दोस्तों Lok Kathayen लोक कथाएँ/कहानियाँ की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं मजेदार लोक कथा जिसमे बताया गया है की एक न एक दिन घमंड टूट ही जाता है। जो जैसा दूसरे के साथ करता है, उसे उसका परिणाम भोगना ही पड़ता है। आइये जानते हैं बच्चों के ज्ञानवर्धक लोक कथा ‘Hindi Lok Katha | Gadhe ki Hazamat’ जो बड़ों को भी उतनी ही पसंद आएगी।
गधे की हजामत – लोक कथा
Hindi Lok Katha | Gadhe ki Hazamat
बगदाद शहर में नाइयों की बडी कमी थी। उसी शहर में बडा घमण्डी और पदमाश ‘अली’ नाम का एक नाई रहता था। उस शहर के अमीर, काज़ी और बडे बडे अफसर के यहाँ आकर हजामत बनवाते थे।
वह हजामत की कला में बडा होशियार था। आँखे मूँद करके भी बाल बनाना उसके बाएँ हाथ का खेल था। उसने अपने इस पेशे में खूब धन कमाया था।
धन के बढ़ने के साथ साथ उसका घमंड भी बढ़ता गया। वह किसी की परवाह नहीं करता था। सब लोग उससे डरते थे। उसके विरुद्ध कुछ कहने की हिम्मत किसी को नहीं होती थी।
सारे शहर में उसकी धाक जमी हुई थी।
एक दिन की बात है कि उसे लकडी की सख्त जरूरत पडी। वह अपने मकान के फाटक पर लकडहारे का इन्तजार करने लगा।
थोडी देर में उसने देखा कि एक गरीब लकडहारा अपने गधे पर लकडियों का एक गट्ठर लादे जा रहा है।
अली ने उसे बुलाया और पूछा-इस सारी लकडी का क्या दाम लोगे?
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लकडहारा-पांच रूपया, सरकार!
‘अरे बेवकूफ इस छोटे से गट्ठर का इतना बडा दाम? तू तो बडा लालची मालूम पडता है’।
‘आजकल लकडी बडी महँगी है, हुजूर!’
‘मुझे तुझ से बहस करने के लिये फुरसत नहीं है। अच्छा ले, मुँह-माँगा दाम, तमाम लकडी उतार दे’।
लकडहारे ने पांच रूपया लेकर लकडी का गट्ठर वहाँ उतार दिया और जाने लगा।
अली ने उसे पुकार कर कहा-अबे, क्या तू मुझसे बदमाशी करता है? गधे की जीन भी उतार दे, वह भी लकडी की है न?
लकडहारा बोला ; सरकार यह बेचने के लिए नहीं हैं। सिर्फ उस गट्ठर का दाम पांच रूपया है।
अली चिल्ल्या – कमबख्त, मैंने तेरा मुँह माँगा दाम दिया। अब मुझे धोखा देना चाहता है? उतार दे वह जीन भी, नहीं तो……..
लकडहारा-हुजूर माफ कीजिए, जीन को तो मैं कभी नहीं बेच सकता।
लकडहारे का जवाब सुनकर नाई गुस्से में आ गया और गधे की पीठ पर से जीन छीन ली। लकडहारे ने मना किया। तब उसे भी पकडकर खूब पीटा।
बेचारा नै काजी के पास गया और नाई की शिकायत की। लेकिन वह काजी नाई का दोस्त था। इसलिए उस ने शिकायत सुनने से इनकार कर दिया।
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लकडहारा निराश होकर चला गया।
वह उस शहर के बडे काजी साहब के पास पहुँचा। वह काज़ी साहब भी उस नाई का दोस्त था। इसलिए लकडहारे को वहाँ भी निराश होना पडा।
उस ने एक ठण्डी आह भरी और अहा- अब ‘दुनिया में गरीबों का कोई मददगार नहीं है’।
निराश होकर लकडहारा अपने घर की और चल दिया तभी रास्ते में उसे एक बूढा आदमी मिला।
लकडहारे को बडा उदास देखकर बूढे ने उस की उदासी का कारण पूछा। लकडहारे
ने उसे सारी बातें कह सुनायी।
बूढ़े को उस पर बडा तरस आया। उसने लकडहारे को समझा बुझाकर कहा – रो मत, तुम खलीफा के पास जाकर फरियाद करो, वे जरूर इन्साफ करेगे।
लकडहारा उसे धन्यवाद देकर खलीफा के पास पहुँचा। उसने खलीफा से फरियाद की।
Hindi Lok Katha | Gadhe ki Hazamat
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सब बातें सुनने के बाद खलीफा ने लकडहारे से कहा- गधे की पीठ पर जितनी लकडी थी उस तमाम लकडी के लिये तुमने पांच रूपया दाम तय किया था। इसलिए इन्साफ की नजर से तमाम लकडी नाई को पांच रूपये में मिल जानी चाहिये’।
फैसला सुनकर लकडहारे को बडा दुख हुआ। वह बडी आशा बान्धकर आया था। लेकिन यहाँ भी उसे नाउम्मीद होना पडा। उसने बडे रंज के साथ खलीफा से कहा-हुजूर अब दुनिया में गरीबों पर रहम करने वाला कोई नहीं है?
