मां पर मुनव्वर राना की मशहूर शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari

Munawwar Rana Maa Shayari

मुनव्वर राना माँ शायरी : Munawwar Rana Maa Shayari : मां पर मुनव्वर राना की कुछ मशहूर शायरी : Munawar Rana’s Famous Shayari About Maa (Mother) Maa Shayari By Munawwar Rana मुनव्वर राना उर्दू के एक प्रसिद्ध शायर, कवि एवं साहित्यकार हैं उनकी रचनाएं देश विदेश में लोकप्रिय हैं। इन्होंने ज्यादातर शायरी माँ पर लिखी हैं तो आइये जानते हैं मां पर मुनव्वर राना की मशहूर शायरी – 

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Munawwar Rana Maa Shayari Collection 

पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है


जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा


मामूली एक कलम से कहां तक घसीट लाए
हम इस ग़ज़ल को कोठे से मां तक घसीट लाए


ऐ अंधेरे ! देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया


मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना


चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है


वो तो असर है माँ की दुआओं में, वरना
इतना सुकून कहाँ था इन हवाओं में


ज़रा-सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए,
दिये से मेरी मां मेरे लिए काजल बनाती है


छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है


निकलने ही नहीं देती हैं अश्कों को मिरी आँखें
कि ये बच्चे हमेशा माँ की निगरानी में रहते हैं


मुनव्वर राना के ‘माँ’ के लिए कहे गए शेर

हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे


इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है


ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है


दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है


कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है


मुनव्वर राना माँ शायरी हिंदी

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है


घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं


अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है


किसी को घर मिला हिस्से में ,या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था ,मेरे हिस्से में माँ आई


मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ


Munawwar Rana Maa Shayari

उम्र भर खाली यू ही मैनें अपना मका रहने दिया,
तुम गए तो कभी दूसरे हो न रहने दिया ,
मैने कल शब चाहतो की सब किताबे फाड़ दी ,
बस एक कागज़ पर लिखा शब्द “माँ” रहने दिया


सदक़ा भी दे दिया है नज़र भी उतार दी
दौलत सूकूनो चैन की सब मुझपे वार दी
कल शाम मैंने क्या कहा तबियत खराब है
माँ ने तमाम रात दुआ में गुज़ार दी


लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती हैं
मैं उद्रू में ग़ज़ल कहता हूँ हिंदी मुस्कराती हैं
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूंढती होगी
तभी तो पोते को देखकर दादी मुस्कुराती हैं


यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा


यूँ तो उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चहरे को पढ़ा करती हैं
माँ की सब खूबिया बेटियों में चली आयीं हैं
मैं तो सो जाता हूँ मगर वो जगा करती हैं


Munawwar Rana Maa Shayari In Hindi

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है


हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते


खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही


मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है


मुख़्तसर होते हुए भी जिंदगी बढ़ जाएगी ,
माँ की आँखे चूम लीजिये रोशनी बढ़ जाएगी


Collection of Munawwar Rana Maa Shayari Hindi

यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है


लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती


गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं


मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ


रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं


Munawwar Rana Shayari Maa

ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे


कोई दुखी हो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वो ज़रूरत को तलबगार से पहचानता है


दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है


खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती


मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था


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