बुद्ध पूर्णिमा : पौराणिक कथा महत्त्व एवं उपदेश | Buddha Purnima In Hindi

Buddha Purnima

Buddha Jayanti 2021 : गौतम बुद्ध के जन्म दिवस को बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के रूप में मनाया जाता है। इसे वैशाख पूर्णिमा भी कहते हैं।यह गौतम बुद्ध की जयंती भी है और उनका निर्वाण दिवस भी। भगवान बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार एवं बौद्ध धर्म से संस्थापक हैं अतः बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का यह प्रमुख त्यौहार है। लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। 

क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा ? 
Buddha Purnima / Buddha’s Birthday celebrated?

वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह गौतम बुद्ध की जयंती भी है और उनका निर्वाण दिवस भी।  इस दिन 563 ईसा पूर्व में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसी दिन बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में 80 साल की उम्र में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था।

अर्थात इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण हुए थे। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा : एक पौराणिक कथा ! Pauranik Katha
Buddha Purnima : Mythology !

बचपन में गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन एवम माता का नाम माया देवी था। सिद्धार्थ के जन्म के कुछ दिन बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। उनका पालन पोषण उनकी मौसी ने किया।

एक दिन नगर भ्रमण करते हुए सिद्धार्त काफी दूर तक निकल गए। मार्ग में उन्होंने एक अत्यंत बीमार व्यक्ति को देखा, कुछ और दूर चलने के बाद एक वृद्ध व्यक्ति को देखा, अंत में एक मृत व्यक्ति को देखा। इन सबको देखकर सिद्धार्थ के मन में एक प्रश्न उभर आया की क्या मैं भी बीमार पडूंगा। क्या मैं भी वृद्ध हो जाऊंगा, क्या मैं भी मर जाऊंगा।

इन सभी प्रश्नों से परेशान और दुखी होकर सिद्धार्थ इन सबसे मुक्ति पानी की खोज में निकल पड़े। मार्ग में उनकी मुलाकात एक सन्यासी से हुई जिसने भगवान बुद्ध को मुक्ति मार्ग के विषय में विस्तार पूर्वक बताया। तब से भगवान बुद्ध ने सन्यास ग्रहण करने की ठान ली।

29 वर्ष की आयु में सिद्धार्त ने अपना घर छोड़ दिया तथा सन्यास ग्रहण कर लिया। तपस्या करने के लिए वह एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और तपस्या करने लगे।

6 वर्ष तक कठोर तपस्या के पश्चात उन्हें सत्य का ज्ञान प्राप्त हुआ। अतः वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवन बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

जहाँ पर भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ वह स्थान बोधगया कहलाया। महात्मा बुध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। भगवान बुध 483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन अपने आत्मा को शरीर से अलग कर ब्रह्माण्ड में लीन हो गए। यह घटना महापरिनिर्वाण कहलाया।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्त्व
Importance of Buddha Purnima

बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा : भगवान बुद्ध उपदेश budh purnima Updesh
Buddha Purnima: Preaching Lord Buddha

भगवान बुद्ध का पहला उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ के नाम से जाना जाता है। यह पहला उपदेश भगवान बुद्ध ने आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पांच भिक्षुओं को दिया था। बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से क्रांति का सूत्रपात किया था। उन्होंने तत्कालीन समाज में मौजूद घोर आडंबर, पशु और नरबलि, वैदिक कर्मकाण्डों का विरोध किया। बुद्ध ने मानव कल्याण का उपदेश दिया।

शांति देते भगवान बुद्ध के अनमोल वचन /  उपदेश –

1- कई हजारों खोखले शब्दों से अच्छा, केवल वह एक शब्द है जो मन में शांति लाए.

2- आपका असत्यवादी होना ही आपकी विफलता का मुख्य कारण हैं.

3- अगर आप सच में अपने आप से प्रेम करते है तो आप कभी भी दूसरों को दुःख नहीं पहुंचा सकते.

4- आकाश के लिए पूरब और पश्चिम में कोई भेद नहीं है, परन्तु लोग अपने मन में भेदभाव को जन्म देते हैं और यही सच है ऐसा विश्वास करते रहते हैं.

5- हम जो भी और जैसा भी सोचते हैं, वही बनते जाते हैं.

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