मनुष्य को सबसे प्रिय कौन है? Who is dearest to man ? Birbal Akbar Story In Hindi

Birbal Akbar Story In Hindi

अकबर-बीरबल की कहानियों की श्रृंखला में Birbal Akbar Story In Hindi Series में हम लेकर आये हैं एक और रोचक अकबर-बीरबल की कहानी मनुष्य को सबसे प्रिय कौन है ? आइये जानते हैं ;

Who is dearest to man ? Birbal Akbar Story In Hindi

एक दिन बादशाह अपने दरबार में बैठा था उसका दो साल का बेटा शाहजादा सलीम उसकी गोद में आनंदपूर्वक खेल रहा था। उसकी बाल-चपलता देखकर बादशाह आनन्द-मग्न हो हो रहा था। उसकी तोतली बातों ने बादशाह के आनन्द को और भी बढ़ा दिया था।

अचानक से बादशाह के मन में एक प्रश्न उठा कि ‘‘इंसान को अधिकतर प्रिय क्या होता है?’’

बादशाह अपने मनोगत भावों को दबा न सका और तत्क्षण समस्त दरबारियों से पूछा-‘‘इस पृथ्वी के प्राणियों को अधिकतर प्रिय क्या है?’’

दरबारी सोच में पड़ गये? कोई कुछ कहता तो कोई कुछ। अन्त में सब आपस में गोष्ठी करने लगे, परन्तु फिर भी किसी से संतुष्ट उत्तर नहीं मिल पाया।

बीरबल की अनुपस्थिति में इन विचारों पर कभी कभी ऐसी विपत्ति आ जाया करती थी। यदि बीरबल वहां होता तो बादशाह भी बीरबल के रहते ऐसी बाते किसी दूसरे दरबारी से कभी न पूछता पड़ता।

आज भी सभा में बीरबल न था जिस कारण अन्य लोगों के ऊपर ऐसी आफत आई।

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कुछ देर सोच समझ लेने के बाद सर्वसम्मति मिलाकर एक बृद्ध दरबारी बोला-‘‘हुजूर! अधिकतर प्रिय लड़का होता है।’’ दरबारियों ने आपस की सलाह से निश्रिचत किया था
कि इस समय बादशाह लड़के को गोद में लिये हुए खिला रहा है अत एवं उसके प्रश्न का इशारा लड़के की तरफ ही है।

बादशाह ने उस समय बृद्ध दरबारी का उत्तर स्वीकार कर लिया और सभा बरखास्त हुई। लेकिन कहीं न कहीं बादशाह इस उत्तर से संतुष्ट नहीं थे।

बीरबल राजकीय कार्य से कहीं बाहर गया था दैवान्त दूसरे ही दिन आ पहुँचा। बादशाह को तो पहले की धुन बँघी हुई थी, बीरबल को सभा में बैठते ही वही प्रश्न उससे भी किया।

बीरबल बोला-‘‘हुजूर! प्राणी को अपनी जान सबसे अधिक प्यारी होती है। इसकी तुलना और किसी से नहीं की जा सकती, चाहे वह अपना कितना ही सगा संबन्धी
क्यों न हो?

तब बादशाह ने अपने दरबारियों का मान रखने के लिये बीरबल की बात काटकर कहा-‘‘तुम्हारा कहना गलतहै, क्या लड़का प्राण से प्यारा नहीं होता?’’ तुमको यदि अपने कहने पर पूरा विश्वास है तो उसे प्रमाणित करके दिखाओ,

बीरबल बादशाह की आज्ञा से बोला- ‘‘हुजूर! बाग का एक बड़ा हौज ;पानी भरने को बर्तन खाली करने की बागवान ;मालीद्ध को आज्ञा दी जावे तब तक मै बाजार से कुछ जरूरी चीजें लेकर लौट आता हूँ। आप सभी दरबारियों सहित बाग में उपस्थित
रहें, वही पर मैं इस बात को प्रमाणित कर के दिखलाऊँगा।

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बादशाह की आज्ञा पाकर बागवान ने सबसे बड़ी हौज को खाली कर बादशाह को सूचित कर दिया।

बाग में बैठने के लिये बादशाह की तरफ से समुचित प्रबंध किया गया और वे दरबारियों के सहित बाग में दाखिल हुए। तब तक बीरबल भी एक बँदरिया को उसके बच्चे सहित लेकर बाग में आया।

बीरबल ने बँदरिया को बच्चे सहित हौज के मध्य भाग में लटकाकर ऊपर से पानी भरने की आज्ञा दी।

हौज में पानी भरा जाने लगा। पानी क्रमशः हौज के ऊपर चढ़ आया। बँदरिया बराबर अपने बच्चे को ऊपर उठाती गई। यहाँ तक कि बच्चा उसकी पीठ पर बैठ गया और
पानी का बढ़ना बराबर जारी रहा।

जब पानी बढ़कर उसके गले तक पहुँचा तो वह खड़ी हो गई और अपने बच्चे की अपने हाथ पर रखकर ऊपर उठा लिया। सब लोग इस नजारे को बड़ी गौर से देख रहे थे। बादशाह बीरबल को चिताकर बोला-‘‘क्यो बीरबल! क्या देखते नहीं हो कि किस प्रकार बँदरिया अपने प्राणों पर खेलकर बच्चे की रक्षा कर रही है, क्या अब भी पुत्र को सर्वोपरि प्रिय मानने को तैयार नहीं हो?’’

बीरबल ने उत्तर दिया-‘‘हुजूर! थोड़ा और ठहर जाइये, अभी बँदरिया के प्राण पर नहीं आई है, थोड़ी देर में फैसला हो जाता है।’’

अभी बीरबल और बादशाह मे उपरोक्त बाते हो रही थी कि बँदरिये के मुख में पानी भरना शुरू हुआ। पानी भरने के कारण उसका दम घुटने की नौबत आ गई, नाक में पानी भरने लगा, वह अधीर होकर बहने लगी। आखिरकारी लाचार हो उसने बच्चे की ममता छोड़ दी और अपने प्राण बचाने के लिये एक नया उपाय निकाला।

झट बच्चे को पानी में डुबाकर खुद उसके ऊपर खड़ी हो गई, इस प्रकार उसका मुँह पानी से ऊपर हो गया।

बीरबल ने बादशाह को उसे दिखला कर बागवान को पानी रोकने की आज्ञा दी। पानी आना तुरत बन्द हो गया और बँदरिया बच्चे सहित सजीव ;सही सलामत बाहर निकाल ली गई।

बीरबल ने कहा-‘‘हुजूर! आपने प्रत्यक्ष देखा है कि जब तक प्राण बचने की आशा थी तब तक बँदरिया बच्चे का प्राण बचाने की बराबर यत्न करती रही, परन्तु जब उसके
ही प्राणों पर आफत आई तो वह बच्चे की जीवन-रक्षा भूल गई, बल्कि स्वयं उसके जान की गाहक होकर अपना प्राण बचाया।

बादशाह दरबारियों सहित बीरबल की बुद्धि की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली।

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