भाग्य बड़ा है कि मेहनत | Luck Vs Hard Work | Akbar Birbal Interesting Story In Hindi

Luck Vs Hard Work

अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में Akbar Birbal Short Story In Hindi Series में हम लेकर आये हैं एक और रोचक अकबर-बीरबल की कहानी भाग्य बड़ा है कि मेहनत | Luck Vs Hard Work | Akbar Birbal Interesting Story In Hindi आइये जानते हैं ;

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भाग्य बड़ा है कि मेहनत | Luck Vs Hard Work | Akbar Birbal Interesting Story In Hindi

एक दिन बादशाह ने अपने दरबारियों से भरी सभा में पूछा-‘‘भाग्य बड़ा है कि मेहनत।’’

सब दरबारियों ने एक मत होकर बतलाया-‘‘हुजूर ! मेहनत बड़ी है? ’’ परन्तु बीरबल की राय सबसे भिन्न थी। वह अपनी तरफ से अकेला होकर बोला-‘‘महाराज! मेरा मानना है कि भाग्य बड़ा है।’’

बादशाह ने बीरबल से पूछा-‘‘यदि मेहनत न की जाय तो भाग्य क्या कर सकता है, भला उस मनुष्य को जो भाग्य के भरोसे बैठ रहे, कभी खाना नसीब हो सकता है?’’

बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘चाहे कोई कितनी ही मेहनत क्यों न करे, परन्तु जो बात उसके भाग्य में लिखी न होगी, कदापि नहीं मिल सकती। यह सब देखते हुए भाग्य को ही प्रधानता मिलनी चाहिये।’’

एक दरबारी को बीरबल की यह दलील बहुत खटकी और वह बादशाह से निवेदन कर बोला-‘‘जहापन्हा! जब बीरबल को भाग्य की प्रधानता मालूम है तो इसका कोई सबूत भी होगा।

बादशाह ने झट बीरबल से पूछा-‘‘हाँ बीरबल! इस बात का कोई सबूत दो।’’

बीरबल बोला-‘‘हुजूर! यह कोई ऐसी वैसी बात नहीं है जो कोई गाँठ में बाँधे फिर रहा हो और तुरत खोलकर दिखला दे, आपकी ऐसी ही इच्छा है तो कुछ दिनों में सिद्ध करके दिखला दूँगा।’’

उस दिन का कार्य समाप्त हुआ और लोग अपने अपने घर चले गये।

एक दिन बादशाह को जमुना में शैर करने की इच्छा हुई अतएवं कुछ दरबारियों को साथ ले एक खास नौका पर बैठकर यमुनाजी में जल विहार करने लगा-बीच दरिया में पहुँच कर फिर उसे भाग्य और मेहनत वाली बात स्मरण हो आई, उसने
बीरबल से कहा-‘‘क्यों बीरबल! अभी तुम्हारा दिमाग ठिकाने आया की नहीं-बोलो मेहनत को भाग्य से प्रधान मानते हो या नहीं ?’’

इस बार भी बीरबल ने पहले ही सा उत्तर दिया।

बीरबल की इस हठधर्मी पर बादशाह चिढ़ गया और तत्क्षण अपने हाथ की अँगूठी निकालकर जमुना जलके मध्य में छोड़ दी और बोला-‘‘अच्छा बीरबल! यदि अपनी भाग्य की प्रधानता से तू एक मास के अन्तरगत यह अँगूठी मुझे न दे सकेगा तो तेरी गर्दन उड़ा दी जायगी।’’

बादशाह के उस आकस्मिक कोप से सब लोग थर्रा गये। सब लोगों ने देखा कि यहाँ पर जमुना जी का जल बहुत गहरा है। यहाँ से अँगूठी का मिलना असम्भव ही नहीं बल्कि नितान्त असम्भव है। अब बीरबल की जान नहीं बच सकती।

परन्तु बीरबल ने कुछ जबाव नहीं दिया। वह चुपचाप बैठा रहा।

नाव किनारे पर आ लगी। घर लौटते समय बादशाह ने उस जगह अपने सिपाहियों की पहरा चौकी बाँध दी ताकि बीरबल किसी प्रकार उस अँगूठी को जल से बाहर न निकाल सके।

बीरबल चुप्पी साधकर बैठा रहा।

जब एक कुछ दिन व्यतीय हो गये तो बादशाह ने बीरबल से पूछा-‘‘ क्यो बीरबल अँगूठी मिली ?

