प्रेरणादायक अनमोल वचन स्टेटस | अनमोल विचार स्टेटस Anmol Vachan Status In Hindi

Anmol Vachan Status In Hindi (1)

In this Post You will know Anmol Vachan Status, Anmol Vachan Suvichar Status, Anmol Vachan Quotes – जीवन के लिए महत्वपूर्ण अनमोल विचार सुविचार स्टेटस – विचारों में बदलाव सुख और शांति, समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान के लिए आवश्यक विचार दिए गए हैं पढ़ें और चिंतन करें और शेयर भी करें।

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Anmol Vachan Status In Hindi | Anmol Vichar Status

मनुष्य को चाहिये कि अपना मित्र आप ही बने, बहरी मित्र की खोज में न भटके।

जिस बात से समाज को सुख पहुँचे, उससे यदि तुम्हें कुछ दुःख भी पहुँचे तो नाराज मत हो।

जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख अपने को बुद्धिमान् समझता है, उसका रोग असाध्य है।

जो बाहर से बहुत सुन्दर है पर जिनका मन मैला उससे तो कौआ अच्छा है जो बाहर – भीतर एक रंग है।

संसार में तीन बातें बड़ी उपकार करने वाली हैं, परंतु आचरण करने में कठिन हैं – (1) निर्धनता में उदारता, (2) एकान्त में इन्द्रियनिग्रह और (3) भय में सत्य।

जो मनुष्य सज्जनता के व्यवहार में कुशल है, उसके लिये कोई पदार्थ दुर्लभ नहीं है।

प्रिय क्या है ? करना। अप्रिय क्या है ? कहना और न करना।

हर्ष के साथ शोक और भय इस प्रकार लगे हैं जिस प्रकार प्रकाश के संग छाया। सच्चा सुखी वही है, जिसकी दृष्टि में हर्ष-शोक दोनों समान हैं।

जो समय भगवान् के स्मरण चिन्तन में लगता है, वही सार्थक है।

शत्रु से भी प्रेम रखो। दान अथवा शुभ कर्म में फल – की कामना न करो, तभी प्रभु प्रसन्न होंगे।

हठ का सामना हित से करो तो सफलता प्राप्त होगी। तलवार की तीक्ष्ण धार मुलायम रेशम को नहीं काट सकती।

सांसारिक क्रियाओं का सम्पादन करते समय दो बातें सदा स्मरण रक्खो- प्रथम ईश्वर और द्वितीय मृत्यु।

जीवन में निम्नलिखित तीन बातें हमेशा याद रखो – (1) क्रोध में क्षमा, (2) अभाव में उदारता और (3) अधिकार में सहिष्णुता।

किये बिना कुछ मिलने का नहीं। जैसा करते हो वैसा मिलता है, पहले किया है वैसा अब मिल रहा है और अब जैसा करोगे वैसा आगे मिलेगा।

धनवान् पड़ोसी और राजदरबार के पण्डितों से दूर रहना।

नीचे लिखे परिमाण से अधिक मिले तो उसको अनावश्यक और बोझरूप मानना चाहिये – (1) प्राण रहे इतना अन्न, (2) प्यास मिटे इतना जल, (3) लाज बचे इतना वस्त्र, (4) रहने भर का घर और (5) उपयोगी हो इतना-सा ही मौलिक ज्ञान।

जो पास में धन रहने पर भी अपने भाईयों की देख अवस्था पर तरस नहीं खाता और सहायता नहीं करता, उस हृदय में प्रभुका प्रेम कैसे हो सकता है ?

मन तीन प्रकार के होते हैं – (1) पहाड़ जैसा अडिग जिसको कोई नहीं हिला सकता, (2) पेड़ जैसा जो बाहर के संयोग रूपी हिलोरों से हिला करता है और (3) तिनके जैसा जिसको बाह्य संयोग रूपी हवा कही का कही फेक देती है।

जिसकी हार हुई है, वह सदा असंतुष्ट रहता हैै सुखी वही है, जो हार – जीत की परवाह नहीं करता।

मनुष्यों से मैत्री और पशुओं के प्रति दया रखो

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Status Anmol Vachan

जिसने मन रूपी मतवाले हाथी को वश में कर लिया, वही सर्वश्रेष्ठ पुरूष है।

जैसे अग्नि जाने या बिना जाने लकड़ी को जला देती वैसे ही जाने या बिना जाने लिया हुआ भगवान् हरि का नाम मनुष्य के पाप को भस्म कर देता है।

