बादशाह और कवि गंग – Badshah and Kavi Gang – Akbar Birbal Interesting Story In Hindi

Akbar Birbal Interesting Story

अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में Akbar Birbal Story In Hindi Series में हम लेकर आये हैं एक और रोचक अकबर-बीरबल की कहानी बादशाह और कवि गंग – Badshah and Kavi Gang – Akbar Birbal Interesting Story In Hindi आइये जानते हैं ;

बादशाह और कवि गंग –
Akbar Birbal Interesting Story In Hindi

एक दिन बादशाह जनाने महल में गाना सुन रहे थे, उसके कुटुम्ब की सारी स्त्रियाँ उपस्थित थी। वहाँ पर सिवा बादशाह के दूसरा कोई मर्द नहीं था। यह जुमावड़ा बादशाह की बेगमों के मत से हुआ था।

बादशाह की उन बेगमों का विचार था कि बादशाह प्रेम में फँसकर कुछ दिनों तक महल में रह जायँ। उनका प्रयास भी सफल होते दिखलाई पड़ा बादशाह उनके प्रेम में फँस गये।

एक बेगम जिसका कोकिल कंठा नाम था, सब के अन्त में एक वियोग मिश्रित गजल गाना शुरू किया। उसकी ऐसी दीनता भरी गजल से बादशाह पिघल गये और उससे पूछा ‘‘इस गाने से तुम्हारा क्या तात्पर्य है?’’

बेगम ने कहा- ‘‘प्रभु आपका अधिकतर समय लड़ाई ही में बीतता है और यहाँ हम घर में पड़ी पड़ी आपके वियोग की एक एक घड़ियों को वर्ष के समान काटती हैं। प्रभु क्या यह अनुचित नहीं है?

अपने हदय की गवाही अपने मुख से कहाँ तक दें, उसे या तो हमारा मन या अन्तर्यामी ईश्वर ही जान सकता है। क्या आप बतलाने की कृपा करेंगे कि इस समय आप कितने समय के बाद लड़ाई से फुर्सत पाकर महल में आये हुए हैं?’’ अब यदि न्याय की दृष्टि से देखें तों आपको हमें छोड़कर जाना उचित नहीं है।

बादशाह ने कहा-बेगम साहिबा! आप समझती हैं कि मैं एक लड़ाई के ही काम से बाहर जाता हूँ परन्तु ऐसा नहीं होता, लड़ाई में तो कभी कभी जाने का मौका लगता है। जो मैं अपनी प्रजाओं की देखरेख न करूँ तो भला इतना बड़ा साम्रज्य कभी टिक सकता है, मेरी अपकीर्ति संसार में फैल जावे।

दो चार दिनों की तो तुम्हारी प्रार्थनाएँ भले ही स्वीकृत को जा सकती है। परन्तु एक साल, वा छ मास को गुजायश नहीं है। मेरी अयोग सेवाओं से चिढकर मेरे सरदार और शाहजादे मुझ से गदर मचा सकते हैं, फिर मैं कितनी कठिनाई में पड़ जाऊँगा, क्या कभी इसपर भी विचार दौड़ाती हो?

हाँ इतना भले ही कर सकता हूँ कि जो समय राजकीय कामों से बचाकर शिकार आदि में लगाता हूँ वह तुम्हारे पास ही रहकर बिताऊँगा। अब इससे अधिक और क्या चाहिये।’’

बादशाह के ऐसे रूखे उत्तर सुनकर बड़ी बेगम साहिबा ने कहा-‘‘हूजूर आप सारी बातें भले ही सही सही कहते हों, परन्तु फिर यह भी विचार करें कि हम घर में रहने वाली बेगमों की दिन रात कैसे कटे ? हम पशु के समान बँधी पड़ी रहें?’’

