यकीन बड़ा या पीर | Faith Big Or Saint | Akbar Birbal Story In Hindi

Faith Big Or Saint

अकबर-बीरबल की कहानियां किस्से ; Hindi Story of Akbar And Birbal अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं एक और रोचक अकबर-बीरबल की कहानी “यकीन बड़ा या पीर | Faith Big Or Saint | Akbar Birbal Story In Hindi” आइये जानते हैं ;

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यकीन बड़ा या पीर | Faith Big Or Saint

आज बादशाह अपनी वर्षगाँठ मना रहा था, दूर-दूर के लोग इस उत्सव में तोहफा लेकर आये हुए थे, अतिथियों की तो मानो भरमार हो रही थी। जो आता अपनी ढूंढ कर रिक्त स्थान पर बैठ जाता। दरबारी लोग अपने अपने आसनों पर मूर्तिमान बैठे हुए थे। शमियाने के अन्दर नृतकियों का गाम और बाद्य भी साथ ही साथ होता जा रहा था।

बादशाह अपने दरबार की सजावट देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि उसे अपने दरबारियों की बुद्धि और कला विशेषता पर बड़ा गर्व था। उसका ख्याल था कि उसके मंत्री के समान बुद्धिमान कही दुनियाँ के पर्दे में दूसरा मंत्री नहीं है।

बादशाह के दरबार में फकीर और मौलवियों का जमघट लगा हुआ था, क्योंकि आज उसने हजारों फकीर की दावत की थी और बहुतेरों को मुँह माँगा दान दिया था।

इसी समय बादशाह के पास सबसे बड़ा पीर आया। बादशाह ने भी पीर साहब की बड़ी आव भगत की और उन्हे सर्वोत्तम पदार्थ भेट में दिया। हर तरफ प्रसन्नता का साम्राज्य था जिधर देखो उधरलोग बादशाह को दुआ देते सुनाई पड़ते थे।

जब सब लोग चले गये तो। बादशाह ने बीरबल से पूछा- ‘‘क्यों बीरबल बतला सकते हो की पीर बड़ा होता है या यकीन।’’ बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘हुजूर, यकीन बड़ा होता है।’’

बादशाह ने बीरबल की बात काट दी और बोला-‘‘भला कभी पीर से बढ़कर यकीन भी हो सकता है, बिना पीर के हुए विश्वास कैसे होगा।

‘‘बीरबल ने कहा-‘‘नहीं शहनशाह यकीन ही पीर से बड़ा है।’’

बीरबल की बेटी की बुद्धिमत्ता

Faith Big Or Saint | Akbar Birbal Story In Hindi

बादशाह उसके इस उत्तर से कुछ संतुष्ट नहीं हो पा रहा था-‘‘बीरबल यह तू क्या कहता है, कहीं पीर को मना करने से वह नाखुश होता है।’’

बीरबल बोला-‘‘पीर पर विश्वास करने से फल मिलता है।’’ हम हिन्दू मूर्ति का पूजन करते हैं, परन्तु वह मूर्ति हमे फल नहीं देती बल्कि उस पर विश्वास करने से हमें देवतों द्वारा फल मिलता है।’’

बादशाह को बीरबल के ऐसे उत्तर से सन्तोष नहीं हुआ तदर्थ क्रोधित होकर बीरबल से कहा-‘‘तुमको प्रमाणों द्वारा सिद्ध कर दिखाना होगा कि पीर से बड़ी आस्था है।’’

बीरबल बोला- ‘‘मुझे स्वीकार है।

‘‘बादशाह ने कहा-‘‘इसी वक्त सिद्ध कर दिखलाओ।’’

बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘हुजूर! यह काम इतना सरल नहीं है, इसके लिये अवकाश मिलना चाहिये।’’

बादशाह बोला-‘‘अच्छा, तुझे इसके लिये एक महीने की मुहलत दी जाती है, परन्तु ध्यान रहे कि अगर इतने समय में सिद्ध न कर सकोगे तो तुम्हारी गर्दन उड़ा दी जायगी।’’

बीरबल ने कहा-‘‘मुझे स्वीकार है।’’