जिनका जीवन-आधार ईश्वर नहीं, वे मर हैं और जिनका जीवन-आधार ईश्वर है, वे अमर हैं।

उस दुष्ट और नीच के साथ भी तुम भलाई करो, जो तुम्हें दुःख देता क्योंकि सच्चा आनन्द दूसरों के सुख देने में है।

जिसने अहंकार, क्रोध, कपट और लालचको जीत लिया, वही सच्चा शूरवीर है।

घमण्ड या सहंकार मूर्खता की निशानी है। जिस जगह शरीर में खून की कमी होती है वहाँ वायु भर जाने से शरीर फूल जाता है, ऐसे ही जहाँ बुद्धि का घाटा है, वहाँ अहंकार जाने से मन फूल उठता है।

मर्यादा से चलो। कभी सीमा के बाहर मत जाओ अपनी हानि करने वाले को जहाँ तक बन पड़े, क्षमा करो, पर सावधान रहो।

चार प्रकार के मनुष्य मालिक को विशेष प्रिय है –
(1) आसक्ति रहित विद्वान्, (2) तत्त्वज्ञानी महात्मा, (3) नम्र धनी और (4) मालिक की महिमा जाननेवाला त्यागी।

मन पाँच प्रकार के होते हैं – (1) मुर्दा मन जैसे नास्तिको का, (2) रोगी मन जैसे पापियों का (3) अचेत मन जैसे पेट भरों का, (4) उल्टा मन जैसे व्याज की कमाई खाने वालो का (5) स्वस्थ मन जैसे संतों का।

तीन बातें ध्यान देने लायक हैं – (1) जब कभी किसी बुरे आदमी से काम पड़ जाय तो उसके नीच स्वभाव को अपने भले स्वभाव से ढक लेना इस से स्वयं तुम्हे संतोष होगा, (2) जब कभी कोई तुम्हें दान दे तो पहले कृतज्ञ होना उस प्रभु का, उसके बाद उस उदार हृदय दाता को धन्यवाद देना, (3) जब कभी विपति आ पडे़ तो तुरंत विनीत भाव से उस विपत्ति को सहने की शक्ति के लिये प्रभु से प्रार्थना करना।

पंतगा बिना सोचे समझे आग में कूदकर जल मरता है। मछली भी अज्ञान से बंसी का मांस खाकर फँस जाती है, परन्तु हम लोग तो समझ-बूझकर भी विपत्तियों से भरें हुए विषयों को नहीं छोड़ते । मोह की यही महिमा है।

प्रत्येक मनुष्य अपनी बात को सच्चा और अपने बच्चे- को सुन्दर समझता है, इससे सिद्ध है कि सबके मतों और सबके बच्चों का समान आदर करना और समान प्रेम रखना अपना कर्तव्य है।

जो कोई तुम्हे कोसे, तुम उसे कभी मत कोसो। स्मरण रक्खो कि क्रोधी के शाप से आशीष् का फल मिलता है।

प्रेम की एक ही चिनगारी हृइय में पड़ जाय तो जीव निहाल हो जाय। धन्य है वह हृदय जहाँ ऐसी आग लगी हुई है।

हमारा हरि तो केवल भाव का भूखा है, न उसका राग से मतलब, न काल से।

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Anmol Vachan In Hindi Status

पानी ऊपर नहीं ठहरता, वह नीचे ही रहता है, जो नीचा ’नम्र होता है वही भरपेट पानी पी सकता है, ऊँचा तो प्यासा ही मरता है।

दूसरों का भला करने वाला ही भला होता है।

जब मैं था, तब हरि नहीं थे, अब हरि हैं मै नहीं रहा। प्रेम की गली बहुत ही सकरी है, इसमें दो नहीं समा सकते।

मनुष्य को चाहिये कि वह अपना काम देखे, दूसरें के काम में नुक्ताचीनी न करें।

जो बाहर से खूब साफ है और अंदर से मैला है वह नरक के दरवाजें की चाभी हाथ में लिये हुए है।

चार प्रकार के मनुष्य होते हैं – (1) मक्खीचूस – न आप खाय न दूसरे को दे, (2) कंजूस-आप तो खाय, पर दूसरे- को न दे, (3) उदार-आप भी खाय और दूसरे को भी दे और (4) दाता-आप न खाय और दूसरे को दे। यदि सब लोग दाता नहीं बन सकते तो उदार तो बनना ही चाहिये।

