Hindi Poem ; True Happiness : हेलो दोस्तों, मैं आपके साथ एक Hindi Poem शेयर कर रहा हूँ ‘सच्चा संतोष ही सच्चा सुख’ यह कविता ‘True Happiness’ सच्चा सुख पर आधारति है।
हर व्यक्ति अपने जीवन में सच्चा सुख (True Happiness) चाहता है और इसके लिए प्रयास करता है, लेकिन हम भूल जाते हैं की सच्चा सुख तो संतोष में है। ज्यादातर लोग इसलिए दुखी नहीं है क्योंकि उन्हें कोई दुःख है बल्कि इसलिए दुखी है क्योंकि उन्हें लगता है दूसरे उनसे ज्यादा सुखी हैं। अपने आप को कमतर समझना और कभी संतोष न करना ही सबसे बड़ा दुःख है।
भगवान ने हर इंसान को समान सुख और दुःख दिए हैं। सुख दुःख का अमीरी गरीबी, रूप रंग आदि से कोई लेना देना नहीं है। सच्चा सुख तो सच्चे संतोष से मिलता है। इसी बात को एक बहुत ही सुन्दर कविता Hindi Poem For True Happiness द्वारा बताया गया है। तो आइये इस कविता का गुनगुनाते है और अपने जीवन में सच्चे सुख को महसूस करते हैं –
हिंदी कविता : सच्चा संतोष ही सच्चा सुख !
Hindi Poem ; True Happiness
एक था कौआ, रहता था वन में,
पर बड़ा सा दुःख था उसके मन में,
क्यों हैं काला रंग मेरा ?
जब भी होता ऐसा एहसास,
हो जाता मन से सदा उदास !
उसने अपने पूरे जीवन में,
बगुला कभी न देखा था,
ऐसा सूंदर पक्षी भी होगा,
कभी न उसने ऐसा सोचा था !
एक दिन ऐसा आया,
मौसम था कुछ इठलाया,
तेज़ हवा के साथ आसमान में,
काली घटा का साया !
शुरू हुई बरसात तेज़ जब,
एक बगुला उड़कर आया,
देख बगुले का उजला रंग,
कौआ रह गया था हक़दम !
देखा उसका रंग उजला,
कौआ मन ही मन पछताया,
बोला तुम तो बहुत सुखी होंगे,
मुझे बता दो बगुले भाई !
फिर बगुले ने उससे अपने,
मन की पीड़ा बतलाई,
बगुला कैसे खुश होता,
उससे सूंदर था तोता !
तोता बोला आओ देखो,
एक अचम्भा और,
रंग बिरंगे पंखो वाला,
सबसे सुखी है मोर !
आओ पूछे उसका भेद वरना,
रह जायेगा खेद,
तीनो पक्षी जा पहुंचे फिर,
उसी मोर के छोर !
हमको भी बतला दो अपनी,
ख़ुशी का तुम एहसास,
दुखी होकर मोर ने बताया,
शिकारी करते मेरा शिकार !
सुनकर बाते मोर की,
सबकी समझ में आया,
कोई बड़ा कोई छोटा नहीं,
सबको ईश्वर ने ही बनाया !
जिसके मन में है संतोष ,
सुख का उसी के अंदर जोश,
अपने आप से सुखी नहीं है,
जग में कोई प्राणी !
बस एक दूसरे को सुखी देखकर,
हो जाती है आत्मग्लानि,
देखो झांको अपने अंदर,
हर प्राणी है बेहद सूंदर !
तुम जैसे हो अच्छे हो,
करो इस बात से संतोष ,
तभी पाओगे सच्चा सुख,
यदि रखोगे सच्चा संतोष !
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