बीरबल ने इन्कार किया।

तब बादशाह ने कहा -‘‘देखो बीरबल! अब भी मेहनत की प्रधानता स्वीकार कर लो, मैं तुम्हे माफी दे दूँगा।’’

Luck Vs Hard Work

बीरबल ने उत्तर दिया-जहापन्हा! भाग्य के सामने मेहनत नहीं टिक सकती, मुहावरा मशहूर है-‘‘घड़ी में घर जले नौ घड़ी भद्रा।’’ अभी तीन दिन का समय और है इतने में तो कितना उलट फेर हो सकता है।’’

बादशाह के क्रोध रूपी अग्नि में और भी आहुति पड़ गई, वह एक दम क्रोधित हो गये।

जब अवधि का दिन बीत गया तो चौथे दिन फिर बादशाह ने बीरबल से अपनी अँगूठी माँगी। बीरबल ने कहा – ‘‘हुजूर! मेरे भाग्य से अँगूठी नहीं मिली।’’

बादशाह क्रोधित होकर बोला- ‘तब मरने के लिये प्रस्तुत हो जाओ।’’

बीरबल तो पहले से ही कमर कस चुका था, वह बादशाह के सामने निर्भय होकर खड़ा हो गया।

उसे कसकर बाध दिया गया। बीरबल की दशापर बादशाह को फिर तरस आ गई और बोले -‘‘बीरबल! अब भी मौका है, तुम मेहनत की प्रधानता स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें माफ कर दूँगा।’’

बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘गरीबपरवर! मरते को मारना अच्छा नहीं, आप तुरत मुझे मारे डालनेकी आज्ञा दीजिये।’’

बादशाह ने कहा-अच्छी बात है, जब तू खुद ही आगे आ रहा है।’’

बादशाह का तोता

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बादशाह ने सिपाही को बीरबल के फाँसीघर ले जाने की आज्ञा दी। वह घर मकान के चौक के पास ही बना हुआ था।

बीरबल की यह दशा देख समस्त प्रजा घबड़ा उठी क्योंकि बीरबल के समय में सबकी रामराज्य थी। न राजा का जुल्म प्रजा पर चलने पाता था और न प्रजा का राजा पर। सबके चेहरे पर मुरदनी छा गई। बीरबल के घर वाले भी चुपचाप मलीन मुख किये सब कार्य कलाप देख रहे थे, वे अब अपना धैर्य कायम न रख सके और सबके सब सुसक सुसक कर रोने लगे।

बीरबल फाँसी के तख्ते पर चढ़ाया गया। नियम के अनुसार बधिकों ने बीरबल से पूछा-‘‘आप की अन्ति इच्छा क्या है, उसको पूरी करने के लिये दस मिनट का समय और दिया जाता है।

बीरबल अभी कुछ कहने भी नहीं पाया था कि एक फकीर प्रगट हुए। उनकी आते किसी ने नहीं देखा था जिससे ऐसा प्रतीत हुआ मानो जमीन को फाड़ कर प्रगट
हुए हो।

फकीर ने कहा-‘‘बीरबल! यह तुम्हारे फाँसी का समय है अतएवं मरने से पहले एक पुण्य कर्म करता जा।

यह सबेरे सबेरे का समय है और मुझे भूख बहुत लगी है इससे तू मेरे भोजन का प्रबन्ध कर। इससे बढ़कर दूसरा दान नहीं है, सा सदा ऐसे लोग कहते आये हैं। मैं मछली
खाना चाहता हूँ, इसलिये एक अच्छी मछली पका कर खिला और मुझ फकीर का आशीर्वाद ले।’’

बीरबल बडी असमंजस में पड़ गया एक तो मरण काल दूसरे फकीर की याचना सो भी मछली।

वह बोला-‘‘साहब! आपको ज्ञात होना चाहिये कि मैं एक कुलीन ब्राह्मण हूँ, हमलोग अपने चौके में मछली माँस का प्रयोग नहीं करते फिर आपको क्यों कर खिलाऊँ।’’