जो विपत्ति से डरते हैं, वह उन्हीं पर ज्यादा आती है, जो मन को दृढ़ रखते हैं और आने वाले हर एक सुख-दुःखो भगवान् का दान समझकर प्रसन्नता से रहते हैं, उनके लिये विपत्ति कोई चीज नहीं।

जैसे जल के बिना नाव करोड़ कोशिश करने पर नहीं चल सकती इसी प्रकार सहज संतोष बिना कभी शान्ति नहीं मिलती।

जाग्रत मन उसी को कहते हैं, जिसमें ईश्वर को छोड़ कर दूसरे किसी विषय की इच्छा या दूसरा कोई उद्देश्य न हो। जिसका मन परम प्रभु परमात्मा की सेवा में डूवा रह सकता है, उसके लिये दूसरे मित्र की जरूरत ही क्या है।

चौदह बातों का त्याग करना चाहिये-हिंसा, चोरी, व्यभिचार, असत्य, स्वच्छन्दता, द्वेप, भय, मोह, मद्यपान, रात्रि भ्रमण, व्यसन, जूआ, कुसंगति और आलस्य।

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Anmol Vachan Status

दो आदमी बात करते हों तो उनके बीच में न बोलो, अपनी बुद्धिमानी दिखाने का प्रयत्न मत करो, ऐसी बात तो बोलो ही मत जिससे उन लोगों की बात कटे या उन्हें नीचा देखना पडे़, अपनी और अपने वंश की बड़ाई मत करो, दूसरा कोई करता हो तो उसे बुरा मत कहो, चिल्लाकर न बोलो, ऐसी आवाज़ और ऐसे भाव से न बोलो, जिसमें सुनने वालों को तुम्हारी हुकूमत या अपना तिरस्कार प्रतीत हो।

विचारशील और ब्रह्मज्ञानी को संसार नहीं लुभा सकता, मछली के उछलने से समुद्र नहीं उमड़ा करता।

अंदर के रोग की पाँच दवाईयाँ – (1) सत्संग (2) धर्मशास्त्र का अध्ययन, (3) अल्प आहार-विहार (4) सुबह – शाम की उपासना और (5) जो कुछ करना हो सो एकाग्रता के साथ सारी शक्ति लगाकर करने की पद्धति।

अपने गुप्त से गुप्त विचारों को भी पवित्र रक्खो क्यों – कि उनमें भी अदभुत शक्ति भरी है। तुम्हारे मुख से निकलते हुए शब्दों में उन विचारों के भाव का पता लग जाता है और तुम्हारे भविष्य के निर्माणकर्ता भी वे गुप्त विचार ही होते है।

1- माता-पिता की आज्ञा पूर्ण रूप से मानो। 2-सगे सम्बन्धियों से प्रेम रखो। 3- अपने मुख को ज्ञान-दर्पण में देखो यदि सुन्दर है तो ऐसा काम मत करो जिससे उस पर धब्बा लगे और यदि कुरूप है तो सत्य, सेवा और परोपकार करके सुन्दर बनाओ। 4- जो तम्हारे साथ बुराई करे उसको तो बालू पर लिखो और जो भलाई करे उस को पत्थर पर।

गृहस्थ को पाँच अशुभ प्रवृत्तियों से बचना चाहिये – (1) हिंसा, (2) चोरी, (3) व्यभिचार, (4) असत्य और (5) व्यसन ।

कडू है पर सत्य है- जबतक धन पैदा करने की ताकत रहती है, घर के लोग प्रसन्न रहते हैं। जब बुढ़ापे में शरीर जर्जर हो जाता है, तब कोई बात भी नहीं पूछता।

जिनको जगना है, वे अभी जाग जायें, यही प्रातः की बेला है, जब पाँव पसार के सो जाओगे, तो फिर क्या जागोगे।

धन, जन, यौवन का गर्व न करो, काल एक क्षण में ही इन सबका हरण कर लेता है। इस मायामय प्रपंच को छोड कर शीघ्र ही ब्रह्मपद का आश्रय ग्रहण करो।

अगर कोई बोलना जाने तो बोली बड़ी ही अनमोल चीज है। पहले हृदय के तराजू पर तौलकर ही बोलने के लिये मुँह खोलना चाहिये।

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Anmol Vachan Suvichar Status

जिस अन्तः करण में संसारी लालसाएँ भरी होती हैं उसमें ये पाँच बातें नहीं रह सकतीं (1) ईश्वर का भय, (2) ईश्वर की आशा, (3) ईश्वर पर प्रेम, (4) ईश्वर से लज्जा और (5) ईश्वर के साथ मित्रता।