तब एक दूसरी बेगम बोली-‘‘प्रभु! आपकी न्याय प्रियता सब पर विदित है, आप अपने छोटे से छोटे कर्मचारियों की प्रार्थनाएँ सुनते हैं तो क्या कारण है कि हम लोगों की न सुनेंगे, चाहे जो हो आज तो हम आपको यहाँ से हिनले न देंगी, आगे हमारा प्रारब्ध जाने। सेखी करना भूल है, पर हम लोगों की बिना आज्ञा लिये आप कैसे जायँगे।

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Akbar Birbal Interesting Story In Hindi

तीसरी बेगम मुस्कुराती और नेत्रों का बाण चलाती हुई बोली-‘‘आप लोग भी क्या हैं? हमारे स्वामी अपनी दयालुता के लिये विश्व विख्यात हैं, ये अब हमारी प्रार्थनाओें को मानकर आज से हम लोगों को साथ छोड़ कर कहीं न जायँगे, यदि तुम लोगों को मेरी बातों का विश्वास न हो तो मैं शर्त लगाने के लिये तैयार हूँ। जिसका जी चाहे मुझसे आकर हाथ मारे।

चौथी बेगम हाव भाव दिखाकर बोली-‘‘बहनों! स्वामीजी तो नाहीं करते ही नहीं है
आप लोग इतना आग्रह क्यों करती हैं, मौन्यं स्वीकृति लक्षणम्।’’ उत्तर न देना ही स्वीकार कर लेना है।

बादशाह इन स्त्रियों के नेत्र कटाक्ष और हाव भाव में बँध गये, किसे क्या उत्तर देना चाहिये इसका उन्हें कुछ भी ज्ञान न रहा और विवश होकर बोले-‘‘बेगमों! आप लोगों
के प्रेम से मैं गदगद हो गया हूँ और आपको यकीन दिलाता हूँ कि अब तुम्हारे पास ही रहूँगा।’’

बादशाह के मुख से इतना निकलना था कि बेगमें प्रसननता से उछलने लगी और उनके बहुतेरे नये नये नखरे और हावभाव होने लगे।

नित्य नये नये प्रेम और नई नई मनबहलाब की बातों से बादशाह का मन ऐसा लग गया कि उन्हें अपने दरबार तक की सुध – बुघ न रहीं, राज में क्या होता है और क्या नहीं इसकी कुछ भी चिन्ता न रही।

कई महीनों का समय इसी प्रकार गुजर गया, परन्तु बिचारे दरबारियों को बादशाह की
खोज करते ही बीत गया, उन्हे यहाँ तक भेद न मिला कि आख़िरकार बादशाह किस पर्दे में जा छिपे हैं। जनाने में रहने का तो हवा भी नहीं लगने पाई थी।

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इधर राज्य में गदर हो जाने की आशंका उत्पत्र हो गई। ऐसी दशा में दरबारियों को बादशाह का अभाव बहुत खलने लगा।

उधर बेगमें दरबारियों से बड़ी सतर्क थीं, वे सब पहले ही से दृढ़ संगठन कर चुकी थीं कि बादशाह का भेद दरबारियों को न मिलने पाये नहीं तो हमारे रंग में भंग डालने को
उद्यत हो जायँगे और कोई न कोई चाल चलकर स्वामी को हमारे कब्जे से बाहर निकाल ले जायँगे।

बादशाह प्रेम पास में ऐसे जकड़ गये थे कि उन्हे इतना भी गम नहीं था कि कहाँ सुबह हो रहा है और कहाँ शाम। बेगमों को अन्य दरबारियों से तो उतनी चिन्ता न थी, परन्तु बीरबल और गंग कवि का उन्हे बराबर खटका बना रहता था। उनको विश्वास था कि यदि इन दोनों में से एक को भी किसी प्रकार से बादशाह का महल में होना विदित हो जायेगा तो ये हाथ मारकार बादशाह को हमारे कब्जे से बाहर निकाल ले जायँगे।इसलिये उन्होने अपनी सहचरियों और पहरे के सिपाहियों को खूब सावधान कर दिया था।

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]इतना ही नहीं उनको अच्छी चौकसी के लिये छिपेतौर से कुछ अधिक वेतन भी देती थीं और उन्हें हुक्म दे रखा था कि कोई भी मर्द महल के भीतर प्रवेश न करने पाये।

जो काम बादशाह के करने का था वह सब रूक गया। बाहर बाहर से कितने ही राजदूत आये, परन्तु उन्हे गद्दी खाली मिली।

इस घटना को देखकर वे बहुत ही चकराये इधर नगर निवासियों के चेहरे पर भी कालिमा का पर्दा पड़ने लगा। आज नौ दस महीने से बादशाह का गुम हो जाना बड़े आश्चर्य की बात थी।

