हुए पिता को खोज निकालने की कोशिश में लगा।

इस घटना के कुछ दिन बाद एक धनिक व्यापारी राज्य की सीमा में उतरा। उसके पास अनेक कीमती जवाहरात ओर हीरे थे। वह दरवार में भी बुलाया गया।

व्यापारी का मुॅह राजकुमार के मुॅह से इतना अधिक मिल रहा था कि लोग आश्चर्य चकित हो एक दूसरे की ओर ताक रहे थे।

राजकुमार को भी कुछ सन्देहहोने लगा। उसने व्यापारी से पूछा, ‘‘आप इतने अमीर कैसे हुए?

व्यापारी की आखों में आंसू आ गए ओर उसने अपने विगत जीवन की कहानी कह सुनाई। उसने कहा कि ‘‘में अपनी प्यारी पत्नी के खो जाने से बड़ा दुखी हूँ ।’’

सारी कहानी सुनने के बाद राजकुमार अपने पिता को पहचान गया, ओर अपनी माँ के पास ले गया।

रानी रोती हुई अपने पति के चरणों पर गिर पडी। माँ-पिता-पुत्र तीनों का सम्मिलन बड़ा ही अपूर्व था।

सारे राज्य में उत्सव मनाया गया, किन्तु बडा राजा इतनी खुशी और चहल-पहल में भी उदास था। उसे रह-रह कर अपने बढ़ई मित्र की याद आ रही थी, जो उसके कारण अभी तक जेल में पड़ा सड़ रहा था।

अतः वह अपने परिवार और कुछ सैनिकों को लेकर अपने राज्य में गया, जहाँ कि बुढ़े राजा-रानी ने उसका खूब स्वागत किया। उसने तत्क्षण बढ़ई-पुत्र को जेल से बाहर निकाला ओर एक सुन्दर स्त्री से उसका विवाह कर दिया।

राज्य में खूब खुशिया मनाई गई, घी के दीपक जलाए गए और चारों तरफ आनन्द ही आनन्द छा गया। राजा और बढ़ई – दोनों मित्र अपने-अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहने लगे।

पिता की सीख

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