चौक जायेंगे आप नाग़ा साधुओ से जुड़े इन अनसुने रोचक तथ्यों को जानकर | Naga Sadhu Facts In Hindi

Naga Sadhu Facts

नमस्कार दोस्तों, ये तो हम सभी जानते है कि नागा साधुओं की दुनिया हमेशा से ही एक अनभिज्ञ और अनसुलझा सवाल और रहस्य रहा है | नागा साधुओ से जुड़े रहस्यों को आम लोगो ने जितना भी समझने की कोशिश की है ये उतना ही उलझा हुआ सवाल बनता गया है | आज के इस अंक के जरिये हम आपको नागा साधुओ से जुड़ेरोचक तथ्यों Naga Sadhu Facts In Hindi के बारे में बात करेंगे |

हमारे देश में साधु-संतों को ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है, साधु संत जो भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल पड़ते हैं। साधु-संतों की पहचान उनकी भेष भूषा से होती है। आमतौर पर साधु-संत लाल, पीला या केसरिया रंगों के वस्त्रों में नजर आते हैं, पर नागा साधु कपकपाती ठंड़ में भी हमेशा नग्न अवस्था में ही रहते हैं। वे अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर घूमते हैं, और वे खुद को भगवान का दूत मानते हैं |

लेख को आगे बढ़ाने से पहले एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में रहता है की क्या नागा साधु और अघोरी बाबा एक ही होता है, तो मैं आपको बता दूँ की यूं तो अघोरी बाबा और नागा साधु देखने में हू-ब-हू लगते हैं. लेकिन नागा साधु और अघोरी बाबा बनने की प्रक्रिया अलग होती है. नागा साधु और अघोरी बाबा के तप करने तरीके से लेकर रहन-सहन, ध्यान, यहां तक की भोजन करना भी अलग होता है। दोनों में काफी अंतर है। अगर आप नागा साधु और अघोरी बाबा के बीच क्या क्या अंतर होते है इसके बारे में पूरी तरह से जानना चाहते हैं तो कमेंट करके जरूर बताये। फ़िलहाल नाग़ा साधुओ से जुड़े इन अनसुने रोचक तथ्यों आगे बढ़ाते हैं।

8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए देश के चार कोनों पर चार पीठों का निर्माण किया। इनमें गोवर्धन पीठ, शारदा पीठ, द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ शामिल है। इन पीठों, मठों-मन्दिरों और सनातन धर्म की रक्षा के लिए आदिगुरु ने सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना की शुरूआत की। इन्हीं अखाड़ों के सैनिकों को धर्म रक्षक या नागा कहा जाता था।

कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि भारत में नागा साधुओं की परंपरा प्रागैतिहासिक काल से शुरू हुई है। सिंधु की घाटी में स्थित विख्यात मोहनजोदाड़ो की खुदाई में पाई जाने वाली मुद्रा तथा उस पर पशुओं द्वारा पूजित एवं दिगंबर रूप में विराजमान पशुपति की प्रतिमा इस बात का प्रमाण है कि वैदिक साहित्य में भी ऐसे जटाधारी तपस्वियों का वर्णन मिलता है। भगवान शिव इन तपस्वियों के अराध्य देव हैं।

‘नागा’ का अर्थ बिना वस्त्रों के रहने वाले साधु है, इसके आलावा ‘नागा’ से तात्पर्य ‘एक युवा बहादुर सैनिक’ से भी है। नागाओं को सिर्फ साधु नहीं, बल्कि योद्धा माना गया है. वे युद्ध कला में माहिर, क्रोधी पर धैर्यवान और बलवान शरीर के स्वामी होते हैं. अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा, त्रिशूल या चिमटा लेकर चलते हैं । ये हथियार इनके योद्धा होने के प्रमाण तो हैं ही, साथ ही इनके लुक का भी हिस्सा हैं.आज हम इस लेख में इन नागा साधुओ के जीवन और दुनिया से जुड़े इन रहस्यमयी अनसुलझे रोचक तथ्यों (Naga Sadhu Facts In Hindi) को विस्तारपूर्वक समझने की कोशिश करेंगे | चलिए जाने इन रोचक तथ्यों के बारे में

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Naga Sadhu Facts In Hindi

नागा बनने के लिए साधुओं को देनी पड़ती हैं कठिन परीक्षाएं?

