सतीत्व की रक्षा ~ रानी पद्मिनी की वीरता की कहानी | Real Story of Rani Padmini (Padmavati) in Hindi

Real Story of Rani Padmini in Hindi

दोस्तों ज्ञानवर्धक कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं भावनात्मक कहानी जो एक स्त्री की वीरता एवं सतीत्व की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देने की एक सच्ची कथा है । आइये जानते हैं हिंदी कहानी ‘Real Story of Rani Padmini (Padmavati) in Hindi’

सतीत्व की रक्षा ~ रानी पद्मिनी की वीरता की कहानी | Hindi Story of Rani Padmini

चित्तौड़ में रतनसिंह नाम के एक राणा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम पद्मिनी था। रानी पद्मिनी बहुत सुन्दर थीं। सब लोग उसके असीम सौन्दर्य की चर्चा करते थे।

उस समय दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी राज करता था।

जब उसने रानी पद्मिनी के सौन्दर्य की बात सुनी तो वो किसी न किसी तरह उसे अपनी बेगम बनाने की उन की इच्छा हुई।

उसने राणा रतनसिंह को एक खत लिखा।

उसमें लिखा था-‘ मैं पद्मिनी को चाहना हूँ। तुम उसे मुझे सौंप दो। उससे मेरे अन्तःपुर की शोभा बढ़ेगी। यदि तुम उसे देने से इनकार करोगे तो उस का नतीजा अच्छा नहीं होगा’।

पत्र पढ़कर राणा आपे से बाहर हो गये। उसने सोचा-बादशाह को इतना घमंड! इतनी बेशर्मी!! यदि मैं उससे इस अपमान का पूरा पूरा बदला न ले सकूँ तो मैं राजपूत नहीं’।

राणा ने तुरन्त पत्र का जवाब लिखा। उस का सारांश यही था-‘ आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी।

राजपूत अपनी जान देगे, पर आन नहीं देगे। आपके होश ठिकाने नहीं हैं। यहाँ आने का मैं आप को निमन्त्रण देता हूँ। आप के होश दुरूस्त करना हम जानते हैं’।

रतनसिंह का पत्र पढ़कर अलावुद्दीन आग-बबूला हो गया।उसने एक बडी सेना लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण किया। घोर युद्ध हुआ।

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दोनों तरफ की सेनाओं ने अपनी अपनी वीरता दिखलायी।

हजारो सिपाही हमेशा के लिए युद्ध क्षेत्र में सो गये।

खून की नदियाँ बहीं।

कुछ दिनों तक लडाई होती रही। किसी की जीत या हार न हुई।

आखिर अलाउद्दीन ने एक तरकीब सोची।

उसने राणा को लिख भेजा कि ‘व्यर्थ के रक्तपात से क्या लाभ है?

मैं पद्मिनी को एक बार देखना ही चाहता हूँ। इसलिये आप मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करे’।

राणा ने पत्र पढ़ा। उन्हे बड़ा क्रोध आया। उन के दिल में प्रतिकार की आग भड़क उठी।

पद्मिनी ने अपने स्वामी को शान्त किया और कहा- ‘‘बादशाह केवल मुझे देखना ही चाहता हैं। यदि उस से लडाई खतम हो सके तो उन्हे जरूर अनुमति देनी चाहिये।

लेकिन इस शर्त पर आप उन्हें अनुमति दे सकते हैं कि बादशाह को एक आइने में मेरी प्रतिच्छाया ही देखकर अपने को सन्तुष्ट करना होगा।

अगर वे हमारी यह शर्त मंजूर करें तो ऐसा करने में क्या हर्ज है? व्यर्थ के रक्तपात से हमारी रक्षा होगी न?’’

