माँ तू अनमोल है ! Maa Tu Anmol Hai

माँ

ममता एक ऐसी शक्ति है जिसके कई रूप हैं, कभी वह जननी है तो कभी भरण – पोषण करने वाली भरणी है। कभी वह त्याग है तो कभी वह निःस्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति। हमारे जीवन को सही ढांचे में ढालने से लेकर उसे सही दिशा देने व्यक्तित्व को उभारने, हमारी पसन्द नापसंद को समझने तथा समूचे परिवार को प्रबंध करने तक माँ ही प्रमुख भूमिका निभाती है। वह हमारी जन्मदायी ही नहीं बल्कि हमारे अंदर संस्कार डालने वाली शिक्षिका भी है। इंसान हर ऋण से मुक्त हो सकता लेकिन मातृ भरण से कदापि विमुक्त नहीं।

किसी को मिला घर, किसी के हिस्से में दुकाँ आई, 
मैं सबसे छोटा था घर में, मेरे हिस्से में माँ आई। 

माँ तू अनमोल है ! Maa Tu Anmol Hai

माँ का प्यार है उसमे भगवान के दर्शन होते है, सृस्टि की हर शै: माँ के आगे नतमस्तक होती है।  वह कैसे अपने प्यार के जादू से हमारे जीवन को बदल देती है। माँ हमारी पहली शिक्षिका होती है। वह हमें संस्कार देती है, आचार व्यवहार सिखाती है,  संसार से परचित कराती है और सांसारिक चुनौतियों के लिए हमें संयमशील बनाती है। यह सब बिना शर्त निस्वार्थ भाव बच्चों की ख़ुशी के लिए आजीवन करती है।  माँ का प्रेम गंगा की अनवरतधारा की तरह हमेशा बहता रहता है ; यानि एक ही जीवन में हमारे ऊपर माँ के कितने ऋण होते हैं। इन ऋणों में हम मुक्त तो नहीं हो सकते, परन्तु उनकों उचित सम्मान  दे ही सकते हैं। जन्म देने वाली माँ हो या पहले वाली यशोदा मइया।  उनकी ममता की थाह लगाना मुश्लिक है।

अभी जिन्दा है माँ मेरी  मुझे कुछ भी नहीं होगा। 
मैं घर से जब निकलकता हूँ, दया भी साथ चलती है।

क्या आपने कभी सोचा है कि ठोकर लगने पर अर्थात मुसीबत की घड़ी में “माँ” को बच्चों की मुश्किल का पता कैसे चल जाता है, क्योंकि माँ हमको तब से जानती है जब हम अजन्में होते हैं। उसे अपने बच्चे की प्रत्यके हरकत की खबर होती है।  “तभी तो माँ की ममता अनमोल है”

माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी” 

उक्त पंक्ति माँ के बारे में थोड़े में ही सबकुछ कह देती है। उनकी जितनी ममता तो भगवान से ही मिल सकती है। माँ के प्यार में कोई शर्त नहीं होती उनकी ममता की गहराई नापी  नहीं जा सकती है। संसार के हर रिश्ते में कोई न कोई स्वार्थ हो सकता है परन्तु माँ का रिश्ता कभी स्वार्थपूर्ण नहीं हो सकता। तभी तो माँ अनमोल होती है, नीतिगत सही है कि पुत्र भले ही कुपुत्र हो मगर माता कुमाता नहीं हो सकती। हम गलती करते जाते हैं और  वह माफ़ करती जाती है। आधुनिक परम्परा की दौड़ में पड़कर या पारिवारिक मज़बूरी के वशीभूत होकर माता जो त्याग कर देती है।  या अनादर करती है अर्थात जो माता के बुढ़ापे में असहाये होने पर उनका तिरस्कार कर देते हैं फिर भी अपनी संतान को अपने अनमोल आशीर्वाद से सदा खुशिहाली हेतु अमोल आशीर्वाद को सहर्ष बराबर बराबर बाट देती है जिस आशीर्वाद को शास्त्रों में अचूक बाण की संज्ञा दी गई है। अतः सच में माता सृस्टि की “अनमोल” रचना है।

निःस्वार्थ भाव की मिसाल स्थापित करने वाली मदर टेरेसा का अपना कोई परिवार नहीं था मगर उनके संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति उनका परिवार था।  उनकी उमड़ती हुई अनमोल ममता ने ही तो उनको मदर टेरिसा बना दिया। ऐसे ही स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पत्नी, माँ शारदा देवी ने अनमोल मातृत्व की मिसाल कायम की थी। हर युग में हमारा इतिहास ऐसी ही मिसालों से भरा पड़ा है।

जब कभी किश्ती मेरी, सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई, मेरे ख्याव में आ जाती है। 

आशीर्वाद की शक्ति –  यदि आप किसी शक्ति का सम्मान करते हैं तो उनके अंतरमन में विद्यमान ईश्वर आपकी सहायता करते हैं क्योंकि ईश्वर सब में मौजूद है। यदि हमसे कोई भूल हो जाये तो मिथ्याभिमान करके उसे सही करने का प्रयास नहीं करना चाहियें बल्कि अपने बड़ों, माता पिता से तत्काल क्षमा याचना कर लेनी चाहियें जिससे आपके चरित्र को सुदृण निर्माण होगा और अभिभावक का अनमोल आशर्वाद आपको प्राप्त होगा।

यह जानकर कि आप अपने माता पिता से अधिक ज्ञानी हो गए हैं समाज में आपका कोई स्थान है तो आपको मिथ्याभिमान हो सकता है। आप भूल रहे हैं कि उस स्थान को प्राप्त करने में आपके माता पिता या बड़ों का अचूक सहयोग रहा है। अभिभावकों के दिए गए संस्कारों को कभी मत भूलिए, कुसंगति या कुसंस्कारों तथा अभिमान को उतार फेंकिए चाहें वह कितने ही लुभावने व आकर्षक हों। माता पिता अपनी संतान की भलाई के लिए सबकुछ दांव पर लगा देते हैं।  अपनी संतान को अपने अनमोल आशीर्वाद से पुरस्कृत करते हैं।

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