ऐसी मान्यता है कि नागा साधुओ की शुरुवात त्रेता युग में भगवान दत्तत्रेय द्वारा की गई थी लेकिन हिन्दू हितों की रक्षा के लिए इनको कड़े नियमो का पालन करने की सीख आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा दी गई थी |

नागा साधु शैव (भगवान शिव के अनुयायी) हैं और ये अधिकतर हिमालय में रहते हैं। नागा साधु अक्सर कुंभ मेले के दौरान नजर आते हैं। नागा साधु ही कुंभ मेले में स्नान करने वाले सबसे पहले व्यक्ति होते हैं।

नागा साधु बनने के लिए इतनी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है कि शायद कोई आम आदमी इसे पार ही नहीं कर पाए. नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों को विकसित करने के लिए समर्पित रहना पड़ता है।

जब कोई व्यक्ति अखाड़े में साधु बनने के लिए आवेदन करता है, तो आमतौर पर उसे सीधे अखाड़े में स्वीकार नहीं किया जाता है। बल्कि, अखाड़ा यह तय करते समय प्रशिक्षण और गुणवत्ता के मानकों को ध्यान में रखता है कि किन उम्मीदवारों को साधु बनने के लिए प्रवेश दिया जाए या नहीं। अखाड़े में प्रवेश के बाद उसके ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है. जिसमें तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म का अनुशासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं.

भारत देश में ऐसे 13 अखाड़े माने जाते है जहाँ किसी भी स्त्री और पुरुष को नागा साधु बनने की शिक्षा दी जाती है |

नागा साधु बनने के लिए किसी भी स्त्री और पुरुष को इनसे सम्बन्धित अखाड़ो में ब्रह्मचर्य की परीक्षा देनी पड़ती है जिसमे 6 माह से 12 वर्ष तक का समय लग सकता है |

इसके बाद ये अपना श्राद्ध, मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर संन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों, संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है, अपना श्रध्या कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना, इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है.

नागा साधु बनने के लिए किसी भी स्त्री और पुरुष को अपने पूरे बालो को काटकर 108 बार गंगाजी में डूबकी लगाकर 5 गुरुओ से शिक्षा लेनी पड़ती |

प्राच्य विद्या सोसाइटी के अनुसार ‘नागा साधुओं के अनेक विशिष्ट संस्कारों मे ये भी शामिल है कि इनकी कामेन्द्रियन भंग कर दी जाती हैं.

नागा साधु पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं, कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं।

नागा साधु हमेशा से ही एकांतवास पूरे समाज और दुनिया से अलग रहते है और सिर्फ वार्षिक कुम्भ के मेले में स्नान करने के लिए नजर आते है और फिर बड़े ही रहस्यमई तरीके से आम लोगो की नज़र से वहां रातो-रात गायब हो जाते है |

वर्तमान में कई अखाड़ों मे महिलाओं को भी नागा साधु की दीक्षा दी जाती है. इनमें विदेशी महिलाओं की संख्या भी काफी है. वैसे तो महिला नागा साधु और पुरुष नागा साधु के नियम कायदे समान ही है. फर्क केवल इतना ही है की महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेटकर रखना पड़ता है और यही वस्त्र पहन कर स्नान करना पड़ता है. नग्न स्नान की अनुमति उन्हें नहीं है, यहां तक की कुम्भ मेले में भी नहीं.

किसी भी महिला को नागा साधु बनाने का कार्य आचार्य महामंडलेश्वर का होता है और इनके समाज में सभी पुरुष नागा साधु किसी भी महिला नागा साधु को सम्मानपूर्वक माता कह के बुलाते है |

विदेशी नागा साधु सनातन धर्म योग, ध्यान और समाधि के कारण हमेशा विदेशियों को आकर्षित करता रहा है लेकिन अब बड़ी तेजी से विदेशी खासकर यूरोप की महिलाओं के बीच नागा साधु बनने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है.

नागा साधु अपने पूरे जीवन में किसी दूसरे तपस्वी को छोड़कर अन्य किसी को भी झुककर नमस्कार नहीं कर सकते और ना ही किसी की निंदा भी नही कर सकते है |

नागा साधु दिन में सिर्फ एक बार खाना खाते है जिसके लिए यदि वो चाहे तो कुल किसी भी 7 घरो से भिक्षा मांग सकते है |

नागा साधु जीवन भर जमीन पर सोते है और किसी भी खटियाँ,चारपाई या गद्दी का उपयोग अपने सोने के लिए नही कर सकते है |

Naga Sadhus Hindi Facts 

सभी नागा साधुओ की शिक्षा किसी योद्धा की तरह होती है जिसके कारण वो पारंपरिक युद्ध कला में माहिर होते हैं और हमेशा अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते है |

