बादशाह का नाखून | King’s Nails | Akbar Birbal Hindi Kahani

Akbar Birbal Hindi Kahani

अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में Akbar Birbal Ki Kahaniya In Hindi Series में हम लेकर आये हैं एक और रोचक अकबर-बीरबल की कहानीबादशाह का नाखून | King’s Nails | Akbar Birbal Hindi Kahani Story In Hindi आइये जानते हैं ;

बादशाह का नाखून | King’s Nails | Akbar Birbal Hindi Kahani

किसी देश के बादशाह का लड़ाई में पैर का अँगूठा कट गया था। उस बादशाह के पास बहुतेरे हकीम इसी काम के लिये नियुक्त किये गये थे कि जब कोई लड़ाई में आहत होता तो हकीम लोग उसका इलाज किया करते थे।

हकीमों ने बादशाह के अँगूठे पर फिर से मांस आ जाने का बहुतेरा प्रयास किया
जिससे मांस तो बढ़ आया परन्तु नाखून नहीं उगा। इसलिये बादशाह हकीमों पर चिढ़कर उन्हे कैद कर लिया और बिचारों को जेल में बन्द रहकर कैद की यातना भुगतनी पड़ रही थी।

बादशाह इतना करके भी सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसने बहुतेरे हकीमों को बारी बारी से बुलवा कर अपने नाखून के जमने का इलाज पूछा परन्तु जब वे निरूत्तर रह जाते, तब उन्हें तुरन्त जेल की हवा खाने के लिये भेज देता।’’

बादशाह की इस निष्ठुरता का समाचार क्रमशः दूर दूर देशो में फैल गया। बिचारे वैद्य हकीमों को बड़ी चिन्ता उत्पत्र हुई। कितनों ने तो इस पेशे को त्याग कर दूसरा पेशा
अख्तियार कर लिया।

बहुतेरों ने जंगल पहाड़ों में छिपकर अपनी आत्म रक्षा की। विचारे रोगी चिकित्सकों के अभाव में तड़प तड़पकर मरने लगे।

यह घटना क्रमशः हिन्दुस्तान के वैद्यों ने भी सुनी। वे भी डरे और चाहते थे कि इस पेशे की त्यागकर आजीविका उपार्जन का कोई दूसरा मार्ग निकालें।

इसी बीच यह बात फूटते फूटते अकबर बादशाह के कानों तक पहुँची। बादशाह को ऐसे अत्याचारों को सुनकर बड़ा कष्ट हुआ और वे अपनी सभा बुलवा कर लोगों से दीन प्रजा की रक्षा का उपाय पूछा।

बीरबल बोला-‘‘शहंशाह! यदि मैं किसी प्रकार बाद-शाह तक जा पहुँचूँ तो कोई युक्ति लड़ाकर सब कैदियों को मुक्त करा दूँगा।’’ बादशाह ने इस काम को करने के लिये
बीरबल को एक मास की मुहलत दी।

बीरबल वैद्य का सा रूप बनाकर उस शहर में जा पहुँचा और गरीबों की मुफ्त दबा करने लगा।

धीरे धीर वैद्यगी का सब सामान भी संग्रह कर लिया। इसकी दवा से बहुतेरे रोगी आरोग्य हो गये। जिस कारण इसका यश नगर में बिजली की तरह फैलने लगा।

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शहर के कितने रईसों ने बीरबल को परोक्ष में समझाया-‘‘इस नगर को छोड़कर बाहर चले जाओ, नहीं तो बादशाह आपको भी कैद कर मरवा डालेगा। बेबजह जान गँवाने से क्या लाभ।’’

परन्तु बीरबल ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया। वह बराबर अपना काम दत्तचिन्त होकर करता ही रहा।

क्रमशः यह बात बादशाह के कानों तक पहुँची। वह तो बराबर ऐसे हकीमों की फिराक में पड़ा ही रहता था। इसलिए दूसरे ही दिन अपना सिपाही भेजकर बीरबल को अपनी सभा में बुलवा कर बोला-‘‘हकीम जी! मैने आपका बड़ा नाम सुना है, यदि आप मेरा भी कुछ भला करें तो मैं आपका बड़ा उपकार मानूँगा।

मेरे अँगूठे का नाखून लड़ाई में कट कर गिर गया है। मैने उसको फिर से उगाने के लिये बहुतेरे हकीम और वैद्यों की दवाएँ की, पर कोई वैद्य यह नहीं कर पाया।