उस दिन का काम समाप्त हुआ। बीरबल बराबर अपना कार्य पहले सा करने लगा। जब उसे मालूम हुआ कि अब बादशाह का दिल दूसरी बातों में बहल गया है तो चार पाँच दिनों का अन्तर देकर बादशाह के पैर का एक जूता चुरा ले गया।

वह उस जूते को शाल के टुकड़े में भली भाँति ढककर नगर के बाहर एक एकान्त जगह में छिपा कर रख आया। दूसरे दिन उस जूते को एक चबूतरे के अन्दर रख ऊपर से तीन पत्थरों को ऐसी विधि से रख दिया की वह एक खासी कब्र बनकर तैयार हो गई।

एक सेवक को उस कब्र की देखरेख के लिए भी छोड दिया। उसको हिदायत कि जब कोई तुमसे पूछे तो कहना कि यह मकबरा यकीन शाह पीर की है और बराबर लोगों में इसकी सिद्धिताई की चर्चा भी करते रहना।’’

भाग्य बड़ा है कि मेहनत

Faith Big Or Saint STORY IN HINDI

सेवक ने बीरबल की आज्ञानुसार उस मकबरे का यकीन शाह पीर के नाम से नया नया ढोंग रचकर प्रचार करने लगा।

धीरे धीरे यह बात सारे नगर में फैल गई। तमाम स्त्री पुरूष उस पर आस्था मानने और चढ़ाने के लिये आने लगे। ईश्वर की कृपा से ‘जंगल में मंगल’ हो गया।

यह बात फैलते फैलत एक दिन बादशाह के कान तक पहुँची। जैसा दुनिया का कायदा है, दरबारी लोग सूई की जगह तलवार से काम कर लिया। यानी बादशाह से यकीनशाह पीर की बड़ी सिद्धिताई बखान की।

कुछ लोगों ने तो बादशाह से यहाँ तक बतलाया कि-‘‘आपके वाल्यावस्था में आपके पिता हिमायूँ ने भी इस पीर साहब की मानता की थी, और पीर साहब की कृपा ये उन्हे बड़ें बड़ें कार्यों में सफलता भी प्राप्त हुई थी।

बादशाह लोगों के भड़काने में आ गया। उसने मन में संकल्प किया कि किसी दिन मैं भी चलकर पीर साहब की दरगाह पर सिरनी चढ़ाऊँगा।

एक दिन जब वह सबेरे सोकर उठा तो उसके मन में एकाएक पीर की दरगाह पर जाने का विचार आया। तुरन्त कुछ सेवकों के साथ वहाँ पहुँचा।

वहाँ की कुछ और ही हालत हो रही थी, कितने ही लोगों की भीड़ लगी हुई थी। एक छोटी सी बाजार लग गई थी। बादशाह को उस स्थान के देखने से बड़ी प्रसन्ता हुई। वह अपने दरबारियों के साथ यकीनशाह पीर को बड़ी विनम्रता से प्रणाम किया। बीरबल चुपचाप खड़ा रहा।

बादशाह ने बीरबल से कहा-‘‘सब लोगों ने तो पीर को प्रणाम किया परन्तु तुमने नहीं सो क्यों। तुम्हें भी मुनासिब है कि पीर साहब को प्रणाम करो।’’ बीरबलने कहा-‘‘मैं प्रणाम करने को तैयार हूँ, परन्तु आपको भी मेरी एक बात माननी पड़ेगी, यानी पीर से आस्था को ही प्रधान कहना पड़ेगा।’’

बादशाह ने उत्तर दिया-मैं इस समय भी यही कहने को प्रस्तुत हूँ कि आस्था से पीर बड़ा है और तुम्हारे सामने ही इस बात की मनौती भी करता हूँ कि यदि मैं प्रतापसिंह पर विजय प्राप्त कर लूँगा तो इस कबर पर मखमली चादर बिछाऊँगा और मलीदा चढ़ाकर यहीं पर मौलबी और फकीरों को खाना खिलाऊँगा।’’

बादशाह और दीवान इस विषय पर वाद- विवाद कर ही रहे थे कि उसी समय एक सवार तेजी से घोड़ा दौड़ता हुआ आया और बादशाह को सलाम कर बोला-