धीरे धीरे लोगों का विचार पल्टा खाने लगा। वे अपनी मनमानी करने पर उद्यत हुए। दरबारियों को गुप्तचरों के जरिये सारी बातें विदित हो जाती थीं, इसलिये उन्हें भय था कि कही बाहरी राजदूत कोई नया फसाद न खड़ा करदे।

बीरबल ने सोचा कि अब बिना बादशाह का पता लगाये अच्छा न होगा। अतएवं
इसका भार बीरबल ने अपने ही सिर उठाया। मुख्य-मुख्य सभासदों की एक प्राइबेट गोष्टी हुई। सबको संबोधन कर बीरबल बोला-मित्रों! अब राज का काम सँभलते नहीं दीखता है, कारण कि बादशाह के गायब हो जाने का समाचार दूर देशों तक फैल चुका है बाहरी राजदूत टंटा फानने पर उद्यत दिखाई पड़ते हैं। ईश्वर न करे कि कहीं से शत्रुओं की चढ़ाई हो जाय, नहीं तो अपने उत्तर में बड़ी अड़चन पडे़गी। ऐसी स्थिति में एक ही शत्रु नहीं होते बल्कि राज्य के लोभ से जो लोग मित्र रहतें हैं वे भी शत्रु बनकर चढ़ाई करने पर उद्यत हो जाते है। फिर इस स्थिति को हम कैसे सँभाल सकेंगे। इसलिये हमें मुनासिब है कि तन तन तथा धन से बादशाह की खोज में लग जाएँ।

टोडरमल नामी एक प्रधान दर्बारी बोला-‘‘बीरबल! मेरी अनुमति से आप पहले महल के उन स्थानों का अन्वेषण करें जहाँ तक कि आपको महल में जाने की आज्ञा है।’’

बीरबल ने कहा- ‘‘यह मैं इससे पहले कर चुका हूँ, परन्तु जब मेरा कुछ वश न
चला तो आज यह बात आप लागों के सामने उपस्थित की है।’’

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गंग कवि बोला-‘‘आप लोगों को विदित है कि मैं बादशाह को देखने के लिये कितना उताबला हो रहा था, सो कल मुझसे बादशाह का साक्षातकार हो गया। मानो सूखते विरवे पर पानी पड़ गया।

गंग कवी की बातों से सबकी आँखें खुल गई।

बीरबल न पूछा- ‘‘आपने बादशाह को कहाँ पर देखा था।’’

गंग ने उत्तर दिया-‘‘वह दिलाराम बेगम के कमरे में सोये थे।’’ बीरबल ने कहा-‘‘ठीक है, बेगम ने बादशाह को मोहित कर लिया है, भला ऐसी दशा में बादशाह दरबार में कैसे आ सकते हैं?’’

गंग कवि ने कहा-‘‘केवल पता लगाने ही में मुझे जानपर खेलने की नौबत आ पहुँची थी अब वहाँ से निकाल लाना कोई आसान बात नहीं है।

बीरबल ने गंग को उसकाते हुये कहा-‘‘फिर भी यह काम सिवा कविवर गंग के दूसरे के किये हो भी नहीं सकता।’’

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Birbal was not only known for his outstanding wit, but also for his impeccable presence of mind and intelligence. Here are some famous witty Best Akbar Birbal Interesting Story  that will amuse your kiddo to the core:

एक अन्य दरबारी ने भी कहा- ‘‘भाई यह साधारण एहसान नहीं है, बादशाह को निकाल लाने वाले की कीर्ति अमर हो जायगी। कारण कि इससे अगणित लोगों का उपकार होगा। गंगजी तुरत कार्य संपादन के लिये अग्रसर हो जाइये।’’

गंग बोले-‘‘क्या खूब! जान पड़ता है कि आप लोग मेरा ही प्राण लेने को उद्यत हुए हैं।’’

खानखाना अबतक चुप्पी साधे हुये था परन्तु गंग को कचड़ियाते देखकर बोला-
‘‘गंगजी इसमें आपके लिये कोई भय करने की बात नहीं है। यदि बादशाह क्रोधित भी रहेंगे तो आपकी तरफ देखते ही पानी पानी हो जायँगे। यह कोई साधारण काम नहीं है इससे आपको एक बड़ा अहसान मिलेगा।’’

