रहीम दास जी के बहुमूल्य दोहे सार सहित | Rahim Ke Dohe With Hindi Meaning

Rahim Ke Dohe

आज आप जानेंगे रहीम दास के नीतिपरक दोहों का बहुमूल्य संग्रह (Rahim Ke Dohe With Meaning)

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रहीम दास जी के बहुमूल्य दोहे सार सहित (Rahim Das Ke Dohe With Hindi Meaning) :

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय।।

अर्थात : रहीम जी कहते है कि संकट के समय तो प्रभु को हर कोई याद करता है, परन्तु सुख में कोई नहीं करता। यदि आप सुख में भी प्रभु को याद करते , तो दुःख आता ही नहीं।

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थात : व्यक्ति को सोच-समझ कर व्यवहार (बातचीत) करना चाहिए, क्योंकि यदि किसी कारण बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना बहुत कठिन हो जाता है, जैसे यदि एकबार दूध फट जाए तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है, उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जिस तरह ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहते हैं पर वो भी चंदन पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

अर्थात : रहीम कहते है जिस तरह पृथ्वी पर बारिश, गर्मी और सर्दी पड़ती है और पृथ्वी यह सहन करती है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में सुख और दुःख सहन करना सीखना चाहिए।

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थात : रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है, इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता है । यदि यह प्रेम रुपी धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

सब को सब कोऊ करै, कै सलाम कै राम।
हित ‘रहीम’ तब जानिए, जब कछु अटकै काम।।

अर्थात : रहीम कहते हैं की लोग राम-राम या सलाम तो सब को करते हैं पर जो मुश्किल परिस्थिति में काम आये वही अपना होता है।

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

अर्थात : रहीम कहते है कि बड़े को छोटा कहने से बड़े की भव्यता कम नहीं होती। क्योंकि गिरधर को कन्हैया कहने से उनके गौरव में कोई कमी नहीं होती।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए। जहां छोटी सी सुई काम आती है, वहां तलवार बेचारी क्या कर सकती है ?

रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यो जलज को नहिं रवि सकै बचाय।।

अर्थात : जिसके पास संपत्ति होता है उसे बहुत मददगार मिल जाते हैं ठीक उसी प्रकार बिना पानी के कोई जीव सिर्फ सूर्य की शक्ति से जीवित नहीं रह सकता।

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि आंसू आँखों से बहकर मन के दुःख को बाहर प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

Best Rahim Ke Dohe With Meaning

मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।

अर्थात : रस, फूल, दूध, मन और मोती जब तक स्वाभाविक सामान्य रूप में है, तब तक अच्छे लगते है । लेकिन यह एक बार टूट-फट जाए तो कितनी भी युक्तियां कर लो वो फिर से अपने स्वाभाविक और सामान्य रूप में नहीं आते।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि वो लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

अर्थात : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए, क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।

रहीम के दोहे | Rahim Ke Dohe

यों ‘रहीम’ गति बड़ेन की ज्यों तुरंग व्यवहार।
दाग दिवावत आपु तन सही होत असवार।।

अर्थात : सज्जन लोग अच्छा व्यवहार करना अपना धर्म मानते हैं लेकिन घोड़े को जब दाग दिया जाता है तभी उसकी गति सही होती है।

रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।

अर्थात : रहीमदास जी कहते हैं कि यदि आप अपने मन को एकाग्रचित रखकर काम करेंगे, तो आप अवश्य ही सफलता प्राप्त कर लेंगे। उसीप्रकार मनुष्य भी एक मन से ईश्वर को चाहे तो वह ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता है।

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।

अर्थात : खीरे की कड़वाहट दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।

रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यो जलज को नहिं रवि सकै बचाय।।

अर्थात : जिसके पास संपत्ति होती है उसे बहुत मददगार मिल जाते हैं ठीक उसी प्रकार बिना पानी के कोई जीव सिर्फ सूर्य की शक्ति से जीवित नहीं रह सकता।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

अर्थात : इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं पाती। वह पानी से अलग होते ही मर जाती है।

