Swarodaya Vigyan : स्वरोदय विज्ञान- क्या है – कैसे करें – क्या फायदे हैं ?

Swarodaya Vigyan

आज की इस Knowledgeable Post में हम आपके लिए लिए लाये हैं   स्वरोदय विज्ञान (Swarodaya Vigyan) : क्या है – कैसे करें – क्या फायदे हैं ? दोस्तों, स्वर एक प्राचीन विज्ञान है जो हमें बताता हैं, हम अपनी श्वास की सहायता से किस प्रकार अपने प्राण को नियन्त्रित एवं संचालित कर सकते हैं।

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Swarodaya Vigyan : स्वरोदय विज्ञान : क्या है – कैसे करें – क्या फायदे हैं ?

स्वरोदय विज्ञान के बारे में सभी को पता होना आवश्यक है। लेकिन साधना हेतु प्रत्येक साधक के लिए स्वर योग साधना की जानकारी होना बहुत जरूरी है। 

स्वरोदय विज्ञान

क्या आप अपनी नाक के बारे में जानते हैं ? जी हाँ नाक का काम गंध की पहचान एवं आवश्यक प्राणवायु ग्रहण करना है। यह तो सभी जानते है पर क्या आप नाक की एक बहुत बड़ी विशेषता स्वरोदय विज्ञान के बारे में जानते हैं। यदि नहीं तो हम आपको इस लेख में स्वरोदय विज्ञान के विषय में पूर्ण जानकारी देंगें। 

क्या है स्वरोदय विज्ञान (What is Swarodaya Vigyan)

स्वरोदय विज्ञान जिसे स्वर विज्ञान भी कहा जाता है एक बहुत ही सरल और प्रभावकारी विद्या है। इस विद्या को प्रसिद्ध स्वर साधक योगीराज यशपालजी ने ‘विज्ञान’ कहकर सुशोभित किया है। इनके अनुसार स्वरोदय, नाक के छिद्र से ग्रहण किया जाने वाला श्वास है, जो वायु के रूप में होता है। श्वास ही जीव का प्राण है और इसी श्वास को स्वर कहा जाता है।

इसमें तीन स्वर होते है ; सूर्य, चंद्र और सुषुम्ना स्वर

स्वर योग के अनुसार हमारे तीन स्वर होते हैं – एक स्वर जो बाएँ नथुने से प्रवाहित होता है।  दूसरा स्वर जो दाहिने नथुने से प्रवाहित होता है। तीसरा स्वर जो दोनों नथुनों से प्रवाहित होता है। यह तीनों स्वर हमारे शरीर और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं, जिसके फलस्वरूप हमारे शरीर का पूरा नाड़ी संस्थान भी प्रभावित होता है।

स्वरोदय विज्ञान कैसे करें (How to do Swarodaya Vigyan)

जब बाएँ नथुने से श्वास का प्रवाह होता है, तब उस समय हमारा चित्त क्रियाशील होता है, और जब श्वास का प्रवाह दायें नथुने से होता है। उस समय प्राण शक्तिशाली होता है, और जब श्वास के प्रवाह एक साथ दोनों नथुनों में समान रूप से होता है तब मानव का आत्म पक्ष प्रबल होता है। ऐसी स्थिति में जप ध्यान करना श्रेष्ठ रहता है। नासिका के भीतर चलने वाले इन तीन प्रवाहों को इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना के नाम से भी जाना जाता है।

जब श्वास बाएँ नथुने से प्रवाहित होती है, तो उस समय इड़ा नाड़ी सक्रिय रहती है और जब श्वास दायें नथुने से प्रवाहित होती है तो उस समय पिंगला नाड़ी सक्रिय रहती है।

दाहिने नथुने से श्वास प्रवाह हमें धनात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। जो सूर्य स्वर भी कहलाता है, तथा बायाँ नथुना हमें ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित करता है जो चन्द्र स्वर भी कहलाता है।