गंग बोला-‘‘क्या आप लोग उन बेगमों को कुछ कम समझते हैं जो बादशाह को अपने प्रेम फाँस में जकड़ कर आज दस महीनों से गुम किये हुए हैं यदि वे मुझसे रूष्ट
होकर बादशाह को उल्टा सीधा समझा देगी तो बादशाह मेरी जान लेने पर उतारू हो जायँगे। मेरे बालबच्चे बिलबिला कर वे मौत मरेंगे। बादशाह को महल से बाहर
निकाल लाना शेर का सामना करना है’’

बीरबल बोला-‘‘गंगजी! मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि अबकी बार बादशाह उन बेगमों के हाथ से छूटे कि समझ लेना कि फिर वे उनके हाथ न लगेंगे। इस बार ही
उन सवों ने उन्हें कैसे फँसा लिया, मुझे तो इसी पर बड़ा आश्चर्य हो रहा है।’’

अब राजा टोडरमल की बारी आई वे बोले-‘‘कविवर! आपको हतोत्साह होना शोभा नहीं देता, यह काम कवियों का ही है कि दूसरों को उत्साह देते हुए लड़ाई में स्वयं अपना प्राण भी विसर्जन कर देना। इसके अनेकों प्रमाण पुस्तकों में भरे पडे़ हैं। लड़ाई में प्राण देकर हमारे प्राचीन कवियों ने केवल थोडे से आदमियों की जीवन रक्षा की होगी यहाँ तो समस्त भारत को काल की गाल से बचाना है। आप धैर्य से काम लें, कामयावी आपके ही द्वारा हासिल होगी। इस महान पुण्य का भागी होना विघाता ने
आपही के करम में लिखा है।’’

बीरबल गंग को प्रोत्साहित करने के लिये फिर बोला- हमारे कवि सम्राट तो सदासे सूरमा है, इस बार न जाने क्यों इनका मन कदरा करा है? क्या राज का प्रबन्ध उलटने वाला तो नहीं है? हरीेच्छा! भावी बड़ी प्रबल होती है।’’

गंग से चुप न रहा गया वे बोले-‘‘दीवान साहब अब कुछ न कहो आपके बोलने से मेरा कलेजा फड़कने लगता है। आपने कोई जादूगरी तो नहीं घुसी हुई है। मैं आपकी बातें सुनते ही आप के फेर में आ जाता हूँ।

टोडरमल ने कहा-‘‘देखो गंग मोहनी सोहनी कहना तो टाल मटोल की बातें हैं अब आपको अपना विचार स्पष्ट कर देना चाहिये या तो हाँ करो या ना करके सारा बखेड़ा दूर कर दो।

गंग बोले-‘‘क्या खूब, आप सब लोग एक मत होकर मेरे पीछे पड़ गये हैं, परन्तु स्मरण
रखना कि इस बार प्राण लेने देने की बारी है, जब सर कटाने की दशा उपस्थित होगी तो क्या उस समय भी मेरी रक्षा करोगे।’’

बीरबल ने सबको इशारा किया जिस कारण सब सभासद एक साथ हामी भरने को तैयार हो गये।

बीरबल बोला-‘‘कविवर! आपका एहसान इस सभासदों पर सबसे बढकर होगा। क्या इतने लोगों के कहने पर बादशाह विचार नहीं करेगे।

टोडरमल ने कहा-‘‘गंगजी अब तत्काल बादशाह को महल से निकाल लाने का उपाय करो।’’

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गंग बोला-‘‘मैं दीवान बीरबल और राजा टोडरमल प्रभृत सभी दर्बारियों से आग्रह पूर्वक निवेदक करता हूँ कि इस समय मेरा दिल और दिमाग काम नहीं करता है अतएवं इस समय यश प्राप्ति के लिये कोई दूसरा दरबारी बीड़ा उठावे।

मेरी सम्मति में तो ऐसा आता है कि बीरबल मानसिंह टोडर मल और खानखाना, प्रभृत कोई भी दरबारी इस काम का भार अपने सिर ले तो अति उत्तम हो।’’

राजा टोडरमल बडी चिन्ता में पड़ गये उन्होने विचार किया कि जिस बात को हम लोग घंटो परिश्रम कर इतने ऊँचे चढ़ाया था वह थोड़े ही में गिरना चाहती है यदि सचमुच में गिरही गई तो यह आज की सभा निष्फल हो जायगी। उन्होने कहा-‘‘जो काम जिसके करने का है वही उसके करने का असली हकदार है। कविवर! यह काम कवियों का है ?, इसे कोई दूसरा नहीं कर सकता।’’