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।

अर्थात : कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।

रहीम के दोहे | Rahim Ke Dohe

मथत मथत माखन रहै दही मही बिलगाय।।
रहिमन सोई मीत है भीर परे ठहराय।

अर्थात : जिस प्रकार माखन को मथने से दही और मट्ठा (छाश) अलग हो जाता है उसी प्रकार जब जीवन में मथाव आता है यानी ख़राब समय आता है तो सच्चे मित्र की पहचान हो जाती है (या) सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत के समय साथ दे।

Rahim Das Ke Dohe With Meaning in Hindi

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिहैं देर।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते है कि जब ख़राब समय होता है तो मौन करना ठीक होता है। क्योंकि जब अच्छा समय आता है, तब काम बनते विलम्ब नहीं होता। इस कारण हमेशा अपने सही समय का इन्तजार करें।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

अर्थात : रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

अर्थात : जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद न खाकर लोगों में बात देता है और नदी अपना पानी स्वयं न पीकर लोगों की प्यास बुझा देती है ठीक इसी प्रकार एक सज्जन इंसान को अपने संपत्ति को जमा करने के बजाय अच्छे काम में लगा देना चाहिए।

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

अर्थात : रहीम जी कहते है कि संघर्ष जरूरी है। क्योंकि इस समय के दौरान ही यह ज्ञात होता है कि हमारे हित में कौन है और अहित में कौन है

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।

अर्थात : वर्षा ऋतु को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया है। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अभिप्राय यह है कि कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रह जाना पड़ता है। उनका कोई आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता है।

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।

अर्थात : इस पंक्ति में कवि कहते हैं की खैरियत, खून, खाँसी, खुजली, प्रेम और नशा कभी छुपाये नहीं जा सकते यह पूरी दुनियाँ जान जाती है।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।

अर्थात : जिस प्रकार क्वार के महीने में आकाश में घने बादल दिखते हैं पर बिना बारिश किये वो बस खाली गड़गड़ाने की आवाज़ करते हैं। उस प्रकार जब कोई अमीर व्यक्ति गरीब हो जाता है, तो उसके मुख से बस अपनी पिछली बड़ी-बड़ी बातें ही सुनाई पड़ती हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता।

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

अर्थात : रहीम दास जी इस दोहे में कीचड़ का पानी बहुत ही धन्य है। यह इसलिए क्योंकि उसका पानी पीकर छोटे-मोटे कीड़े मकोड़े भी अपनी प्यास बुझाते हैं। परन्तु समुद्र में इतना जल का विशाल भंडार होने के पर भी क्या लाभ ? जिसके पानी से प्यास नहीं बुझ सकती है।

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।

रहीम के दोहे | Rahim Ke Dohe

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह ।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह ।।

अर्थात : जिस प्रकार यह धरती ठंडी,गर्मी और बरसात सहती रहती है उसी प्रकार एक इंसान को भी सुख और दुःख की आदत डाल लेनी चाहिए।

Rahim ke dohe in Hindi Meaning

ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।

अर्थात : ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

अर्थात : जो इंसान आधी प्रगति कर लेता है वह इतराना शुरू कर देता है ठीक उसी प्रकार जैसे एक शतरंज में एक प्यादा फर्जी होने पर टेढ़ी चालें चलना शुरू कर देता है।

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।

अर्थात : रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है।

रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुहँ स्याह।
नहीं छलन को परतिया, नहीं कारन को ब्याह।।

अर्थात : एक साथ अनेक सम्बन्ध रखने वाले को न तो कोई स्त्री मिलती है और न ही कोई व्याह करता है (या) थोड़े दिन के लिए अपने मुह पर धब्बा कौन लगवाये क्योंकि ऐसा करने से न कोई स्त्री मिलती है और न ही विवाह होता है।

तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।

अर्थात : जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है।

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं ।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं ।।

अर्थात : इंसान बोलने से पहले एक सा दीखता है जिस प्रकार कोयल और कौवा दीखते तो कुरूप हैं पर उनकी पहचान बसंत में उनकी वाणी से होती है।

माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और।
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।।

अर्थात : माघ मास आने पर टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर पृथ्वी पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है। मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है।

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥

अर्थात : इंसान की आबरू, इज्ज़त और आँखों में दिखने वाला प्रेम तब नष्ट हो जाता है जब वह कुछ मांगने के लिए हाथ फैलाता है।

रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

अर्थात : जिस प्रकार जल में पड़ा होने पर भी पत्थर नरम नहीं होता उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है ज्ञान दिए जाने पर भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