फकीर बोला-‘‘यह सब सही है, परन्तु यदि तू इस मरणकाल में मेरी भूख मिटायेगा तो इस पुण्य से तेरे बालबच्चो के सहित कल्याण होगा।

वहाँ पर उस समय जितने लोग एकत्रित थे सभी ने बीरबल से फकीर की इच्छा पूर्ति का अनुरोध किया।

कुछ काल तो योही बात चीत में टल गया अन्त में मत विशेषता के कारण बीरबल को अपनी जिद्द छोड़नी पड़ी।

एक आदमी बाजार जाकर एक मल्लाह से एक खूब मोटी और बड़ी मछली खरीद लाया। जब उस मछली को बीरबल छुरी लेकर चीरने बैठा तो उसके पेट में
कोई ठोस चीज दिखाई पड़ी, उसका संपूर्ण पेट काटते ही बादशाह की वह जल में फेकी हुई अँगूठी बाहर निकल आई।

बीरबल की बेटी की बुद्धिमत्ता

बादशाह अपनी खिड़की से गरदन निकाल कर बीरबल की फाँसी का दृश्य देख रहा था। उसने देखा कि बीरबल एक मछली फाड़ रहा है, परन्तु उसके और उस फकीर के अन्तर्गत क्या क्या बातें हुई इसका उसे कुछ भी ज्ञान न था।

बीरबल उस अँगूठी को हाथ में लेकर खड़ा हो गया और फकीर को देखने लगा। वे उसके खड़ा होने से पहले ही अन्तर्ध्यान हो गये थे।

बीरबल ने एकत्रित मंडलो से कहा-‘‘आप लोगों की अनुमति प्राप्त कर मैं एक बार पुनः बादशाह से मिलना चाहता हूँ, कृपाकर मुझे फिर बादशाह के समीप ले चलें।

उन लोगों ने मछली का पेट फाड़ते समय कुछ निकलते हुये अवश्य देखा था। पर क्या निकला सो कोई नहीं जानता था। वे बड़ी प्रसन्नता से कर्मचारियों के सहारे बीरबल को बादशाह के पास ले गये।

बीरबल को अपने समीप आते हुये देखकर बादशाह ने अनुमान किया-‘‘हो न हो बीरबल डरकर अब मेहनत की प्रधानता स्वीकार करने के लिये मेरे पास आ रहा हो परन्तु अब मैं अपनी आज्ञा पूरी न करूँगा। इसीलिये इसके पहले ही मैंने उसे कई बार मौका दिया था, परन्तु उस समय उसने मेरी बातों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया।’’

बीरबल पास पहुँचकर बादशाह को सलाम किया। तब बादशाह ने कहा-‘‘बीरबल! अब तुम्हारा प्रयास करना व्यर्थ है, इस समय चाहे तुम मेहनत की प्रधानता मान भी लो परन्तु मैं अपनी आज्ञा रद्द नहीं करूँगा।

बीरबल ने कहा-‘‘हुजूर! जरा पहले मेरी बातें सुन ले, मैं मेहनत की प्रधानता मानने नहीं
आया हूँ।’’

बादशाह ने कहा-‘‘अच्छा कहो।’’

तब बीरबल बोला-‘‘आपकी अँगूठी देने आया हूँ इसे पहन लीजिये।’’ बादशाह ने उसे हाथ में लेकर देखा तो सचमुच वही राज मुहर वाली अँगूठी थी। उन्हे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि वे उसे जमुना के अगाध जल में फेंक आये थे। कई बार खूब उलट पलट कर देखा जब उसके निस्वत कुछ सन्देह न रहा तो बोले-‘‘बीरबल यह अँगूठी कैसे प्राप्त हुई?’’

बीरबल ने जबाब दिया-‘‘गरीबपरवर! मेरा भाग्य घसीट लाया है। तब उसके मिलने का सब किस्सा बीरबल ने बादशाह को सुनाया।

बादशाह बीरबल से बहुत प्रसन्न हुए और दस हजार मुहरें, एक सुन्दर वस्त्र तथा कई बाहन पुरस्कार में दिये। उसके घर वालों को भी सुन्दर सुन्दर वस्त्र दिये गये।

उपस्थित जनता के सहित बादशाह ने प्रसन्नता से भाग्य की प्रधानता स्वीकार कर ली।

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