खलीफा ने कहा ; क्यों नहीं है? जरूर है। तुम भरोसा रखो। अन्याय करने वाले को अन्त में जरूर दण्ड मिलेगा।
खलीफा को अच्छी तरह मालूम हो गया था कि नाई ने बेचारे लकडहारे को धोखा दिया है। उस ने नाई को एक अच्छा सबक सिखाना चाहा और लकडहारे को
पास बुलाकर उसके कान में कुछ कहा।
लकडहारा खलीफा को सलाम कर अपने घर लौट आया।
कुछ दिन गुजर गये।
एक रोज लकड़हारा नाई की दूकान पर गया। नाई पुरनी बात को भूल गया था। वह लकडहारे को पहचाना भी नहीं पाया।
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लकडहारे ने नाई से कहा- मेरे और मेरे एक दोस्त की हजामत बनानी है ! आप कितनी पैसा लेगे?
नाई – दोनों के लिए चार रूपये लूँगा।
लकडहारा-अच्छा तब पहले मेरा बाल बनाइये, उसके बाद दोस्त को बुला लाउँगा।
नाई ने लकडहारे के बाल बनाये। लकडहारा अपने दोस्त को बुलाने बाहर गया। थोडी देर बाद वह अपने गधे को लेकर नाई के पास आया और बोला- यही मेरा दोस्त है, इस के बाल बना दीजिये।
नाई गुस्से से जल-भुन गया। उस ने गर्ज कर कहा ; ‘बदमाश, क्या तू मेरा मजाक कर रहा है? जानता है, तू किसके सामने खडा है? चला जा यहाँ से नहीं तो तेरी जीभ खींच लूँगा।
लकड़हारा कुछ बोलना ही चाहता था कि नाई ने उस की गर्दन पकडकर बाहर धकेल दिया।
लकडहारे खलीफा के पास जाकर शिकायत की।
खलीफा ने नाई को अपने दरबार में बुलवाया और पूछा- ‘क्या तुमने चार रूपये में इस लकडहारे और उस के दोस्त का बाल बनाना मंजूर किया था?
नाई – जी हुजूर।
खलीफा बोला ; तब क्यों इसके दोस्त के बाल बनाने से इनकार कर दिया?
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नाई बोला ; हुजूर क्या गधा भी कहीं किसी का दोस्त हो सकता है?
खलीफा – जरूर हो सकता है। अगर, गधे की जीन को कोई लकडी मानकर खरीद सकता है ता गधे को किसी का दोस्त मानने में तुम्हे एतराज क्यों?
तुम्हें जरूर उस गधे के बाल बनाने होगे।
कल शाम को पांच बजे यहाँ बाहर खुली सडक पर सब के सामने तुम्हें गधें की हजामत बनानी होगी।
यह फैसला सुनकर मानों नाई पर बिजली गिरी। वह अपनी भूल पर पछताने लगा।
खलीफा ने शहर भर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल शाम को खलीफा के मकान के सामनेवाली सडक पर शहर का मशहूर नाई अली गधे की हजामत बनाएगा।
ऐलान सुनकर दूसरे दिन शाम को पाँच बजे हजारों लोग वह तमाशा देखने वहाँ इकट्ठे हुए। नाई भी अपनी इजामत की पेटी के साथ नियत समय पर वह आ गया।
उसने गधे के तमाम बदन पर साबुन लगाकर उसके बाल बनाना शुरू किया।
लोग हँसते- हँसते लोट पोट हो रहे थे और मन ही मन कहने लगे कि खलीफा ने इसे अच्छा सबक सिखा दिया।
गधे के बाल बना चुकने पर नाई अपना सा मुँह लेकर घर चला गया। उस ने फिर कभी जीवन में किसी को नहीं सताया।
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