जीवन सफल बना देंगे कबीर दास के यह प्रसिद्ध 10 दोहे Sant Kabirdas Famous Dohe will make Life Successful

Sant Kabirdas Famous Dohe

कबीर दास के 10 दोहे Sant Kabir Famous Dohe आपके जीवन में चाहें जितनी भी समस्याएं आएं संघर्ष की आंच में तपने वाले संत कबीर दास जी के यह प्रसिद्ध दोहे आपका मार्ग दर्शन करेंगे। आइयें जानते हैं Sant Kabirdas Famous Dohe कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

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संत शिरोमणि कबीरदास के यह प्रसिद्ध 10 दोहे जीवन सफल बना देंगे Sant Kabirdas Famous Dohe In Hindi

कबीर दास के 10 दोहे अर्थ सहित

कभी कभी हम आवेश में सामने वाले को कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिसका बाद में हमें बहुत ही पछताता होता है। बिना सोचे समझे बोलने से हमारे सम्बन्ध ख़राब होते हैं, हमें दुःख होता है और पछताव के आलावा कुछ नहीं मिलता।

कहते भी की मुख से निकले शब्द उस तीर की तरह है जिसे हम वापस नहीं ले सकते। इस विषय पर कबीर दास जी अपने दोहे में कहते हैं की –

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस दुनियां में बोली (मुँह से निकली बात) ही एक अत्यंत अनमोल वस्तु है अगर कोई इसका सही उपयोग जानता है, इसीलिए इसे अपने मुख से बाहर निकालने से पहले ह्रदय के तराजू पर तौल लेना चाहिए ।

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अपने अहंकार में आकर बड़े से बड़े व्यक्ति का नाश हो जाता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण रावण का है।

अहंकार में व्यक्ति अच्छा बुरा कुछ नहीं सोचता। मनुष्य का अहंकार उसे पतन की ओर ले जाता है, इसलिए मनुष्य को अहंकार का त्याग करना चाहिए। इस विषय पर कबीर दास जी अपने दोहे में कहते हैं की –

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।

अर्थ : अगर अपने मन में शीतलता हो तो इस संसार में कोई बैरी नहीं प्रतीत होता। अगर आदमी अपना अहंकार छोड़ दे तो उस पर हर कोई दया करने को तैयार हो जाता है।

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संगत का असर हर व्यक्ति पर पड़ता है। यदि हम सफल लोगों और सकारात्मक लोगों के साथ होंगे तो हम भी कामियाबी होंगे और यदि हम असफ़लत और नकारात्मक बाते करने वाले लोगों के साथ रखेंगे तो हम भी नकारात्मक और असफल होंगे।

इस विषय पर कबीर दास जी अपने दोहे में कहते हैं की –

जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।।

अर्थ : जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।

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कभी कभी हमारा अधिक बोलना हमारे लिए बड़ी मुसीबत लाकर खड़ी कर देता है पर कभी कभी जरूरत से ज्यादा चुप रहना हमारे लिए नुकसान साबित हो जाता है। इस विषय पर कबीर दास जी अपने दोहे में कहते हैं की –

दुख लेने जावै नहीं, आवै आचा बूच।
सुख का पहरा होयगा, दुख करेगा कूच।।

अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है, जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है।

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किसी की बुराई न करें। चाहे कोई भी व्यक्ति आपसे हर दर्जे में कम हो लेकिन उसे बुरे शब्द न बोलें क्योंकि कबीर दास जी अपने इस दोहे के माध्यम से सीख देते हैं की –

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ : एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !

Jeevan Safal Banaye Kabir Das Ji ke Dohe

 

कहते हैं मेहनत न करने वालों को केवल उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ देते हैं। इसलिए प्रयत्न करते रहिये एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। इसके आलावा केवल बहाने बनाते गए तो अंत में पछताने के सिवाय कुछ नहीं प्राप्त होगा। इस विषय पर कबीर दास जी अपने दोहे में कहते हैं की –

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

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चाहें आप कितना भी धन कमा लें। कितनी भी प्रसिद्धि हांसिल कर लें पर आपको मन की शांति तो आपके खुद के मन में ही मिलेगी। लोग खुशियाँ और शांति खोजने जाने कहाँ कहाँ जाते हैं पर सच्ची शांति तो हमारे भीतर ही मौजूद है। इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी कहते हैं की –

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।।

अर्थ : हे मनुष्य इस माला को जप कर मन की शांति ढूंढने के बजाय तू दो पल अपने मन को टटौल, उसकी सुन देख तुझे अपने आप ही शांति महसूस होने लगेगी।

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कुछ ऐसा काम कर जाओं की मरते वक्त ही नहीं बल्कि मरने के बाद भी लोग हमें याद करके रोए और हम हँसते हुए इस दुनिया से विदा ले। इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी कहते हैं की –

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं जब हम इस दुनिया में आते है तब दुनिया खुशी मनाती है और हम रोते है। इसलिए जीते जी अपने जीवन को इतनी जिंदादिली, सच्चाई और अच्छाई से जिओ की वो ओरो के लिए एक मिसाल बन जाए।

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यदि मन में मेल है तो ऊपरी साज़ सज्जा से कोई लाभ नहीं। इस बात को समझाते हुए कबीर दास जी कहते हैं की –

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं ऐसे स्नान का क्या लाभ जिससे सिर्फ तन साफ हो और मन वैसा का वैसा मलिन रहे। जैसे की मछली हर वक्त जल मग्न रहती है फिर भी उसे कितना भी रगड़ा या साफ किया जाए, उसकी बदबू नहीं जाती, इसलिए निरंतर अपने मन को साफ रखने का प्रयास करो ऊपरी स्वांग से कोई लाभ नहीं।

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यदि कोई ज्ञानी संत, व्यक्ति या महापुरुष ज्ञान दे तो जीते जी जरूर लेना चाहिए क्योंकि मरते समय (अंत समय में) उस ज्ञान का क्या लाभ। इसलिए कबीरदास जी का कहना है की –

जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा न कह संदेश।
तन-मन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश।

अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं जीते जी मनुष्य किसी ज्ञान को समझना नहीं चाहता। बल्कि ज्ञान देने पर यही कहता है मुझे उपदेश ना दे।

जिसे अपने शरीर और आत्मा का ही बोध नहीं भला उसे किसी ज्ञान से क्या लाभ होने वाला। व्यक्ति को ये समझना चाहिए जीते जी ही ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। मरने के बाद भला कौन ज्ञान देगा।

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