दोस्तों ज्ञानवर्धक कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं भावनात्मक कहानी जिसमे बताया गया है की मनुष्य अपने काम से सुखी या दुःखी हो होता है। यानि जो वो बोता है वही वो काटता है।आइये जानते हैं बच्चों के ज्ञानवर्धक कहानी ‘Hindi Inspiring Story on Prince and Beggar’ जो बड़ों को भी उतनी ही पसंद आएगी।
राजकुमार और भिखारी Hindi Inspiring Story on Prince and Beggar
बहुत समय पहले की बात है, नागपुरी में एक राजा था। वह बड़ा निर्दय और क्रोधी था।
एक दिन राजा अपने महल में सिंघासन पर बैठा हुआ था। वहाँ दरबार लगा हुआ था। कई राजकुमार और दरबारी वहाँ बैठे हुए थे।
राजा ने दरबारियों से पूछा-‘आप लोग आज इतने खुश क्यो हैं?’
दरबारियों ने कहा-‘महाराज, आप की मेहरबानी से हम खुश हैं।
राजा की बेटी मन्दार माला उस समय वहाँ आ गई। वह दरबारियों का जबाव सुनकर हँस पडी।
राजा ने गुस्सा होकर राजकुमारी से पूछा- तू क्यों हँस रहीं है ?
उस ने जवाब दिया-पिताजी, ये लोग झूठ बोल रहे है।
राजा – सो कैसे ?
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राजकुमारी बोली – इन्होने कहा कि आप की कृपा से हम लोग खुश हैं। यह झूठ है। इसलिये मैं हँसी।
राजा बोला – तब सच्ची बात क्या है?
राजकुमारी ने उत्तर दिया – हर एक आदमी अपने काम से सुखी या दुःखी होता है। खुश दिल हमेशा खुश रहता है।
यह जवाब सुनकर राजा आपे से बाहर हो गया और अपने नौकरो को बुलाकर कहा – मैं इसे एक सबक सिखाना चाहता हूँ कही से एक भिखारी को पकड़ लाओं और उसके साथ इसकी शादी कर दो। मैं देखना चाहता हूँ कि उसे वहाँ कैसा सुख मिलेगा।
इतने में रानी वहाँ आ पहुँची। उसे सब बातें मालूम हो गयी। उसने अपनी बेटी से कहा-‘तुम अपने पिताजी से माफ़ी मांगो’।
राजकुमारी ने द्दढ स्वर में जवाब दिया- मैं मरते दम तक झूठ नहीं बोलूगी। मैं दरबारियों की तरह पिताजी की झूठी तारीफ नहीं कर सकती।
राजा के नौकर शहर में भिखारी की तलाश करने लगे। थोड़ी देर खोजने पर उन्हे एक भिखारी मिला।
नौकरों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती राजा के सामने ले आये।
राजा ने भिखारी से कहा- ‘मैं अपनी लड़की की शादी तुम से कर देना चाहता हूँ’।
भिखारी बोला -‘हुजूर, मेरे जैसे एक भिखारी के साथ आप की बेटी की शादी कर देना उचित नहीं है’।
राजा ने गुस्से से कहा- ‘क्यों उचित नहीं है’। भिखारी ने फिर कुछ भी न कहा।
भिखारी के साथ राजकुमारी की शादी हुई।
Story on Prince and Beggar in Hindi
तमाम लोग उस बेचारी राजकुमारी की फूटी किस्मत पर दुःखी हुए।
राजकुमारी को दुःख नहीं हुआ। उसे अपने भाग्य पर पूरा भरोसा था।
राजकुमारी अपने माँ बाप को प्रणाम कर, अपने पति के साथ खुशी खुशी चली गयी।
जब वे दोनो जा रहे थे, तब भिखारी थकावट के मारे जमीन पर बैठ गया। उसने उठने का प्रयत्रन किया। लेकिन उठ नहीं सका।
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उसने राजकुमारी से कहा-‘राजकुमारी, मैं यहां से एक कदम भी आगे नहीं चल सकता’।