विपत्ति में धैर्य, वैभव में दया और संकट में सहन शीलता – ये महात्माओं के लक्षण हैं।

जिस तरह वृक्ष में पत्ते बहुत हो जाने पर फल कम लगते हैं, इसी प्रकार जो बहुत बोलता है, उससे काम बहुत कम होता है।

पहली डुबकी में रत्न नहीं मिला, इससे रत्नाकर को रत्नहीन मत समझो। धीरज के साथ साधन करते रहो, समय पर भगवत्कृपा होगी ही।

एक छोटे से जीव को भी अपने से नीचा मत समझो। बाहरी दुनिया को देखो भी तो ऊपर ही ऊपर से। भीतरी आँखें को तो उस प्रभु की ओर लगाये रहो।

(1) मुक्ति कब होती है ? जब तमाम जंजाल छूट जाते हैं। (2) निर्भरता किसे कहते हैं ? जब सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया जाय। (3) अधीनता किसे कहते हैं ? जब प्रत्येक कार्य ईश्वर के अर्पण हो।

जो लोग प्रशंसा सुनकर तनिक भी हर्ष के विकार से ग्रस्त नहीं होते और निन्दा सुनते ही धीरता के साथ गहराई से आत्म- निरीक्षण करने लगते हैं, वे ही सच्चे बुद्धिमान साधक हैं।

धन के अभिमानी मनुष्य का तीन बातों से जरूर सम्बन्ध होता है – (1) क्लेश, (2) अशुभ विचार और (3) उसकी बुद्धि !

सच्चा मित्र वह है जो दर्पण के समान तुम्हारे दोषों को ययार्थ रूप से तुम्हे दिखा देता है। जो तुम्हारे अवगुणों को गुण बतलाता है वह तो खुशामदी है, मित्र नहीं।

इस संसार में दो ही अमूल्य रत्न हैं – एक भगवान् और दूसरा संत। इन दोनों का कोई मोल-तौल नहीं हो सकता।

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Anmol Vachan Suvichar Status

जो मनुष्य परस्त्री के साथ या स्त्री-सम्बन्धी बातें करने में रस लेता हो, निर्लज्ज हो, ऊपर से मीठी-मीठी बातें बनाने – वाला हो और रास्ते में चलते-चलते खाता हो, उसका संग कभी नहीं करना चाहिये। ऐसे लोग प्रायः हृदय के कपटी और दुष्ट भाव – वाले होते हैं।

मूर्खता के बारह लक्षण हैं – (1) भगवान् को भूलना, (2) समय की कीमत न समझना, (3) अपने को बड़ा मानना, (4) एकान्त में बात करते हुए लोगों के बीच जा बैठना, (5) बड़े लोगों की खिल्ली उड़ाना, (6) अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करना, (7) सभा में ऊँची जगह बैठने की कोशिश करना, (8) बहुत बोलना और ऐसा बोलना जो दूसरों को अखरे, (9) दूसरों से उधार लेना और उसे चुकाने की चिन्ता न रखना, (10) किसी भोज में बिना न्योते जा पहुँचना, (11) अतिथि होकर घर के मालिक पर हुकूमत करना और (12) स्त्रियों के अंग देखने की चेष्टा करना। इन बारह दोषों से बचने वाला मनुष्य बहुत – सी आफतों से अनायास ही बच जाता है।

सूर्य की किरणें सब जगह समान पड़ने पर भी जल और दर्पण में प्रकाश अधिक दिखायी देता है, वैसे ही भगवान् का विकास सबके हृदयों में समान रूप से होने पर भी साधु के हृदय मे उसका विशेष प्रकाश होता है।

पुरूष की छिपी कामवासना में यदि स्त्री का देखना सुनना, एकान्त में मिलना और बातचीत करना चलता है तो वह वासना बढ़कर प्रत्यक्ष कामना का रूप धारण कर लेती है और फिर सहज ही मनुष्य का पतन हो जाता है।

रास्ते दो हैं – एक लंबा दूसरा छोटा। लंबा रास्ता भक्त के पास से शुरू होकर भगवान् के पास जाता है और छोटा रास्ता भगवान् के पास से शुरू होकर भक्त के पास आता है।

जस व्यक्ति का अहंकार जितना ही अधिक होता हैै। उसके दुःख भी उतने ही अधिक होते हैं। अंहकारी की वृद्धि एक प्रकार का पागलपन है।

