दुःख को खुद पर हावी न होने दें ! Post Traumatic Stress Disorder PTSD

Post Traumatic Stress Disorder PTSD

जिंदगी की गाड़ी के हर मोड़ पर सुख और दुःख आते हैं। सामान्यता लोग अपने दुखों को भूलकर आगे बढ़ते जाते हैं, पर कुछ लोग दुःख से बाहर नहीं आ पाते और  Traumatic Stress Disorder PTSD का शिकार होते जाते हैं।

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What is Post Traumatic Stress Disorder (PTSD) ?

हमारी ज़िन्दगी में कई ऐसी घटनायें होती हैं जिनका दुःख हमारे ऊपर हावी होता जाता है जैसे – किसी खौफनाक या डरा देने वाले अनुभव से गुजरना, किसी से बिछड़ने का गम, कोई बुरा अनुभव, कोई बुरी घटना आदि।  कुछ लोग तो समय के साथ साथ और उचित देखरेख के साथ बेहतर हो जाते हैं और उनकी चिंता और डर कम हो जाते हैं और वे रोज़ाना की ज़िंदगी में सामान्य हो जाते हैं पर कई लोग अपने दुःख  और सदमे से बाहर नहीं निकल पाते, इसी मनोदशा को पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पी.टी.एस.डी) कहा जाता है।

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Post Traumatic Stress Disorder के लक्षण ;

ऐसे व्यक्ति के दिमाग में दुर्घटना बार बार घूमती रहती हैं, यानी ऐसा व्यक्ति बीती हुई दुर्घटना को फिर से होते हुए देखता है। ऐसा करने से कुछ शारारिक लक्षण भी देखने को मिलते हैं जैसे – अचानक पसीना आना, ह्रदय की धड़कन का बढ़ जाना, घबराहट होना और चक्कर आना।

  • ऐसा व्यक्ति उस घटना के बारे में बात भी नहीं करना चाहता।
  • नींद से अचानक चौक कर जग जाना।
  • नींद कम आना और कभी कभी  तो जागते रहने की कोशिश करना।
  • प्रतिदिन के कामों और लोगों से मिलने में दिलचस्ती न लेना।
  • चिड़चिड़ापन और बात बात पर गुस्सा आना।
  • दुर्घटना को बार बार महसूस करना और ऐसा महसूस करना जैसे अभी की बात हो।
  • खुद पर और दूसरों पर विश्वास की कमी और असुरक्षा की भावना का होना।
  • ऐसे व्यक्ति के मन में नकारात्मक भावनाएँ घर कर लेती हैं और व्यक्ति को हमेशा यह शंका बनी रहती है की ऐसी घटनाए दुबारा न हों।

इसके अलावा पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पी.टी.एस.डी) के मरीज नशे के शिकार हो जाते हैं और कुछ मामलों में तो आत्महत्या का प्रयास भी करते हैं।

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PTSD होने का कारण

जिस व्यक्ति ने शारारिक या मानसिक यातना का सामना किया है , अपनी जिंदगी से जुडी कोई दुर्घटना का सामना किया है, यौन उत्पीड़न का सामना किया है तो ऐसे व्यक्ति को  पोस्ट ट्रॉमाटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पी.टी.एस.डी) होने का कारण होता है। अक्सर यह देखा गया है की ऐसे लोगों में एंग्जायटी एंग्जाइटी डिसऑर्डर (हर समय की हड़बड़ाहट, चिंता, बेचैनी) या डिप्प्रेशन के लक्षण पहले से ही मौजूद होते हैं।

ऐसा व्यक्ति बहुत ही संवेदनशील होता है और किसी अप्रिय घटना के घटिक हो जाने से विचलित हो जाता है और Post Traumatic Stress Disorder (PTSD) से ग्रसित हो जाता है। हालाँकि (पी.टी.एस.डी) होने का एकमात्र कारण यही नहीं हैं बल्कि यह कई सारी मिली जुली जटिल वजहों से होता है।

शोध से सामने आया है की मस्तिष्क का एक अहम् हिस्सा हमारी भावनाओं को नियन्त्रिक करता है जिसे हिप्पोकैम्पस कहा जाता है। यदि इसका आकर बहुत छोटा होता है तो  Post Traumatic Stress Disorder (PTSD) होने का खतरा होता है इसके आलावा पारिवारिक झगडे, हिंसक माहौल और यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चे भी इसका शिकार हो सकते हैं।

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Post Traumatic Stress Disorder का उपचार 

  • पी.टी.एस.डी  से ग्रसित बहुत से लोग अपने परिवार वालों एवं मित्रों की मदत से इस रोग से निजात पा लेते हैं और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने में समर्थ हो जाते हैं। यदि इसके बाद भी कोई विशेष लाभ नहीं हो रहा है तो इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की जरूरत होती है।
  • सकारात्मक बातचीत से पी.टी.एस.डी से ग्रसित व्यक्ति का मनोबल बढ़ाया जाता है।
  • यदि किसी व्यक्ति में किसी दुर्घटना के कई दिनों बाद भी पी.टी.एस.डी  के लक्षण दिखाई दें तो तुरंत किसी मनोचिकित्सक से सलाह लें।
  • ऐसे व्यक्ति को कभी भी अकेला न छोड़ें और लगातार नज़र बनायें रखे की कही उसके मन में आत्महत्या का विचार न आये।
  • पी.टी.एस.डी  से ग्रसित व्यक्ति से कभी भी नकारात्मक बातें न करें बल्कि सकारात्मक बातों से उसका हौंसला बढ़ाते रहें।
  • ऐसे व्यक्ति को कभी खाली न बैठने दें किसी न किसी काम द्वारा व्यस्त रखें।
  • मरीज के आस पास का माहौल खुशनुमा रखें इससे मरीज़ को स्वस्थ होने में मदद मिलती है।
  • पी.टी.एस.डी  से ग्रसित व्यक्ति को आपके सहयोग की जरूरत है अपने मन शांत रखें, मरीज़ को किसी बात के लिए दबाव न डालें और न ही अपनी बात थोपने की कोशिश करें।

इसके आलावा मरीज को विशेषज्ञ द्वारा दवाएं भी दी जाती हैं जिससे कुछ माह में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं।

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यदि आपको या आपके किस परिचित को पी.टी.एस.डी के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो शीग्र ही किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिले और समस्या से अवगत करायें।

तो दोस्तों हमेशा नकारत्मकता से दूर रहिये , दुःख को जितना दूर हो सके दूर रखिये कभी भी अपने ऊपर हावी मत होने दीजिये। अपने मित्रों और परिवार वालों से इस बारे में बातचीत कीजिये। व्यायाम और योग की आदत डालिये और अपने आप को व्यस्त रखिये।

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