राजकुमारी बोली -‘स्वामी, आप चिन्ता न करें। आप जहाँ चाहे, मैं आपको उठाकर ले चलूंगी’।
राजकुमारी ने उसे उठाया और चल दी।
राजकुमारी के कष्टों को देखकर कुछ लोग महल में जाकर राजा से बोले-‘ महाराज, आपकी पुत्री और दामाद दोनों बड़ी तकलीफ में हैं। आप कम से कम उन दोनों के लिए एक झोपडी ही बनवा दे’।
राजा ने उनकी प्रार्थना के अनुसार दोनों के लिए एक कुटी बनवा दी।
राजकुमारी और उसका पति दोनों वहाँ आराम से रहने लगे।
एक दिन भिखारी ने राजकुमारी से कहा-‘मेरी प्यारी, मेरे लिये तुम क्यों इतनी तकलीफ उठा रही हो? तुम अपने माँ-बाप के यहाँ चली जाओ और आराम से रहो।
राजकुमारी ने कहा-‘नाथ, मेरा सुख और दुःख सब कुछ आप के साथ है। चाहे मेरा शरीर निर्बल हो जाय, मेरी जवानी बरबाद हो जाय, और चोहे मेरी जान तक चली जाय, मैं आपको नहीं छोड़ कर जाउंगी।
भिखारी को मालूम हो गया कि राजकुमारी उसे दिल जान से प्यार करती है।
दूसरे दिन सबेरे राजकुमारी ने अपनी झोपड़ी के सामने एक सुन्दर रथ देखा। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उसने अपने पति से पूछा कि यह रथ यहाँ कैसे आया है?
भिखारी ने कहा-यह मैंने तुम्हारे लिए मंगाया है। तुम जल्दी तैयारी करो। अभी हमें यहाँ से निकलना है। मैं तुम्हें लेकर अपने घर जाना चाहता हूँ।
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थोड़ी देर में दोनों रथ में चढ़कर निकले।
शाम तक रथ भिखारी के देश में पहुँचा।
भिखारी ने रथ से उतरकर अपनी पोशाक बदली।
तब वह एक सुन्दर राजकुमार जैसा दीख पड़ा।
राजकुमारी यह देखकर दंग रह गयी।
रथ आगे बढ़ा।
आखिर रथ एक महल के फाटक पर पहुँच गया। वहाँ धूमधाम से उन दोनों का स्वागत हुआ।
अब आगे तो आप समझ गए होंगे कि वह भिखारी एक मामूली भिखारी नहीं था। वह उस राज्य का राजा था।
बड़ा प्रतापी और पराक्रमी था।
वह अपना वेष बदलकर देश देश में घूम रहा था। आखिर एक भिखारी के वेष में नागपुरी में पहुँच गया। उसी समय सिपाही उसे पकड़कर राजा के पास ले गये।
उसके बाद जो जो बातें हुई सो तुम जानते ही हो।
उधर मन्दारमाला के माँ-बाप को इन सब बातों की खबर मिली तो उन्होने अपनी बेटी के भाग्य की सराहना की।
उसे देखने को उनका जी तरसने लगा। दोनों राजकुमारी को देखने के लिए रवाना हुए।
महल में पहुँचते ही राजकुमारी ने अपने माँ-बाप का स्वागत किया और उन्हे प्रणाम कर वह बोली-
‘पिताजी, मैंने आप से जो बातें कहीं, इसलिए आपने मुझे घर से निकाल दिया है। अब आप ने देख लिया है कि दिल हमेशा और सब जगह खुश रहता है।
राजा ने अपनी गलती मान ली। उसने कहा- सचमुच दरबारियों से मैं ने धोखो खाया।
वे मेरी झूठी तारीफ करते थे। मैं उन लोगो की बातों पर विश्वास करता था। अब मैं ने समझ लिया कि मनुष्य अपने काम से सुखी या दुःखी हो जाता है।’’ ‘‘जो जैसा करता है उसे वैसा ही नतीजा मिलता है।
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