जिस प्रकार स्नान आदि से प्रतिदिन शरीर स्वच्छ करना जरूरी है, उसी प्रकार मनको भी रोज स्वच्छ करना चाहिये। मन को धोने के लिये भगवान् का भजन और अच्छे कर्म ही स्वच्छ सरोवर है।

अपने से छोटे और अधीन से यदि भूल हो तो उसे सुधारने के लिये मीठे वचनों से एकान्त में उसकी भूल समझा दो, किंतु तिरस्कार-तकरार न करो।

विश्वास के चार लक्षण हैं – सब चीजों में ईश्वर को देखना, सारे काम ईश्वर की ओर नजर रखकर ही करना, हर एक दुःख-सुख में उसका हाथ देखना और हर हालत में हाथ पसारना तो उस सर्वशक्तिमान् के आगे ही।

चार बातो में मनुष्य का कल्याण है – (1) वाणी के संयम में, (2) अल्प निद्रा में, (3) अल्प आहर में (4) एकान्त के भगवत्स्मरण में।

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Anmol Vachan Status In Hindi

जीवन में पाँच बातें अमूल्य रत्न हैं – (1) ऐसी फकीरी जो अपार आन्तरिक सम्पत्ति का दर्शन करा दे, (2) ऐसा त्याग जो अखण्ड तृप्ति के दर्शन करा दे, (3) ऐसा दुःख जो नित्य प्रसन्नता के दर्शन करा दे, (4) ऐसी वीरता जो शत्रु के प्रति भी मित्रता के दर्शन करा दे और (5) ऐसी साधना जो भगवान् के दर्शन करा दे।

वीरता की परख तीन बातो में होती है (1) असत्य का आचरण न करके जीवन निर्वाह करना, (2) जरूरी चीज न मिले तब भी प्रभु की प्रशंसा करना और (3) बिना माँगे दान देना।

दो बातों पर पूरा विश्वास करना (1) तुम्हारे लिये जो कुछ रचा हुआ है, तुम दूर भागोगे तो भी वह तुम्हें मिलेगा ही और (2) जो दूसरे के लिये रचा गया है, वह करोड़ यतन करने पर तुम्हें नहीं मिलेगा।

अपनी जीभ को निन्दा-स्तुति से सदा दूर रक्खो।

हे युवको ! जब तक तुम बूढे़ और कमजोर नहीं हो जाते तभी तक अपने जीवन के मुख्य काम को पूरा कर लो। बुढ़ापे मे यह काम नहीं होगा।

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Anmol Vachan Status Hindi

चतुर कौन है ? जिसको संसार के भोग न फँसा सकें। त्यागी कौन है ? जिसके मन में संसार की कोई कामना नहीं। कंजूस कौन है ? जो ईश्वर के दिये हुए धन का उचित दान करने में संकोच करे।

जो मनुष्य लड़ाई में दूसरों को जीतना चाहता है, उसे छत्तीसों हथियारों के प्राप्त करने और चलाने की जरूरत पड़ती है, परंतु अपने मरने के लिये एक छोटी सी छुरी काफी है। इसी प्रकार दूसरों को जीतकर पण्डिताई फैलाने और मान प्राप्त करने के लिए बहुत-सी विद्याओं की जरूरत है, परंतु भगवान् को प्रसन्न करने के लिये तो आचरण का सुधार करके उनके नाम जपने की विद्या सीख लेना ही काफी है।

जो मनुष्य छोटे पापों को बहुत मामूली समझकर किये जाता है, वह थोडे़ ही समय बाद बडे़-बडे़ पापों से और अन्त में महान विपत्ति से घिर जाता है।

मनुष्य को ऐसा कोई भी दोषयुक्त कार्य कभी छिपकर भी नहीं करना चाहिये, जिससे भगवान् की दृष्टि में वह दोषी सिद्ध हो।

अधिक परिश्रम से स्वास्थ्य नहीं बिगड़ता, स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है घबराहट, शोक, भय, चिन्ता और असंतोप से।

जब तक बात तुम्हारे मुँह से नहीं निकली तब तक तो वह तुम्हारे वश में है, पर ज्यों ही मुँह से निकल गयी कि तुम उसके वश में हो गये।

यदि जीभ को वश में कर लो तो दूसरी इन्द्रियाँ सहज ही तुम्हारे वश हो जायँ और दुनिया की शत्रुता से तुम बच जाओ।

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