करवा चौथ की पौराणिक कथा एवं व्रत  | Karva Chauth Story In Hindi

Karva Chauth Story

Karva Chauth Story ~ Aaiye Jaanate Hain Kyon Manaaya Jaata Hai Karava Chauth ? Karava Chauth Kee Pauraanik Katha (Karv Chhauth Story In Hindi) करवा-चौथ पर विशेष ; करवा-चौथ की महत्ता, कथा एवं व्रत 

Karva Chauth Special

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा चौथ लगभग पूरे भारत में विशेषकर उत्तरप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पंजाब में मनाया जाता है। यह स्त्रियों का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन सुहागिन महिलायें (Married Women ) अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरा दिन बिना कुछ व्रत (fast) रखती हैं  . यह व्रत निर्जल क्या जाता है। यानि इसमें पानी तक नहीं पिया जाता। महिलायें शाम को शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय की  पूजा करने के बाद चाँद देखकर अपने पति के हाथों से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं।

 करवा चौथ ; करवा चौथ से जुडी पौराणिक कथा – Karva Chauth Story In Hindi

एक साहूकार था।  उसके सात बेटे और एक बेटी थी।  सातों भाई बहन साथ बैठकर खाना खाते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ का व्रत आया तो भाई बोले आओ बहन खाना का लें।  उनकी बहन बोली भाई आज मेरा करवा चौथ का व्रत है इसलिए चाँद निकलने पर ही खाऊँगी।

वो उन सात बहनों की एकलौती बहन थी और वो उसे भूखा नहीं देख सकते थे तो भाई ने दिया (दीपक) और एक आटा छानने वाली छलनी ली।  पड़े पर चढ़कर एक तरफ होकर दिया और छलनी ढक दी। अपनी बहन के पास आकर बोले बहन तेरा चाँद निकल आया। बहन अपनी भाभियों से बोली आओ भाभी अरग (चाँद पर जल चढ़ाना) दे दें। तो भाभियाँ बोली बहन तुम्हारा चाँद निकला है हमारा तो रात को निकलेगा।

बहन ने अकेले ही अरग दे दिया और भाइयों से साथ खाने बैठ गई। उसने एक गस्सा ही खाया था कि मुँह में बाल आ गया। दूसरा गस्सा खाया तो उसमे पत्थर निकला, तीसरे गस्से में ही ससुराल से बुलावा आ गया की जमाई राजा बहुत बीमार हैं। जब माँ बोली की साड़ी पहन कर ससुराल चली जा। माँ ने सोने का टका उसके पल्ले में बांध दिया और कहा की रास्ते में कोई भी मिले उसके पैर छूते जाना और उनका आशीर्वाद लेती जाना।

सब को रास्ते में मिले और यही आशीर्वाद देते गए कि ठंडी हो, सब्र करने वाली हो, सातों भाइयों की बहन हो, तेरे भाइयों को सुख दे। परन्तु किसी ने भी सुहागिन रहने का आशीर्वाद नहीं दिया। जैसे ही वो ससुराल पहुंची दरवाज़े पर उसकी छोटी नन्द खड़ी थी। उसने उसके पैर छुए तो नन्द ने कहाँ “सील हो सपूती हो” सात पुत्रों की माँ हो, तेरे भाइयों को सुख मिले। यह बात सुनकर उसने जो सोने का टका माँ ने दिया था वह खोलकर दे दिया।

अंदर गई तो सास ने कहा कि ऊपर मुंडेर है वहां जाकर बैठ जा। जब तो ऊपर गई तो देखा उसका पति मरा पड़ा है। वह रोने और चिल्लाने लगी। उसकी सास दसियों से कहती है कि वह ऊपर पड़ी है उसको बंधी हुई रोटियां दे आओ। इस प्रकार माघ की तिल चौथ आई और बोली कि करवे ले लो, करवे ले लो, भाइयों की प्यारी करवे ले लो, ज्यादा भूख वाली करवे ले लो। तब वह माता को देखकर बोली कि तूने मेरे को उजाड़ है तो तू ही सुधरेगी। मेरे को सुहाग देना पड़ेगा। तब चौथ माता ने कहा की पौष माता आएँगी वह मेरे से बड़ी हैं वही तेरे को सुहाग देंगी। इस प्रकार पौष माता भी आकर चली गई। माघ की, फाल्गुन की, चेत की, वैशाख की, जेठ की, आषाढ़ की, श्रावण की, भादों की, सारी चौथ माता इसे जवाब देती चली गईं कि अगली चौथ माता आयंगी उनसे कहियों।

बाद में आश्विन की चौथ माता आयी और कहा की तेरे ऊपर कार्तिक की चौथ माता नाराज़ हैं वही तेरा सुहाग देंगी। तब उसके पैर पकड़ कर बैठ जइयो। यह कहकर वह चली गईं।  बाद में कार्तिक की माता आईं और गुस्से से बोली कि भाइयों की प्यारी करवे ले ले, दिन में चाँद उगाने वाली करवा ले, ज्यादा भूख वाली करवा ले।  तब साहूकार के बेटी उनके पैर पकरड़कर बैठे गई और रोने लगी। हाथ जोड़कर बोली हे चौथ माता। मेरा सुहाग तेरे हाँथ में है।  तुझे देना पड़ेगा। चौथ माता बोली की छोड़ पापिनी, हत्यारिनि, मेरे पैर क्यों पकड़ रही है ? वह बोली मेरे से बिगड़ी है तू ही सुधारेगी। मेरे को सुहाग देना पड़ेगा। चौथ माता खुश हो गई और आँख में से काजल निकला, नाखूनों पर से मेहंदी, मांग से सिन्दूर और चितली अंगूठी का छींटा दे दिया। उसका पति उठकर बैठ गया और बोले की बहुत सोया। तो वह होली काहे का सोया मेरे तो बारह महीने हो गए। मुझे तो कार्तिक की चौथ माता ने सुहाग दिया है। वह बोली कि चौथ माता को उजमन करो। तो उन्होंने चौथ माता की कहानी सुनी। खूब सारा चूरमा बनाया। दोनों पति पत्नी खा कर चौपड़ खेलने लगे।

नीचे से सासु जी ने रोटी भेजी तो दासी ने आकर कहा की वो दोनों चौपड़ खेल रहे हैं। सास देखकर खुश हो गई और बोली क्या बात हो गई तो बहु बोली मेरे चौथ माता टूटी हैं और यह कहकर सासु माँ के पैर छूने लगी। उसने सारी नगरी में ढिंढोरा पिटवा दिया सबको चौथ का व्रत करना चाहियें। तेरह चौथ नहीं तो चार करना, नहीं तो दो चौथ सब कोई करना। हे चौथ माता जैसे साहूकार की बेटी को सुहाग दिया वैसा सबको देना।

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