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Real Story of Rani Padmini

राणा ने पहिले पद्मिनी की बात नहीं मानी। लेकिन पद्मिनी बड़ी चतुर थी। उस ने राणा को समझा-बुझा कर राजी कर लिया।

राणा ने अलाउद्दीन को लिखा कि ‘‘एक शर्त पर हम आप की मंजूर करते हैं। शर्त यह है कि आप को अकेले आना होगा और पद्मिनी की प्रतिच्छाया आइने में देखकर लौट जाना होगा’’।

अलाउद्दीन बड़ा चालाक था। सोचा-किसी तरह चित्तौर-दुर्ग में प्रवेश कर सकूँ तो फिर सब बातें मैं ठीक कर लूगा’।

उसने अपने कुछ खास सिपाहियों को पहाडों पर छिपाकर रखा। राणा को सन्देश भेजा कि उन की शर्तें स्वीकार हैं।

अलाउद्दीन चित्तौड़ के अन्तःपुर में दाखिल हुआ।

राणा ने उसका स्वागत किया। बातचीत शुरू हुई।

अचानक अलाउद्दीन को सामने रखे हुए आइने में पद्मिनी की प्रतिच्छाया देख पडी।

वो उसकी सुन्दरता पर वे मोहित हो गया। पीछे घूमकर देखने की उन की इच्छा हुई। पर अपने को अकेला समझकर वे चुप रहा।

उसका मन बेचैन हो रहा था। बडी मुश्किल से उसने मन को रोक रखा।

पांच मिनट के बाद वह परछाई एक सुन्दर, मधुर स्वपन के समान गायब हो गयी।

उलाउद्दीन ने एक लंबी सांस ली।

वो उठा। लौटने को तैयार हुआ।

राणा भी उनके साथ कुछ दूर तक गये।

फाटक के बाहर जाते ही अलाउद्दीन ने सीटी दी।

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पहाड़ो में छिपे हुए सैकडों सिपाही वहाँ पहुँच गये।

उन्होने रतनसिंह को बाँध लिया।

इस धोखे से राण रतनसिंह दिल्ली में अलाउद्दीन के कैदी हो गये।

शर्त यह रखी गयी कि पद्मिनी को पाये बिना राणा का छुटकारा नहीं हो सकेगा।

पद्मिनी ने भी बादशाह को धोखा देकर अपने स्वामी को बचाते का निश्चय किया।

उसने बादशाह को सन्देह भेजा कि वह अपनी दासियों के साथ दिल्ली में आ रही हैं।

यह खबर पाकर बादशाह फूले ना समाया। पद्मिनी के स्वागत का अच्छा प्रबन्ध किया गया।

शाम को 80 पालकियाँ वहाँ आ गयी।

सब में पद्मिनी की दासियाँ थीं।

पद्मिनी ने खबर दी कि मैं अपने पति के अन्तिम दर्शन करना चाहती हूँ।

बादशाह ने उसे इजाजत दे दी।

एकाएक जेलखाने में शोरगुल हुआ। तलवारों का झनझनाहट हुई। बादशाह घबराये।

उन्होने पता लगाया कि क्यों यह शोरगुल हो रहा है।

उन्हे खबर मिली कि रतनसिंह कैद से छूट गये हैं।

पालकियों में दासियों के वेष में राजपूत बीर आये थे। व अपने राणा को छुडाकर ले गये।

बादशाह शरमिन्दा हो गया । लेकिन उसने बदला लेने का निश्चय किया और पूरी तैयारी के साथ फिर चित्तौर पर चढाई की।

अबकी बार भी रतनसिंह ने बडी बहादूरी के साथ उनका मुकाबला किया। लेकिन आखिर राजपूत सेना तितर बितर हो गयी। रतनसिंह की हिम्मत टूट गयी।

अन्तःपुर में ‘जौहर व्रत’ की तैयारी हुई। अपने सतीत्व की रक्षा के लिए राजपूत रमणियों ने धधकती हुई आग में बडी खुशी से अपने प्राणों की आहुति चढाई।

सतीत्व की रक्षा के लिए 16,000 रानियो और दासियो के साथ जौहर (अग्निकुण्ड में प्राणो की आहुति दी) किया|

राजपूतों ने भी बडी वीरता के साथ युद्ध करते हुए वीर-गति पायी।

अलावुद्दीन विजय-गर्व से उन्तत्त होकर अन्तःपुर में दाखिल हुआ। पद्मिनी की मूर्ति उन की आँखों में बसी हुई थी।

अब वे उसके दर्शन के लिए उतावला हो रहा था। उसे अन्तःपुर में एक जगह पर राखकी ढ़ेरी नजर आयी!! सब बातें उसकी समझ में आ गई।

उसने एक ठण्डी आह भरी। हाय! जिस के लिए इतनी खून खराबी हुई, वह न मिल सकी।

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