महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रसिद्ध दोहे | Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning

Tulsidas Ke Dohe

Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning – हिंदी साहित्य के महान कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ एक साथ कवि, भक्त तथा समाज सुधारक तीनों रूपों में मान्य है। इनका जन्म राजापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। तुलसीदास जी की रचना श्रीरामचरितमानस का कथानक रामायण से लिया गया है। इसके अलावा  विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली,  हनुमान चालीसा आदि भी तुलसीदास द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण रचनाएँ है।

Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning

तुलसीदास जी द्वारा लिखे गए दोहे ज्ञान अमृत  के समान हैं | इनकी रचनाएँ अवधी भाषा में हैं तो आइये हम इन दोहों को अर्थ सहित पढ़ें (Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning) और इनसे मिलने वाले ज्ञान को अपने जीवन में उतारें। आइये जानते हैं महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के कुछ प्रमुख दोहों को –

“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं की धर्म दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

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तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ के साथ

आइये जानते हैं महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ के साथ Tulsidas Ke Dohe –

Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning

“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और ।
बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन सभी जगह सुख फैलाते हैं, मीठे वचन किसी को भी वश में करने का मंत्र होते हैं इसलिए हे मानव कठोर वचन छोड़कर मीठे बोलने का प्रयास करो।

“तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग ।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं। आप सबसे हँस कर मिलो और बोलो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो।

“काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच समाये हुए हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं।

“तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए ।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते है की हमें भगवान पर भरसो करते हुए बिना किसी डर के निर्भय होकर रहना चाहिए, कुछ भी अनावश्यक नही होगा। यदि कुछ होना होगा तो होकर रहेगा। इसलिए व्यर्थ की चिंता किये बिना हमे ख़ुशी से अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए।

“तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन ।
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन ।।

अर्थ : बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी तेज़ हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली भी उस शोर में दब जाती है। इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है। यानि जब धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप रहता है और व्यर्थ में अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता।

“आगें कह मृदु वचनबनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई ।
जाकर चित अहिगत सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहि भलाई ।।”

अर्थ : ऐसा मित्र जो आपके सामने तो मीठा बोलता है पर मन ही मन में आपके लिए बुराई का भाव रखता है। जिसका मन साँप के चाल के समान टेढ़ा मेडा हो ऐसे खराब मित्र को त्याग देने में ही भलाई है

“आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह  ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, जिस स्थान या जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आँखों में आपके लिए न तो प्रेम और न ही स्नेह हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की हीं वर्षा क्यों न होती हो।

“मुखियामुखु सो चाहिऐ, खान पान कहुँ एक ।
पालइपोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है।

“तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान ।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।।”

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए।

“तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है। ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सत्य और भगवान राम।

Tulsidas Ke Dohe with Hindi Meaning

“सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ।।”

अर्थ: जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं। दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता।

“सहज सुहृद गुरस्वामि सिखजो न करइ सिर मानि ।
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइहित हानि ।।”

अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह दिल से बहुत पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है।

“काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान ।।”

अर्थ : तुलसीदास जी कहते है कि जब तक व्यक्ति में अहंकार और लोभ जैसे संस्कार विद्यमान रहते हैं तब तक वो चाहें जितना बड़ा विद्वान क्यों न हो, मूर्ख के समान ही होता है।

“मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर।।”

अर्थ : हे रघुवीर, मेरे जैसा कोई दीनहीन नहीं है और तुम्हारे जैसा कोई दीनहीनों का भला करने वाला नहीं है। ऐसा विचार करके, हे रघुवंश मणि.. मेरे जन्म-मृत्यु के भयानक दुःख को दूर कर दीजिए।

“सूर समर करनी करहिं, कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु, कायर कथहिं प्रतापु ।।”

अर्थ : तुलसी दास इस दोहे में कहते है की अच्छा व्यक्ति बिना किसी को दिखावा किये हुएअपना कार्य करता है, जिस प्रकार एक योद्धा जो युद्ध के मैदान में अपना पराक्रम दिखता है, न की अपने वीरता की स्वयं बखान करता फिरता है।

Tulsidas Ke Dohe In Hindi 

“बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।”

अर्थ : किसी पुरुष या स्त्री के सुंदर कपड़ों और उसकी मीठी बातों से उसके मन ही भावना कैसी है यह नहीं जाना जा सकता है, क्योंकि मन में मेल लिए सूर्पनखा, मारीच, पूतना और रावण के कपड़े बहुत सुन्दर थे।

“सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन।
नाम सुप्रेम पियुश हृद तिन्हहुॅ किए मन मीन।”

अर्थ : जो राम भक्ति के रस में लीन होकर सभी इच्छाओं को छोड़कर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है।

जिन्ह हरि कथा सुनी नहि काना ।
श्रवण रंध्र अहि भवन समाना। ।

अर्थ : जो राम भक्ति के रस में लीन होकर सभी इच्छाओं को छोड़कर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते वही सच्चा भक्त है।

“हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम ते प्रगट होहिं मै जाना।
देस काल दिशि बिदि सिहु मांही। कहहुॅ सो कहाॅ जहाॅ प्रभु नाहीं।।”

अर्थ : भगवान सब जगह हमेशा समान रूप से रहते हैं और प्रेम से बुलाने पर प्रगट हो जाते हैं। वे सभी देश विदेश एव दिशाओं में ब्याप्त हैं। कहा नही जा सकता कि प्रभु कहाँ नही हैं।

“देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।
विपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।।”

अर्थ : मित्र से लेन देन करने में शंका न करे। अपनी शक्ति अनुसार हमेशा मित्र की भलाई करे। वेद के अनुसार संकट के समय वह सौ गुणा स्नेह-प्रेम करता है। अच्छे मित्र के यही गुण हैं।

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