गंग कवि इस बार बिल्कुल निरूत्तर हो गया असल में बात भी सही थी, सही के आगे हरएक विचार-वान पुरूष को झुकना पड़ता है। उसने हामी भर ली और बोला-‘‘चाहे जैसे भी हो अब बादशाह को जनाने महल से बाहर निकाल कर ही दम लूँगा।’’

समस्त दरबारी आनन्द विहल हो गये।

इसके पश्चात सभा का काम बन्द हुआ। लोग दुसरे कार्यो का सँभाल करने लगे।
उघर गंग की और भी खराब हालत थी। उसने विचार किया कि जो काम मुझे ही करना जरूरी है उसमें व्यथं आगा पीछा करना उचित नहीं। मैं इस कार्य को आज ही सम्पादन करूँगा। यह सुराख बेगमों को लग गई तो फिर काम होना असम्भव हो जायगा। वे बादशाह को ऐसी गुप्त कोठरी में छिपा देंगी कि वहाँ तक मेरा पहुँचना ही कठिन हो जायगा।

जब अर्ध रात्रि का अमला आया तो अपनी पोशाक बदल कर मयावनी सूरत बना ली। दिन में ही एक काला बुरका और एक हाथ भर की ऊँची काली टोपी सिलवा कर
दुरूस्त करवा लिया। जब मध्य रात्रि आई तो बुरका और टोपी को धारण कर हाथ में एक मोटा सा लट्ठ बाँध घर से बाहर निकला। एक हाथ में माला भी लटका रही थी। उसने अपनी सूरत राक्षस की बनाई थी। रास्ते में लोगों से साक्षातकार न हो जाय इस भय से हटता बढ़ता निर्धारित स्थान की तरफ अग्रसर हुआ।

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जनाने बाग के द्वार पर पहुँच कर आगा पीछा सोचने लगा। उसके मनमें यह समाई कि अगर सदर फाटक से चलता हूँ तो निश्चय है कि पहरे वालों से मुतभेड हो जायगी। अतएवं गुप्तद्वार से चलने में ही कल्याण दीख पड़ता है। उसने गुप्त द्वार का ही आश्रय लिया।

रात्रि का चतुर्थ पहर था-लुकते छिपते वह एक ऐसी जगह जा पहुँचा जहाँ से हल्का प्रकाश बाहर को आ रहा था।

बादशाह पाखाने से निवृत्त होकर दातून कर रहा था, उसके चारों तरफ बारांगनाओ की चौकी थी। बादशाह का आनन्द उपभोग देखकर गंग चकरा गया। और मन ही
मन सोचा-‘‘भला ऐसा कौन त्यागी होगा जो ऐसा इन्द्रभवन का उपभोग त्यागकर दुनिया के बखेड़ों में फँसकर जीवन व्यतीत करेगा। किसी के आनन्द में बाधा पहुँचाने से बड़ा प्राश्चित लगता है, परन्तु क्या करूँ मैं तो कतव्य की बेड़ी पहन चुका हूँ, मुझे तो उसका निर्वाह करना ही पडेगा। फलदाता ईश्वर है उसे जो पसन्द होगा करेगा।

ऐसा संकल्प विकल्प कर अपने मनको भली-भाँति पक्का कर लिया फिर खिड़की के समीप पहुँच कर एक गहरी ललकार देकर बोला-‘‘ऐ बादशाह! तू अभी तक अपने को मनुष्य समझकर अचेत पड़ा है, परन्तु बाहर के लोग तुझे घोड़े और गदहे की उपाधि वितरण कर रहे हैं, क्या तुझे इसका भी कभी ध्यान आता है, मौका है अब भी सँभल जा।’’

इतना कहना था कि वह बड़ी तेजी से निकल भागा, उसके भागने की गति इतनी तेज थी कि चाहे कोई कितना ही दौड़ाक क्यों न होता परन्तु उसका हाथ नहीं मार सकता था।

बादशाह भीतर से पुकार कर बोले-‘‘अरे कोई है, इस नालायक को अभी जान से मार डालो।’’ बादशाह को गंग ऐसा प्रख्यात कवि का शब्द ज्ञात था उसकी आवाज से उसने गंग का होना निश्चत किया और उसके कहने का भावार्थ भी उनकी समझ में आ गया, लेकिन यहाँ कौन आकर बोल गया यह उनके मन में स्थिर न हो सका। वह भली भाँति से जानते थे कि इस स्थानपर आने में पशु पक्षी तक भयभीत होते हैं
भला कोई मनुष्य कैसे आ सकता है।