हर एक नागा साधु के लिए  कुछ नियमो का पालन करना हमेशा अनिवार्य होता है जैसे कि रोज सुबह स्नान के बाद सबसे पहले शरीर पर भस्म और रूद्राक्ष धारण करना, माथे पर तिलक लगाना, अपने पास एक चिमटा हमेशा रखना जो कि उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा होता है |

नागा साधु अपने कठोर अनुशासन और योग के कारण ही भयंकर ठण्ड और सर्दी में हिमालयो के जंगलो और ऊँची गुफाओ में निवास करते है |

नागा साधु रात और दिन मिलाकर केवल एक ही बार भोजन कर सकते हैं। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है. अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले, तो उसे भूखा रहना पड़ता है. जो खाना मिले, उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है।

नागा साधु केवल पृथ्वी पर सोते हैं, पलंग, खाट पर नहीं। यह बहुत ही कठोर नियम है, जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है.

नागा साधुओं की एक ख़ास बात है की नागाओं को भी अपने लुक और अपनी स्टाइल की उतनी ही फिक्र होती है जितनी आम आदमी को। नागाओं को भी सजना-संवरना अच्छा लगता है. फर्क सिर्फ इतना है कि नागाओं की श्रृंगार सामग्री आप लोगों से अलग होती है, जो आप देखते ही हैं। कईं नागा साधु रत्नों की मालाएं भी धारण करते हैं. महंगे रत्न जैसे मूंगा, पुखराज, माणिक आदि रत्नों की मालाएं धारण करने वाले नागा कम ही होते हैं. उन्हें धन से मोह नहीं होता, लेकिन ये रत्न उनके श्रंगार का आवश्यक हिस्सा होते हैं.

जटाएं भी नागा साधुओं की सबसे बड़ी पहचान होती हैं. मोटी-मोटी जटाओं की देख-रेख भी उतने ही जतन से की जाती है. काली मिट्टी से उन्हें धोया जाता है. सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है. अपनी जटाओं के नागा सजाते भी हैं. कुछ फूलों से, कुछ रुद्राक्षों से तो कुछ अन्य मोतियों की मालाओं से जटाओं का श्रंगार करते हैं.

नागाओं में चिमटा रखना अनिवार्य होता है. धूनि रमाने में सबसे ज्यादा काम चिमटे का ही पड़ता है. चिमटा हथियार भी है और औजार भी. ये नागाओं के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा होता है. ऐसा उल्लेख भी कई जगह मिलता है कि कई साधु चिमटे से ही अपने भक्तों को आशीर्वाद भी देते थे. महाराज का चिमटा लग जाए तो नैया पार हो जाए.

क्यों करते हैं नागा साधु वस्त्रों का त्याग ?

नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं. इसलिए भी वे वस्त्र नहीं पहनते. नागा साधुओं का मानना है कि इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है अर्थात यह अवस्था प्राकृतिक है. इसी भावना का आत्मसात करते हुए नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं. रोजाना सुबह स्नान के बाद नागा साधु सबसे पहले अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं. यह भस्म भी ताजी होती है. भस्म शरीर पर कपड़ों का काम करती है.

आमतौर पर नागा साधु निर्वस्त्र ही होते हैं, लेकिन कई नागा साधु लंगोट धारण भी करते हैं. इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे भक्तों के उनके पास आने में कोई झिझक ना रहे. कई साधु हठयोग के तहत भी लंगोट धारण करते हैं- जैसे लोहे की लंगोट, चांदी की लंगोट, लकड़ी की लंगोट. यह भी एक तप की तरह होता है.

जिस तरह भगवान शिव बाघंबर यानी शेर की खाल को वस्त्र के रूप में पहनते हैं, वैसे ही कई नागा साधु जानवरों की खाल पहनते हैं- जैसे हिरण या शेर. हालांकि शिकार और पशु खाल पर लगे कड़े कानूनों के कारण अब पशुओं की खाल मिलना मुश्किल होती है, फिर भी कई साधुओं के पास जानवरों की खाल देखी जा सकती है.

नागा साधुओं से हम क्या सीख सकते हैं ?

नागा साधुओं से हम सीख सकते हैं कि कैसे हम अपने आप में खुश रह सकते हैं। नागा साधुओं के पास कुछ भी नहीं होता है पर फिर भी वह अपनी जिंदगी बहुत ही आनंद के साथ व्यतीत करते हैं तो इससे हमें यह समझ में आता है की जिंदगी को खुशियों के साथ जीने के लिए किसी भी चीज की जरूरत नहीं होती है।

हमे आशा है कि आपको हमारा ये नागा साधुओ से जुड़े रोचक तथ्यों से Naga Sadhu Facts In Hindi सम्बन्धित ये लेख जरुर पसंद आयेंगा |

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