अर्थात : इन पंक्ति का तात्पर्य यह है की जिस इंसान की कोई चाह नहीं रहती उनकी चिंता मिट जाती है और मन पूरी तरह से शांत और बेपरवाह हो जाता है।

Famous Rahim Ke Dohe

संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।।

अर्थात : जिस प्रकार दिन में चन्द्रमा आभाहीन हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति किसी व्यसन में फंस कर अपना धन गँवा देता है वह निष्प्रभ हो जाता है।

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय।।

अर्थात : जिस प्रकार एक दीपक दूसरों को तो उजाला देता है पर उसके निचे खुद अँधेरा होता है उसी प्रकार कुल के कपूत की चाल भी होती है।

साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।।

अर्थात : रहीम जी कहते हैं कि इस बात को जान लो कि साधु सज्जन की प्रशंसा करता है। यति योगी और योग की प्रशंसा करता है। पर सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं।

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय ।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ।।

अर्थात : मन, मोती, पेड़, दूध और रस इन सभी का वास्तविक रूप ही सबको अच्छा लगता है लेकिन अगर ये फट गए तो लाखों उपाय करने के बाद भी पहले अवस्था में नहीं आ सकते।

वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग।
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।।

अर्थात : रहीम दास जी कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें।

रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत।।

अर्थात : रहीम दास के अनुसार किसी भी मुर्ख इंसान की न तो दुश्मती भली होती है और न ही दुश्मनी क्योंकि कुत्ता चाहे चाटे या काटे दोनों का कोई अर्थ नहीं है दोनों का कोई महत्व नहीं।

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय।।

अर्थात : छोटे लक्ष्य के बड़े काम की ज्यादा बड़ाई नहीं होती क्योंकि हनुमान जी ने भी पर्वत उठाया और श्री कृष्ण ने भी पर्वत उठाया लेकिन गिरिधर सिर्फ श्री कृष्ण कहलाते हैं क्योंकि हनुमान जी ने पर्वत को उखाड़कर छोटे जीवों को क्षति पहुचाई होगी लेकिन भगवान् श्री कृष्ण ने गिरनार को उठाकर जीवों की रक्षा की थी।

राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।।

अर्थात : रहीम कहते हैं कि यदि होनहार अपने ही हाथ में होती, यदि जो होना है उस पर हमारा बस होता तो ऐसा क्यों होता कि राम हिरन के पीछे गए और सीता का हरण हुआ। क्योंकि होनी को होना था – उस पर हमारा बस न था इसलिए तो राम स्वर्ण मृग के पीछे गए और सीता को रावण हर कर लंका ले गया।

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि।।

अर्थात : माली को देखकर कलियाँ आपस में कहती हैं की आज माली ने सब फूल तोड़ लिए लेकिन कल हमारी बारी आएगी क्योंकि हम भी कल फूल बन जायेंगे और हमें भी तोड़ा जाएगा।

रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।।

अर्थात : रहीम दास कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहणा की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं। जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है।

Famous Rahim Ke Dohe with Hindi Meaning

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय।।

अर्थात : रहीम कहते हैं की किसी एक को साध (सिद्ध) कर लेने से सब साधने की संभावना बढ़ जाती है लेकिन सभी एक साथ साधने की कोशिश में सब चला जाता है और फल पाने के लिए वृक्ष के जड़ को सिचने की आवश्यकता होती है न की सभी फल और पत्तों को।

निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।

अर्थात : रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता।

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

अर्थात : रहिम के अनुसार पानी यह अमूल्य है और उसके बिना सब सुना होगा बिना पानी के न मोती और न मनुष्य और न ही आटा (रोटी) बन सकेगा।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात ।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।

अर्थात : जिस प्रकार क्वार के महीने के बादल सिर्फ गरजते हैं बरसते नहीं उसी प्रकार धनि से निर्धन बना इंसान अपनी पिछली बात ही करता है।

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय ।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

अर्थात : रहीम के अनुसार कीचड़ का पानी बेहतर है क्योंकि उसे पीकर कीड़े-मकोड़े जीवित रहते हैं लेकिन समुद्र का पानी का क्या लाभ जो किसी का प्यास नहीं बुझा सकता।

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