उधर बिचारा गंग प्राण लेकर भागा तो सही परन्तु फिर भी चौकीदारों की हद से बाहर नहीं जा सका, आखिरश पकड़ा ही गया।

चौकीदारों ने देखा कि यह तो कविवर गंग हैं, इनका यहाँ आना मतलब से खाली न होगा। अगर कोई चोर घुसा होता तो हम उसे मार डालते, परन्तु इनको मारना उल्टे हम लोगों का प्राण घातक होगा। वे उसे सजीव छोड़ दिये।

बिचारा गंग कैद कर लिया गया, बादशाह क्रोध से तुम तमाया हुआ महल से बाहर निकला, बेगमों ने हरचन्द उन्हे रोकने की कोशिश की परन्तु किसी की एक न सुनी।

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कवि गंग की घोड़े और गदहे वाली उपमा उनके मन में उबल रही थी।

बेगमों को अपने दरबारियों की इस हरकत पर बड़ी नाराजगी हुई और वे उन्हे लाखों प्रकार की बददुआयें देने लगी।

अन्त में यह जानकर उन्हे कुछ तसल्ली हुई कि जिसने हम लोगों के रंग में भंग डालकर बादशाह को बाहर निकाला है उसका प्राणदण्ड की सजा मिलेगी और आज से सबपर विदित हो जायगा कि ऐसा कर्म करने वाले की कैसी दुर्गति होती है।

दरबारियों का जब बादशाह का बेगमों के फन्दे से छटना और कविं गंग पर आई विपत्ति का समाचार मिला तो हर्ष और शोक दोनों को एक साथ ही प्राप्त हुए।

बादशाह बाहर निकलने के दूसरे ही दिन सारे नगर में अपने प्रगट होने का ढिढोरा पिटवा दिया जिसका प्रजावर्ग में आनन्द की वर्षा होने लगी और अत्याचार यानी
बगावत करने की इच्छा करने वालों की भय उत्पन्न हो गया। दरबार के समय नगर के हर एक विभाग से दरबारीगण और प्रजावर्ग के लोग आ आ कर दरबार को भरने लगे।

बादशाह क्रोधोन्मुख सिंहासन पर आ बिराजे। इतने दिन के पश्चात आज बादशाह को लोगों ने सिंहासन पर देखा। लोग बादशाह को सलाम कर अपनी। जगहों पर जा बैठे।

बादशाह से रूख मिलाने की किसी में हिमम्त न थी, सबका सिर नीचे को झुका हुआ था।

इसी बीच सिपाही लोग गंग कवि को रात्रि वाली पोशाक में बाँधकर दरबार में ले आये।

गंग को प्रोत्सहन देकर भेजने वाले दीवान प्रभृत सभी दर्बारियों ने गंग के निराले ढंग को देखा। वे मनह ही मन ईश्वर से उसकी खैर मनाते हुए सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगे। वे तन मन से उसकी जीवन रक्षा करने के लिये तत्पर थे।

बादशाह गंग को न पहचान कर बोले-‘‘मैं क्या देख रहा हूँ, क्या यह कोई प्रेत वा पिशाच तथा भूत तो नहीं है?’’

तब गंग कवि को सुअवसर मिला और वह बधा बँधा झुक कर बादशाह को सलाम किया। सलाम करते समय उसकी लम्बी टोपी जमीन पर गिर पड़ी जिससे उसका चेहरा साफ साफ दिखाई पड़ने लगा।

बादशाह गंग को देखकर पहचान गये और बोले-‘‘गंग! तुमने किस अधिकार से रात्रि के समय मेरे जनाने महल में प्रवेश किया था? तुम्हारा कसूर प्राण दण्ड पाने का है।’’

गंग लाचार था, उसने अपने मुख से कुछ भी उत्तर न दिया।

बादशाह की आज्ञा पाते ही बधित उसे कतल करने के लिये ध्यान से तलवार
निकाल कर सामने आये।

