हरिवंश राय बच्चन की कविताएं और रचनाएं (Harivansh Rai Bachchan Kavita – Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi, Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi) हिंदी साहित्य जगत में एक प्रसिद्ध मुकाम पर हैं। इस लेख में आप उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताओं को जानेगें –
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हरिवंश राय बच्चन जी के बारे में –
श्री हरिवंश राय बच्चन जी का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव पट्टी में हुआ था। उन्होंने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य से एम. ए. किया। उसके बाद 1952 तक इलाहबाद विश्विद्यालय में प्रवक्ता रहे। 1976 में उन्हें पदमभिभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। 18 जनुअरी 2003 को मुंबई में उनका निधन हो गया। हरिवंश राय बच्चन जी के सुपुत्र श्री अमिताभ हरिवंश राय बच्चन जी को कौन नहीं जनता। आज भी अमिताभ बच्चन जी अपनी पिता की कविताएं गाते हुए भावुक हो जाते हैं।
हरिवंश राय बच्चन जी हिंदी साहित्य के वो जगमगाते सितारे हैं जिनकी चमक कभी कम नहीं हो सकती। हरिवंश राय बच्चन जी भारत के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी कई कविताएं और रचनाएँ तो आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में घर कर जाती हैं, जिसमें मधुशाला कविता (madhushala poem) और अग्निपथ कविता (agneepath poem/agnipath poem) नामक रचना सबसे प्रसिद्ध रही है।
आइये जानते हैं श्री हरिवंश राय बच्चन की कुछ प्रसिद्ध कविताएं और रचनाएं (Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi, Harivansh Rai Bachchan Poetry In Hindi)
Harivansh Rai Bachchan Kavita – Famous Poems
अँधेरे का दीपक
lamp of darkness
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है ?
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था ,
भावना के हाथ से जिसमें वितानों को तना था,
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा,
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर कंकड़ों को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
– हरिवंश राय बच्चन
साभार – काव्यालय
मधुशाला
madhushala
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।
– हरिवंश राय बच्चन
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रुके न तू
रुके न तू, थके न तू
झुके न तू, थमे न तू
सदा चले, थके न तू
रुके न तू, झुके न तू
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गिरना भी अच्छा है, औकात का पता चलता है !
गिरना भी अच्छा है,
औकात का पता चलता है।
बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को,
अपनों का पता चलता है।
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Best Poem of Harivansh Rai Bachchan in Hindi
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब पूरे हुए
प्यास लगी थीं गजब की
मगर पानी मै जहर था
पीते तो मर जाते ओर
ना पीते तो भी मर जाते
(I was very thirsty but the water was poison If drink, i will die and if don’t drink, i will die.)
बस यही दो मशले जिंदगीभर न हल हुए
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब पूरे हुए।।
(Only these two issues were not resolved for life.Neither the sleep nor the dream came true.)
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क्या है मेरी बारी में।
जिसे सींचना था मधुजल से
सींचा खारे पानी से,
नहीं उपजता कुछ भी ऐसी
विधि से जीवन-क्यारी में।
क्या है मेरी बारी में।
आंसू-जल से सींच-सींचकर
बेलि विवश हो बोता हूं,
स्रष्टा का क्या अर्थ छिपा है
मेरी इस लाचारी में।
क्या है मेरी बारी में !
टूट पडे मधुऋतु मधुवन में
कल ही तो क्या मेरा है,
जीवन बीत गया सब मेरा
जीने की तैयारी में !
क्या है मेरी बारी में
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Short Poem of Harivansh Rai Bachchan in Hindi
आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया,
माँ की ऊँगली पकड़कर घूमने जाने का मन किय.
I felt like smiling again today.
Holding mother’s finger gave me a walk
जब मुसीबत आये तो समझ जाना जनाब
जिंदगी हमे कुछ नया सिखाने वाली है
Harivansh Rai Bachchan Poems
बैठ जाता हूँ मिट्टी पर अक्सर, क्योंकि
मुझे औकात अपनी अच्छी लगती है।
लोट जाता हूं वापस घर की तरफ हर रोज थका हारा…
आज तक समझ नहीं आया की काम करने के लिए जीता हूँ या
जीने के लिए काम करता हूँ !
प्यार किसी को करना लेकिन, कह कर उसे बताना क्या,
अपने को अर्पण करना पर, और को अपनाना क्या !
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तुम मुझको कब तक रोकोगे !
Motivational Poem of Harivansh Rai Bachchan in Hindi
मुट्ठी मे कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं,
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं – कुछ कर जाएं !
सूरज सा तेज नही मुझमें, दीपक सा जलता देखोगे,
अपनी हद रोशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे
मैं इस माटी का वृक्ष नही, जिसको नदियों ने सीचा है,
बंजर माटी में पलकर मेने, मृत्यु से जीवन खींचा है !
मैं पत्थर पर लिखी इबादत हूँ, सीसे कब तक तोड़ोगे,
मिटने वाला में नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे !
इस जग में जितने जुल्म नही, उतने सहने की ताकत है,
तानो के भी शोर में रहकर, सच कहने की आदत है !
मैं सागर से भी गहरा हूँ, तुम कितने कंकर फेकोगे,
चुन चुन कर आगे बढूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे !
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