गुरु रविदास जी के अनमोल वचन, दोहे और कहावतें | Guru Ravidas Ji Ke Anmol Vachan, Dohe, Kahaavaten

Guru Ravidas Ji Anmol Vachan

Guru Ravidas – सतगुरु रविदास (रैदास) 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने वाले संत रविदास जी भारत के उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने अपने कर्म और वचनों से सभी को अच्छाई, परोपकार और भाई चारे का सन्देश दिया है।  उन्होंने अपनी अपनी रचनाओं एवं  रूहानी आवाज़ से गाये गीतों एवं भजनों से सारे संसार को सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया है।

Guru Ravidas Ji Ke Anmol Vachan, Dohe, Kahaavaten

गुरु रविदास (Guru Ravidas) जी का जन्म जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1388 को हुआ था। उनके पिता का नाम राहू तथा माता का नाम करमा था। उनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता है। रविदास जी जिन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे अनेको नाम से भी जाना जाता है एक परोपकारी और दयालु व्यक्ति थे। दूसरों की सहायता एवं साधु संतों का साथ उन्हें बेहद पसंद था। अपना ज्यादातर समय और प्रभु भक्ति एवं सत्संग में व्यतीत करते थे। वह ईश्वर की भक्ति पर पूर्ण विश्वास करते थे। उनके ज्ञान एवं वाणी की मधुरता से सभी लोग प्रभावित होते थे। उनके द्वारा कहे शब्द, दोहे, पद और अनमोल वचन (विचार) आज भी हम सभी को सदैव आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। आइयें जानते हैं गुरु रविदास जी द्वारा कहे गए प्रमुख विचारों को जो उन्होंने अपने दोहों और गीतों के माध्यम से जन जन  को दिए हैं। हम सभी को  उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। आइये जानते हैं –

शांति देते भगवान बुद्ध के अनमोल वचन

Sant Ravidas Ji Ke Anmol Vachan

# किसी की पूजा इसलिए नहीं करनी चाहियें क्योंकि वो किसी पूजनीय पद पर बैठा हैं। यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहियें। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति ऊँचे पद पर नहीं बैठा है परन्तु उसमे योग्य गुण हैं तो ऐसे व्यक्ति को पूजना चाहियें। #

# भगवान उस ह्रदय में निवास करते हैं जिसके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है। #

# कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्म के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं। #

# हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहियें और साथ साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहयें, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य। @

# जिस प्रकार तेज़ हवा के कारण सागर मे बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं, और फिर सागर में ही समा जाती हैं, उनका अलग अस्तित्व नहीं होता । इसी प्रकार परमात्मा के बिना मानव का भी कोई अस्तित्व नहीं है। #

# कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें। इस छोटी से चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है परन्तु एक विशालकाय हाँथी ऐसा नहीं कर सकता। #

# मोह-माया में फसा जीव भटक्ता रहता है। इस माया को बनाने वाला ही मुक्ती दाता है। #

# भ्रम के कारण साँप और रस्सी तथा सोने के गहने और सोने में अन्तर नहीं जाना जाता, किन्तु भ्रम दूर होते ही इनका अन्तर ज्ञात हो जाता है, उसी प्रकार अज्ञानता के हटते ही मानव आत्मा, परमात्मा का मार्ग जान जाती है, तब परमात्मा और मनुष्य मे कोई भेदभाव वाली बात नहीं रहती। #

# जीव को यह भ्रम है कि यह संसार ही सत्य है किंतु जैसा वह समझ रहा है वैसा नही है, वास्तव में संसार असत्य है। #

प्यार और परोपकार पर मदर टेरेसा के अनमोल विचार

Sadhguru Ravidas Ji ke Dohe – Kahaavaten ; Arth Sathi

रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।

अर्थ – रैदास जी कहते है कि जिसके हर्दय मे रात दिन राम समाये रहते है, ऐसा भक्त राम के समान है, उस पर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम  भावना उस पर हावी हो सकती है।


हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।

अर्थ – हरी के समान बहुमूल्य हीरे को छोड़ कर अन्य की आशा करने वाले अवश्य ही नरक जायेगें। यानि प्रभु भक्ति को छोड़ कर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।


रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

इस दोहे में रविदासजी के कहने का तात्पर्य है की किसी जाति में जन्म के कारण व्यक्ति नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को भिन्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचें होने चाहिए।


जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।।

अर्थ – जिस रविदास को देखने से घर्णा होती थी, जिसका नरक कुंद मे वास था, ऐसे रविदास जी का प्रेम भक्ति ने कल्याण कर दिया है ओंर वह एक मनुष्य के रूप मै प्रकट हो गए है।


रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।

अर्थ –  रविदास जी कहते हैं कि मात्र जन्म के कारण कोई नीच नहीं बन जाता हैं परन्तु मनुष्य को वास्तव में नीच केवल उसके कर्म बनाते हैं।


“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

अर्थ -यदि आपका मन पवित्र है तो साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।


जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

अर्थ – जिस तरह केले के पेड़ के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में पूरा पेड़ खत्म हो जाता है लेकिन कुछ नही मिलता। उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बाँट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होगी तब तक इन्सान एक दुसरे से जुड़ नही सकता है यानि एक नही हो सकता है।


ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।

इस दोहे के माध्यम से संत रविदास जी कहना चाहते हैं की किसी की सिर्फ इसलिए पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर है। यदि कोई व्यक्ति ऊँचें पद पर तो है पर उसमे उस पद के योग्य गुण नहीं है तो उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए। इसके अतरिक्त कोई ऐसा व्यक्ति जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है परन्तु उसमें पूज्जनीय गुण हैं तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।


मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।

इस दोहे की पंक्तियों के माध्यम से स्वामी रविदास जी कहना चाहते हैं की जिसका मन निर्मल होता है भगवन उसी में वास करते हैं। जिस व्यक्ति के मन में कोई बैर भाव नहीं है, किसी प्रकार का लालच नहीं है, किसी से कोई द्वेष नहीं है तो उसका मन भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं।

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महान विचार-101 अनमोल वचन

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