यह स्वर कुछ-कुछ समय के पश्चात् बदलते रहते हैं, अर्थात् कभी हमारा दाहिना स्वर चलता है, तो कभी बायाँ या फिर मध्य स्वर ही चलता रहता है। मध्य स्वर जो सुषुम्ना नाड़ी भी कहलाता है, के प्रवाहित होने की स्थिति में दोनों ही नथुनों से श्वास प्रवाहित होती है।

स्वरोदय विज्ञान के अनुसार सूर्य स्वर के प्रवाह में हमारे शरीर में अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। जिसके फलस्वरूप इस दौरान दुष्कर कार्य किये जा सकते हैं, और चन्द्र के प्रवाह में आय सम्बन्धी कार्यो में सफलता मिलती है। सुषुम्ना नाड़ी के प्रवाह में भजन, साधना, जप आदि आध्यात्मिक कार्य सिद्धिदायक है। इस प्रकार स्वरोदय के साधक सावधानीपूर्वक चन्द्र और सूर्य स्वर का अभ्यास करके समस्त सांसारिक कार्याे को अपनी श्वास और प्रश्वास की गति से जान सकते कार्याे को अपनी श्वास और प्रश्वास की गति से जान सकते कार्याे को अपनी श्वास और प्रश्वास की गति से जान सकते हैं।

स्वरोदय विज्ञान के फायदे (Benefits of Swarodaya Vigyan)

जो व्यक्ति दिन रात अपनी उन्नति के लिए विचार करता है-जैसे व्यापार की उन्नति, नया मकान बनवाना, आभूषण बनवाना, वस्त्र सिलवाना, आदि कार्य चन्द्र स्वर में ही करने चाहिए। गुरू पूजन में योगाभ्यास के समय भी यही स्वर फलदायक होता है। जब सूर्य स्वर चल रहा हो तो भूत, पिशाच, डाकिनी, बेताल, यक्ष, गन्धर्वो आदि की साधना, तन्त्र मन्त्र की साधना, स्त्री प्रसंग, युद्ध, शस्त्रार्थ, नवीन विद्याध्ययन तथा शत्रुओं से वार्ता आदि कार्य सिद्ध होते हैं। लिखने में, मारण, मोहन उच्चाटन में, स्तम्भन में, लेनदेन में, शस्त्र ग्रहण करने में सूर्य स्वर सिद्धिदायक होता है।

जब पल-पल में बायाँ स्वर या दाहिना स्वर चल रहा हो, या दोनों नथुनों से श्वास प्रवाहित हो रही हो तो उसे सुषुम्ना स्वर कहते हैं। यह स्वर काल रूप में तथा इतना खतरनाक है कि इसके प्रवाहित होने पर सभी कार्य नष्ट हो जाते हैं। तात्पर्य यह है कि इस स्वर प्रवाह में किये गये सब कार्य निष्फल होते हैं। अतः इस स्वर प्रवाह के समय ईश्वर का जप, ध्यान व आराधना में समय व्यतीत करना चाहिए।

हाँ, सुषुम्ना नाड़ी के चलते हुए हमारा कुण्डलिनी जागरण हो सकता है। हमें सदैव स्मरण रखना चाहिए कि कुण्डलिनी का जागरण बिना इसके सम्भव नहीं है।

स्वरोदय विज्ञान : स्वर कैसे बदलें 

अब प्रश्न यह उठता है कि यदि कोई कार्य हमें जिस स्वर में विशेष में करना हो और उस समय वह स्वर न चल रहा हो, तब क्या करना चाहिए ? इसके लिए हमंे सम्बन्धित स्वर को बदलना होगा। जोकि एक अत्यन्त ही साधारण विध्िा  के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है। इस विधि के अन्तर्गत हमें जो स्वर प्रवाहित हो रहा हो, उसी तरफ करवट लेकर कुछ समय लेट जाना चाहिए। ऐसा करने से विपरीत स्वर प्रवाहित होने लगेगा।

अतः में, मैं यही कहूँगा कि स्वरोदय ज्ञान से न केवल शरीर को ही पूर्ण स्वस्थ्य रखा जा सकता है, बल्कि इसकी सहायता से मन और आत्मा की उन्नति भी की जा सकती है।

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