आप सभी को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई !! Happy Guru Purnima 2021: दोस्तों, गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेद व्यास के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्हें भारत के सबसे महान गुरुओं में से एक और महाभारत के लेखक के रूप में जाना जाता है।
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Guru Purnima 2021
गुरु पूर्णिमा मनाने के कारण
शिक्षक ज्ञान का घर हैं और हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जैसा की उपरोक्त कहा है की गुरु पूर्णिमा का पर्व महर्षि वेद व्यास के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। अतः शास्त्रों के आधार पर महर्षि वेद व्यास तीनों लोकों में सबसे श्रेष्ठ ज्ञाता माने जाते हैं। इसलिए आध्यात्मिक शिक्षकों और नेताओं का सम्मान करने और उनका आभार व्यक्त करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
हमारे देश में ही नहीं बल्कि विश्व में गुरु का स्थान सर्वपरि है। क्योंकि एक गुरु ही है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही मार्ग पर लाता है। कहते भी हैं कि –
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमह।
अर्थात ;
गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं।
गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं।
गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं।
सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है।
उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करता हूँ।
गुरु पूर्णिमा मनाने का महत्त्व
पौराणिक काल से संबंधित ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे ये पता चलता है कि किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहा है।
गुरुओं के सम्मान के लिए गुरु पूर्णिमा एक आध्यात्मिक परंपरा है। जो आध्यात्मिक और शैक्षणिक शिक्षकों (गुरुओं) को समर्पित है।
गुरु पूर्णिमा भारत के अतरिक्त नेपाल और भूटान में भी एक त्योहार की तरह मनाया जाता है। नेपाल में, गुरु पूर्णिमा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भारत में 5 सितंबर को मनाया जाता है।
माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने इस शुभ दिन पर अपना पहला उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह बौद्धों के लिए एक शुभ त्योहार है।
अतः यह त्योहार पारंपरिक रूप से हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों द्वारा अपने चुने हुए आध्यात्मिक शिक्षकों और नेताओं का सम्मान करने और उनका आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा मनाने को लेकर पौराणिक कथा Mythology for celebrating Guru Purnima
पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम ऋषि पराशर था और माता का नाम सत्यवती था। अपने बालकाल से ही वेद ऋषि को अध्यात्म में रुचि थी। इसके फलस्वरूप इन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करने की अनुमति मांगी, लेकिन उनकी माता ने अपने पुत्र वेद ऋषि की बात को नहीं माना।
लेकिन बालक वेद व्यास भी जिद पर अड़ गए और आख़िरकार उनकी माता को उन्हें वन जाने की आज्ञा देनी पड़ी, और उनसे कहा की जब घर की याद आये तो लौट आना।
इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वन में जाकर कठिन तपस्या करने लगे। कठिन तपस्या और पुण्य प्रताप से वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हो गई। इसके बाद इन्होंने वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की भी रचना की वेद व्यास को बादरायण भी कहा जाता है। वेदव्यास को अमरता का वरदान प्राप्त है, अतः आज भी वेदव्यास किसी न किसी रूप में हमारे बीच उपस्थित रहते हैं। और इसलिए लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
(Disclaimer : हमारी वेबसाइट पर प्रकाशिक यह लेख बाहरी सूचनाएँ, सामान्य जानकारी और इंटरनेट के माध्यम से लिए गया है। अतः ZindagiWow.Com इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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