दोस्तों प्रेरक कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं भावनात्मक कहानी जो एक ऐसे लड़के की है जिसने अपने देश के लिए अपनी प्राणों को भी न्योछावर कर दिया उसके देश प्रेम की भावना देख उसके पिता भी देश के लिए न्योछवर हो गए। आइये जानते हैं हिंदी कहानी ‘ Patriotism Story In Hindi ‘
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सच्चे देशभक्त वीर
Patriotism Story In Hindi ~ देश प्रेम की कहानी
जयपाल नाम का एक लड़का था। वह बड़ा देश-भक्त था। उस का पिता सरकारी सेना में एक अफसर था।
उस समय जावा श्रीविजय साम्राज्य के अधीन था। जावावाले अपनी आजादी पाने का प्रयन्त्र कर रहे थे। लेकिन सरकार उन के प्रयन्त्रों को विफल कर देती थी।
एक दिन जयपाल एक पुस्तक पढ़ रहा था। तब उस का पिता वहाँ आ पहुँचा। पुत्र के हाथ ‘देश की आजादी’ नाम की पुस्तक देख कर पिता आपे से बाहर हो गया। वह पुस्तक पढ़ना सरकार ने मना किया था।
पिता ने पुत्र के हाथ से किताब छीन ली और उसे फाड कर फेक दिया।
उसका क्रोध इस से भी शांत नहीं हुआ। उस ने अपने बेटे को दो चार तमाचे भी लगा दिये।
लेकिन जयपाल ने अपना काम नहीं छोड़ा। वह देश की सेवा करता रहता था। उस का पिता अपने बेटे के काम से हमेशा असन्तुष्ट रहता था।
Desh Prem Ki Kahani
एक दिन देश के नेताओं ने एक बड़ी सभा बुलाने का निश्चर्य किया। सरकार को इस की खबर मिली। सरकार ने उस सभा को रोकने का प्रबन्ध किया।
देश भक्तों ने सम्मेलन की तैयारी की। देश के बडे बडे नेता उस सभा में शामिल होने के लिए आये।
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शाम का समय था। सम्मेलन शुरू हुआ। स्वतन्त्रता का झंडा फहराया गया। लाखों लोग वहाँ आ जुटे थे। जयपाल भी उस सभा में शामिल हुआ था।
सरकार के सिपाही पहले ही उस सभा को रोकने के लिए तैयार खडे़ थे।
एक अफ़सर ने आगे बढ़कर सभा बन्द करने और लोगों को अपने अपने घर लौट
जाने का हुक्म दिया।
लेकिन वे देश-भक्त लोग कब माननेवाले थे?
उन्होने सरकार के हुक्म की परवाह नहीं की। सभा का कार्यक्रम शुरू हुआ।
बस, फिर क्या था? सिपाही देश-भक्तों पर टूट पडे़।
वे गोलियों की वर्षा करने लगे।
थोड़ी देर मेें वहाँ की जमीन लाशों से पट गयी। जो लोग बचे हुए थे, उनमें भी जोश आ गया। वे भी हाथ में झंडा लिए-‘स्वतन्त्रता की जय’-के नारे बुलन्द करने लगे।
जयपाल भी बचा हुआ था। उसके हाथ में एक झंडा था।
सिपाहियों ने उसे भी पकड़ लिया। एक सिपाही ने उससे कहा कि झंडा फेंक दो।
जयपाल ने कहा- मरते दम तक नहीं छोडूँ, यह झंडा मेरी नाक है’।
सिपाही ने तलवार उठायाी और एक ही बार में उसकी नाक काट दी और फिर पूछा-‘अब बोलो, क्या, झंडा फेंक देगा या नहीं?
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Desh Bhakti Ki Kahani
जयपाल का शरीर खून से तर ब तर हो गया। उसने दृढ़ता के साथ कहा-
‘हरगिज नहीं, यह झंडा मेरे हाथ पैर हैं।
सिपाही ने फौरन उसके हाथ पैर भी काट डाले।
बालक जमीन पर गिर गया। झडा उस के दाँतों में दबाये हुए था।
सिपाही ने पूछा-अब बताओ, झंडा छोडते हो कि नहीं?
जयपाल ने गम्भीरता से कहा कभी नहीं, यह मेरा प्राण है।
तलवार के अन्तिम वार ने उस साहसी देश भक्त का सिर धड से अलग कर दिया।
जयपाल का पिता उस सेना का नायक था। वह कुछ दुरी पर खडे हुए अपने वीर पुत्र का अलिदान देख रहा था।
जब अपने वीर पुत्र का सिर जमीन पर गिरा तब उस से नहीं रहा गया। उस के दिल में बिजली दौडी।
उसने देश भाक्तिकी महिमा पहचानी।
वह दौड़ा हुआ अपने पुत्र के पास आया और अपने पुत्र का सिर गोद उठाकर शोक करने के लिए नहीं, बल्कि उस झंडे की रक्षा करने के लिए।
उसने झंडा हाथ में लेकर कहा-‘अब मैं ही इस झंडे का रक्षक हूँ। देखूं मुझे कौन रोकता है’?
सिपाही हक्का बक्का रह गया। कुछ क्षण में उस के होश ठीक हुए। उस ने अपने अफसर से कहा- ‘छोड़ दीजिये उसे, नहीं तो मुझे आप के साथ भी………..’
अफसर ने कड़ककर कहा – कुत्ते! तू मेरा क्या कर सकता है? काट ले, मेरा भी सिर, वह भी इस झंडे पर न्योछावर है’।
सिपाही की तलवार फिर उठी। बस, उस अफसर का सिर भी जमीन पर गिरा।
बाप बेटे दोनो के सिर खून से लथ-पथ होकर पास पास पडे हुए थे।
इस बलिदान ने जनता में देश भक्ति की आग भडक दी।
सारे लोग देश की आजादी के लिए आत्म-त्याग करने को तैयार हुए।
सिपाही भी देश-भक्तों के दल में मिल गये।
विदेशी सरकार से उन्होने अपनी आजादी छीन ली।
देश में सब जगह ‘स्वतन्त्रता की जय’ के नारे गूँज उठे।
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