यदि आपकी औषधि से लाभ होगा तो मैं सदैव आपका गुणगान करूँगा।

बीरबल बोला-‘‘बेशक मैं आपका इलाज करूँगा, मुझे इस रोग की दवा मालूम है। उसके लगाने से पाँच दिनों के अन्तर्गत आपका नाखून फिर से उग आयेगा। मेरे गुरू का इस दवा पर बड़ा भरोसा है। उन्होने मुझ से बतलाया था कि यह दवा कभी व्यर्थ नहीं जा सकती। आप मेहरबानी करके मेरे बतलाने के अनुसार दवावों का संग्रह करा दीजिये।
बादशाह प्रसन्न होकर बोला-‘‘हकीमजी! मुझे अब तक बहुतेरे हकीमों से पाला पड़ चुका है, परन्तु आपसा अपनी दवा में दृढ़ता रखने वाला एक भी न मिला।’’

बीरबल बोला-‘‘यदि परमात्मा सहायक रहा तो मैं आपसे निश्रचय पूर्वक कहता हूँ कि तीन दिन में फिर आपके नख पहले के समान उग आवेगे।

हाँ साथ ही इसके एक बात और है, मेरी दवा के नुस्खे कुछ ऐसे आसान नहीं हैं, उनके एकत्रित करने में बड़ी कठिनता होगी।

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बादशाह बोला-‘‘कोई कठिनता नहीं है, क्या मैं इतना बड़ा बादशाह होकर दवाओ को संग्रह न कर सकूँगा?

बीरबल ने कहा-‘‘चाहे जो हो, संग्रह करना आपका काम है। मैं तो ऐसा कहता भी नहीं हूँ कि आप उसे संग्रह नहीं कर सकेगे।

एक शर्त लिखनी पड़ेगी कि अगर एक मास के अन्तर्गत आप दवावों का संग्रह न कर सकेंगे तो फिर आपका मुझपर कोई दावा नहीं रह जायगा और आपके यहाँ जितने हकीम और वैद्य कैदी है सबको छोड़ देना पडे़गा।

हाँ मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि जब कभी आप मेरी दवा मँगवा देंगे मैं बिला उज्र आपकी खिदमत में हाजिर होऊँगा।’’

बादशाह ने अपने मन में अनुमान किया-‘‘यह हकीम पहले पहल इस नगर में आया है इसलिये इसको मेरे खजाने का ज्ञान नहीं है। समझता है कि इतना द्रव्य बादशाह न खर्च कर सकेंगे कि जिससे दवा खरीदी जा सके। भला ऐसी वह कौन सी दवा होगी कि जिसे मैं न खरीद सकूँगा?’’

वह अपने मन में खूब संकल्प विकल्प कर अपने को दृढ़ बना कर बीरबल के कथनानुसार प्रतिज्ञा पत्र लिख दिया और फिर हकीम से दवा का नाम बतलाने की प्रेरणा की।

बीरबल को भीतर भीतर बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने जान लिया कि अब निरपराध हकीम और वैद्यों के मुक्त होने का समय नजदीक आ गया है, हरि इच्छा। प्रगट में बादशाह का यह शेर पढ़कर सुनाया-

‘‘आना नहीं मुश्किल है कुछ नाखून का।
फूल गर गूलर के हो वा रोम हो भालू का।।’’
उसके उपरोक्त शेर को सुनकर बादशाह अपने दीवान को
दोनों वस्तुओं को यथाशीघ्र मँगवाने की आज्ञा दी।

दीवान अपने निमक खाये भर परिश्रम करके थक गया। परन्तु उसे
सफलता न मिली। उधर एक महीने की शर्त भी पूरी हो गई।

बादशाह को लाचार होकर सब कैदी वैद्य और हकीमों को जेल से मुक्त कर देना पड़ा।

बादशाह ने कैद से छूटे हकीम वैद्यों को बलवाकर उपरोक्त दवाका गुण पूछा-‘‘बीरबल उन्हे पहले ही से सावधान कर चुका था इसलिये वैद्यों और हकीमों ने बीरबल की दवा की बड़ी तारीफ की।

बादशाह को कही से बीरबल का क्षिद्रानवेषण करने की जगह न मिली। अतएवं वह उसे एक उत्तम कोटि का हकीम समझकर उस पर रूष्ट नहीं हुआ।

विचारे हकीम कैद से छूटकर उसे बहुत दुआ दी और सभी ने आपस में सहयोग कर अपने प्राणरक्षक को एक अच्छी रकम भेट दी।

बीरबल वहाँ से चलकर कई दिनों के पश्चात दिल्ली पहुँचा और बादशाह के सामने वहाँ का समाचार कहकर सुनाया, बादशाह ने बीरबल के बुद्धिमानी की बड़ी प्रशंसा की ओर अन्य दरबारी भी वाह वाह करने लगे।

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