दाई माँ का त्याग ~ Hindi Story on Sacrifice

Hindi Story on Sacrifice

दोस्तों ज्ञानवर्धक कहानियों की श्रृंखला में हम लेकर आये हैं बहुत ही रोचक एवं भावनात्मक कहानी जिसमे दाई की स्वामिभक्ति एवं त्याग का बताया है। आइये जानते हैं बच्चों के ज्ञानवर्धक कहानी ‘ Hindi Story on Sacrifice’ जो बड़ों को भी उतनी ही पसंद आएगी।

दाई माँ का त्याग ~ Hindi Story on Sacrifice

मेवाड के राना साँगा की मृत्यु हुई। उन के एक ही लड़का था। उसका नाम उदयसिंह था। साँगा की मृत्यु के समय वह पाँच बरस का था।

मेवाड के सरदारों ने आपस में सलाह की। उन्होने निश्चय किया कि उदय- सिंह के बड़े होने तक राणा वनवीर को राज्य का भार सौंप दिया जाय।

वनवीर उदयसिंह का चाचा था। वह बड़ा दुष्ट था। उसे राज्य का बड़ा लोभ था।

राज्य का अधिकार पाकर वनवीर बड़ा खुश हो गया। उस ने सोचा – ‘उदयसिंह अब मेरे रास्ते का काँटा है, उसे हटाने में ही मेरी भलाई है।

उसे जिन्दा रखने से मेरी इच्छा पूरी न होगी। आखिर उस ने उदयसिंह को मार डालने का निश्चय किया।

लेकिन उसे कैसे हटाऊँ?

महल में पत्रा नाम की एक दाई माँ थी। उसका एक लड़का था। वह भी उदयसिंह की उम्र का ही था।

पत्रा उदयसिंह को अपने बेटे से भी अधिक प्यार करती थी। दोनों बालक एक ही साथ खेलते थे।

पत्रा वनवीर के स्वभाव को जानती थी। वह वनवीर पर जरा भी विश्वास नहीं रखती थी।

उदयसिंह की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहती थी। एक दिन पत्रा को पता लगा कि वनवीर उदयसिंह को मारने के लिए आ रहा है।

रात का समय था। पत्रा का बेटा भी उदयसिंह के पास सोया हुआ था।

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अचानक पत्रा को उदयसिंह की चिंता हुई और वो घबरा गई। उदयसिंह को बचाने का कोई उपाय नहीं देखा।

वह थोडी देर तक सोचती रही। अब देर करने का समय नहीं था। वह दौडी हुई उदयसिंह के पास गई। उसे उठाकर एक बड़े टोकरे में रखा ओर ऊपर से उसे ढँक दिया।

उसके बाद एक इमानदार नौकर के हाथ में टोकरा देकर बोली-‘देखों, इस में हमारा राजकुमार है। इसे किले से बाहर ले जाओं। अमुक स्थान पर मेरा इन्तजार करना।

नौकर टोकरा लेकर चला गया।

पत्रा ने अपने बेटे की ओर देखा और मन ही मन में कहा‘–‘‘मुझे आज अपनी जान देकर भी उदयसिंह को बचाना चाहिये। लेकिन, अब मुझ से क्या हो सकता है? मैं तो एक स्त्री हूँ। वनवीर का मुकाबला करने की ताकत मुझ में नहीं है।

हाँ एक उपाय है। मगर, मै वह काम कैसे कर सकती हूँ?

मैं अपने दिल को कैसे ऐसा बेरहम बना सकती हूँ?

हे भगवान! क्या, तू मेरी परीक्षा लेना चाहता है? क्या, मुझे अपनी आँखों के
तारे को उस कसाई के हाथ सौंप देना होगा?

ओफ! एक माता अपने प्राण के टुकड़े को उस नर-राक्षस के मुँह में कैसे धकेल सकती है?

परन्तु, अपने स्वामी के लिए मुझे वह भी करना होगा।

अपने राज्य की रक्षा के लिये इस से भी बढकर बलिदान मुझे करना होगा।

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राजा की रक्षा में प्राण देना प्रजा का फर्ज है। यदि उदयसिंह मारा जायगा तो देश अनाथ हो जायगा। इसलिये उस की रक्षा के लिये एक मामूली व्यक्ति का बलिदान कोई बड़ा कार्य नहीं है।

मेरे प्यारे बेटे! तेरी माता आज तुझे अपने स्वामी की रक्षा के लिए बलि देना चाहती है।

तेरा जीवन धन्य है। इतनी छोटी उम्र में ही तुझे अपने मालिक के लिए अपनी जान देने का सौभाग्य मिला। ईश्वर तुझे शान्ति दे।

उस ने तुरन्त अपने बेटे को उठाकर, उस का मुँह चूम कर उदयसिंह के पलंक पर लिटा दिया।

वनवीर हाथ में तलवार लिये वहाँ आया। एक ही वार!

बच्चे के मुंह से एक चीख निकली।

पत्रा बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी।

वनवीर अपनी सफलता पर खुश होता हुआ वहाँ से चल गया।

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पत्रा को होश आये। वह अपने बेटे के पास गयी। देखा-अपने प्यारे पुत्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है।

उस के सिर में चक्कर आया। उसने जी कढ़ा कर बेटे को और एक बार अच्छी तरह देखा।

मन ही मन कहा-‘लाल, तू धन्य है जिस ने अपने स्वामी की जान बचाने के लिये अपनी जान दे दी।

मैं धन्य हूँ, जो ऐसे पुत्र की माता होने का अभिमान कर सकती हूँ’।

पत्रा वहाँ से चली गयी।

निश्चित स्थान पर वह नौकर पत्रा की राह देख रहा था।

पत्रा वहाँ पहुँचकर रात की रात में उस राज्य से बाहर चली गयी।

वह उदयसिंह को लेकर कई राज्यों में भटकती रही।

अन्त में कमलमीर के राजा ने उसे शरण दी।

उदयसिंह के बड़े होने तक पत्रा उस की देख-भाल करती रही।

जब उदयसिंह बड़ा हो गया तो पत्रा ने उदयसिंह के जीवित रहने की खबर मेवाडवालो को दी।

वहाँ के सरदार लोग बड़े खुश हुए। वनवीर राज्य छोड़कर भाग गया।

उदयसिंह सिंहासन पर बैठा। पत्रा की आशा पुरी हुई।

सब लोग पत्रा के इस त्याग की बात आज भी याद करते हैं।

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