‘‘हुजूर! शाहजादा सलीम ने कहलाया है कि मेवाड का राजा प्रतापसिंह ने अपनी हार स्वीकार कर ली है और आशा है कि कुछ ही छेर बाद मेरे आधीन भी हो जायगा।’’

इस आनन्दवर्धक समाचार को सुनकर बादशाह का रोम रोम प्रफुल्लित हो गया और बीरबल को नीचा दिखलाने के अभिप्राय से बोला-‘‘कहो अब भी आस्था को पीर से प्रधानता देने को तैयार हो या नहीं। देखो इधर मनौती की और उधर से शुभ समाचार आ पहुँचा।’’

बीरबल बोला-‘‘हुज़ूर ! बिना आस्था के आपने पीर पर मन्नत नहीं की थी। यदि आप की पीर पर आस्था न हुई होती तो आप कदापि मानता न मानते, मुख्य आस्था ही है।’’

बादशाह ने कहा-‘‘अब तुम अपनी धींगधीगी बन्द करो, मुझे इस पर यकीन नहीं होता। चूँकि अभी तक तुम आस्था की प्रधानता सि( नहीं कर सके हो अतएव मरने के लिये तैयार हो जाओ।’’

बीरबल की चतुराई

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बीरबल ने कहा-‘‘मैने आपको बहुतेरा समझाया, परन्तु आप नहीं मानते फिर इसमें मेरा क्या अपराध है।’’

बादशाह बीरबल के इस उत्तर से क्रोधित होकर बोला-‘‘अब मैं तुमको इस अपराध का दण्ड स्वयं अपने हाथ से दूँगा,। तुम्हारा काल आज तुम्हारे सिर पर चढ़कर बोल रहा है। क्या कोई हाजिर है, जाकर तुरन्त एक बधिक को बुला लाओ।’’

बादशाह का रूख ताड़ कर बीरबल ने मन में निश्चय कर लिया कि अब और अधिक टाल मटोल करने से बाद-शाह अपने क्रोध को सम्हाल न सकेगा अतएवं यकीन शाह को हाथ जोड़कर बोला-

‘‘हे यकीन शाह जो आज में जिंदा बचा तो इस कब्र पर मिठाई चढ़ाऊँगा और इस कब्र के ऊपर एक सुन्दर मकबरा निर्माण करा दूँगा।’’

बीरबल के इस सन्नत पर बादशाह ने हँस दिया और उसे संबोधन कर बोला-‘‘क्यों बीरबल अब तुम्हारी अक्ल ठिकाने आ गई, आखिरकार लाचार होकर तुम्हें भी मानना ही पड़ा।’’

बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘बेशक। पीर साहब की ही शरण लेनी पड़ी।’’

पश्चात् वह सब दरबारियों सहित कब्र के समीप जा पहुँचा और उसके बीच वाला पत्थर अपने हाथ से उठाकर अलग रख दिया और उसके भीतर से उस गठरी को निकाल कर बाहर किया।

बादशाह इस बात को देखकर बड़ा हैरान हुआ और बीरबल से उसका कारण पूछा बीरबल ने उत्तर दिया-

‘‘हूजूर! यही आपके यकीन शाह पीर हैं और आपने इन्ही की मानता की थी। बादशाह को उस शाल की गठरी के भीतर अपने जूते को देख कर बादशाह बड़ा आश्चर्य हुआ और लज्जित होकर अपनी गर्दन नीची कर ली।

बीरबल बोला-‘‘गरीबपरवर। अब आप ही फरमायें कि आस्था बड़ी है या पीर।’’ अपने मन का विश्वास ही मुख्य है। जब विश्वास नहीं रहता तो मानता भी निष्फल हो जाती है। इसलिये आपको कहना पड़ेगा कि मुख्य विश्वास ही है।’’

बादशाह ने बीरबल की बात मान ली। यकीनशाह की बड़ी शोहरत हो गई थी जिस कारण वहाँ पर काफी धन संचित हो गया था। उस धन से बीरबल ने यहाँ पर एक मस्जिद बनवा दी। बीरबल की बुद्धिमानी से बादशाह को मात होना पड़ा।

बादशाह के चार प्रश्न

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