अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में Akbar Birbal Story In Hindi Series में हम लेकर आये हैं एक और रोचक बीरबल की बाल काल की कहानी Birbal childhood Story in Hindi ‘परमेश्वर को बुद्धि से पहचानिए’ आइये जानते हैं ;
परमेश्वर को बुद्धि से पहचानिए !
Birbal childhood Story in Hindi
बात उस समय की है जब बीरबर छोटे थे। उस समय चित्रकारिता का बड़ा प्रचलन था। कई राजे महाराजे और धनी व्यक्ति अपना चित्र बनवाते और चित्रकारों को प्रति चित्र के बनवाई में तीन से चार हजार पुरस्कार तक देते थे ।
उसी नगर में एक विख्यात चित्रकार भी था जो एक चित्र के पाच हजार लेता था । एक दिन उस चित्रकार के पास एक बड़ा आदमी आया और बोला-‘‘महाशय जी! मुझे भी अपनी चित्र बनवानी है, यदि आप उसे सर्वोंगपूर्ण बना सकेगें तो मैं आप को पन्द्रह हजार रूपया इनाम दूँगा।
चित्रकार सहमत हो गया और काम के सम्पादन में उसे कई मास का अरसा लगा। जब चित्र उसकी इच्छानुकूल तैयार हो गया तो उसे लेकर धनी व्यक्ति के पास गया।
धनी व्यक्ति ने चित्र को लेकर अपने चेहरे से भलीभाँति मिलान किया। उसमें एक स्थान पर ऐब रह गया था। धनी ने चित्रकार को उसे दिखलाया। वह विवश होकर दूसरा चित्र बना लाने का वचन देकर खाली हाथ लौट गया और फिर से चित्र बनाना प्रारम्भ किया।
इस बार पहले से भी अधिक तत्परता से चित्र तैयार किया। उसका विश्रवास था कि इस बार धनी को चित्र पसंद आ जायेगा।
दूसरे दिन फिर चित्र को लेकर धनी शाहूकार के पास पहुँचा और पुरस्कार मांगा।
उस धनी ने चित्र का फिर से मिलान किया, फिर भी उसके गोड़ में ऐब रह गया था।
इसी प्रकार धनी सेठ और कई बार चित्रकार को मूर्ख बनाकर लौटा चुका था।
कहते है न कि मनुष्य अपनी कामयाबी के लिये बार बार परिश्रम करता है, जब करते करते थक जाता है तो उसकी हिम्मत टूट जाती है और फिर उसके किये वह काम नहीं होता।
इसी प्रकार वह चित्रकार भी अपनी नाकामयाबी से हताश हो गया अपनी अपकीर्ति जन समुदाय में बढ़ने के भय से गंगा में डूब मरने का संकल्प किया।
जिस समय गंगा तट पर पहुँचकर वह आत्मविसर्जन का उपाय सोच रहा था उसी समय हरी इच्छा से बीरबल नाम काएक ब्राह्माण का लड़का भी उपस्थित था।
लड़का चित्रकार के मनोगत भावों को ताड़ गया और उसे ढाढ़स देने के विचार से पूछा-’’ महाशय जी। आप इतना चिन्ताग्रस्त क्यों दिखाई पड़ते हैं, जान पड़ता है चिन्ता रूपी साँपिन ने आपको डस लिया है? कृपाकर मुझसे अपने दुख का कारण बतलाइये, मैं यथासक्य उसके निवारण का प्रयत्न करूगा।
बालक के ऐसे विनम्र बचनों से चित्रकार की जीवन आशा पुनः जागृत हुई और अपना दुःखद समाचार कहकर सुनाया।
लड़का (बीरबल) बोला-‘‘ आप इस थोड़ी सी बात के लिये इतना अधीर क्यों हो रहे हैं? धैर्य धारण कीजिये, मैं उसका खूबबाखूब चित्र बना दूँगा और फिर उसे ऐब दिखलाने का अवसर न मिलेगा, केवल थोड़ा और परिश्रम कर मुझसे उसका साक्षात्कार करा दें।
चित्रकार लड़के को साथ लेकर उस धनी के पास गया, बीरबल उस धनी को फाँसने के लिये रास्ते में ही एक तरकीब सोच चुका था वह बाजार से एक शीशा खरीदकर अपने साथ लेता गया।
चित्रकार को देखकर धनी ने चित्रकार से पूछा-‘‘क्या दूसरा चित्र तैयार हो गया?’’
इसका उत्तर बीरबल ने दिया-‘‘हाँ तैयार करके लाये हैं।’’ चित्रकार ने आगेे बढ़कर धनी को अपना दर्पण दिखलाया।
दर्पण में धनी को अपना स्वरूप ठीक ठीक दीख पड़ा, फिर उसे आना कानी करने की कोई दूसरी तरकीब नहीं सूझी, लाचार होकर बात के अनुसार पन्द्रह हजार रूपये देने पडे़।
चित्रकार बीरबल की ऐसी युक्ति से बड़ा सन्तुष्ट हुआ। वह रूपया लेकर घर लौट गया, परन्तु बीरबल धनी के चरण पकड़ कर बोला-‘‘भगवन्! मैं आपको अब नहीं छोडूगा क्योकि आप मुझे मनुष्य के रूप में देवता जान पड़ते हैं।’’
बीरबल की हठधर्मी से विवश होकर देवता ने प्रत्यक्ष होकर दर्शन दिये और उसको बुद्धि बढ़ने का आशीर्वाद दिया। फिर बीरबल को सन्तुष्ट कर देवता अन्तर्ध्यान हो गये।
चित्र में बारंबार दोष निकालते देखकर बीरबल ने देवता को पहचान लिया था। उसी समय से लोगों की आँखे खुल गई और ऐसी जनश्रुति चल पड़ी- ‘‘परमेश्वर को बुद्धि से पहचानिए’’
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बहुत खूब कहानी लिखी है मुकेश जी, मैं भी एक ब्लॉगर हु बस जानना चाहता हु आप कैसे लिखते है
अगर आप रिप्लाई करते है तो में आपके रिप्लाई का इंतजार करूँगा , आप मुझे ईमेल के द्वारा भी संपर्क कर सकते है
आप ऐसे ही लिखते रहे हम आपसे सीखते है
धन्यवाद्
धन्यवाद !