गंग अपनी अन्तिम घड़ियाँ गिनने लगा, फिर उसका ध्यान उन दरबारियों की तरफ गया जिनकी कृपा से वह इस दशा को प्राप्त हुआ था। वह बारी बारी सबके मुख की
तरफ फिर कर देखा। इशारे से हरचन्द लोगों को अपनी सहायता के लिये प्रोत्साहित किया, परन्तु प्राण जाने के भय से सहायता करने की कौन कहे कोई सिर उठाकर उसकी तरफ देखा तक नहीं।

बादशाह गंग की सारी हरकतों का मनोमन निरीक्षण कर रहे थे, अखिरकार उनसे न रहा गया और गंग से बोले-‘‘गंग ! तू आज यह कौन सा ढंग निकाला है दरबार
है या तमाशे का घर।

गंग से रहा न गया, कल की सभा के परामर्श दाताओं की काली करतूत उसे सूल की तरह बेध रही थी। अभी कल तो वे उसे विमानारूढ़ कर सदेह स्वर्ग पहुँचाने पर तुले हुए थे और आज किसी के मुख में छेद ही नहीं दिखाई पड़ता। ऐसा प्रतीत होता है कि अगली बातों से इन्हे कुछ भी परिचय नहीं है। जब मुझे काल के गाल में जाना ही है तो इन्हे भी विश्वासघात का मजा चखाकर जाना चाहिये ताकि सबको आगे के लिये मेरा सबक याद रहे।

कवि गंग दरबारियों की तरफ हाथ का इशारा करके बोला-‘‘हुजूर! इन्ही दरबारियों की काली करतूतों के कारण आज मैं इस दुर्गति को प्राप्त हुआ हूँ, इसमें इन सबों का सारा अपराध है। फिर उसने सभी बातें एक एक कर कहना शुरू किया।

गंग कवि को बातों से बादशाह को बड़ा कौतूहल हो रहा था, इस पर तो वे खिलखिला कर हँस पड़े जब कि गंग द्वारा उसे मालूम हुआ कि दरबारी लोग कल की सभा में उसे
बचाने का कस्द करके अब मुँह से चूँ तक नहीं बोलते।

बादशाह ज्यों ज्यों गंग कवि से उसकी कहानी सुनते गये त्यों त्यों उनके क्रोध में कमी आती गई। अन्त में वे प्रसन्न होकर गंग कवि के प्राणदण्ड की सजा रद्द करदी
और उसके कर्तव्यों को उपकार को दृष्टि से समझ कर उसे अच्छी पारितोषिक प्रदान किया।

बादशाह ने कहा- ‘‘देखो कविवर! मेरी बाते गठिया कर रखलो, जो लोग मधुर भाषी होते हैं वे कभी भी अपने वादे के सच्चे नहीं निकलते। इसलिये किसी की मीठी मीठी बातें सुनकर उसके फेर में तबतक नहीं आता चाहिये जबतक कि उसका दिली भाव
न समझ में आ जाय।’’

बादशाह को अपने दरबारियों की घूर्तता से कुछ खेद सा उत्पन्न हो गया था इसलिये उनकी तरफ इशारा करके बोले- ‘‘आप लोगों ने इस विचारे बृद्ध को मरने के लिये तो भले ही उसका काम निकाल लिया, परन्तु उसके छुड़ाने का किसी ने कुछ भी प्रयास नहीं किया क्या तुम्हें यही करना यथोचित था।’’

बीरबल बोला-‘‘हुजूर! हम लोग कविवर के बड़े आभारी है क्योंकि इन्होने अपनी जान पर खेलकर हजारों की प्राणरक्षा की है। हम इस बात से भली भाँति परिचित हैं कि
आप परिणामदर्शी है, इसलिये उन्हे मरने न देंगे। यदि बीच में हम लोग आप से कोई छेड़ छाड़ करते तो आपकी क्रोधाग्नि और भी भड़क जाती, फिर उस समय हमलोगां के सँभाले न सँभलती, इन्हीं सब परिणामों पर दृष्टिपात कर सब लोग खामोश रह गये।’’

फिर यह काम समाप्त कर बादशाह पिछड़े राजकीय कामों के करने में तत्पर हुए और पहले के समान बराबर दरबारियों में उपस्थित होकर सारे पिछड़े हुए कामों को थोड़े दिनों में ही सँभाल लिया। दर्बारियों की इस चातुर्ष्यता से आतंक फैलाने वालों का शिर नीचा हो गया।

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